अर्जित राज्यक्षेत्र (विलयन) अधिनियम, 1960 (Acquired Territories (Merger) Act, 1960)
भारत गणराज्य के ग्यारहवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :-
- संक्षिप्त नाम – इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम अर्जित राज्यक्षेत्र (विलयन) अधिनियम, 1960 (Acquired Territories (Merger) Act, 1960) है।
- परिभाषाएं – इस अधिनियम में जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-
- “अर्जित राज्यक्षेत्र” से भारत-पाकिस्तान करारों में समाविष्ट और प्रथम अनुसूची में निर्दिष्ट राज्यक्षेत्रों में से इतने राज्यक्षेत्र अभिप्रेत हैं, जिनका उक्त करारों के अनुसरण में भारत द्वारा अर्जन करने के लिए सीमांकन किया गया है
- “नियत दिन” से ऐसी तारीख अभिप्रेत है, जिसे केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस प्रकार अर्जित किए जाने वाले राज्यक्षेत्रों के उस हेतु सीमांकन के पश्चात् धारा 3 के अधीन अर्जित राज्यक्षेत्रों के विलयन के लिए नियत करे और विभिन्न राज्यों में ऐसे राज्यक्षेत्रों के विलयन के लिए विभिन्न तारीखें नियत की जा सकेंगी
- “सभा निर्वाचन-क्षेत्र”, “परिषद् निर्वाचन-क्षेत्र” और संसदीय निर्वाचन-क्षेत्र” के वे ही अर्थ हैं जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 (1950 का 43) में हैं
- “भारत-पाकिस्तान करार” से भारत और पाकिस्तान सरकारों के बीच किए गए 1958 के सितम्बर के दसवें दिन, 1959 के अक्टूबर के तेइसवें दिन तथा 1960 की जनवरी के ग्यारहवें दिन के करार अभिप्रेत हैं, जिनके सुसंगत उद्धरण द्वितीय अनुसूची में उपवर्णित हैं
- “विधि” के अन्तर्गत सम्पूर्ण अर्जित क्षेत्र में या उसके किसी भाग में विधि का बल रखने वाली कोई अधिनियमिति, अध्यादेश, विनियम, आदेश, उपविधि, नियम, स्कीम, अधिसूचना या अन्य लिखत भी है
- “आसीन सदस्य” से संसद् के या किसी राज्य के विधान-मण्डल के दोनों सदनों में से किसी के संबंध में वह व्यक्ति अभिप्रेत है, जो नियत दिनके ठीक पूर्व उस सदन का सदस्य है
- “सम्बद्ध राज्य” से प्रथम अनुसूची के भाग 1, भाग 2 तथा भाग 3 में निर्दिष्ट अर्जित राज्यक्षेत्रों के संबंध में क्रमशः आसाम राज्य, पंजाब राज्य और पश्चिमी बंगाल राज्य अभिप्रेत हैं ; और सम्बद्ध राज्य सरकार” का तद्नुसार अर्थ लगाया जाएगा
- “संघ प्रयोजनों” से सरकार के वे प्रयोजन अभिप्रेत हैं, जो संविधान की सप्तम अनुसूची की सूची 1 में वर्णित मामलों में से किसी से संबंधित है।
- अर्जित राज्यक्षेत्रों का विलयन –
- नियत दिन से प्रथम अनुसूची के भाग 1, भाग 2 तथा भाग 3 में निर्दिष्ट अर्जित राज्यक्षेत्र, क्रमशः आसाम, पंजाब तथा पश्चिमी बंगाल राज्यों में सम्मिलित किए जाएंगे और उसका भाग बनेंगे।
- नियत दिन से सम्बद्ध राज्य सरकार राजपत्र में आदेश द्वारा उस राज्य में सम्मिलित अर्जित राज्यक्षेत्रों के प्रशासन के लिए उन्हें या उनके किसी भाग को ऐसे जिले, उपखण्ड, पुलिस थाने या अन्य प्रशासनिक यूनिट में सम्मिलित करके उपबन्ध कर सकेगी जैसा उस आदेश में विनिर्दिष्ट किया जाए।
