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अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय

Times Darpan
Last updated: 2020-04-21 19:22
By Times Darpan 1.6k Views
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10 Min Read
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय

अंतरराष्ट्रीय न्यायालय संयुक्त राष्ट्र संघ का न्याय संबंधी प्रमुख अंग है, जिसकी स्थापना संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा पत्र के अंतर्गत हुई है। इसका क्षेत्राधिकार संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणापत्र अथवा विभिन्न; संधियों तथा अभिसमयों में परिगणित समस्त मामलों पर है।

Contents
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय: एक परिचयपृष्ठभूमिअंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का संरचनाअंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का इतिहासअंतर्राष्ट्रीय न्यायालय प्रक्रिया व क्षेत्राधिकारअंतर्राष्ट्रीय न्यायालय और भारत

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय: एक परिचय

  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of justice-ICJ) की स्थापना 1945 में संयुक्त राष्ट्र के चार्टर द्वारा की गई और 18 अप्रैल 1946 में इसने काम करना शुरू किया।
  • यह संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख न्यायिक अंग है जो हेग (नीदरलैंड्स) के पीस पैलेस में स्थित है।
  • यह राष्ट्रों के बीच कानूनी विवादों को सुलझाता है और अधिकृत संयुक्त राष्ट्र के अंगों तथा विशेष एजेंसियों द्वारा निर्दिष्ट कानूनी प्रश्नों पर अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार सलाह देता है।
  • यह कोर्ट छुट्टियों को छोड़कर सदा चालू रहता है। और इस न्यायालय के प्रशासन व्यय संयुक्त राष्ट्रसंघ के द्वारा किया जाता है।
  • इसमें 193 देश शामिल हैं और इसके वर्तमान अध्यक्ष अब्दुलकावी अहमद यूसुफ हैं।

पृष्ठभूमि

  • संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 33 में राष्ट्रों के बीच विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के लिये बातचीत, पूछताछ, मध्यस्थता आदि विधियों की सूची है। इनमें से कुछ विधियों में तीसरा पक्ष भी शामिल है।
  • ऐतिहासिक रूप से, मध्यस्थता और पंच निर्णय की प्रणाली पहले से मौज़ूद रही है। पंच निर्णय प्रणाली प्राचीन भारत तथा इस्लामिक समुदायों का हिस्सा रही थी। बाद के उदाहरणों में इसे प्राचीन ग्रीस, चीन, अरब की जनजातियों के बीच तथा मध्यकालीन यूरोप के समुद्री कानूनों में देखा जा सकता है।
  • संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 93 के अनुसार संयुक्त राष्ट्र के सभी 193 सदस्य इस न्यायालय से न्याय पाने का हक़ रखते हैं। हालांकि जो देश संयुक्त राष्ट्र के सदस्य नही हैं वे भी इस न्यायालय में न्याय पाने के लिये अपील कर सकते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का संरचना

  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में 15 न्यायाधीश होते हैं जो संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद द्वारा चुना जाता है। ये दोनों निकाय एक समय पर लेकिन अलग-अलग मतदान करते हैं।
  • इस न्यायाधीश कि कार्यकाल नौ साल का होता है और फिर यह दोबारा चुना जा सकता है।
  • निर्वाचित होने के लिये किसी उम्मीदवार को दोनों निकायों में पूर्ण बहुमत प्राप्त होना चाहिये।
  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में निरंतरता सुनिश्चित करने के लिये न्यायालय की कुल संख्या के एक-तिहाई सदस्य हर तीन साल में चुने जाते हैं और ये न्यायाधीश पुन: चुनाव के पात्र होते हैं।
  • ICJ को एक रजिस्ट्री द्वारा सहायता दी जाती है, रजिस्ट्री ICJ का स्थायी प्रशासनिक सचिवालय है। 
  • न्यायधीशों की नियुक्ति के संबंध में मुख्य शर्त यह होती है कि दो न्यायधीश एक देश से नहीं चुने जा सकते हैं।
  • न्यायालय के सदस्य स्वतंत्र न्यायाधीश होते हैं जिन्हें दायित्व ग्रहण करने से पूर्व शपथ लेनी होती है कि वे अपनी शक्तियों का निष्पक्षता और शुद्ध अंतःकरण से उपयोग करेंगे।
  • ICJ के न्यायाधीशों की स्वतंत्रता बनाए रखने के लिये न्यायालय के किसी भी सदस्य को तब तक बर्खास्त नहीं किया जा सकता, जब तक कि अन्य सदस्यों की एकमत न हो कि वह आवश्यक शर्तों को पूरा नहीं करता है। 
  • मामलों पर निर्णय न्यायाधीशों के बहुमत से होता है। सभापति को निर्णायक मत देने का अधिकार है। न्यायालय का निर्णय अंतिम होता है तथा इस पर पुनः अपील नहीं की जा सकती है, परंतु कुछ मामलों में पुनर्विचार किया जा सकता है।

