पंचायती राज व्यवस्था त्रि-स्तरीय है, जिसमें ज़िला परिषद, पंचायत समिति, ग्राम पंचायत आते हैं। भारत में प्राचीन समय से ही पंचायती राज व्यवस्था चलता आ रहा हैं। आधुनिक भारत में प्रथम बार तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा राजस्थान के नागौर जिले के बगदरी गाँव में 2 अक्टूबर 1959 को पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई। भारतीय संविधान में शासन चलाने से कुछ निर्देशक सिद्धांतों का उल्लेख है, इन्हें Directive Principles of State Policy कहते हैं।
इन सिद्धांतों में से एक सिद्धांत यह है कि भारत की सरकार देश में ग्राम स्वशासन के दिशा में कार्रवाई करे। इस निर्देश के अनुपालन के लिए 1992 में संविधान में 73वाँ संशोधन किया गया। भारत में 24 अप्रैल को हर वर्ष राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के रूप में मनाया जाता है।
- बलवंत राय मेहता समिति की सिफारिशें (1957) –
- अशोक मेहता समिति की सिफारिशें (1977) –
- जी वी के राव समिति (1985) –
- डॉ एल ऍम सिन्घवी समिति (1986) –
- ग्राम सभा को ग्राम पंचायत के अधीन किसी भी समिति की जाँच करने का अधिकार
बलवंत राय मेहता समिति
भारत में “पंचायती राज” की स्थापना के उद्देश्य से भारत सरकार ने बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता में एक समिति की नियुक्ति की थी। इस समिति ने भारतीय लोकतंत्र की सफलता के लिए लोकतंत्र को मजबूत करने की आवश्यकता पर बल दिया। उसने प्रजातांत्रिक विकेंद्रीकरण के सिद्धांत को लागू करने की सिफारिश की। इसके लिए तीन समिति का गठन किया गया –
- ज़िला परिषद
- पंचायत सेवक
- ग्राम पंचायत
बलवंत राय मेहता समिति के द्वारा दिए गए सुझाव था कि लोकतंत्र की आधारशिला को मजबूत बनाने के लिए राज्यों की उच्चतर इकाइयों (जैसे प्रखंड, ज़िला) से ग्राम पंचायतों का अटूट संबंध हो। इसके लिए, प्रखंड और जिले में पंचायती व्यवस्था आवश्यक है। प्रखंड-स्तर पर एक निर्वाचित शासन संस्था की स्थापना की जाए जिसका नाम पंचायत समिति रखा जाए। इस पंचायत समिति का संगठन ग्राम पंचायतों द्वारा हो। ज़िला-स्तर पर एक निर्वाचित शासन संस्था की स्थापना की जाए जिसका नाम ज़िला परिषद रखा जाए। इस ज़िला परिषद का संगठन पंचायत समितियों द्वारा हो।
ग्राम पंचायत
ग्राम पंचायत में कार्यो के आधार पर इसे कुछ भाग में बाँटा गया है –
सरपंच – ग्राम पंचायत की न्यायपालिका को ग्राम कचहरी कहते हैं जिसका प्रधान सरपंच होता है। सरपंच का भी निर्वाचन मुखिया की तरह ही प्रत्यक्ष ढंग से होता है, सरपंच का कार्यकाल 5 वर्ष है। उसे कदाचार, अक्षमता या कर्तव्य हीनता के कारण सरकार द्वारा हटाया भी जा सकता है। अगर 2/3 पंच सरपंच के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पास कर दें तो सरकार सरपंच को हटा सकती है। सरपंच का प्रमुख कार्य ग्राम कचहरी का सभापतित्व करना है। वह प्रत्येक मुकदमे की सुनवाई के लिए दो पंचों को मनोनीत करता है। ग्राम कचहरी की सफलता बहुत हद तक उसकी योग्यता पर निर्भर करती है।
