किसी अन्य आधुनिक राज्य की तरह भारत में दो तरह के नागरिकता हैं, नागरिक और विदेशी।
- नागरिक भारतीय राज्य के पूर्ण सदस्य होते हैं और उनकी इस पर पूर्ण निष्ठा होती है। इन्हें सभी सिविल और राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं।
- विदेशी किसी अन्य राज्य के नागरिक होते हैं इसलिए उन्हें सभी नागरिक एवं राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं होते हैं।
इनकी दो श्रेणियां होती हैं- विदेशी मित्र एवं विदेशी शत्रु।
- विदेशी मित्र वे होते हैं, जिनके भारत के साथ सकारात्मक संबंध होते हैं।
- विदेशी शत्रु वे हैं, जिनके साथ भारत का युद्ध चल रहा हो।
उन्हें कम अधिकार प्राप्त होते हैं तथा वे गिरफ्तारी और नजरबंदी के विरुद्ध सुरक्षित नहीं होते (अनुच्छेद 22)।
संविधान भारतीय नागरिकों को निम्नलिखित अधिकार एवं विशेषाधिकार प्रदान करता है। विदेशियों को नहीं:
- धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर विभेद के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 15)।
- लोक नियोजन के विषय में समता का अधिकार (अनुच्छेद 16)।
- वाक् स्वातंत्र्य एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सम्मेलन, संघ, संचरण, निवास व व्यवसाय की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19)।
- संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29 व 30)।
- लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव में मतदान का अधिकार।
- संसद एवं राज्य विधानमंडल की सदस्यता के लिए चुनाव लड़ने का अधिकार।
- सार्वजनिक पदों, जैसे-राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, उच्चतम एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, राज्यों के राज्यपाल, महान्यायवादी एवं महाधिवक्ता की योग्यता रखने का अधिकार।
उपरोक्त अधिकारों के साथ नागरिकों को भारत के प्रति कुछ कर्तव्यों का भी निर्वहन करना होता है। उदाहरण के लिए कर भुगतान, राष्ट्रीय ध्वज एवं राष्ट्रगान का सम्मान, देश की रक्षा आदि।
भारत में नागरिक जन्म से या प्राकृतिक रूप से राष्ट्रपति बनने की योग्यता रखते हैं, जबकि अमेरिका में केवल जन्म से नागरिक ही राष्ट्रपति बन सकता है।
संवैधानिक उपबंध
संविधान के भाग-2 में अनुच्छेद 5 से 11 तक में नागरिकता के बारे में चर्चा की गई है। इस संबंध में इसमें स्थायी और विस्तृत उपबंध नहीं हैं, यह सिर्फ उन लोगों की पहचान करता है, जो संविधान लागू होने के समय (अर्थात् 26 जनवरी, 1950) भारत के नागरिक बने। इसमें न तो इनके अधिग्रहण एवं न ही नागरिकता की हानि की चर्चा की गई है। यह संसद को इस बात का अधिकार देता है कि वह नागरिकता से संबंधित मामलों की व्यवस्था करने के लिए कानून बनाए। इसी प्रकार संसद ने नागरिकता अधिनियम, 1955 को लागू किया, जिसका समय-समय पर संशोधन किया गया।
संविधान निर्माण के उपरांत (26 जनवरी, 1950) संविधान के अनुसार चार श्रेणियों के लोग भारत के नागरिक बनेः
1. एक व्यक्ति, जो भारत का मूल निवासी है और तीन में से कोई एक शर्त पूरी करता है। ये शर्ते हैं-
- यदि उसका जन्म भारत में हुआ हो, या
- उसके माता-पिता में से किसी एक का जन्म भारत में हुआ हो या
- संविधान लागू होने के पांच वर्ष पूर्व से भारत में रह रहा हो (अनुच्छेद 5)।
2. एक व्यक्ति, जो पाकिस्तान से भारत आया हो और यदि उसके माता-पिता या दादा-दादी अविभाजित भारत में पैदा हुए हों और निम्न दो में से कोई एक शर्त पूरी करता हो, वह भारत का नागरिक बन सकता है-
- यदि वह 9 जुलाई, 1948 से पूर्व स्थानांतरित हुआ हो, अपने प्रवसन की तिथि से उसने सामान्यतः भारत में निवास किया हो; और
