जनसंचार का अर्थ बड़ा ही व्यापक और प्रभावकारी है। जनसंचार का शाब्दिक अर्थ है ‘जनसधारण से अधिकाधिक निकट संबंध’। कृषि, उद्योग, व्यापार, जनसेवा और लोकरुचि के विस्तार तथा परिष्कार के लिए भी जनसंचार (Bharat me Jansanchar) की आवश्यकता है।
जनसंचार की महत्ता बताते हुए सन् 1787 ईसवी में अमरीका के राष्ट्रपति टामस जेफर्सन ने लिखा था –
हमारी सत्ताओं का आधार लोकमत है। अत: हमारा प्रथम उद्देश्य होना चाहिए लोकमत को ठीक रखना। अगर मुझसे पूछा जाए कि मैं समाचारपत्रों से विहीन सरकार चाहता हूँ अथवा सरकार से रहित समाचारपत्रों को पढ़ना चाहता हूँ तो मैं नि:संकोच उत्तर दूँगा कि शासनसत्ता से रहित समाचारपत्रों का प्रकाशन ही मुझे स्वीकार है, पर मैं चाहूँगा कि ये समाचारपत्र हर व्यक्ति तक पहुँचें और वे उन्हें पढ़ने में सक्षम हों। जहाँ समाचारपत्र स्वतंत्र हैं और हर व्यक्ति पढ़ने को योग्यता रखता है वहाँ सब कुछ सुरक्षित है।
जनसंचार का माध्यम (Bharat me Jansanchar)
जनसंचार की दृष्टि से वर्तमान युग में समाचारपत्रों, संवाद समितियों, रेडियो, टेलीविजन, फिल्म तथा इसी प्रकार से अन्य साधनों का विशेष महत्व है। यह स्थिति केवल भारत में ही नहीं है बल्कि, विदेशों में है। आइए जनसंचार (Bharat me Jansanchar) के विभिन्न माध्यमों के बारे में विस्तार से जानते है।
1. समाचारपत्र
- भारतवर्ष में जनसंचार (Bharat me Jansanchar) की दृष्टि से समाचारपत्रों का प्रथम प्रकाशन सन् 1780 से आरंभ हुआ।
- 29 जनवरी 1780 को भारत का पहला पत्र बंगाल गजट प्रकाशित हुआ था।
- इसके बाद सन् 1784 में कलकत्ता गजट का प्रकाशन हुआ।
- सन् 1785 में मद्रास से कूरियर निकला, फिर बंबई हेरल्ड, बंबई कूरियर और बंबई गजट जैसे पत्रों का अंग्रेजी में प्रकाशन हुआ।
- इंगलिशमैन 1836 में प्रकाशित हुआ।
- 1838 में बंबई से ‘बंबई टाइम्स’ और बाद में ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ का प्रकाशन हुआ।
- सन् 1857 के विद्रोह के बाद ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’, ‘पायोनियर’, ‘मद्रास मेल’, ‘अमृतबाजार पत्रिका’, ‘स्टेट्समैन’, ‘सिविल ऐंड मिलिटरी गजट’ और ‘हिंदू’ जैसे प्रभावशाली समाचारपत्रों का प्रकाशन प्रारंभ हुआ।
- बिहार से बिहार हेरल्ड, बिहार टाइम्स और बिहार एक्सप्रेस नामक पत्र प्रकाशित हुए।
- भारतीय भाषाओं में प्रकाशित होनेवाला प्रथम पत्र समाचारदर्पण सन् 1818 में श्रीरामपुर से बँगला में प्रकाशित हुआ।
- सन् 1822 में बंबई समाचार, गुजराती भाषा में प्रकाशित हुआ।
- हिंदी का प्रथम समाचारपत्र ‘उदंत मार्तंड’ था, जिसके संपादक श्री युगलकिशोर शुक्ल थे।
- दूसरा पत्र ‘बनारस अखबार’ राजा शिवप्रसाद सितारेहिंद ने सन् 1845 में प्रकाशित कराया था।
- सन् 1868 में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने ‘कवि वचन सुधा’ नामक मासिक पत्रिका निकाली।
- 1871 में ‘अल्मोड़ा समाचार’ नामक साप्ताहिक प्रकाशित हुआ।
- सन् 1872 में पटना से ‘बिहार बंधु’ नामक साप्ताहिक पत्र प्रकाशित हुआ।
- 15 अगस्त 1947 का जब देश स्वतंत्र हुआ तो प्राय: सभी बड़े नगरों से समाचारपत्रों (Bharat me Jansanchar) का प्रकाशन होता था।
- जब संविधान बना तो पहली बार भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सिद्धांत को मान्यता दी गई।
2. डाक सेवा
- सार्वजनिक तौर पर डाक सेवा का प्रारम्भ – 1837
- डाक विभाग की स्थापना – 1854
- पहला डाक टिकट जो कि कलकत्ता में छपा था – 1854
- डाकघर बचत योजना का प्रारम्भ – 1885
- पिन कोड प्रणाली का प्रारम्भ – 1972
- स्पीड पोस्ट का प्रारम्भ – 1986
- विदेश संचार निगम लिमिटेड की स्थापना – 1986
- टेलीकोम मिशन की स्थापना – 1986
- स्पीड पोस्ट मनी आर्डर सेवा का प्रारम्भ – 1988
