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1857 के विद्रोह के कारण

Gulshan Kumar
Last updated: 2019-12-25 19:07
By Gulshan Kumar 2.6k Views
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11 Min Read
1857 के विद्रोह
1857 के विद्रोह

1857 के विद्रोह के बारे में हमने कही न कही सुना ही होगा । 1857 का क्रांति भारतीय इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। यह ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ पहला विद्रोह था जिसने एक विशाल रूप लिया था। तो आइये इस आर्टिकल में 1857 के क्रांति के बारे में विशेष में जानें।

Contents
1857 के विद्रोह का कारण1857 के विद्रोह के असफलता का कारणनिष्कर्ष

इस विद्रोह में कई मुख्य सैनिक थे। जिससे इसे सिपाही विद्रोह भी कहा जाता है। यह विद्रोह सैनिकों से शुरू होने के बाद इसने एक विस्तृत रूप ले लिया। ऐसा कहा जाता है कि ‘भारत में स्वतंत्रता की यह पहली लड़ाई थी’।

यह क्रांति मेरठ के शहर में 10 मई 1857 को शुरू हुआ था। यह 20 जून 1858 को खत्म हुआ। 1857 का संग्राम एक साल से ज्यादा समय तक चला।

1857 के विद्रोह
1857 के विद्रोह

1857 के विद्रोह में पहले शहीद सैनिक का नाम मंगलपांडे था। उन्होंने ब्रिटिश सार्जेंट पर 29 मार्च 1857 को बैरकपुर में हमला किया था। विद्रोह के कुछ नेता- रानी लक्ष्मीबाई (झांसी), कुंवर सिंह (बिहार), बहादुर शाह (दिल्ली), नाना साहब (कानपुर), तात्या टोपे (कानपुर), बेगम हज़रतमहल (लखनऊ) थे।

1857 के विद्रोह का कारण

1857 के विद्रोह होने के अनेकों से कारण है। जो निम्न है :-

1. तात्कालिक कारण

अंग्रेजो द्वारा एनफील्ड रायफल का प्रयोग शुरू करवाया जिसमें कारतूस को लगाने से पहले दांत से खींचना पड़ता था। इन कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी लगी थी। जिससे हिन्दू और मुसलमान दोनों भड़क उठे जिसके परिणामस्वरूप 1857 के विद्रोह की शुरुआत हो गयी। इस विद्रोह के समय लार्ड कैनिंग गवर्नर जनरल थे।

2. धार्मिक कारण 

1857 की क्रांति में अंग्रेज अपने कूटनीति के अनुसार भारतीयों को ईसाई बनाना चाहते थे। वे ईसाई धर्म स्वीकार करवाने के लिए सरकारी नौकरी और उच्च पद का प्रलोभन देते थे। ईस्ट इंडिया कम्पनी ने 1513 के आदेश पत्र द्वारा ईसाई पादरियों को भारत आने के की सुविधा प्रदान की गयी। इनका उद्देश्य भारत में ईसाई धर्म का प्रचार प्रसार करना था।

कंपनी के इस आदेश पर हिन्दू और मुसलमान में एक आक्रोश आने लगा था। इसका सबसे ज्यादा असर तब हुआ जब सैनिक मंगलपांडे को एक अधिकारी ने रायफल के कारतूस को दांत से खींचने को कहा, इस कारतूस में गाय और सुवर का चर्बी का लेप चढ़ाया जाता था। मंगलपांडे ने ऐसा करने से मना कर दिया जिससे सभी सैनिक को लगने लगा कि अंग्रेज सबको ईसाई बनाना चाहता है। जिससे सभी सैनिक में एक क्रांति के बीज बने।

3. राजनैतिक कारण 

1857 की क्रांति में लार्ड डलहौजी की ‘गोद निषेध प्रथा’ या हड़प नीति को क्रांति का राजनैतिक कारण माना जाता है। इस नीति का मुख्य बाते थी, जो किसी राजा के निःसंतान होने पर उसका राज्य ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा बन जाता था। राज्य की हड़प नीति के कारण भारतीय राजाओं में बहुत असंतोष पैदा हुआ था। रानी लक्ष्मी बाई के दत्तक पुत्र को झांसी की गद्दी पर नहीं बैठने दिया गया। हड़प नीति के तहत ब्रिटिश शासन ने सतारा, नागपुर और झांसी को ब्रिटिश राज्य में मिला लिया। इसके अलावा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहेब की पेंशन रोक दी गई जिससे भारत के शासक वर्ग में विद्रोह की भावना मजबूत होने लगी।

इस बाते से और आक्रोश हो गया जब बहादुर शाह द्वितीय के वंशजों को लाल किले में रहने पर पाबंदी लगा दी गई। कुशासन के नाम पर लार्ड डलहौजी ने अवध का विलय करा लिया जिससे बड़ी संख्या में बुद्धिजीवी, अधिकारी एवं सैनिक बेरोजगार हो गए। जिससे सभी ब्रिटिश शासन के विद्रोही बन गया।

4. आर्थिक कारण 

1857 के क्रांति में आर्थिक कारण का भी काफी योगदान था। अंग्रेज द्वारा निर्मित इंग्लैंड से रेडीमेड वस्त्रो का भारतीय बाजार में अधिक मात्रा में आ जाने के कारण उनका प्रभाव यहाँ के लघु एवं कुटीर उधोगों पर पड़ा। जिससे भारतीय कुटीर उधोग धन्धे ख़त्म हो गया। अंग्रेजो ने भारतीय किसानो को भी अपने नीति के कारण उनकी स्थिति अत्यंत दयनीय कर दी।

