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भारत का भूगोलिक पृष्ठ्भूमि

Times Darpan
Last updated: 2020-04-28 22:03
By Times Darpan 1.1k Views
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19 Min Read
भारत का भूगोलिक पृष्ठ्भूमि

भारत विश्व की सबसे पुरानी सभ्यताओं व संस्कृति के साथ इसके भूगोलीय संरचना भी इसके सुदंरता में चार चाँद लगाती है। भारत का भूगोल या भारत का भूगोलिक पृष्ठ्भूमि भारत की हर दिशाओं से विविधतापूर्ण है। भारत 32,87,263 वर्ग किमी क्षेत्रफल के साथ विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा देश है। साथ ही लगभग 1.3 अरब जनसंख्या के साथ यह पूरे विश्व में चीन के बाद दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश भी है।

Contents
भारत का भूगोलिक पृष्ठ्भूमिभारत की प्राकृतिक संरचनाभारत की भूगर्भीय संरचनाभारत की जलवायुभारत की नदियांभारत की वनस्‍पतिभारत की जन्‍तु

भारत का भूगोलिक पृष्ठ्भूमि

भारत की एक ओर इसके उत्तर में विशाल हिमालय की पर्वतमालायें हैं तो दूसरी ओर और दक्षिण में विस्तृत हिंद महासागर, एक ओर ऊँचा-नीचा और कटा-फटा दक्कन का पठार है तो वहीं विशाल और समतल सिन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान भी, थार के विस्तृत मरुस्थल में जहाँ विविध मरुस्थलीय स्थलरुप पाए जाते हैं तो दूसरी ओर समुद्र तटीय भाग भी हैं। कर्क रेखा इसके लगभग बीच से गुजरती है और यहाँ लगभग हर प्रकार की जलवायु भी पायी जाती है। मिट्टी, वनस्पति और प्राकृतिक संसाधनो की दृष्टि से भी भारत में काफ़ी भौगोलिक विविधता है।

भारत की प्राकृतिक संरचना

मुख्य भूमि चार भागों में बंटी है – विस्तृत पर्वतीय प्रदेश, सिंधु और गंगा के मैदान, रेगिस्तान क्षेत्र और दक्षिणी प्रायद्वीप।

विस्तृत पर्वतीय प्रदेश

  • हिमालय की तीन श्रृंखलाएं हैं, जो लगभग समानांतर फैली हुई हैं। इसके बीच बड़े – बड़े पठार और घाटियां हैं, इनमें कश्‍मीर और कुल्‍लू जैसी कुछ घाटियां उपजाऊ, विस्‍तृत और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर हैं।
  • संसार की सबसे ऊंची चोटियों में से कुछ इन्‍हीं पर्वत श्रृंखलाओं में हैं। जिनमें मुख्‍य हैं – चुंबी घाटी से होते हुए मुख्‍य भारत-तिब्‍बत व्‍यापार मार्ग पर जेलप-ला और नाथू-ला दर्रे, उत्तर-पूर्व दार्जिलिंग तथा कल्‍पा (किन्‍नौर) के उत्तर – पूर्व में सतलुज घाटी में शिपकी-ला दर्रा। 
  • पर्वतीय दीवार लगभग 2,400 कि.मी. की दूरी तक फैली है, जो 240 कि.मी. से 320 कि.मी. तक चौड़ी है।
  •  पूर्व में भारत तथा म्‍यांमार और भारत एवं बांग्लादेश के बीच में पहाड़ी श्रृंखलाओं की ऊंचाई बहुत कम है।
  • लगभग पूर्व से पश्चिम तक फैली हुई गारो, खासी, जैंतिया और नगा पहाडियां उत्तर से दक्षिण तक फैली मिज़ो तथा रखाइन पहाडि़यों की श्रृंखला से जा मिलती हैं।

