भारत प्राकृतिक पर्यावरण के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय पहल के एक भाग के रूप में निरंतर आगे बढ़ रहा रहा है। राष्ट्रीय पर्यावरण नीति (एनईपी) भी अंतरराष्ट्रीय प्रयासों में सकारात्मक योगदान देने के लिए स्वच्छ पर्यावरण के लिए भारत की प्रतिबद्धता में से एक है। संविधान के अनुच्छेद 48ए और 51 ए(जी) को अनुच्छेद 21 की न्यायिक व्याख्या द्वारा मजबूत किया गया है तथा यह माना जाता है कि स्वस्थ वातावरण बनाए रखना देश के प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है।
प्राकृतिक संसाधन आजीविका सुरक्षा प्रदान करने और जीवन समर्थक पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को सुरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारत की नई पर्यावरण नीति 2006 में लागू की गई थी। यह नीति सिद्धांतों के एक समूह को उनकी प्रासंगिकता, लागत के संबंध में व्यवहार्यता और आवेदन के तकनीकी एवं प्रशासनिक पहलुओं के आधार पर निर्धारित करती है।
इस नीति के तहत सिद्धांतों में सतत विकास चिंताएं, विकास का अधिकार, पर्यावरण संरक्षण, निवारक दृष्टिकोण, आर्थिक दक्षता, समानता, कानूनी दायित्व और पर्यावरण मानकों की स्थापना आदि शामिल हैं।
पर्यावरण नीति 2006 के प्रमुख उद्देश्य
- महत्वपूर्ण पारिस्थितिक प्रणालियों, संसाधनों, अमूल्य प्राकृतिक एवं मानव निर्मित विरासत की रक्षा और संरक्षण करना, जो मानव जीवन, आजीविका, आर्थिक विकास तथा मानव कल्याण की व्यापक अवधारणा के लिए आवश्यक हैं।
- समाज के सभी वगोर्ं के लिए पर्यावरणीय संसाधनों और गुणवत्ता तक समान पहुंच सुनिश्चित करने के लिए, और विशेष रूप से, यह सुनिश्चित करने के लिए कि गरीब समुदाय, जो अपनी आजीविका के लिए पर्यावरणीय संसाधनों पर सबसे अधिक निर्भर हैं, को इन संसाधनों तक सुरक्षित पहुंच का आश्वासन दिया जाए।
- वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों की जरूरतों और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए पर्यावरणीय संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग सुनिश्चित करना।
- आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए नीतियों, योजनाओं, कार्यक्रमों और परियोजनाओं में पर्यावरणीय चिंताओं को एकीकृत करना
- प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के लिए आर्थिक उत्पादन की प्रति इकाई का उसके उपयोग में कमी के अर्थ में पर्यावरणीय संसाधनों का कुशल उपयोग सुनिश्चित करना।
- पर्यावरणीय संसाधनों के उपयोग, प्रबंधन और विनियमन के लिए सुशासन के सिद्धांतों (पारदर्शिता, तर्कसंगतता, जवाबदेही, समय और लागत में कमी, भागीदारी और नियामक स्वतंत्रता) को लागू करना।
पर्यावरण संरक्षण के लिए लाभप्रद बहु-हितधारक भागीदारी के माध्यम से, स्थानीय समुदायों, सार्वजनिक एजेंसियों, अकादमिक एवं अनुसंधान संस्थानों, निवेशकों, बहुपक्षीय तथा द्विपक्षीय विकास भागीदारों के मध्य पारस्परिक रूप से वित्त, प्रौद्योगिकी, प्रबंधन कौशल, पारंपरिक ज्ञान और सामाजिक पूंजी सहित उच्च संसाधन प्रवाह सुनिश्चित करना आवश्यक है।