जल एक बहुमूल्य संसाधन है। जल संसाधन पानी के वह स्रोत हैं जो मानव के लिए उपयोगी हों या जिनके उपयोग कृषि, औद्योगिक, घरेलू, मनोरंजन और पर्यावरणीय गतिविधियों में होता है। इन सभी मानवीय उपयोगों में ज्यादातर में ताजे जल की आवश्यकता होती है। पृथ्वी पर पानी की कुल उपलब्ध मात्रा अथवा भंडार को जलमण्डल कहते हैं।
जल संसाधनों की उपयोग
जल एक प्राकृतिक संसाधन है, जिसको एक बार उपयोग के बाद पुन: शोधन कर उपयोग योग्य बनाया जा सकता है। जल ही ऐसा संसाधन है जिसकी हमें नियमित आपूर्ति आवश्यक है जो हम नदियों, झीलों, तालाबों, भू-जल, महासागर तथा अन्य पारस्परिक जल संग्रह क्षेत्रों से प्राप्त करते है। जल का सर्वाधिक उपयोग सिंचाई में 70 प्रतिशत, उद्योगों में 23 प्रतिशत, घरेलु तथा अन्य में केवल 7 प्रतिशत ही उपयोग में लिया जाता है।
- मनुष्य के लिए पेयजल
- पशुधन के लिए पेयजल
- अन्य घरेलु, वाणिज्यिक एवं स्थानीय निकाय उपयोगार्थ
- कृषि
- ऊर्जा उत्पादन
- पर्यावरण एवं पारिस्थतिकी उपयोगार्थ
- उद्योग
- अन्य उपयोग जैसे सांस्कृतिक एवं पर्यटन सम्बन्धी उपयोग
जल संसाधन के स्रोत
सतही जल
सतही जल पृथ्वी की सतह पर पाया जाने वाला जल है जो गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में ढाल का अनुसरण कर नदियों में प्रवाहित हो जाता है। यह पोखरों, तालाबों और झीलों या मीठे पानी की आर्द्र भूमियों में स्थित है। जल तंत्र में पानी की कुल मात्रा झीलों, आर्द्रभूमियों और कृत्रिम जलाशयों में भंडारण क्षमता का कारण है। मनुष्य द्वारा पानी की कुल उपलब्ध मात्रा पर ध्यान देना जरूरी है।
मनुष्य जल उपयोग में बहुत सारे वर्ष में एक निश्चित और अल्प अवधि के लिए सतह जल के एक विशाल भंडार क्षमता का निर्माण करते हैं, जहाँ साल भर पानी इकट्ठा रख सके। इसका उपयोग खेतों में वसंत और ग्रीष्म ऋतु में पानी की आवश्यकता के लिए होती है। जल के भंडारों के मामले में ब्राज़ील दुनिया सबसे अधिक जल भंडार रखने वाला देश है जिसके बाद बाद दूसरे और तीसरे स्थान पर रूस और कनाडा है। भारत में मुख्यतः 6 नदी बेसिनों में जल वितरित है –
- सिन्धु
- गंगा
- ब्रह्मपुत्र
- पूर्वी तट की नदियाँ
- पश्चिम तट की नदियाँ
- अंत: प्रवाही बेसिन
भूमिगत जल
भूमिगत जल मिट्टी और चट्टानों के रंध्राकाशों (pore) में स्थित होता है। यह जल स्तर के नीचे जल भरे (aquifer) के भीतर बहने वाला जल है। इस प्रवाह को अधोप्रवाह (underflow) कहा जाता है। सतह के ठीक नीचे के जल को भूजल तथा अत्यधिक गहराई में पाए जाने वाले जल को भूगर्भिक जल या जीवाश्म जल (fossil water) कहते हैं। भूजल का विशाल जल भंडार जल का आगमन या धरातल की सतह के ऊपर के सतही जल के नीचे की ओर रिसाव से बनता है। इससे जल का निष्कासन अधोप्रवाह द्वारा समुद्रों या फिर अत्यधिक गहरे जीवाश्म जल के रूप में होता है। भूमिगत जल की उपलब्धि भारत के तीन प्रदेश हैं –