- संविधान की प्रथम अनुसूची का संशोधन – नियत दिन से संविधान की प्रथम अनुसूची में,-
- आसाम राज्य के राज्यक्षेत्रों से संबंधित पैरे में, आसाम आदिमजाति क्षेत्रों में समाविष्ट थे” शब्दों के पश्चात् और वे राज्यक्षेत्र, जो अर्जित राज्यक्षेत्र (विलयन) अधिनियम, 1960 की प्रथम अनुसूची के भाग 1 में उल्लिखित है” शब्द, अंक और कोष्ठक अन्तःस्थापित किए जाएंगे
- पंजाब राज्य के राज्यक्षेत्रों से संबंधित पैरे में राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 की धारा 11 में उल्लिखित है” शब्दों और अंकों के पश्चात् और वे राज्यक्षेत्र जो अर्जित राज्यक्षेत्र (विलयन) अधिनियम, 1960 की प्रथम अनुसूची के भाग 2 में उल्लिखित है” शब्द, अंक और कोष्ठक अन्तःस्थापित किए जाएंगे
- पश्चिमी बंगाल राज्य के राज्यक्षेत्रों से संबंधित पैरे में बिहार और पश्चिमी बंगाल (राज्यक्षेत्र अन्तरण) अधिनियम, 1956 की धारा 3 की उपधारा (1) में उल्लिखित है” शब्दों, कोष्ठकों और अंकों के पश्चात् और वे राज्यक्षेत्र, जो अर्जित राज्यक्षेत्र (विलयन) अधिनियम, 1960 की प्रथम अनुसूची में भाग 3 में उल्लिखित है” शब्द, अंक तथा कोष्ठक अन्तःस्थापित किए जाएंगे।
- विद्यमान निर्वाचन-क्षेत्रों के प्रति निर्देशों का अर्थान्वयन-नियत दिन से,-
- संसदीय और सभा निर्वाचन-क्षेत्र परिसीमन आदेश, 1960 में,-
- आसाम या पंजाब या पश्चिमी बंगाल राज्य के प्रति किसी निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि अर्जित राज्यक्षेत्र का वह भाग उसमें सम्मिलित है जो उस राज्य में सम्मिलित किया गया है ;
- किसी जिले, उपखंड, पुलिस थाने या अन्य प्रशासनिक यूनिट के प्रति किसी निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि अर्जित राज्यक्षेत्र का वह भाग, यदि कोई हो, उसमें सम्मिलित है जो उस जिले, उपखण्ड, पुलिस थाने या अन्य प्रशासनिक यूनिट में, धारा 3 की उपधारा (2) के अधीन किए गए आदेश द्वारा सम्मिलित किया गया है ;
- परिषद् निर्वाचन-क्षेत्र (पंजाब) परिसीमन आदेश, 1951 में,-
- पंजाब राज्य के प्रति किसी निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि अर्जित राज्यक्षेत्र का वह भाग उसमें सम्मिलित है जो उस राज्य में सम्मिलित किया गया है ;
- किसी जिले के प्रति किसी निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि अर्जित राज्यक्षेत्र का वह भाग, यदि कोई हो, उसमें सम्मिलित है, जो धारा 3 की उपधारा (2) के अधीन किए गए आदेश द्वारा उस जिले में सम्मिलित किया गया है ;
- परिषद् निर्वाचन-क्षेत्र (पश्चिम बंगाल) परिसीमन आदेश, 1951 में,-
- पश्चिम बंगाल राज्य के प्रति किसी निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि अर्जित राज्यक्षेत्र का वह भाग उसमें सम्मिलित है, जो उस राज्य में सम्मिलित किया गया है ;
- किसीखण्ड या जिले के प्रति किसी निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि अर्जित राज्यक्षेत्र का वह भाग, यदि कोई हो, उसमें सम्मिलित है, जो उस खण्ड या जिले में धारा 3 की उपधारा (2) के अधीन किए गए आदेश द्वारा सम्मिलित किया गया है।
- संसदीय और सभा निर्वाचन-क्षेत्र परिसीमन आदेश, 1960 में,-
