“पुनर्जागरण” एक फ्रांसीसी शब्द है, इसका शाब्दिक अर्थ होता है, “फिर से जागना”। 14वीं और 17वीं सदी के बीच यूरोप में जो सांस्कृतिक व धार्मिक प्रगति, आंदोलन तथा युद्ध हुए उन्हें ही पुनर्जागरण कहा जाता है। प्राचीन यूनान और रोमन युग में यूरोप में सांस्कृतिक मूल्यों का उत्कर्ष हुआ था। परन्तु मध्यकाल में यूरोप वासियों पर चर्च तथा सामान्तों का इतना अधिक प्रभाव बढ़ गया था कि लोगों की स्वतंत्र चिन्तन-शक्ति तथा बौद्धिक चेतना ही लुप्त हो गई।
ईश्वर, चर्च और धर्म के प्रति यूरोप वासियों की आस्था चरम बिन्दु पर पहुँच गई थी। धर्म शास्त्रों में जो कुछ सच्चा-झूठा लिखा हुआ था अथवा चर्च के प्रतिनिधि जो कुछ बतलाते थे, उसे पूर्ण सत्य मानना पड़ता था। विरोध करने पर मृत्युदंड दिया जाता था। इस प्रकार, लोगों के जीवन पर चर्च का जबरदस्त प्रभाव कायम था। चर्च धर्म ग्रन्थों के स्वतंत्र चिन्तन और बौद्धिक विश्लेषण का विरोधी था।
पुनर्जागरण शब्द का पहली बार फ्रांसीसी इतिहास कार जुल्स मिशलेट (1798-1874) द्वारा अपने हिस्टोइरे डी फ्रांस (फ्रांस का इतिहास) में उपयोग और परिभाषित किया गया था।
पुनर्जागरण की विशेषताएँ
फ्रांसीसी पुनर्जागरण 15 वीं शताब्दी के अंत और 17 वीं शताब्दी की शुरुआत के बीच फ्रांस में स्थित एक कलात्मक और सांस्कृतिक आंदोलन है। पुनर्जागरण की मुख्य विशेषताएँ निम्न है –
- पुनर्जागरण की प्रथम विशेषता धार्मिक आस्था के स्थान पर स्वतंत्र चिन्तन को प्रतिष्ठित करके तर्कशक्ति का विकास करना था। मध्य युग में व्यक्ति के चिन्तन एवं मनन पर धर्म का कठोर अंकुश लगा हुआ था।
- दूसरी विशेषता मनुष्य को अंधविश्वासी, रूढ़ियों तथा चर्च द्वारा आरोपित बंधनों से छुटकारा दिलाकर उसके व्यक्तित्व का स्वतंत्र रूप से विकास करना था।
- तीसरी विशेषता मानव वादी विचारधारा थी। मध्य युग में चर्च ने लोगों को उपदेश दिया था कि इस संसार में जन्म लेना ही घोर पाप है। अत: तपस्या तथा निवृत्ति मार्ग को अपनाकर मनुष्य को इस पाप से मुक्त होने का सतत् प्रयास करना चाहिए।
- चित्रकला के क्षेत्र में पुनर्जागरण की विशेषता थी – यथार्थ का चित्रण, वास्तविक सौन्दर्य का अंकन। इसी प्रकार, विज्ञान के क्षेत्र में पुनर्जागरण की विशेषता थी -निरीक्षण, अन्वेषण, जाँच और परीक्षण।
- चौथी विशेषता देशज भाषाओं का विकास थी। अब तक केवल यूनानी और लैटिन भाषाओं में लिखे गये ग्रन्थों को ही महत्त्वपूर्ण समझ जाता था। पुनर्जागरण ने लोगों की बोलचाल की भाषा को गरिमा एवं सम्मान दिया, क्योंकि इन भाषाओं के माध्यम से सामान्य लोग बहुत जल्दी ज्ञानार्जन कर सकते थे।
पुनर्जागरण का कारण
पुनर्जागरण किसी एक व्यक्ति, एक स्थान, एक घटना, एक विचारधारा अथवा आन्दोलन के कारण सम्भव नहीं हो पाया था। इसके उदय एवं विकास में असंख्य व्यक्तियों के सामूहिक ज्ञान एवं विविध् देशों की विभिन्न परिस्थितियों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। इसके मुख्य कारण ये हैं :-
कारण 1: धर्मयुद्ध –