सिंधु और गंगा के मैदान

  • सिंधु और गंगा के मैदान लगभग 2,400 कि.मी. लंबे और 240 से 320 कि.मी. तक चौड़े हैं। 
  • ये तीन अलग अलग नदी प्रणालियों – सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र के थालों से बने हैं।
  • ये संसार के विशालतम सपाट कछारी विस्तारों और पृथ्वी पर बने सर्वाधिक घने क्षेत्रों में से एक हैं। 
  • दिल्ली में यमुना नदी और बंगाल की खाड़ी के बीच लगभग 1600 किमी की दूरी में केवल 200 मीटर की ढलान है।

रेगिस्तान क्षेत्र

  • रेगिस्तानी क्षेत्र को दो भागों में बांटा जा सकता है – विशाल रेगिस्तान और लघु रेगिस्तान।
  • विशाल रेगिस्तान कच्‍छ के रण के पास से उत्तर की ओर लूनी नदी तक फैला है। 
  • राजस्थान सिंध की पूरी सीमा रेखा इसी रेगिस्तान में है।
  • लघु रेगिस्तान जैसलमेर और जोधपुर के बीच में लूनी नदी से शुरू होकर उत्तरी बंजर भूमि तक फैला हुआ है।
  • इन दोनों रेगिस्तानों के बीच बंजर भूमि का क्षेत्र है, जिसमें पथरीली भूमि है। यहां कई स्थानों पर चूने के भंडार हैं।

दक्षिणी प्रायद्वीप

  • दक्षिणी प्रायद्वीप का पठार 460 से 1,220 मीटर तक के ऊंचे पर्वत तथा पहाडि़यों की श्रृंखलाओं द्वारा सिंधु और गंगा के मैदानों से पृथक हो जाता है।
  • इसमें प्रमुख हैं अरावली, विंध्‍य, सतपुड़ा, मैकाल और अजंता। प्रायद्वीप के एक तरफ पूर्वी घाट है, जहां औसत ऊंचाई 610 मीटर के करीब है और दूसरी तरफ पश्चिमी घाट, जहां यह ऊंचाई साधारणतया 915 से 1,220 मीटर है, कहीं कहीं यह 2,440 मीटर से अधिक है।
  • पश्चिमी घाट और अरब सागर के बीच समुद्र तट की एक संकरी पट्टी है, जबकि पूर्वी घाट और बंगाल की खाड़ी के बीच चौड़ा तटीय क्षेत्र है।
  • पठार का यह दक्षिणी भाग नीलगिरि की पहाडियों से बना है, जहां पूर्वी और पश्चिमी घाट मिलते हैं। इसके पार फैली कार्डामम पहाडि़यां पश्चिमी घाट क विस्तार मानी जाती हैं।

भारत की भूगर्भीय संरचना

भू‍तत्वीय संरचना भी प्राकृतिक संरचना की तरह तीन भागों में बांटी जा सकती है: हिमाचल तथा उससे संबद्ध पहाड़ों का समूह, सिंधु और गंगा का मैदान तथा प्रायद्वीपीय भाग।

  • उत्‍तर में हिमालय पर्वत का क्षेत्र, पूर्व में नगालुशाई पहाड़, पर्वत निर्माण प्रक्रिया के क्षेत्र हैं। इस क्षेत्र का बहुत सा भाग, जो अब संसार में कुछ मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है, लगभग 60 करोड़ वर्ष पहले समुद्र था।
  • लगभग 7 करोड़ वर्ष पहले शुरु हुई पर्वत-निर्माण प्रक्रिया के क्रम में तलछट और चट्टानों के तल बहुत ऊंचे उठ गए। उन पर मौसमी और कटाव तत्वों ने काम किया, जिससे वर्तमान उभार अस्तित्व में आए।
  • सिंधु और गंगा के विशाल मैदान कछारी मिट्टी के भाग हैं, जो उत्तर में हिमालय को दक्षिण के प्रायद्वीप से अलग करते हैं।
  • प्रायद्वीप अपेक्षाकृत स्थायी और भूकंपीय हलचलों से मुक्त क्षेत्र है। इस भाग में प्रागैतिहासिक काल की लगभग 380 करोड़ वर्ष पुरानी रूपांतरित चट्टानें हैं।
  • शेष भाग गोंडवाना का कोयला क्षेत्र तथा बाद के मिट्टी के जमाव से बना भाग और दक्षिणी लावे से बनी चट्टानें हैं।