- यदि उसने 9 जुलाई, 1948 को या उसके बाद भारत में प्रवसन किया हो तो वह भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत हो,
लेकिन ऐसे व्यक्ति का पंजीकृत होने के लिए छह माह तक भारत में निवास आवश्यक है। एक व्यक्ति, जो 1 मार्च, 1947 के बाद भारत से पाकिस्तान स्थानांतरित हो गया हो, लेकिन बाद में फिर भारत में पुनर्वास के लिए लौट आए तो वह भारत का नागरिक बन सकता है। उसे पंजीकरण प्रार्थना-पत्र के बाद छह माह तक रहना होगा।
एक व्यक्ति, जिसके माता-पिता या दादा-दादी अविभिजित भारत में पैदा हुए हों लेकिन वह भारत के बाहर रह रहा हो। फिर भी वह भारत का नागरिक बन सकता है, यदि उसने. भारत के नागरिक के रूप में पंजीकरण कूटनीतिज्ञ तरीके या पार्षदीय प्रतिनिधि के रूप में आवेदन किया हो। यह व्यवस्था भारत के बाहर रहने वाले भारतीयों के लिए बनाई गई है ताकि वे भारत की नागरिकता ग्रहण कर सकें। कुल मिलाकर ये व्यवस्थाएं, नागरिकों की चर्चा करती हैं:
- व्यक्ति जो भारत का मूल निवासी हो,
- व्यक्ति पाकिस्तान से स्थानांतरित हुआ हो,
- व्यक्ति पाकिस्तान स्थानांतरित हुआ हो, लेकिन बाद में लौट आया हो,
- भारतीय मूल का व्यक्ति जो बाहर रह रहा हो।
नागरिकता संबंधी अन्य संवैधानिक प्रावधान इस प्रकार हैं:
- वह व्यक्ति भारत का नागरिक नहीं होगा या भारत का नागरिक नहीं माना जायेगा, जो स्वेच्छा से किसी अन्य देश की नागरिकता ग्रहण कर लेगा।
- प्रत्येक व्यक्ति, जो भारत का नागरिक है या समझा जाता है, वह ऐसा नागरिक बना रह सकता है। यदि संसद इस प्रकार के किसी विधान का निर्माण करे।
- संसद को यह अधिकार है कि वह नागरिकता के अर्जन और समाप्ति के तथा नागरिकता से संबंधित अन्य सभी विषयों के संबंध में विधि बना सकती है।
नागरिकता अधिनियम, 1955
नागरिकता अधिनियम (1955) संविधान लागू होने के बाद अर्जन एवं समाप्ति के बारे में उपबंध करता है।
मूल रूप से, नागरिकता अधिनियम (1955) ने भी राष्ट्रमंडल नागरिकता प्रदान की है। लेकिन इस प्रावधान को नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2003 के द्वारा निरस्त कर दिया गया था।
नागरिकता का अर्जन
नागरिकता अधिनियम, 1955 नागरिकता प्राप्त करने की पांच शर्ते बताता है, जैसे-
- जन्म,
- वंशानुगत,
- पंजीकरण,
- प्राकृतिक एवं
- क्षेत्र समावष्टि करने के आधार पर।
1. जन्म से
भारत में 26 जनवरी, 1950 को या उसके बाद परन्तु 1 जुलाई, 1947 से पूर्व जन्मा व्यक्ति अपने माता-पिता के जन्म की राष्ट्रीयता के बावजूद भारत का नागरिक होगा। भारत में 1 जुलाई को या उसके बाद जन्मा व्यक्ति केवल तभी भारत का नागरिक माना जाएगा, यदि उसके जन्म के समय उसके माता-पिता में से कोई एक भारत का नागरिक हो।
इसके अलावा, यदि किसी व्यक्ति का जन्म 3 दिसंबर, 2004 के बाद भारत में हुआ हो तो वह उसी दशा में भारत का नागरिक माना जायेगा, यदि उसके माता- पिता दोनों उसके जन्म के समय भारत के नागरिक हों या माता या पिता में से एक उस समय भारत का नागरिक हो तथा दूसरा अवैध प्रवासी न हो। भारत में पदस्थ विदेशी राजनयिकों एवं शत्रु देश के बच्चों को भारत की नागरिकता अर्जन करने का अधिकार नहीं है।
2. वंश के आधार पर
कोई व्यक्ति जिसका जन्म 26 जनवरी, 1950 को या उसके बाद परन्तु 10 दिसम्बर, 1992 से पूर्व भारत के बाहर हुआ हो वह वंश के आधार पर भारत का नागरिक बन सकता है, यदि उसके जन्म के समय उसका पिता भारत का नागरिक हो।
- यदि 10 दिसंबर, 1992 को या उसके बाद यदि किसी व्यक्ति का जन्म देश से बाहर हुआ हो तो वह तभी भारत का नागरिक बन सकता है, यदि उसके जन्म के समय उसके माता-पिता में से कोई एक भारत का नागरिक हो।