- ईसाई धर्म के पवित्र तीर्थ-स्थान जेरूसलम के अधिकार को लेकर ईसाइयों और मुसलमानों (सैल्जुक तुर्क) के बीच लड़े गये। ये युद्ध इतिहास में ‘धर्मयुद्धों’ के नाम से विख्यात हैं। ये युद्ध लगभग दो सदियों तक चलते रहे। इन धर्मयुद्धों के परिणामस्वरूप यूरोप वासी पूर्वी रोमन साम्राज्य (जो इन दिनों में बाइजेन्टाइन साम्राज्य के नाम से प्रसिद्ध था) तथा पूर्वी देशों के सम्पर्क में आये। इस समय में जहाँ यूरोप अज्ञान एवं अंधकार में डूबा हुआ था, पूर्वी देश ज्ञान के प्रकाश से आलोकित थे।
- धर्मयुद्धों के परिणामस्वरूप यूरोपवासियों को नवीन मार्गों की जानकारी मिली और यूरोप के कई साहसिक लोग पूर्वी देशों की यात्रा के लिए चल पड़े। मध्ययुग में लोग अपने सर्वोच्च धर्माधिकारी पोप को ईश्वर का प्रतिनिधि मानने लगे थे। परन्तु जब धर्मयुद्धों में पोप की सम्पूर्ण शुभकामनाओं एवं आशीर्वाद के बाद भी ईसाइयों की पराजय हुई तो लाखों लोगों की धार्मिक आस्था डगमगा गई और वे सोचने लगे कि पोप भी हमारी तरह एक साधरण मनुष्य मात्र है।
कारण 2: व्यापारिक समृद्धि
- धर्मयुद्धों के समय में अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण इतालवी नगरों ने व्यावसायिक समृद्धि का लाभ उठाया। मुस्लिम बन्दरगाहों पर वेनिसी तथा अन्य इतालवी व्यापारिक बेड़े सुदूरपूर्व से आने वाली विलास-सामग्रियाँ उठाते थे।
- वेनिस के रास्ते वे सामग्रियाँ फ्रलैंडर्स और जर्मनी के नगरों तक पहुँच जाती थीं। कालान्तर में जर्मनी के नगर भी व्यापारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बन गये।
कारण 3: धनी मध्यम वर्ग का उदय
- व्यापार-वाणिज्य के विकास ने नगरों में धनी मध्यम वर्ग को जन्म दिया। धनिक वर्ग ने अपने लिये भव्य एवं विशाल भवन बनवाये। समाज में अपनी शान-शौकत तथा प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए इस वर्ग ने मुक्त हाथों से धन खर्च किया।
- भविष्य में अपनी ख्याति को चिरस्थायी बनाने के लिए विद्वानों और कलाकारों को आश्रय प्रदान किया। इसमें फ्रलोरेन्स के मैडीसी परिवार का नाम उल्लेखनीय है। नगरों के विकास ने एक और दृष्टि से भी सहयोग दिया।
- चूँकि ये नगर व्यापार-वाणिज्य के केन्द्र बन गये थे, अत: विदेशों से व्यापारी लोग इन नगरों में आते-जाते रहते थे। इन विदेशी व्यापारियों से नगर वासी विचारों का आदान-प्रदान किया करते थे।
कारण 4: अरब और मंगोल
- यूरोप के पुनर्जागरण में अरब और मंगोल लोगों का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। अरबों के माध्यम से ही यूरोप को कुतुबनुमा, कागज और छापेखाने की जानकारी मिली थी। यूरोप के बहुत से क्षेत्रों विशेषकर स्पेन, सिसली और सार्डिनिया में अरबों के बस जाने से पूर्व यूरोपवासियों को बहुत-सी बातें सीखने को मिलीं।
- अरब लोग स्वतन्त्रा चिन्तन के समर्थक थे और उन्हें यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिकों- प्लेटो तथा अरस्तु की रचनाओं से विशेष लगाव था। ये दोनों विद्वान् स्वतंत्र विचारक थे और उनकी रचनाओं में धर्म का कोई सम्बन्ध् न होता था।