- उत्तरी मैदान (कोमल मिट्टी, प्रवेश्य चट्टानें) – 42% जल
- प्रायद्वीपीय पठार (कठोर अप्रवेश्य चट्टानें) – कम जल
- तटीय मैदान – पर्याप्त जल
जल संसाधन की समस्या
जल का प्रधान एवं महत्वपूर्ण स्रोत मानसूनी वर्षा है। जलवायु एक जटिल प्रणाली है। इसमें परिवर्तन आने से वायुमण्डल के साथ ही महासागर, बर्फ, भूमि, नदियाँ, झीलें तथा पर्वत और भूजल भी प्रभावित होते है। इन कारकों के परिवर्तन से पृथ्वी पर पायी जाने वाली वनस्पति और जीव-जन्तुओं पर भी प्रभाव परिलक्षित होता है। सागर के वर्षा वन कहलाये जाने वाले मूंगा की चट्टानों पर पायी जाने वाली रंग-बिरंगी वनस्पतियाँ प्रभावित हो रही है। वर्षा की अनियमितता, अनिश्चितता एवं असमान वितरण पाई जाती है। इस असमानता को दूर करने के लिये बेसिन में जल संसाधन संरक्षण की आवश्यकता है। जल संसाधन की प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं –
- जल की कमी
- भूमिगत जल संसाधन का अति विदोहन
- धरातलीय जल का उचित प्रयोग न कर पाना
- निरंतर कृषि भूमि का विस्तार
- शहरीकरण एवं उद्योगीकरण
- जल का अनावश्यक उपयोग
- वर्षा के पानी
- जलाशयों एवं जल संग्रह क्षेत्रों की कमी, एवं
- जल शोधन संयंत्रों की कमी।
जल संसाधन संकट में
जलवायु परिवर्तन से सूखा पड़ेगा जिसका प्रभाव खाद्यान उत्पादन पर पड़ेगा। जल की उपलब्धता भी घटेगी क्योंकि वर्तमान समय में कुल स्वच्छ पानी का 50 प्रतिशत मानवीय उपयोग में लाया जा रहा है। कुवैत, जॉर्डन, इजराइल, रवांडा तथा सोमालिया जैसे देश में भंयकर जल संकट उत्पन्न होगा। अमेरिकी सुरक्षा एजेंसी ने अनुमान लगाया है कि कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा दुगुनी होने से उत्पन्न गर्मी के कारण कैलिफोर्निया में पानी की वार्षिक आपूर्ति में सात से सोलह प्रतिशत की कमी आ सकती है। जलवायु परिवर्तन से कृषि के साथ ही वनों की प्राकृतिक संरचना भी बदल सकती है।
जल संरक्षण
जल एक प्राकृतिक उपहार है, जिसका विवेक पूर्ण उपयोग किया जाना चाहिए। नदी बेसिन में जल का मुख्य स्रोत सतही एवं भूमिगत जल है। सतही जल में नदियाँ, नहरें एवं जलाशय है जबकि भूमिगत जल में कुआँ एवं नलकूप प्रमुख है। बेसिन में सतही जल का 1,41,165 लाख घन मीटर एवं भूमिगत जल का 11,134 लाख घन मीटर उपयोग हो रहा है। यहाँ वर्षा का औसत 1061 मिलीमीटर है एवं कुछ फसली क्षेत्र का प्रतिशत 60.12 है।
जल संरक्षण के उपाय
नदी बेसिन ग्राम प्रधान होने के कारण कृषि का विस्तार हुआ है, साथ ही यहाँ औद्योगीकरण के कारण नगरों का भी विकास तीव्रता से हो रहा है। बेसिन में जनसंख्या एवं औद्योगीकरण के दबाव से जलीय समस्या हो गई है इसे उपलब्ध भूमिगत जल एवं धरातलीय जलस्रोतों के आधार पर दूर किया जा रहा है। प्रदूषित जल को शोधन संयंत्र द्वारा शुद्ध कर सिंचाई हेतु प्रयोग में लाना, पक्के जलाशयों, तालाबों एवं सिंचाई नहरों का निर्माण, जल की अनावश्यक बर्बादी को रोकना, वैकल्पिक साधन जैसे भूमिगत जल का पुन: पूर्ति करना, जल के अनियंत्रित प्रवाह को रोकना एवं जल का वैज्ञानिक तरीके से प्रयोग करना आदि जल संरक्षण भविष्य की आवश्यकता को देखते हुए किया जा रहा है।