भारत की जलवायु

भारत की जलवायु आमतौर पर उष्‍णकटिबंधीय है।

  • यहां चार ऋतुएं होती हैं:
    • शीत ऋतु (जनवरी-फरवरी)
    • ग्रीष्‍म ऋतु (मार्च-मई)
    • वर्षा ऋतु या दक्षिण पश्चिमी मानसून का मौसम (जून-सितम्‍बर)
    • मॉनसून पश्‍च ऋतु (अक्‍तूबर-दिसम्‍बर), जिसे दक्षिणी प्रायद्वीप में पूर्वोत्‍तर मानसून भी कहा जाता है।
  • भारत की जलवायु पर दो प्रकार की मौसमी हवाओं का प्रभाव पड़ता है – पूर्वोत्‍तर मानसून और दक्षिण पश्चिमी मानसून। 
  • पूर्वोत्तर मानसून को आमतौर पर शीत मानसून कहा जाता है। इस दौरान हवाएं स्थल से समुद्र की ओर बहती हैं, जो हिंद महासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी को पार करके आती हैं। 
  • देश में अधिकांश वर्षा दक्षिण पश्चिमी मानसून की वजह से होती है।

भारत की नदियां

भारत की नदियां चार समूहों में वर्गीकृत की जा सकती हैं –

1. हिमालय की नदियां

  • हिमालय की नदियां बारहमासी है, जिन्हें पानी आमतौर पर बर्फ पिघलने से मिलता है। 
  •  इनमें वर्षभर निर्बाध प्रवाह बना रहता है।
  • मानसून के महीने में हिमालय पर भारी वर्षा होती है, जिससे नदियों में पानी बढ़ जाने के कारण अक्सर बाढ़ आ जाती है।

सिंधु और गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना नदियों से हिमालय की मुख्य नदी प्रणालियां बनती हैं।

सिंधु नदी
  • सिंधु नदी विश्व की बड़ी नदियों में से एक है।
  • तिब्बत में मानसरोवर के निकट इसका उद्गम स्थल है।
  • यह भारत से होती हुई पाकिस्तान जाती है और अंत में कराची के निकट अरब सागर में मिल जाती है।
  • भारतीय क्षेत्र में बहने वाली इसकी प्रमुख सहायक नदियों में सतलुज (जिसका उद्गगम तिब्बत में होता है), व्यास, रावी, चेनाब और झेलम हैं। 
गंगा नदी
  • गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना अन्य महत्वपूर्ण नदी प्रणाली है और भागीरथी और अलकनंदा जिसकी उप-नदी घाटियां हैं, इनके देवप्रयाग में आपस में मिल जाने से गंगा उत्पन्न होती है।
  • यह उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल राज्यों से होती हुई बहती है। राजमहल पहाडियों के नीचे भागीरथी बहती है, जो कि पहले कभी मुख्यधारा में थी, जबकि पद्मा पूर्व की ओर बहती हुई बांग्लादेश में प्रवेश करती है।
  • यमुना, रामगंगा, घाघरा, गंडक, कोसी, महानंदा और सोन नदियां गंगा की प्रमुख सहायक नदियां हैं। चंबल और बेतवा महत्वपूर्ण उपसहायक नदियां हैं जो गंगा से पहले यमुना में मिलती हैं।
  • पद्मा और ब्रह्मपुत्र बांग्लादेश के अंदर मिलती हैं और पद्मा या गंगा के रूप में बहती रहती हैं।
ब्रह्मपुत्र नदी
  • ब्रह्मपुत्र का उद्भव तिब्बत में होता है जहां इसे ‘सांगपो’ के नाम से जाना जाता है और यह लंबी दूरी तय करके भारत में अरुणाचलप्रदेश में प्रवेश करती है जहां इसे दिहांग नाम मिल जाता है।
  • पासीघाट के निकट, दिबांग और लोहित ब्रह्मपुत्र नदी में मिल जाती हैं, फिर यह नदी असम से होती हुई धुबरी के बाद बांग्लादेश में प्रवेश कर जाती है।
  • भारत में ब्रह्मपुत्र की प्रमुख सहायक नदियों में सुबानसिरी, जिया भरेली, धनश्री, पुथीमारी, पगलादीया और मानस हैं।
  • बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र में तीस्ता आदि नदियां मिलकर अंत में गंगा में मिल जाती हैं।
मेघना नदी
  • मेघना की मुख्यधारा बराक नदी का उद्भव मणिपुर की पहाडियों में होता है।
  • इसकी मुख्य सहायक नदियां मक्कू, त्रांग, तुईवई, जिरी, सोनाई, रुकनी, काटाखल, धनेश्वरी, लंगाचीनी, मदुवा और जटिंगा हैं।
  • बराक बांग्लादेश में तब तक बहती रहती है जब तक कि भैरव बाजार के निकट गंगा-ब्रह्मपुत्र नदी में इसका विलय नहीं हो जाता।