- हाईब्रिड डाक सेवा का प्रारम्भ – 1995
- बिजनेस पोस्ट की स्थापना – 1997
- बिल मेल सेवा – 2003
- ई पोस्ट की शुरुआत – 2004
- डाइरेक्ट पोस्ट की शुरुआत – 2006
- UIDAI परियोजना – 2011
3. रेडियो
24 दिसम्बर 1906 की शाम कनाडाई वैज्ञानिक रेगिनाल्ड फेसेंडेन ने जब अपना वॉयलिन बजाया और अटलांटिक महासागर में तैर रहे तमाम जहाजों के रेडियो ऑपरेटरों ने उस संगीत को अपने रेडियो सेट पर सुना, वह दुनिया में रेडियो प्रसारण की शुरुआत थी।
भारत और रेडियो
- ‘इम्पेरियल रेडियो ऑफ इंडिया’ की शुरुआत हुई जो आज़ादी के बाद ऑल इंडिया रेडियो या आकाशवाणी बन गया।
- अपने पहले प्रसारण में उद्घोषक उषा मेहता ने कहा, “41.78 मीटर पर एक अंजान जगह से यह नेशनल कांग्रेस रेडियो है।”
- नवंबर 1941 में रेडियो जर्मनी से नेताजी सुभाष चंद्र बोस का भारतीयों के नाम संदेश भारत में रेडियो के इतिहास में एक और प्रसिद्ध दिन रहा जब नेताजी ने कहा था, “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा।”
- इसके बाद 1942 में आज़ाद हिंद रेडियो की स्थापना हुई जो पहले जर्मनी से फिर सिंगापुर और रंगून से भारतीयों के लिये समाचार प्रसारित करता रहा।
- स्वतन्त्रता के पश्चात से 16 नवम्बर 2006 तक रेडियो केवल सरकार के अधिकार के था। धीरे-धीरे आम नागरिकों के पास रेडियो की पहुँच के साथ इसका विकास हुआ।
- सरकारी संरक्षण में रेडियो का काफी प्रसार हुआ। 1947 में आकाशवाणी के पास छह रेडियो स्टेशन थे और उसकी पहुंच 11 प्रतिशत लोगों तक ही थी। आज आकाशवाणी के पास 223 रेडियो स्टेशन हैं और उसकी पहुंच 99.1 फ़ीसदी भारतीयों तक है।
4. टेलीविजन
दूरदर्शन का पहला प्रसारण 15 सितंबर, 1959 को प्रयोगात्मक आधार पर आधे घण्टे के लिए शैक्षिक और विकास कार्यक्रमों के रूप में शुरू किया गया। उस समय दूरदर्शन का प्रसारण सप्ताह में सिर्फ तीन दिन आधा-आधा घंटे होता था। तब इसको ‘टेलीविजन इंडिया’ नाम दिया गया था बाद में 1975 में इसका हिन्दी नामकरण ‘दूरदर्शन’ नाम से किया गया। यह दूरदर्शन नाम इतना लोकप्रिय हुआ कि टीवी का हिंदी पर्याय बन गया।
- शुरुआती दिनों में दिल्ली भर में 18 टेलीविजन सेट लगे थे और एक बड़ा ट्रांसमीटर लगा था। तब दिल्ली में लोग इसको कुतुहल और आश्चर्य के साथ देखते थे। इसके बाद दूरदर्शन ने धीरे धीरेअपने पैर पसारे और दिल्ली (1965); मुम्बई (1972); कोलकाता (1975), चेन्नई (1975) में इसके प्रसारण की शुरुआत हुई।
- शुरुआत में तो दूरदर्शन यानी टीवी दिल्ली और आसपास के कुछ क्षेत्रों में ही देखा जाता था। दूरदर्शन को देश भर के शहरों में पहुँचाने की शुरुआत 80 के दशक में हुई और इसकी वजह थी 1982 में दिल्ली में आयोजित किए जाने वाले एशियाई खेल थे।
- एशियाई खेलों के दिल्ली में होने का एक लाभ यह भी मिला कि श्वेत और श्याम दिखने वाला दूरदर्शन रंगीन हो गया था। फिर दूरदर्शन पर शुरु हुआ पारिवारिक कार्यक्रम हम लोग जिसने लोकप्रियता के तमाम रेकॉर्ड तोड़ दिए। 1984 में देश के गाँव-गाँव में दूरदर्शन पहुँचानेके लिए देश में लगभग हर दिन एक ट्रांसमीटर लगाया गया।
निष्कर्ष
भारत जैसे विशाल और पारम्परिक सभ्यता के देश में बीसवीं सदी के आरम्भ में जब आधुनिक विकास का दौर शुरू हुआ तो नये युग की चेतना के उन्मेष को देश के विशाल जनसमूह में फैलाना एक गम्भीर चुनौती थी। ऐसे समय में जनसंचार (Bharat me Jansanchar) के प्रभावी माध्यम के रूप में रेडियो ने भारत में प्रवेश किया। कालांतर में टेलीविजन भी उससे जुड़ गया। दोनों माध्यमों ने हमारे देश में अब तक अपनी यात्रा में कई मंजिलें पार की हैं। आकाशवाणी और दूरदर्शन ने भारत में प्रसारण मीडिया के विकास में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है।
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