भारत में सबसे पहले अंग्रेज सरकार ने भारत छोड़ो आंदोलन को कुचलने के लिए 1942 में AFSPA को एक अध्यादेश के जरिए लागू किया था। आज़ादी के बाद साल 1947 में तात्कालिक अशांत स्थितियों से निपटने के लिये इसी अध्यादेश के प्रावधानों के मुताबिक़ चार अलग-अलग अध्यादेश लाए गए थे। साल 1948 में केंद्र सरकार ने इन चारों अध्यादेशों को मिलाकर एक समग्र सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून बनाया। बाद में इस कानून को भारत सरकार ने 1957 में निरस्त कर दिया था और 1958 में AFSPA क़ानून लाया गया।
क्या है सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम: अफस्पा (AFSPA)?
इस क़ानून के तहत, केंद्र या राज्य सरकार के पास किसी भी भारतीय क्षेत्र को “अशांत” घोषित करने का अधिकार होता है। अफ्स्पा क़ानून की धारा (3) के तहत, अगर केंद्र सरकार की नज़र में कोई क्षेत्र “अशांत” है तो इस पर वहां के राज्य सरकार की भी सहमति होनी चाहिए कि वो क्षेत्र “अशांत” है या नहीं। लेकिन राज्य सरकारें केवल सुझाव दे सकती हैं; उनके सुझाव को मानने या न मानने की शक्ति राज्यपाल अथवा केंद्र के पास होती है।
AFSPA के तहत एक बार कोई क्षेत्र ‘अशांत’ घोषित हो जाता है; तो कम से कम तीन महीने तक वहां सुरक्षा बलों की तैनाती रहती है।
आज़ादी के बाद नागालैंड समेत देश के पूर्वोत्तर इलाक़े में उग्रवाद तेज़ी से पनप रहा था। उग्रवाद से निपटने के लिए सेना की ज़रूरत महसूस हुई। उग्रवाद के विरूद्ध इस कार्यवाही में सेना की मदद के लिए 11 सितंबर 1958 को केंद्र सरकार ने AFSPA क़ानून पारित किया। साल 1972 में इसमें कुछ संशोधन भी किया गया था।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नागालैंड को अशांत क्षेत्र घोषित किया था; और AFSPA की अवधि को 6 माह के लिए बढ़ाया गया था; गृह मंत्रालय की तरफ से जारी अधिसूचना में कहा गया है; कि ‘संपूर्ण नागालैंड राज्य की सीमा के भीतर आने वाला क्षेत्र ऐसी अशांत और खतरनाक स्थिति में हैं; जिससे वहां नागरिक प्रशासन की सहायता के लिए सशस्त्र बलों का प्रयोग करना आवश्यक है।
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