अमेरिकी क्रांति मानव सभ्यता के इतिहास के सबसे बड़े परिवर्तनों में से एक है। इसने अभिनव राजनीतिक परिवर्तनों की एक ऐसी शृंखला को जन्म दिया जिसका दायरा केवल अमेरिका तक सीमित न होकर वैश्विक बन गया।
पृष्ठभूमि
- सन् 1442 ई० में कोलम्बस ने एक नयी दुनियां (अमेरिका) की खोज की। इस खोज से यूरोपीय शक्तियां फ़्रांसिसी, डच स्पेनिस, अंग्रेज आदि इस महाद्वीप में उपनिवेश स्थापित करने लगे। सबसे स्पेन ने अपना उपनिवेश लाया।
- लेकिन इंग्लैंड एवं स्पेन के मध्य 1588 ई. में भीषण नौसैनिक युद्ध हुआ जिसमें स्पेन की पराजय हुई और ब्रिटिश नौसैनिक श्रेष्ठता की स्थापना हुई। जिससे स्पेन वहां से अपना उपनिवेश हटा लिया फिर वहां धीरे धीरे फ्रांस और अंग्रेज ही बचे।
- 17वीं शताब्दी तक अंग्रेज ने वहां 13 उपनिवेश स्थापित किये। इन उपनिवेशों में 90% अंग्रेज और 10% डच, जर्मन, फ्रांसीसी, पुर्तगाली आदि थे।
यूरोपियों के अमेरिका में बसने का कारण
- इंग्लैंड में धर्मसुधार आंदोलन के चलते प्रोटेस्टेंट धर्म का प्रचार हुआ और एग्लिंकन चर्च की स्थापना हुई। किन्तु इसके विरोध में भी अनेक धार्मिक संघ बने।
- स्पेन की तरह इंग्लैंड भी उपनिवेश बनाकर धन कमाना चाहता था। इंग्लैंड औद्योगीकरण की ओर बढ़ रहा था और इसके लिए कच्चे माल की आवश्यकता थी जिसकी आपूर्ति उपनिवेशों से सुगम होती और इस तैयार माल की खपत के लिए एक बड़े बाजार की जरूरत थी। ये अमेरिकी बस्तियां इन बाजारों के रूप में भी काम आती। ब्रिटेन में स्वामित्व की स्थिति में परिवर्तन आया।
अमेरिकी क्रांति का मुख्य कारण
अमेरिका का स्वतंत्रता संग्राम मुख्यतः ग्रेट ब्रिटेन तथा उसके उपनिवेशों के बीच आर्थिक हितों का संघर्ष था। यह उस सामाजिक एवं राजनीतिक व्यवस्था के विरूद्ध भी विद्रोह था जिसकी उपयोगिता अमेरिका में कभी भी समाप्त हो गई थी। अमेरिकी क्रांति एक ही साथ आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक अनेक शक्तियों का परिणाम थी।
कारण 1. अमेरिकी समाज की स्वातंत्र्य चेतना
- अमेरिका में आकर बसने वाले अप्रवासी इंग्लैंड के नागरिकों के अपेक्षा कहीं अधिक स्वातंत्र्य प्रेमी थे। इसका कारण यह था कि यहां का समाज यूरोप की तुलना में कहीं अधिक समतावादी था।
- अमेरिकी समाज में उच्चवर्ग के पास राजनीतिक एवं आर्थिक शक्ति ब्रिटिश समाज की तुलना में अत्यंत कम थी। वस्तुतः अमेरिका में अधिकांश किसानों के पास जमीन थी जबकि ब्रिटेन में सीमांत काश्तकारों एवं भूमिहीन खेतिहर मजदूरों की संख्या ज्यादा थी।
- अमेरिकी उपनिवेशों में आरंभ से ही स्वशासन की व्यवस्था विद्यमान थी जो समय के साथ विकसित होती गई।
कारण 2. दोष पूर्ण शासन व्यवस्था
- औपनिवेशिक शासन को नियंत्रित करने के लिए ब्रिटिश सरकार गवर्नर की नियुक्ति करती थी और सहायता देने के लिए एक कार्यकारिणी समिति होती थी जिसके सदस्यों का मनोनयन ब्रिटिश ताज द्वारा किया जाता था।
कारण 3. ब्रिटिश सरकार का सीमित हस्तक्षेप
- इंग्लैंड ने आरंभ में ही उपनिवेशों की स्वच्छंदता व स्वशासन पर अंकुश लगाने का प्रयत्न नहीं किया क्योंकि इंग्लैंड में 17वीं सदी के आरंभ से लेकर “रक्तहीन क्रांति” (1688) के लगभग 85 वर्षों के बीच राजतंत्र एवं संसद के बीच निरंतर संघर्ष चल रहा था।
- जब सरकार ने विभिन्न करों को लगाकर उन्हें सख्ती से वसूलने का प्रयास किया तो उपनिवेशों में असंतोष हुआ।