- तेरहवीं सदी के मध्य में कुबलाई खाँ ने एक विशाल मंगोल साम्राज्य स्थापित किया और उसने अपने ही तरीके से यूरोप और एशिया को एक-दूसरे से परिचित कराने का प्रयास किया।
कारण 5: पांडित्यावाद
- मध्य युग के उत्तरार्द्ध में यूरोपीय दर्शन के क्षेत्र में एक नई विचारधारा प्रारम्भ हुई जिसे ‘विद्वतावाद’ (स्कालिस्टिक) अथवा पांडित्यावाद के नाम से पुकारा जाता है। इस पर अरस्तु के तर्क शास्त्र का गहरा प्रभाव था।
- बाद में इसमें सेंट ऑगस्टाइन के तत्व ज्ञान को भी सम्मिलित कर दिया गया। अब इसमें धार्मिक विश्वास और तर्क दोनों सम्मिलित हो गये।
कारण 6: कागज और छापा खाना
- चीन ने प्राचीन युग में ही कागज और छापा खाना का आविष्कार कर लिया था। मध्य युग में अरबों के माध्यम से यूरोप वासियों को भी इन दोनों की जानकारी मिली। कागज और छापा खाना ने पुनर्जागरण को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया जिसके पूर्व हस्त लिखित (हाथ से लिखी हुई) पुस्तकों का प्रचलन था जो काफी मूल्यवान होती थीं और जिनकी संख्या भी काफी कम होती थी।
- अत: ज्ञान-विज्ञान के इन साधनों पर कुछ धनी लोगों का ही एकाधिकार था। परन्तु कागज और छापा खाना के कारण अब पुस्तकों की कमी न रही और वे अब काफी सस्ती भी मिलने लगीं। अब सामान्य लोग भी पुस्तकों को पढ़ने में रुचि लेने लगे। इससे जनता में ज्ञान का प्रसार हुआ। विज्ञान और तकनीकी की प्रगति का रास्ता खुल गया। यही कारण है कि इन दोनों को इतना अधिक महत्त्वपूर्ण माना गया है।
कारण 7: कुस्तुनिया पर तुर्कों का अधिकार
- 1453 ई. में तुर्की लोगों ने पूर्वी रोमन साम्राज्य की राजधानी कुस्तुनिया पर अधिकार कर लिया और बाल्कन प्रदेशों में भी प्रवेश करने लगे। कुस्तुनिया दो सदियों से यूनानी ज्ञान, कला और कारीगरी का केन्द्र बना हुआ था। परन्तु बर्बर तुर्कों को सांस्कृतिक मूल्यों से विशेष लगाव नहीं था और उन्होंने इस क्षेत्र के सभी लोगों को समान रूप से लूटना-खसोटना शुरू कर दिया।
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महत्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ तथ्य
- 14वीं और 17वीं सदी के बीच यूरोप में जो सांस्कृतिक व धार्मिक प्रगति, आंदोलन तथा युद्ध हुए उन्हें ही पुनर्जागरण कहा जाता है।
- पुनर्जागरण शब्द का पहली बार फ्रांसीसी इतिहास कार जुल्स मिशलेट (1798-1874) द्वारा अपने हिस्टोइरे डी फ्रांस (फ्रांस का इतिहास) में उपयोग और परिभाषित किया गया था
- बाइजेन्टाइन साम्राज्य को हम पूर्वी रोमन साम्राज्य के नाम से जानते है।
- मध्य युग के उत्तरार्द्ध में यूरोपीय दर्शन के क्षेत्र में एक नई विचारधारा को ‘विद्वतावाद’ (स्कालिस्टिक) अथवा पांडित्यावाद के नाम से पुकारा जाता है।
- चीन ने प्राचीन युग में ही कागज और छापा खाना का आविष्कार कर लिया था।
- फ्रांसीसी पुनर्जागरण 15 वीं शताब्दी के अंत और 17 वीं शताब्दी की शुरुआत के बीच फ्रांस में स्थित एक कलात्मक और सांस्कृतिक आंदोलन है।