मुखिया – ग्राम पंचायत के अंतर्गत मुखिया का स्थान महत्त्वपूर्ण है। उसकी योग्यता तथा कार्य कुशलता पर ग्राम पंचायत की सफलता निर्भर करती है। मुखिया ग्राम पंचायत की कार्य कारिणी समिति के चार सदस्यों को मनोनीत करता है। मुखिया का कार्यकाल 5 वर्ष है। ग्राम पंचायत अविश्वास प्रस्ताव पास कर मुखिया को पद से हटा सकती है। उसकी सहायता के लिए ग्राम रक्षा दल भी होता है।
पंचायत सेवक – ग्राम पंचायत का एक कार्यालय होता है, जो एक पंचायत सेवक के अधीन होता है। पंचायत सेवक की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा होती है। उसे राज्य सरकार द्वारा निर्धारित वेतन मिलता है। ग्राम पंचायत की सफलता पंचायत सेवक पर निर्भर करती है। वह ग्राम पंचायत के सचिव के रूप में कार्य करता है और इस नाते उसे ग्राम पंचायत के सभी कार्यों के निरीक्षण का अधिकार है। वह ग्राम पंचायत के क़ागज़ात से पूरी तरह परिचित रहता है और आवश्यकता पड़ने पर उन्हें पेश करता है। ग्राम पंचायत के सभी कार्यों के संपादन में उसका महत्त्वपूर्ण स्थान है।
ग्राम रक्षा दल – 18 से 30 वर्ष के स्वस्थ युवकों से ग्राम रक्षा दल बनता है। गाँव की रक्षा के लिए यह दल होता है, जिसका संगठन ग्राम पंचायत करती है। चोरी, डकैती, अगलगी, बाढ़, महामारी इत्यादि आकस्मिक घटनाओं के समय यह दल गाँव की रक्षा करता है। इसका नेता “दलपति” कहलाता है।
ग्राम पंचायत के कार्य
- पंचायत क्षेत्र के विकास के लिए वार्षिक योजनाएँ तैयार करना
- वार्षिक बजट तैयार करना
- प्राकृतिक आपदा में सहायता-कार्य पूरा करना
- लोक सम्पत्ति से अति क्रमण हटाना
- कृषि और बाग़वानी का विकास और उन्नति
- बंजर भूमि का विकास
- पशु पालन, डेयरी उद्योग और मुर्गी पालन
- चारागाह का विकास
- गाँवों में मत्स्य पालन का विकास
- सड़कों के किनारे और सार्वजनिक भूमि पर वृक्षारोपण
ग्राम पंचायत की आय के स्रोत
- भारत सरकार से प्राप्त अंश दान, अनुदान या ऋण अथवा अन्य प्रकार की निधि
- राज्य सरकार द्वारा प्रदत्त चल एवं अचल संपत्ति से प्राप्त आय
- राज्य सरकार द्वारा प्रदत्त अंश दान, अनुदान या ऋण संबंध अन्य आय
- राज्य सरकार की अनुमति से किसी निगम, निकाय, कम्पनी या व्यक्ति से प्राप्त अनुदान या ऋण
पंचायत समिति
पंचायती राज प्रखंड स्तर पर ग्राम स्व शासन की व्यवस्था की गई है। प्रखंड स्तर पर गठित निकाय पंचायत समिति कहलाता है। प्रत्येक प्रखंड (Development Block) में एक पंचायत समिति की स्थापना होती है जिसका नाम उसी प्रखंड के नाम पर होता है। राज्य सरकार को पंचायत समिति के क्षेत्र को घटाने-बढ़ाने का अधिकार होता है।
- पंचायत समिति के अंतर्गत प्रत्येक ग्राम पंचायत का मुखिया पंचायत समिति का सदस्य होगा।
- प्रखंड के अंतर्गत चुनाव क्षेत्रों द्वारा निर्वाचित राज्य विधान सभा और संघीय लोक सभा के सभी सदस्य होंगे।
- विधान परिषद और संघीय राज्य सभा के सभी सदस्य, जो उस प्रखंड के निवासी हों।
- सदस्यों का कार्य काल पाँच वर्ष होगा। राज्य सरकार द्वारा पर्याप्त कारणों से निर्वाचन नहीं होने की स्थिति में पंचायत समिति के निर्वाचन में विलंब से छह माह तक बढ़ाई जाती है।