कारण 4. संवैधानिक मुद्दे
- ब्रिटेन ने अमेरिकी उपनिवेश में कई प्रकार के कर-कानून लागू कर स्थानीय करों को बढ़ाने का प्रयत्न किया। इससे भी उपनिवेश में घोर असंतोष की भावना बढ़ी। यहां एक संवैधानिक मुद्दा भी उठ खड़ा हुआ।
- ब्रिटिश का मानना था कि ब्रिटिश संसद सर्वोच्च शक्ति है और वह अपने अमेरिकी उपनिवेश के मामले में किसी प्रकार का कानून पारित कर सकती है।
कारण 5. उपनिवेशों के प्रति कठोर नीति
ब्रिटिश शासक जार्ज तृतीय 1760 ई. इंग्लैंड की गद्दी पर बैठा और उसने इंग्लैंड की संसद की अपनी कठपुतली बनाए रखने का सफल प्रयास किया तथा औपनिवेशक कानूनों को कड़ाई से लागू करने की बात की। इसके समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री ग्रेनविले ने इन कानूनों को कड़ाई से लागू करने का प्रयास किया। वस्तुतः सप्तवर्षीय युद्ध में ब्रिटिश को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा था। इस सख्ती कानून के कारण सुगर एक्ट (1764), स्टाम्प एक्ट (1765) पारित हुआ।
तात्कालिक कारण
लॉड नार्थ की चाय नीति-1773 ई. में ईस्ट इंडिया कम्पनी को वित्तीय संकट से उबारने के लिए ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री लॉर्ड नार्थ ने कानून बनाया कि कम्पनी सीधे ही अमेरिका में चाय बेच सकती है। कम्पनी के जहाजों को इंग्लैंड के बंदरगाहों पर आने और चुंगी देने की आवश्यकता नहीं है। इस कदम का लक्ष्य था कम्पनी को घाटे से बचाना तथा अमेरिकी लोगों को चाय उपलब्ध कराना।
अमेरिकी उपनिवेश के लोग कम्पनी के इस एकाधिकार से अप्रसन्न थे क्योंकि उपनिवेश बस्तियों की सहमति के बिना ही ऐसा नियम बनाया गया था। अतः उपनिवेश में इस चाय नीति का जमकर विरोध हुआ और कहा गया कि “सस्ती चाय” के माध्यम से इंग्लैंड बाहरी कर लगाने के अपने अधिकार को बनाए रखना चाहता था। अतः पूरे देश में चाय योजना के विरूद्ध आंदोलन शुरू हो गया।
16 दिसम्बर 1773 को सैमुअल एडम्स के नेतृत्व में बोस्टन बंदरगाह पर ईस्ट इंडिया कम्पनी के जहाज में भरी हुई चाय की पेटियों को समुद्र में फेंक दिया गया। अमेरिकी इतिहास में इस घटना को बोस्टन टी पार्टी कहा जाता है। ब्रिटिश सरकार ने अमेरिकी उपनिवेशवासियों को सजा देने के लिए कठोर एवं दमनकारी कानून बनाए। बोस्टन बंदरगाह को बंद कर दिया गया।
इंग्लैंड की असफलता के कारण
ब्रिटेन को एक अजेय राष्ट्र माना जाता था। अमेरिकी उपनिवेशों के हाथों उसकी हार आश्चर्यजनक थी। अमेरिकन का अंग्रेजो के समक्ष कोई अस्तित्व नहीं था फिर भी अमेरिका की विजय हुई। इसके कारण थे, “प्रकृति, फ्रांस और जॉर्ज वाशिगंटन” की भूमिका। अमेरिका में अंग्रेज के अत्याचार और शोषण से ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हुई जिसे अमेरिकी आंदोलन के लिए बाध्य हो गया। जॉर्ज वाशिंगटन के नेतृत्व में अमेरिकी वासियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन शुरू कर दिया। जिसके परिणाम स्वरुप अंग्रेजो को अमेरिका छोड़ना पड़ा।
- अमेरिकी तट इतना अधिक विस्तृत था कि ब्रिटिश नौसेना प्रभावहीन हो गई और इंग्लैंड के यूरोपीय शत्रुओं उपनिवेश वासियों का पक्ष लिया और युद्ध क्षेत्र और भी विस्तृत हो गया।
- युद्ध स्थल का इंग्लैंड से अत्यधिक दूर होना।
- उपनिवेशों की शक्ति का इंग्लैंड द्वारा गलत अनुमान।
- जार्ज तृतीय का अलोक प्रिय शासन।