- आसीन सदस्यों के बारे में उपबन्ध
- किसी ऐसे संसदीय निर्वाचन-क्षेत्र का, जिसका विस्तार इस अधिनियम के उपबन्धों के आधार पर परिवर्तित किया गया है, प्रतिनिधित्व करने वाले लोक सभा के प्रत्येक आसीन सदस्य के बारे में, ऐसे परिवर्तन के होते हुए भी, यह समझा जाएगा कि वह इस प्रकार यथापरिवर्तित उस निर्वाचन-क्षेत्र से नियत दिन से उस सदन को निर्वाचित किया गया है।
- किसी ऐसे सभा निर्वाचन-क्षेत्र का, जिसका विस्तार इस अधिनियम के उपबन्धों के आधार पर परिवर्तित किया गया है, प्रतिनिधित्व करने वाले आसाम या पंजाब या पश्चिमी बंगाल राज्य की विधान सभा के प्रत्येक आसीन सदस्य के बारे में, ऐसे परिवर्तन के होते हुए भी, यह समझा जाएगा कि वह इस प्रकार यथा परिवर्तित उस निर्वाचन-क्षेत्र से उक्त विधान सभा को नियत दिन से निर्वाचित किया गया है।
- किसी ऐसे परिषद् निर्वाचन-क्षेत्र का, जिसका विस्तार इस अधिनियम के उपबन्धों के आधार पर परिवर्तित किया गया है, प्रतिनिधित्व करने वाले पंजाब या पश्चिम बंगाल की विधान परिषद् के प्रत्येक आसीन सदस्य के बारे में, ऐसे परिवर्तन के होते हुए भी, यह समझा जाएगा कि वह इस प्रकार यथा परिवर्तित उस निर्वाचन-क्षेत्र से उक्त विधान परिषद् को नियत दिन से निर्वाचित किया गया है।
- सम्पत्ति और आस्तियां
- ऐसे अर्जित राज्यक्षेत्र के भीतर की सभी सम्पत्ति तथा आस्तियां, जो नियत दिन के ठीक पूर्व पाकिस्तान में या पूर्वी पाकिस्तान के प्रांत या पश्चिमी पाकिस्तान के प्रांत में निहित हैं, उस दिन से
जहां ऐसी सम्पत्ति तथा आस्तियां संघ प्रयोजनों से संबंधित हैं, वहां संघ में निहित होंगी
- किसी अन्य मामले में ऐसे सम्बद्ध राज्य में निहित होंगी, जिसमें अर्जित राज्यक्षेत्र सम्मिलित किए गए हैं ।
- केन्द्रीय सरकार का उस सरकार के सचिव द्वारा हस्ताक्षरित प्रमाणपत्र इस प्रयोजन के लिए निश्चायक सबूत होगा कि क्या वे प्रयोजन, जिनके लिए कोई सम्पत्ति या आस्तियां, नियत दिन के ठीक पूर्व धारित की गई हैं, संघ के प्रयोजन हैं।
- ऐसे अर्जित राज्यक्षेत्र के भीतर की सभी सम्पत्ति तथा आस्तियां, जो नियत दिन के ठीक पूर्व पाकिस्तान में या पूर्वी पाकिस्तान के प्रांत या पश्चिमी पाकिस्तान के प्रांत में निहित हैं, उस दिन से
- अर्जित राज्यक्षेत्रों (Acquired Territories) में व्यय के लिए धन का विनियोग
- नियत दिन से आसाम या पंजाब या पश्चिम बंगाल राज्य के विधान-मण्डल द्वारा पारित कोई अधिनियम, जो उस दिन के पूर्व 1960-61 के वित्तीय वर्ष के किसी भाग की बाबत किसी व्यय को पूरा करने के लिए उस राज्य की संचित निधि में से धन के विनियोग के संबंध में हो,उस राज्य में सम्मिलित अर्जित राज्यक्षेत्रों के संबंध में भी प्रभावी होगा और सम्बद्ध राज्य सरकार के लिए यह विधियुक्त होगा कि वह उस राज्य में किसी सेवा के लिए व्यय के रूप में ऐसे अधिनियम द्वारा प्राधिकृत रकम में से उन राज्यक्षेत्रों की बाबत कोई रकम खर्च करे।