- वही व्यक्ति पंचायत की समिति का सदस्य हो सकता है – भारत का नागरिक हो, 25 वर्ष की आयु हो, सरकार के अंदर किसी लाभ के पद पर न हो।
स्थाई समिति
पंचायत समिति के कार्यों का संपादन स्थाई समितियों द्वारा होगा जिनमें निम्नलिखित प्रमुख समिति होंगी –
- कृषि, पशु पालन, लघु सिंचाई और सहकारिता समिति
- शिक्षा समिति जिसमें समाज-शिक्षा, स्थानीय कला और शिल्प, लघु बचत तथा कुटीर उद्योग और शिक्षा आदि होंगे
- सार्वजनिक स्वास्थ्य और सफाई समिति, यातायात और निर्माण समिति
- आर्थिक और वित्तीय समिति
- समाज कल्याण समिति इत्यादि
राज्य सरकार और ज़िला परिषद की अनुमति से पंचायत समिति अन्य स्थाई समितियों का निर्माण कर सकती है। प्रत्येक स्थाई समिति में 5-7 तक सदस्य होंगे। सदस्यों का निर्वाचन पंचायत समिति अपने सदस्यों में ही करती है। समिति के सदस्य समिति के अध्यक्ष का निर्वाचन करते हैं। आर्थिक और वित्त समिति का अध्यक्ष पंचायत समिति का प्रमुख होता है।
प्रमुख और उप प्रमुख
पंचायत समिति में एक प्रमुख और एक उप प्रमुख होगा, जिनका निर्वाचन पंचायत समिति के सदस्य करेंगे, लेकिन कोई सह-सदस्य इन पदों के लिए उम्मीदवार नहीं हो सकता है। प्रमुख पंचायत समिति का अध्यक्ष होता है। उसका कार्यकाल पाँच वर्ष है। पंचायत समिति अविश्वास का प्रस्ताव (No-confidence motion) पास करके और राज्य सरकार आदेश जारी करके प्रमुख और उप प्रमुख को पद से हटा सकती है।
पंचायत समिति की सभा बुलाना, उसके अध्यक्ष का आसन ग्रहण करना प्रमुख का काम है। वह पंचायत समिति के कार्यों का संचालन करता है, उनका निरीक्षण करता है और उसके कार्यकलाप की रिपोर्ट समिति को देता है। संकट काल में वह प्रखंड पदाधिकारी के परामर्श से आवश्यक कार्यवाही कर सकता है।
प्रखंड विकास पदाधिकारी
प्रखंड विकास पदाधिकारी पंचायत समिति का पदेन सचिव (Secretary) होगा और उसका काम पंचायत समिति के प्रस्तावों को कार्यान्वित करना होगा। प्रमुख की अनुमति से वह पंचायत समिति की बैठक बुलाएगा और उसकी कार्यवाही का रिकॉर्ड रखेगा। पंचायत समिति की बैठक में उसे भाग लेने का अधिकार है, किन्तु मतदान करने का उसे अधिकार नहीं है। वह पंचायत समिति के वित्त का प्रबंध करेगा। उसे आपातकालीन शक्तियाँ भी दी गई हैं।
पंचायत समिति के कार्य
पंचायत समिति को अपने क्षेत्र के अंतर्गत सभी विकास-कार्यों के संपादन का अधिकार दिया गया है। ग्राम पंचायतों, सहकारी समितियों की मदद से पंचायत समिति ग्रामीण क्षेत्र के विकास के लिए कोई भी आवश्यक कार्य कर सकती है। पंचायत समिति के कार्य निम्न प्रकार के होते हैं –
- शिक्षा-संबंधी कार्य
- स्वास्थ्य-संबंधी कार्य
- कृषि-संबंधी कार्य
- ग्रामोद्योग-संबंधी कार्य
- आपातकालीन कार्य
पंचायत समिति की आय के साधन
पंचायत समिति की आय के निम्नलिखित साधन हैं –
- ज़िला परिषद से प्राप्त स्थानीय सेंस, भू राजस्व का अंश और अन्य रकम
- कर, चुंगी, अधिभार (surcharge) और फ़ीस से प्राप्त आय
- सार्वजनिक घाटों, मेलों, हाटों तथा ऐसे ही अन्य स्रोतों से आने वाली आय