- जार्ज वाशिगंटन का कुशल नेतृत्व।
अमेरिकी क्रांति का प्रभाव
अमेरिका पर प्रभाव
- क्रांति के पश्चात् विश्व के इतिहास में एक नए संयुक्त राज्य अमेरिका का जन्म हुआ। जब संसार के सभी देशों में राजतंत्रात्मक शासन व्यवस्था स्थापित थी उस दौर में अमेरिका में प्रजातंत्र की स्थापना की गई।
- गणतंत्र की स्थापना अमेरिकी क्रांति की सबसे बड़ी देन थी। अमेरिका में प्रतिनिधि सरकार की स्थापना हुई और लिखित संविधान का निर्माण किया गया। संघात्मक शासन व्यवस्था की स्थापना हुई।
- क्रांति के परिणामस्वरूप अमेरिकी जनता को एक परिवर्तित सामाजिक व्यवस्था प्राप्त हुई जिसमें मानवीय समानता पर विशेष बल दिया गया।
इंग्लैंड पर प्रभाव
- इंग्लैंड में जार्ज तृतीय एवं प्रधानमंत्री लॉर्ड नॉर्थ दोनों की निन्दा होने लगी। इंग्लैंड की अराजकता के लिए इन दोनों को उत्तरदायी माना गया।
- अमेरिकी क्रांति ने राजा के अधिकार पर आधारित राजतंत्र पर भीषण प्रहार किया और हाउस ऑफ कॉमन्स में राजा के अधिकारों को सीमित करने का प्रस्ताव पारित किया तथा लार्ड नॉर्थ को प्रधानमन्त्री पद से त्यागपत्र देना पड़ा। इससे जार्ज तृतीय के व्यक्तिगत शासन का अंत हो गया।
- 13 अमेरिकी उपनिवेशों के स्वतंत्र हो जाने से इंग्लैंड के औपनिवेशिक साम्राज्य को ठेस पहुंची। आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड में ब्रिटिश उपनिवेश की स्थापना हुई।
- अमेरिकी उपनिवेश के हाथ से निकल जाने से ब्रिटिश सरकार ने शेष बचे हुए उपनिवेशों को अपने अधीन रखने के लिए औपनिवेशिक शोषण की नीति को छोड़ा और उपनिवेशों की जनता के अधिकारों एवं मांगों का सम्मान किया।
- ब्रिटिश सरकार ने “ब्रिटिश कामन्वेल्थ ऑफ नेशन्स” अर्थात् ब्रिटिश राष्ट्र मंडल की स्थापना की।
फ्राँसिसी क्रांति पर प्रभाव
- अमेरिकी क्रांति ने फ्राँसिसियों के लिये प्रेरणा का कार्य किया और स्वतंत्रता, समानता जैसे मूल्यों को नए रूप में प्रस्तुत किया।
- फ्राँसिसी जनरल लफायते, जिन्होंने अमेरिकी क्रांति में भाग लिया था, फ्राँसिसी क्रांति क्रांति के भी सफल नायक बनकर उभरे।
- फ्राँसीसी सैनिकों ने अमेरिकी क्रांति में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था, इसी से प्रेरित होकर वे फ्राँस में अमेरिका की तरह ही समानता व स्वतंत्रता प्रदान करने वाली लोकतांत्रिक दशाओं को स्थापित करना चाहते थे।
स्वतंत्रता संग्राम की प्रकृति
अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम को दो चरणों में बांट कर देखा जा सकता है –
- प्रथम चरण 1762-72 का काल, क्रांतिकारी आंदोलन का काल रहा। इस काल में औपनिवेशिक शोषण के विरूद्ध आवाज उठाई गई तथा ब्रिटिश साम्राज्य के अंदर ही आंतरिक सुधारों पर बल दिया गया। जब यह प्रयास विफल हो गया।
- 1772 के बाद दूसरा चरण आरंभ होता है जो स्वतंत्रता-संग्राम का चरण रहा। इस चरण में अमेरिकी नेताओं ने केवल कर लगाने के अधिकार को ही चुनौती नहीं दी बल्कि यह घोषित किया कि ब्रिटिश साम्राज्य खुद ही एक मुख्य समस्या है और उससे मुक्ति ही एकमात्र रास्ता है।
अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम की क्रांति, इसे क्रांति इसलिए कहा जाता है कि सम्पूर्ण आधुनिक विश्व इतिहास के संदर्भ में राजनीतिक, सामाजिक और वैचारिक पहलुओं पर परिवर्तन लाया गया।
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