2. प्रायद्वीपीय नदियां

  • प्रायद्वीप की नदियों में सामान्यतः वर्षा का पानी रहता है, इसलिए पानी की मात्रा घटती-बढ़ती रहती है।
  • अधिकांश नदियां बारहमासी नहीं हैं। 

दक्कन क्षेत्र में प्रमुख नदी प्रणालियां बंगाल की खाड़ी में जाकर मिलती हैं। बहने वाली प्रमुख अंतिम नदियों में गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, महानदी आदि हैं। नर्मदा और ताप्ती पश्चिम की ओर बहने वाली मुख्य नदियां हैं।

  • दक्षिणी प्रायद्वी में बहने वाली सबसे बड़ी नदी गोदावरी है।
  • इसमें भारत के कुल क्षेत्र का लगभग 10 प्रतिशत भाग शामिल है। 
  • प्रायद्वीपीय भारत में दूसरा सबसे बड़ा थाला कृष्णा नदी का है और तीसरा बड़ा थाला महानदी का है। 
  • दक्षिण की ऊपरी भूमि में नर्मदा अरब सागर की ओर है और दक्षिण में कावेरी बंगाल की खाड़ी में गिरती है, इनके थाले बराबर विस्तार के हैं, यद्यपि उनकी विशेषताएं और आकार भिन्न-भिन्न हैं।

3. तटवर्ती नदियां

  • तटीय नदियां, विशेषकर पश्चिमी तट की, कम लंबी हैं और इनका जलग्रहण क्षेत्र सीमित है।
  • इनमें से अधिकतर में एकाएक पानी भर जाता है।

कई तटीय नदियां हैं जो तुलनात्मक रूप से छोटी हैं। ऐसी गिनी-चुनी नदियां पूर्वी तट के डेल्टा के निकट समुद्र में मिल जाती हैं जबकि पश्चिमी तट पर ऐसी करीब 600 नदियां हैं।

4. अंतःस्थलीय प्रवाह क्षेत्र की नदियां
  • पश्चिमी राजस्थान में नदियां बहुत कम हैं। 
  • इनमें से अधिकतर थोड़े दिन ही बहती हैं।

राजस्थान में कई नदियां समुद्र में नहीं मिलती। वे नमक की झीलों में मिलकर रेत में समा जाती हैं क्योंकि इनका समुद्र की ओर कोई निकास नहीं है। इनके अलावा रेगिस्तानी नदियां लूनी तथा अन्य, माछू रूपेन, सरस्वती, बनांस तथा घग्घर हैं जो कुछ दूरी तक बहकर मरुस्थल में खो जाती हैं।

भारत की वनस्‍पति

उष्‍ण से लेकर उत्तर ध्रुव तक विविध प्रकार की जलवायु के कारण भारत में अनेक प्रकार की वनस्पतियां पाई जाती हैं, जो समान आकार के अन्य देशों में बहुत कम मिलती हैं। वन संपदा की दृष्टि से भारत काफी संपन्न है। भारत को आठ वनस्‍पति क्षेत्रों में बांटा जा सकता है-