- भारत सरकार और राज्य सरकार से प्राप्त अंश दान या अनुदान या ऋण सहित अन्य प्रकार की निधियाँ
ज़िला परिषद
प्रत्येक ज़िला में एक परिषद की स्थापना होगी। ज़िला परिषद के निम्नलिखित सदस्य होंगे –
- क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों से सीधे निर्वाचित सदस्य का प्रत्येक सदस्य ज़िला परिषद क्षेत्र की यथासंभव 50,000 की जनसंख्या के निकटतम का प्रतिनिधित्व करेगा।
- निर्वाचित सदस्यों की संख्या जिलाधिकारी द्वारा निश्चित की जाएगी। प्रत्येक क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्र से एक सदस्य निर्वाचित किया जाएगा।
- जिले की सभी पंचायत समितियों के प्रमुख
- लोक सभा और राज्य विधान सभा के वैसे सदस्य जो जिले के किसी भाग या पूरे जिले का प्रतिनिधित्व करते हों और जिनका निर्वाचन क्षेत्र जिले के अंतर्गत पड़ता हो।
- राज्य सभा और राज्य विधान परिषद के वैसे सदस्य जो जिले के अंतर्गत निर्वाचक के रूप में पंजीकृत हो।
स्थानों का आरक्षण
निर्वाचित सदस्यों के लिए स्थानों के आरक्षण की व्यवस्था की गई है। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़े वर्गों के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण की व्यवस्था की गई है। आरक्षित स्थानों 1/3 भाग अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़े वर्ग को महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगे।
ज़िला परिषद की कम-से-कम तीन माह में एक बार अवश्य बैठक होगी। गठन के बाद ज़िला परिषद की पहली बैठक की तिथि जिलाधिकारी द्वारा निश्चित की जाएगी जो उस बैठक की अध्यक्षता भी करेगा। ज़िला परिषद का कार्यकाल उसकी प्रथम बैठक की निर्धारित तिथि से अगले पांच वर्षों तक का निश्चित किया गया है।
अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष
ज़िला परिषद के निर्वाचित सदस्य यथा शीघ्र अपने में से दो सदस्यों को क्रमश अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रूप में निर्वाचित करेंगे। अध्यक्ष-पद के लिए अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्ग के लिए स्थान आरक्षित रखने की व्यवस्था की गई है। अध्यक्ष के आरक्षित पदों की संख्या का अनुपात यथासंभव वही होगा जो राज्य की कुल जनसंख्या में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़े वर्ग की जनसंख्या का अनुपात होगा।
स्थाई समिति
ज़िला परिषद में कुछ स्थाई समिति होती हैं, जैसे सामान्य समिति, वित्त अंकेक्षण एवं एवं योजना समिति, सामाजिक न्याय समिति, शिक्षण एवं स्वास्थ्य समिति, कृषि एवं उद्योग समिति. प्रत्येक समिति में अध्यक्ष सहित पाँच सदस्य होते हैं। ज़िला परिषद इससे अधिक सदस्यों की संख्या भी निश्चित कर सकती है। सदस्यों का चुनाव ज़िला परिषद के निर्वाचित सदस्यों में से किया जाता है। ज़िला परिषद का अध्यक्ष सामान्य स्थाई समिति तथा वित्त अंकेक्षण (finance audit) एवं योजना समिति का पदेन सदस्य और इसका अध्यक्ष भी होता है।
ज़िला परिषद के कार्य
- कृषि-संबंधी
- पशु पालन-संबंधी