न्यायालय के 15 न्यायाधीश निम्नलिखित क्षेत्रों से लिये जाते हैं:

  1. अफ्रीका से तीन
  2. लैटिन अमेरिका और कैरेबियन देशों से दो
  3. एशिया से तीन
  4. पश्चिमी यूरोप और अन्य राज्यों से पाँच
  5. पूर्वी यूरोप से दो

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का इतिहास

  • ग्रेट ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच वर्ष 1872 अलबामा दावे की मध्यस्थता को देखा गया जो कि अधिक निर्णायक चरण रहा है।
  • सन् 1899 ई. में, हेग में, प्रथम शांति सम्मेलन हुआ और उसके प्रयत्नों के फलस्वरूप स्थायी विवाचन न्यायालय की स्थापना हुई। यह वर्ष 1900 में स्थापित हुआ और वर्ष 1902 में इसका परिचालन शुरू हुआ।
  • सन् 1907 ई. में द्वितीय शांति सम्मेलन हुआ और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार न्यायालय (इंटरनेशनल प्राइज़ कोर्ट) का सृजन हुआ जिससे अंतरराष्ट्रीय न्याय प्रशासन की कार्य प्रणाली तथा गतिविधि में विशेष प्रगति हुई।
  • वर्ष 1911 से वर्ष 1919 के बीच राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय निकायों तथा सरकारों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय न्यायिक न्यायाधिकरण की स्थापना के लिये विभिन्न योजनाओं और प्रस्तावों को प्रस्तुत किया गया जिसका समापन प्रथम विश्वयुद्ध के बाद नई अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली के अभिन्न अंग के रूप में अंतर्राष्ट्रीय न्याय के स्थायी न्यायालय (Permanent Court of International Justice-PCIJ) की स्थापना से हुआ।
  • 30 जनवरी 1922 ई. को लीग ऑव नेशंस के अभिसमय के अंतर्गत अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का विधिवत् उद्घाटन हुआ जिसका कार्यकाल राष्ट्रसंघ (लीग ऑव नेशंस) के जीवनकाल तक रहा। 
  • वर्ष 1943 में चीन, सोवियत संघ, ब्रिटेन और अमेरिका ने एक संयुक्त घोषणा-पत्र जारी किया, जिसमें कहा गया कि सभी शांतिप्रिय राष्ट्रों की संप्रभुता, समानता के आधार पर एक सामान्य अंतर्राष्ट्रीय संगठन की स्थापना किये जाने की आवश्यकता है। यह संगठन अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाए रखने के लिये बड़े और छोटे सभी राष्ट्रों के लिये खुला होगा।
  • इसके बाद वर्ष 1945 में जी.एच. हैकवर्थ समिति (USA) को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना के लिये कानून बनाने हेतु मसौदा बनाने का कार्य सौंपा गया।
  • र्ष 1945 में PCIJ की आखिरी बैठक हुई जिसमें अपने अभिलेखागार और प्रभावों को नए अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में स्थानांतरित करने का निर्णय लिया गया।
  • अप्रैल 1946 में PCIJ को औपचारिक रूप से भंग कर दिया गया और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने पहली बार बैठक की तथा PCIJ के अंतिम अध्यक्ष जोस गुस्तावो गुरेरो (एल सल्वाडोर) को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का अध्यक्ष चुना गया।