1. पश्चिमी हिमाचल

  • पश्चिमी हिमाचल क्षेत्र कश्‍मीर के कुमाऊं तक फैला है।
  • इस क्षेत्र के शीतोष्ण कटिबंधीय भाग में चीड़, देवदार, शंकुधारी वृक्षों (कोनिफर) और चौड़ी पत्ती वाले शीतोष्ण वृक्षों के वनों का बाहुल्य है।
  • इससे ऊपर के क्षेत्रों में देवदार, नीली चीड़, सनोवर वृक्ष और श्वेत देवदार के जंगल हैं। 
  • अल्पाइन क्षेत्र शीतोष्ण क्षेत्र की ऊपरी सीमा से 4,750 मीटर या इससे अधिक ऊंचाई तक फैला हुआ है। 
  • इस क्षेत्र में ऊंचे स्थानों में मिलने वाले श्वेत देवदार, श्वेत भोजपत्र और सदाबहार वृक्ष पाए जाते हैं। 

2. पूर्वी हिमाचल

  • पूर्वी हिमालय क्षेत्र सिक्किम से पूर्व की ओर शुरू होता है। 
  • इसके अंतर्गत दार्जिलिंग, कुर्सियांग और उसके साथ लगे भाग आते हैं। 
  • इस शीतोष्ण क्षेत्र में ओक, जायवृक्ष, द्विफल, बड़े फूलों वाला सदाबहार वृक्ष और छोटी बेंत के जंगल पाए जाते हैं। 

3. असम

  • असम क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र और सुरमा घाटियां आती हैं जिनमें सदाबहार जंगल हैं। 
  • और बीच बीच में घनी बांसों तथा लंबी घासों के झुरमुट हैं। 

4. सिंधु नदी का मैदानी क्षेत्र

  • सिंधु के मैदानी क्षेत्र में पंजाब, पश्चिमी राजस्थान और उत्तरी गुजरात के मैदान शामिल हैं।
  • यह क्षेत्र शुष्क और गर्म है और इसमें प्राकृतिक वनस्पतियां मिलती हैं।
  • गंगा के मैदानी क्षेत्र का अधिकतर भाग कछारी मैदान है और इनमें गेहूं, चावल और गन्ने की खेती होती है। केवल थोड़े से भाग में विभिन्न प्रकार के जंगल हैं।

5. दक्कन

  • दक्कन क्षेत्र में भारतीय प्रायद्वीप की सारी पठारी भूमि शामिल है, जिसमें पतझड़ वाले वृक्षों के जंगलों से लेकर तरह-तरह की जंगली झाडि़यों के वन हैं।

6. मालाबार

  • मालाबार क्षेत्र के अधीन प्रायद्वीप तट के साथ-साथ लगने वाली पहाड़ी तथा अधिक नमी वाली पट्टी है। इस क्षेत्र में घने जंगल हैं।
  • इसके अलावा, इस क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण व्यापारिक फसलें जैसे नारियल, सुपारी, काली मिर्च, कॉफी और चाय, रबड़ तथा काजू की खेती होती है। 

7. अंडमान और निकोबार द्वीप समूह

  • अंडमान क्षेत्र में सदाबहार, मैंग्रोव, समुद्र तटीय और जल प्‍लावन संबंधी वनों की अधिकता है। 

8. गंगा का मैदानी क्षेत्र

  •  कश्‍मीर से अरुणाचल प्रदेश तक के हिमालय क्षेत्र (नेपाल, सिक्किम, भूटान, नागालैंड) और दक्षिण प्रायद्वीप में क्षेत्रीय पर्वतीय श्रेणियों में ऐसे देशी पेड़-पौधों की अधिकता है ,जो दुनिया में अन्यत्र कहीं नहीं मिलते।

भारत की वनस्‍पति के बारे में मुख्य तथ्य

  • आंकड़ों के अनुसार पादप विविधता की दृष्टि से भारत का विश्‍व में दसवां और एशिया में चौथा स्‍थान है।
  • लगभग 70 प्रतिशत भूभाग का सर्वेक्षण करने के बाद अब तक भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण संस्था ने पेड़-पौधों की 46,000 से अधिक प्रजातियों का पता लगाया है। 
  • वाहिनी वनस्पति के अंतर्गत 15 हजार प्रजातियां हैं। 
  • वनस्पति नृजाति विज्ञान की दृष्टि से महत्वपूर्ण पौधों की 800 प्रजातियों की पहचान की गई और देश के विभिन्न जनजातियों क्षेत्रों से उन्हें इकट्ठा किया गया है।
  • पौधों की लगभग 1336 प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा है तथा लगभग 20 प्रजातियां 60 से 100 वर्षों के दौरान दिखाई नहीं पड़ी हैं।