- उद्योग-धंधे-संबंधी
- स्वास्थ्य-संबंधी
- शिक्षा-संबंधी
- सामाजिक कल्याण एवं सुधार संबंधी
- आवास-संबंधी
- और अन्य कार्य – ग्रामीण बिजली करण, वृक्षारोपण, ग्रामीण सड़कों का निर्माण, ग्रामीण हाटों और बाजारों का अधिग्रहण, वार्षिक बजट बनाना इत्यादि
पंचायती राज व्यवस्था प्रश्नोत्तरी
- संविधान के किस भाग में पंचायती राज व्यवस्था का वर्णन है— भाग-9
- पंचायती राज व्यवस्था किस पर आधारित है— सत्ता के विकेंद्रीकरण पर
- पंचायती राज का मुख्य उद्देश्य क्या है— जनता को प्रशासन में भागीदारी योग्य बनाना
- किसके अंतर्गत पंचायती राज व्यवस्था का वर्णन है— नीति-निर्देशक सिद्धांत
- संविधान के किस संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिया गया है— 75वें संशोधन
- 75वें संशोधन में कौन-सी अनुसूची जोड़ी गई हैं— 11वीं
- पंचायती राज संस्थाओं के निर्वाचन हेतु कौन उत्तरदायी है— राज्य निर्वाचन आयोग
- भारत में पंचायती राज अधिनियम कब लागू हुआ— 25 अप्रैल, 1993
- सर्वप्रथम पंचायती राज व्यवस्था कहाँ लागू की गई— नागौर, राजस्थान में
- राजस्थान में पंचायती राज व्यवस्था कहाँ लागू की गई— 1959 को
- देश के सामाजिक व सांस्कृतिक उत्स्थान के लिए कौन-सा कार्यक्रम चलाया गया— सामुदायिक विकास कार्यक्रम
- भारत में सामुदायिक विकास कार्यक्रम कब आरंभ हुआ— 2 अक्टूबर, 1952
- किसकी सिफारिश पर भारत में पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना की गई— बलवंत राय मेहता समिति
- पंचायती राज की सबसे छोटी इकाई क्या है— ग्राम पंचायत
- बलवंत राय समिति के प्रतिवेदन के अनुसार महत्वपूर्ण संस्था कौन-सी है— पंचायत समिति
- पंचायती राज संस्थाओं के संगठन के दो स्तर होने का सुझाव किसने दिया था— अशोक मेहता समिति
- पंचायत स्तर पर राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व कौन करता है— ग्राम प्रधान
- पंचायती राज विषय किस सूची में है— राज्य सूची में
- किस संशोधन में महिलाओं के लिए ग्राम पंचायत में एक-तिहाई सीटें आरक्षित की गईं— 73वें संशोधन में
- पंचायत चुनाव के लिए उम्मीदवार की आयु कितनी होनी चाहिए— 21 वर्ष
- पंचायती राज संस्थाएँ अपनी निधि हेतु किस पर निर्भर हैं— सरकारी अनुदान पर
- एक विकास खंड पर पंचायत समति कैसी होती है— एक प्रशासकीय अभिकरण
- भारत में पहला नगर निगम कहाँ स्थापित हुआ— चेन्नई
- ग्राम पंचायतों की आय का स्त्रोत क्या है— मेला व बाजार कर
- किस राज्य में पंचायती राज प्रणाली नहीं है— अरुणाचल प्रदेश में
- पंचायती राज प्रणाली में ग्राम पंचायत का गठन किस स्तर पर होता है— ग्राम स्तर पर
- पंचायती राज संस्था का कार्यकाल कितना होता है— 5 वर्ष
- 73वें संविधान संशोधन में पचायती राज संस्थाओं के लिए किस प्रकार के चुनाव का प्रावधान किया गया— प्रत्यक्ष एवं गुप्त मतदान
- पंचायत के चुनाव हेतु निर्णय कौन लेता है— राज्य सरकार
- पंचायत समिति की गठन किस स्तर पर होता है— प्रखंड स्तर पर
- यदि पंचायत को भंग किया जाता है तो पुनः निर्वाचन कितने समय के अंदर आवश्यक है— 6 माह