अशोक अथवा ‘असोक’ (काल ईसा पूर्व 269 – 232) प्राचीन भारत में मौर्य राजवंश का राजा था। इन्हे देवानाम्प्रिय एवं प्रियदर्शी आदि नामों से भी जाना जाता है। उसके समय मौर्य राज्य उत्तर में हिन्दु कुश की श्रेणियों से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी के दक्षिण तथा मैसूर, कर्नाटक तक तथा पूर्व में बंगाल से पश्चिम में अफ़ग़ानिस्तान तक पहुँच गया था। यह उस समय तक का सबसे बड़ा भारतीय साम्राज्य था। सम्राट अशोक को अपने विस्तृत साम्राज्य के बेहतर कुशल प्रशासन तथा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए जाना जाता है। जीवन के उत्तरार्ध में वे गौतम बुद्ध का भक्त हो गया और उन्हीं की स्मृति में नेपाल में उनके जन्मस्थल – लुम्बिनी में अशोक स्तम्भ खड़ा कर दिया।
अशोक का जीवन परिचय
अशोक प्राचीन भारत के मौर्य सम्राट बिंदुसार का पुत्र था। इनका जन्म लगभग 304 ई. पूर्व में माना जाता है। लंका की परम्परा में बिंदुसार की सोलह पटरानियों और 101 पुत्रों का उल्लेख है। जिनमे तीन का नाम उल्लेखित है – सुसीम जो सबसे बड़ा था, अशोक और तिष्य। तिष्य अशोक का सहोदर भाई और सबसे छोटा था। भाइयों के साथ गृह-युद्ध के बाद 272 ई. पूर्व अशोक को राजगद्दी मिली और 232 ई. पूर्व तक उसने शासन किया।
देवानाम्प्रिय प्रियदर्शी की उपाधि
‘देवानाम्प्रिय प्रियदर्शी’ को बी.ए. स्मिथ के मतानुसार ‘देवानाम्प्रिय’ आदरसूचक पद है। किंतु देवानाम्प्रिय शब्द (देव-प्रिय नहीं) पाणिनी के अनुसार अनादर का सूचक है। पतंजलि और काशिका (650 ई.) भी इसे अपवाद ही मानते हैं। वे इसका अनादरवाची अर्थ ‘मूर्ख’ ही करते हैं। उनके मत से ‘देवानाम्प्रिय ब्रह्मज्ञान से रहित उस पुरुष को कहते हैं जो यज्ञ और पूजा से भगवान को प्रसन्न करने का यत्न करता है। जैसे – गाय दूध देकर मालिक को, इस प्रकार एक उपाधि जो नंदों, मौर्यों और शुंगों के युग में आदरवाची थी। उस महान् राजा के प्रति ब्राह्मणों के दुराग्रह के कारण अनादर सूचक बन गई।
धर्म परिवर्तन
अशोक ब्राह्मण धर्म का अनुयायी था। महावंश के अनुसार वह प्रतिदिन 60,000 ब्राह्मणों को भोजन दिया करता था और अनेक देवी – देवताओं की पूजा किया करता था। कल्हण की राजतरंगिणी के अनुसार इनके इष्ट देव शिव थे। पशुबलि में उसे कोई हिचक नहीं थी। किन्तु अपने पूर्वजों की तरह वह जिज्ञासु भी था। मौर्य राज्य सभा में सभी धर्मों के विद्वान् भाग लेते थे। जैसे – ब्राह्मण, दार्शनिक, निग्रंथ, आजीवक, बौद्ध तथा यूनानी दार्शनिक। वह यह जानना चाहता था कि धर्म के किन ग्रंथों में सत्य है।
बौद्ध धर्म का अनुयायी