भारी टैक्स और राजस्व संग्रहण के कड़े नियमों के कारण किसान और जमींदार वर्गों में काफी असंतोष था। जो ब्रिटिश सरकार की टैक्स मांग को पूरा करने में असक्षम थे और वे साहूकारों का कर्ज चुका नहीं पा रहे थे उसे अपनी पुश्तैनी जमीन से हाथ धोना पड़ता था। जो क्रांति को जन्म दी।

5. सैन्य कारण 

1857 की क्रांति में सैन्य कारण भी प्रमुख था। अंग्रेजो के काल में ज्यादातर सैनिक भारत के ही थे उन्हें ब्रिटिश सैनिक से काम माना जाता था। एक ही रैंक के सैनिक होने के बावजूद उसे काम वेतन दिया जाता था। और पदों में आगे भी नहीं बढ़ने दिया जाता था। ब्रिटिश के राज विस्तार के बाद भारतीय सिपाही को अपने घर से दूर जाकर काम करना पड़ता था। 1856 में लार्ड कैनिंग ने एक नियम जारी किया जिसके मुताबिक सैनिकों को भारत के बाहर भी सेवा देनी पड़ सकती थी। इससे अवध के लोग में आक्रोश हुआ और वो इसके खिलाफ हो गए।

6. बगावत को कुचलना

1857 का संग्राम एक साल से ज्यादा समय तक चला। इसे 1858 के मध्य में कुचला गया। मेरठ में विद्रोह भड़कने के चौदह महीने बाद 8 जुलाई, 1858 को आखिरकार कैनिंग ने घोषणा किया कि विद्रोह को पूरी तरह दबा दिया गया है।

1857 के विद्रोह के असफलता का कारण

1857 के विद्रोह में बहुत से सेनानियों ने अपना जान गवाएं। लेकिन इन सब के वाबजूद 1857 के विद्रोह असफल रहा जिसका प्रमुख कारण निम्न है :-

1. सीमित आंदोलन

बहुत कम समय में यह आंदोलन देश के कई हिस्सों तक पहुंच गया लेकिन देश के में इसका कोई असर नहीं पड़ा। दक्षिण के प्रांतों ने इसमें कोई हिस्सा नहीं लिया। सिंधिया, होल्कर, जोधपुर के राणा और अन्यों ने विद्रोह का समर्थन नहीं किया।

2. प्रभावी नेतृत्व का अभाव

इस विद्रोह को एक असरदार नेता का नेतृत्व का अभाव था। नाना साहेब, तांत्या टोपे और रानी लक्ष्मी बाई की बहादुरी में कोई शक नहीं है लेकिन वे आंदोलन को असरदार नेतृत्व नहीं दे सके। इसके अलावा विद्रोहियों में अनुभव, संगठन क्षमता व मिलकर कार्य करने की शक्ति की कमी थी।विद्रोही क्रांतिकारियों के पास ठोस लक्ष्य एवं स्पष्ट योजना का अभाव था।

उन्हें अगले क्षण क्या करना होगा और क्या नहीं, यह भी निश्चित नहीं था। बहादुरशाह जफर और नाना साहब एक कुशल संगठनकर्ता अवश्य थे, पर उनमें सैन्य नेतृत्व की क्षमता की कमी थी, जबकि अंग्रेजी सेना के पास लॉरेन्स ब्रदर्स, निकोलसन, हेवलॉक, आउट्रम एवं एडवर्ड जैसे कुशल सेनानायक थे।

3. संसाधन की कमी

विद्रोहियों के पास न संख्याबल था और न पैसा। ब्रिटिश सेना के पास बड़ी संख्या में सैनिक, पैसा और हथियार थे जिसके बल पर वे विद्रोह को कुचलने में सफल रहे।

4. मध्य वर्ग ने हिस्सा नहीं लिया

1857 ई. के इस विद्रोह के प्रति ‘शिक्षित वर्ग’ पूर्ण रूप से उदासीन रहा। व्यापारियों एवं शिक्षित वर्ग ने कलकत्ता एवं बंबई में सभाएं कर अंग्रेजों की सफलता के लिए प्रार्थना भी की थी। यदि ये सब अपने लेखों एवं भाषणों द्वारा लोगों में उत्साह का संचार किया होता, तो निःसंदेह ही क्रांति के इस विद्रोह का परिणाम कुछ अलग होता।

5. विद्रोह के परिणाम

विद्रोह के समाप्त होने के बाद 1858 ई. में ब्रिटिश संसद ने एक कानून पारित कर ईस्ट इंडिया कंपनी के अस्तित्व को समाप्त कर दिया, और अब भारत पर शासन का पूरा अधिकार महारानी विक्टोरिया के हाथों में आ गया। इंग्लैंड में 1858 ई. के अधिनियम के तहत एक ‘भारतीय राज्य सचिव’ की व्यवस्था की गयी, जिसकी सहायता के लिए 15 सदस्यों की एक ‘मंत्रणा परिषद्’ बनाई गई। इन 15 सदस्यों में 8 की नियुक्ति सरकार द्वारा करने तथा 7 की ‘कोर्ट ऑफ हाइरेक्टर्स’ द्वारा चुनने की व्यवस्था की गई।

निष्कर्ष

इसी तरह 1857 की क्रांति का अंत हुआ लेकिन इसके अंत से एक फायदा हुआ ब्रिटिश सरकार द्वारा हड़प नीति का समाप्त किया गया और इसके लिए एक नए कानून बनाया कि कानूनी वारिश के अनुसार पुत्र को गोद लिया जाना स्वीकार किया जाता है  इस फैसले से लगभग संतुष्ट हो गया और इस क्रांति को समाप्त कर दिया।

यह भी पढ़ें :-

  • राजा मान सिंह : बीरबल की मौत का बदला लेने वाले अकबर के रत्न
  • 4 करोड़ लोगों को मौत के घाट उतारने वाला शख्श

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