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय प्रक्रिया व क्षेत्राधिकार

  • न्यायालय की न्यायिक प्रक्रिया, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय नियमावली,1978 के अनुसार चलती है जिसे 29 सितंबर 2005 को संशोधित किया गया था।
  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय को अपनी मर्जी के हिसाब से नियम बनाने की शक्ति प्राप्त है।
  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में किसी देश का कोई स्थायी प्रतिनिधि नहीं होता है।
  • देश सामान्यतया अपने विदेश मंत्री के माध्यम से या नीदरलैंड में अपने राजदूत के माध्यम से रजिस्ट्रार से संपर्क करते हैं जो कि उन्हें कोर्ट में एक एजेंट के माध्यम से प्रतिनिधित्व प्रदान करता है।
  • आवेदक (applicant) को केस दर्ज करवाने से पहले न्यायालय के अधिकार क्षेत्र और अपने दावे के आधार पर एक लिखित आवेदन देना पड़ता है।
  • प्रतिवादी (respondent) न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को स्वीकार करता है और मामले की योग्यता के आधार पर अपना लिखित उत्तर दर्ज करवाता है।
  • इस न्यायालय में मामलों की सुनवाई सार्वजनिक रूप से तब तक होती है जब तक न्यायालय का आदेश अन्यथा न हो अर्थात यदि न्यायालय चाहे तो किसी मामले की सुनवाई बंद अदालत में भी कर सकता है।
  • अंतरर्राष्ट्रीय न्यायालय संविधि में सम्मिलत कोई राष्ट्र किसी भी समय बिना किसी विशेष प्रसंविदा के किसी ऐसे अन्य राष्ट्र के संबंध में, जो इसके लिए सहमत हो, यह घोषित कर सकता है कि वह न्यायालय के क्षेत्राधिकार को अनिवार्य रूप में स्वीकार करता है। 
  • अंतरर्राष्ट्रीय न्यायालय को परामर्श देने का क्षेत्राधिकार भी प्राप्त है। वह किसी ऐसे पक्ष की प्रार्थना पर, जो इसका अधिकारी है, किसी भी विधिक प्रश्न पर अपनी सम्मति दे सकता है।

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय और भारत

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में अभी तक भारत की और से कुल चार न्यायधीश का निर्वाचन हुआ है जो निंम्न है।

  • दलवीर भंडारी: 27 अप्रैल, 2012 से न्यायालय के सदस्य
  • रघुनंदन स्वरूप पाठक: 1989-1991
  • नागेंद्र सिंह: 1973-1988
  • सर बेनेगल राव: 1952-1953

ICJ में पहले भारतीय मुख्य न्यायाधीश डा.नगेन्द्र सिंह थे।

भारत के दलवीर भंडारी अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में अपने दूसरे कार्यकाल (2018-2027) के लिये चुने गए हैं। इसे एक ओर जहाँ भारत की कूटनीतिक जीत माना जा रहा है, वहीं दूसरी ओर यह विश्व में भारतीय न्यायपालिका की स्वच्छ छवि का परिचायक भी है।

दलवीर भंडारी को सुरक्षा परिषद् के सभी 15 मत (5 स्थायी और 10 अस्थायी) तथा संयुक्त राष्ट्र महासभा के 193 में से 183 मत प्राप्त हुए और इसके साथ ही 71 वर्षों बाद पहली बार ऐसा होगा कि अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में ब्रिटेन का कोई भी जज नहीं होगा।

लोकतांत्रिक तरीके से हुई भारत की इस जीत ने सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्यों चीन, अमेरिका, फ्रांस, रूस और ब्रिटेन को अप्रत्यक्ष रूप से यह संदेश दे दिया है कि भारत भविष्य में भी अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर इन शक्तियों को चुनौती देने की क्षमता रखता है।

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