- सम्बद्ध राज्य का राज्यपाल नियत दिन के पश्चात् उस राज्य की संचित निधि में से ऐसा व्यय प्राधिकृत कर सकेगा जैसा वह उस राज्य में सम्मिलित अर्जित राज्यक्षेत्रों में किसी प्रयोजन या सेवा के लिए नियत दिन से शुरू होने वाली तीन मास की अवधि से अनधिक किसी अवधि के लिए उस राज्य के विधान-मण्डल द्वारा ऐसे व्यय की मंजूरी तक आवश्यक समझे।
- विधियों का विस्तारण – नियत दिन के ठीक पूर्व अर्जित राज्यक्षेत्रों में प्रवृत्त सभी विधियां, उस दिन से उन राज्यक्षेत्रों में प्रवृत्त नहीं रहेंगी और ऐसे सम्बद्ध राज्य में साधारणतया प्रवृत्त सभी विधियां, जिसमें अर्जित राज्यक्षेत्र सम्मिलित किए गए हैं, उस दिन से उन राज्यक्षेत्रों पर, यथास्थिति, विस्तारित या उनमें प्रवृत्त हो जाएंगी, परन्तु अर्जित राज्यक्षेत्रों में प्रवृत्त किसी विधि के अधीन नियत दिन के पूर्व की गई बात या कार्रवाई उन राज्यक्षेत्रों पर विस्तारित और उनमें प्रवृत्त तत्स्थानी विधि के अधीन नियत दिन से की गई समझी जाएगी।
- कानूनी कृत्यों का प्रयोग करने के लिए प्राधिकारियों को नामित करने की शक्ति – सम्बद्ध राज्य सरकार उस राज्य में सम्मिलित अर्जित राज्यक्षेत्रों के बारे में, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा उस प्राधिकारी, अधिकारी या व्यक्ति को विनिर्दिष्ट कर सकेगी, जो नियत दिन को या उसके पश्चात् उन राज्यक्षेत्रों में उसी दिन प्रवृत्त किसी विधि के अधीन प्रयोक्तव्य ऐसे कृत्यों का प्रयोग करने के लिए सक्षम होगा, जिन्हें उस अधिसूचना में वर्णित किया जाए और ऐसी विधि का तद्नुसार प्रभाव होगा ।
- कठिनाइयां दूर करने की शक्ति –
- यदि किसी तत्स्थानी विधि से किसी ऐसी विधि के संक्रमण के संबंध में कोई कठिनाई आती है, जो धारा 9 के आधार पर नियत दिन से अर्जित राज्यक्षेत्रों पर विस्तारित होगी या उनमें प्रवृत्त होगी, तो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचित आदेश द्वारा, ऐसे उपबन्ध कर सकेगी जो उस कठिनाई को दूर करने के लिए उसे आवश्यक या समीचीन प्रतीत हों।
- यदि इस अधिनियम के उपबन्धों को (किसी तत्स्थानी विधि से संक्रमण के संबंध से भिन्न) प्रभावी करने में या ऐसे राज्य के किसी भाग के रूप में अर्जित राज्यक्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में, जिसमें वे सम्मिलित किए गए हैं कोई कठिनाइ आती है, तो सम्बद्ध राज्य सरकार, राजपत्र में आदेश द्वारा, ऐसे उपबन्ध कर सकेगी, जो, इस अधिनियम के प्रयोजनों से असंगत नहो और जो उस कठिनाई को दूर करने के लिए उसे आवश्यक या समीचीन प्रतीत हों।
- नियत दिन से तीन वर्ष की समाप्ति के पश्चात्, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार द्वारा उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन किसी भी शक्ति का प्रयोग नहीं किया जाएगा।
- उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन किया गया कोई आदेश इस प्रकार किया जा सकेगा कि नियत दिन से किसी पूर्वतर तारीख तक वह भूतलक्षी न हो।
प्रथम अनुसूची – धारा 2(क), 2(छ), 3 और 4
भाग 1 | 10 सितंबर, 1958 के समझौते के पैरा 2 के मद (7) के संबंध में अधिग्रहीत क्षेत्र। |
भाग 2 | 11 जनवरी, 1960 के समझौते के पैरा 1 की मदों (2) और (3) के संबंध में अधिग्रहीत क्षेत्र। |