कृषि, औद्योगिक और शहरी विकास के लिए वनों के विनाश के कारण अनेक भारतीय पौधे लुप्‍त हो रहे है भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण रेड डाटा बुक नाम से लुप्त प्राय पौधों की सूची प्रकाशित करता है।

भारत की जन्‍तु

भारत में जलवायु और भौतिक दशाओं की अत्‍यधिक विविधता होने के कारण जंतुओं की 89451 प्रजातियों के साथ अत्‍यधिक विभिन्‍नता है जिसमें प्रोटिस्‍टा, मोलस्‍का, एंथ्रोपोडा, एम्‍फीबिया, स्‍तनधारी, सरिसृप, प्रोटोकोर डाटा के सदस्‍य पाइसेज, एब्‍स और अन्‍य इंवर्टीब्रेट्स शामिल हैं।

  • भारत का जंतु विज्ञान संबंधी सर्वेक्षण (जेड एसआई) जिसका मुख्‍यालय कोलकाता में है और 16 क्षेत्रीय स्‍टेशन है, भारत के जंतु संसाधन के सर्वेक्षण हेतु उत्‍तरदायी है।
  • स्‍तनधारियों में शाही हाथी, गौड़ अथवा भारतीय बाइसन, जो मौजूदा गो जातीय पशुओं में विशालतम होता है।
  • भारतीय गौंडा, हिमाचल की जंगली भेड़, हिरण, चीतल, नील गाय, चार सींगों वाला हिरण, भारतीय बारहसिंहां अथवा काला हिरण, इल वंश का अकेला प्रतिनिधि, शामिल हैं। 
  • बिल्लियों में बाघ और शेर सबसे अधिक विशाल हैं ; अन्‍य शानदार प्राणियों में धब्‍बेदार चीता, साह चीता, रेखांकित बिल्‍ली आदि भी पाए जाते हैं।
  • स्‍तनधारियों की कई अन्‍य प्रजातियाँ अपनी सुन्‍दरता, रंग आभा और विलक्षणता के लिए उल्‍लेखनीय हैं।
  • जंगली मुर्गी, हंस, बत्‍तख, मैना, तोता, कबूतर, सारस, धनेश और सूर्य पक्षी जैसे अनेक पक्षी जंगलों और गीले भू-भागों में रहते हैं।
  • नदियों और झीलों में मगरमच्‍छ ओर घडियाल पाये जाते हैं, घडियाल विश्‍व में मगरमच्‍छ वर्ग का एक मात्र प्रतिनिधि है।
  • खारे पानी का घडियाल पूर्वी समुद्री तट और अंडमान और निकोबार द्वीप समूहों में पाया जाता है।
  • वर्ष 1974 में शुरू की गई घडियालों के प्रजनन हेतु परियोजना घडियाल को विलुप्‍त होने के बचाने में सहायक रही है।
  • विशाल हिमालय पर्वत जंतुओं की अत्‍यंत रोधक विभिन्‍नताएँ पाई जाती हैं जिन में जंगली भेड़ और बकरियाँ, मारखोर, आई बेकस, थ्रू ओर टेपिर शामिल है। पांडा और साह चीता पर्वतों के ऊपरी भाग में पाए जाते हैं।

कृषि का विस्‍तार, पर्यावरण का नाश, अत्‍यधिक उपयोग, प्रदूषण, सामुदायिक संरचना में विषों का असंतुलन शुरु होने, महामारी, बाढ़, सूखा और तूफानों के कारण वनस्‍पति के आच्‍छादन में क्षीणता फलस्‍वरूप वनस्‍पति और जन्‍तु समूह की हानि हुई है। 

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