अशोक बौद्ध धर्म का अनुयायी था। सभी बौद्ध ग्रंथ इनको बौद्ध धर्म का अनुयायी बताते हैं। इनके बौद्ध होने के सबल प्रमाण उसके अभिलेख हैं। राज्याभिषेक से सम्बद्ध लघु शिलालेख में इन्होने अपने को ‘बुद्ध शाक्य’ कहा है। वह ढाई वर्ष तक एक साधारण उपासक रहा। भाब्रु लघु शिलालेख में अशोक त्रिरत्न—बुद्ध, धम्म और संघ में विश्वास करने के लिए कहता है और भिक्षु तथा भिक्षुणियों से कुछ बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन तथा श्रवण करने के लिए कहता है। लघु शिलालेख से यह भी पता चलता है कि राज्याभिषेक के दसवें वर्ष में अशोक ने बोध गया की यात्रा की, बारहवें वर्ष वह निगालि सागर गया और कोन गमन बुद्ध के स्तूप के आकार को दुगुना किया।
निधन
अशोक के कर्मठ जीवन का अंत कब, कैसे और कहाँ हुआ। तिब्बती परम्परा के अनुसार उसका देहावसान तक्षशिला में हुआ। उसके एक शिलालेख के अनुसार उनका अंतिम कार्य भिक्षु संघ मे फूट डालने की निंदा करना था। यह घटना बौद्धों की तीसरी संगति के बाद की है। सिंहली इतिहास ग्रंथों के अनुसार तीसरी संगीति अशोक के राज्यकाल में पाटलिपुत्र में हुई थी।
उत्तराधिकारी
40 वर्ष तक राज्य करने के बाद लगभग ई. पू. 232 में अशोक की मृत्यु हुई। उसके बाद लगभग 50 वर्ष तक अशोक के अनेक उत्तराधिकारियों ने शासन किया।
- पुराणों के अनुसार अशोक के बाद ‘कुणाल’ गद्दी पर बैठा। दिव्यावदान में उसे ‘धर्मविवर्धन’ कहा गया है। ‘धर्मविवेर्धन’ सम्भवतः उसका विरुद्ध था, किन्तु अशोक के और भी पुत्र थे।
- पुराणों तथा नागार्जुनी पहाड़ियों की गुफ़ाओं के शिलालेख के अनुसार दशरथ कुणाल का पुत्र था। नागार्जुनी गुफ़ाओं को दशरथ ने आजीविकों को दान में दिया था।
- विष्णु पुराण तथा गार्गी संहिता के अनुसार संप्रति तथा दशरथ के बाद उल्लेखनीय मौर्य शासक सालिसुक था। उसे संप्रति का पुत्र बृहस्पति भी माना जा सकता है।
- पुराणों में ही नहीं वरन् हर्षचरित में भी मगध के अन्तिम सम्राट का नाम बृहद्रथ दिया गया है। इनके अनुसार मौर्य वंश के अन्तिम सम्राट बृहद्रथ की, उसके सेनापति पुष्यमित्र ने हत्या कर दी और स्वयं सिंहासन पर आरूढ़ हो गया।
अशोक के चौदह वृहद शिलालेख (Fourteen large inscriptions of Ashoka)
पहला | पशुबलि की निंदा |
दूसरा | मनुष्य एवं पशुओं दोनों की चिकित्सा व्यवस्था का उल्लेख, चोल, पांडय, सतियपुत्र एवं केरल पुत्र की चर्चा | |
तीसरा | राजकीय अधिकारीयों (युक्तियुक्त और प्रादेशिक) को हर 5वे वर्ष द्वारा करने का आदेश | |
चौथा | भेरीघोष की जगह धम्म घोष की घोषणा | |
पांचवाँ | धम्म महामात्रों की नियुक्ति के विषय में जानकारी | |
छठा | धम्म महामात्र किसी भी समय राजा के पास सूचना ला सकता है, प्रतिवेदक की चर्चा | |
सांतवाँ | सभी संप्रदायों के लिए सहिष्णुता की बात | |
आठवाँ | सम्राट की धर्म यात्रा का उल्लेख, बोधिवृक्ष के भ्रमण का उल्लेख | |
नौवाँ | विभिन्न प्रकार के समारोहों की निंदा | |
दसवाँ | ख्याति एवं गौरव की निंदा तथा धम्म नीति की श्रेष्ठता पर बल | |
ग्यारहवाँ | धम्म नीति की व्याख्या | |
बारहवाँ | सर्वधर्म समभाव एवं स्त्री महामात्र की चर्चा | |
तेरहवाँ | कलिंग के युद्ध का वर्णन, पड़ोसी राज्यों का वर्णन, अपराध करने वाले आटविक जातियों का उल्लेख | |
चौदहवाँ | लेखक की गलतियों के कारण इनमें कुछ अशुद्धियां हो सकती है | |