भाग 3 | 10 सितंबर, 1958 के समझौते के पैरा 2 के मदों (5) और मदों (10) और 23 अक्टूबर, 1959 के समझौते के पैरा 4 के संबंध में अधिग्रहीत क्षेत्र। |
द्वितीय अनुसूची – धारा 2 (घ)
1. 10 सितंबर, 1958 के नोट युक्त समझौते का अंश। 2. चर्चा के परिणामस्वरूप, निम्नलिखित समझौते हुए। A. 24 परगना – खुलना B. 24 परगना – जैसूर सीमा विवाद |
यह सहमति हुई है कि भारत और पाकिस्तान दोनों अपने-अपने दावों के मध्य को अपनाएंगे, बाद में उक्त विवाद की स्थिति में नदी (इछामती नदी) को आधार के रूप में लिया जाएगा।
पिया और सूरमा नदी क्षेत्रों का सीमांकन प्रासंगिक अधिसूचनाओं, भूकर सर्वेक्षण मानचित्रों और, यदि आवश्यक हो, अधिकारों के अभिलेखों के अनुसार किया जाएगा। इस सीमांकन का परिणाम जो भी हो, दोनों सरकारों के नागरिकों के लिए इन दोनों नदियों में नौवहन की सुविधा बनी रहेगी।
यह सहमति हुई है कि पुराने कूचबिहार के घेरे हुए क्षेत्र जो पाकिस्तान में स्थित हैं, पाकिस्तान के घेरे हुए क्षेत्रों के लिए बदले जाएंगे जो भारत में स्थित हैं और इसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान को जो अतिरिक्त क्षेत्र मिलेगा, उसे कोई मुआवजा नहीं दिया जाएगा। दावा किया जाए।
23 अक्टूबर, 1959 के दिन समझौते का अंश, जिसका शीर्षक इस प्रकार है:
भारत-पूर्व-पाकिस्तान सीमा क्षेत्रों पर विवादों और घटनाओं के अंत के लिए सहमति से निर्णय और प्रक्रियाएं"
पश्चिम बंगाल-पूर्व-पाकिस्तान सीमा – इस सीमा रेखा के 1,200 मील से अधिक का सीमांकन पहले ही किया जा चुका है। जहां तक महानंदा, बुरुंग और करातोआ नदियों के क्षेत्रों में पश्चिम बंगाल और पूर्वी पाकिस्तान के बीच सीमा रेखा का संबंध है, यह सहमति हुई थी कि सीमांकन प्रासंगिक अधिसूचनाओं के अनुसार अंतिम भूकर सर्वेक्षण मानचित्रों के अनुसार किया जाएगा और प्राधिकरण।
11 जनवरी, 1960 के दिन के एक समझौते का अंश, जिसका शीर्षक है:
“भारत-पश्चिम पाकिस्तान सीमा क्षेत्रों पर विवादों और घटनाओं के अंत के लिए सहमति से निर्णय और प्रक्रियाएं”
- पश्चिम-पाकिस्तान-पंजाब सीमा – इस सेक्टर में कुल 325 मील में से लगभग 252 मील का सीमांकन पूरा हो चुका है। लगभग 73 मील का सीमांकन अभी तक नहीं किया गया है, जिसके कारण सर सिरिल रेडक्लिफ द्वारा पंजाब सीमा आयोग के अध्यक्ष के रूप में दिए गए निर्णय और पुरस्कार की व्याख्या को लेकर भारत और पाकिस्तान की सरकारों के बीच मतभेद हैं। इन मतभेदों को विनिमय की भावना से नीचे वर्णित किया गया है
- चाक लढेके (अमृतसर-लाहौर सीमा) – भारत और पाकिस्तान की संधियाँ सहमत हैं कि सीमा संरेखण सर सिरिल रैडक्लिफ द्वारा कैसुर तहसील के मानचित्र में और भारत सरकार के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के परिणामस्वरूप दिखाया जाएगा। चाक लढके आयेगा
- फिरोजपुर (लाहौर-फिरोजपुर सीमा) – भारत और पाकिस्तान की सरकारें इस बात से सहमत हैं कि इस क्षेत्र में पश्चिम-पंजाब (भारत) सीमा इन जिलों की जिला सीमाओं के साथ है, न कि सतलुज नदी के सही रास्ते के साथ।
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