भारत में जल संसाधनों का प्रबंधन
- जल संसाधनों के प्रबंध से अर्थ है- ‘‘ऐसा कार्यक्रम बनाना जिससे किसी जल श्रोत या जलाशय को क्षति पहुँचाये बिना विभिन्न उपयोगों के लिए अच्छे किस्म के जल की पर्याप्त पूर्ति हो सके।’’ जल संरक्षण के लिए इन बातों को ध्यान में रखने का प्रयास करना चाहिए –
- जल प्रबन्धन के अन्तर्गत भूमिगत जलाशय का पुनर्भरण और आवश्यकता से अधिक जल वाले क्षेत्रों से अभाव वाले क्षेत्रों की ओर जल की आपूर्ति करना है।
- भूमिगत जल का पुनर्भरण जल प्रबन्ध का सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू है। पर्वतों और पहाड़ों पर जल विभाजक वनस्पति से ढंके होते हैं। जल विभाजक की घास – फूस से ढंकी मृदा से वर्षा का जल अच्छी तरह से अन्दर प्रविष्ट हो जाता है, यहाँ से यह जल जलभर में पहँच जाता है।
- नगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों में बरसाती पानी, इस्तेमाल किया हुआ पानी या घरेलू नालियों का पानी, गड्ढ़ों या किसी अन्य प्रकार के गड्ढ़ों में पहुँच जाता है। बाढ़ का पानी गहरे गड्ढ़ों के माध्यम से जलभर में पहुँच जाता है या छोटे – छोटे गड्ढ़ों से खेतों में फैल जाता है।
- घरेलू और नगरीय अपशिष्ट जल के समुचित उपचार से औद्योगिक और कृषि कार्यों के लिए उपयुक्त जल प्राप्त हो सकता है। अपशिष्ट जल के उपचार से प्रदूषकों, हानिकारक जीवाणुओं और विषाक्त तत्वों को हटाया जा सकता है।
- समुद्री जल का विलवणीकरण किया जाये। सौर ऊर्जा के इस्तेमाल से समुद्रों के लवणीय जल का आसवान किया जा सकता है। जिससें अच्छी किस्म का अलवणीय व स्वच्छ जल प्राप्त हो सकता है। समुद्र जल के विलवणीकरण की इस विधि से जिससे पानी से लवणों को दूर किया जाता है, का इस्तेमाल हमारे देश में कुछ स्थानों जैसे गुजरात में भावनगर और राजस्थान में चुरू में किया जा रहा है।
- जल के अति उपयोग को कम किया जाये। जल के अति उपयोग को कम करना बहुत ही जरूरी है, क्योंकि आवश्यकता से अधिक जल का इस्तेमाल बहुमूल्य और अपर्याप्त संसाधन की ऐसी बर्बादी है जिसे क्षमा नहीं किया जा सकता है। हमारे देश में नलों से पानी रिसने के कारण और नलकर्म की खराबी की वजह से बहुत से जल की बर्बादी होती है। इसी प्रकार अत्यधिक सिंचाई की रोकथाम भी जरूरी है।
- सामान्य प्रवाह से अधिक जल और बाढ़ का पानी उन क्षेत्रों की ओर ले जाया जा सकता है जहाँ इसका अभाव है, इससे न केवल बाढ़ द्वारा नुकसान होने की सम्भावना समाप्त हो जावेगी, बल्कि अभावग्रस्त क्षेत्रों को भी लाभ पहुँचेगा।