- 3 दिसंबर, 2004 के बाद भारत से बाहर जन्मा कोई व्यक्ति वंश के आधार पर भारत का नागरिक नहीं हो सकता, यदि उसके जन्म के एक वर्ष के भीतर भारतीय कांसुलेट में उसके जन्म का पंजीकरण न करा दिया गया हो या केंद्र सरकार की सहमति से उक्त अवधि के बाद पंजीकरण न हुआ हो।
इस प्रकार के बच्चे का भारतीय कांसुलेट में पंजीकरण कराते समय आवेदन पत्र में माता-पिता को इस आशय का शपथ-पत्र देना होगा कि उनके बच्चे के पास किसी अन्य देश का पासपोर्ट नहीं है। पुन: एक नाबालिग जो वंश के आधार पर भारत का नागरिक है, साथ ही वह किसी अन्य देश का भी नागरिक है तब उसकी भारतीय नागरिकता समाप्त हो जाएगी जब तक कि वह अन्य देश की नागरिकता या राष्ट्रीयता का परित्याग वयस्क होने के छह माह के अन्दर नहीं कर देता।
3. पंजीकरण द्वारा
केन्द्र सरकार आवेदन प्राप्त होने पर किसी व्यक्ति (अवैध प्रवासी न हो) को भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत कर सकती है, यदि वह निम्नांकित श्रेणियों में से किसी से संबंद्ध हो, नामतः
- भारतीय मूल का व्यक्ति, जो नागरिकता प्राप्ति का आवेदन देने से ठीक पूर्व सात वर्ष भारत में रह चुका हो।
- भारतीय मूल का वह व्यक्ति जो अविभाजित भारत के बाहर या किसी अन्य देश में अन्यत्र रह रहा हो।
- वह व्यक्ति जिसने भारतीय नागरिक से विवाह किया हो और वह पंजीकरण के लिए प्रार्थना-पत्र देने से पूर्व सात वर्ष से भारत में रह रहा हो।
- भारत के नागरिक के नाबालिग बच्चे।
- कोई व्यक्ति, जो पूरी आयु तथा क्षमता का हो तथा उसके माता-पिता भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत हों।
- कोई व्यक्ति, जो पूरी आयु तथा क्षमता का हो तथा वह या उसके माता-पिता स्वतंत्र भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत हों या वह पंजीकरण का इस प्रकार का आवेदन देने से बारह महीने से साधारणतः निवास कर रहा हो।
- कोई व्यक्ति, जो पूरी आयु तथा क्षमता का हो तथा वह समुद्र पार किसी देश के नागरिक के रूप में पांच वर्ष से पंजीकृत हो या/तथा वह पंजीकरण का इस प्रकार का आवेदन देने से बारह महीने से साधारणतः निवास कर रहा हो।
एक व्यक्ति जन्म से भारतीय मूल का माना जायेगा, यदि वह या उसके माता- पिता में से कोई अविभाजित भारत में पैदा हुये हों या 15 अगस्त, 1947 के बाद भारत का अंग बनने वाले किसी भू-क्षेत्र के निवासी हों। उपरोक्त सभी श्रेणियों के लोगों को भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत होने के बाद निष्ठा की शपथ लेनी होगी।
4. प्राकृतिक रूप से
केंद्र सरकार आवेदन प्राप्त होने पर किसी व्यक्ति (अवैध प्रवासी न हो) को प्राकृतिक रूप से नागरिकता प्रमाण-पत्र प्रदान कर सकती है। यदि वह व्यक्ति निम्नलिखित योग्यताएं रखता है:
- ऐसे देश से संबंधित नहीं हो, जहां भारतीय नागरिक प्राकृतिक रूप से नागरिक नहीं बन सकते।
- यदि वह किसी अन्य देश का नागरिक हो तो वह भारतीय नागरिकता के लिए अपने आवेदन की स्वीकृति पर उस देश की नागरिकता को त्याग देगा।
- यदि वह भारत में रह रहा हो या भारत सरकार की सेवा में हो या इनमें से थोड़ा कोई एक और थोड़ा कोई अन्य हो तो उसे नागरिकता संबंधी आवेदन देने के कम से कम 12 माह पूर्व से भारत में रह रहा होना चाहिए।
- यदि 12 माह की इस अवधि से 14 वर्ष पूर्व से वह भारत में रह रहा हो या भारत सरकार की सेवा में हो या इनमें से थोड़ा एक में और थोड़ा अन्य में हो, इनकी कुल अवधि ग्यारह वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए।
- उसका चरित्र अच्छा होना चाहिए।
- वह संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लिखित भाषाओं का अच्छा ज्ञाता हो।
- उसे प्राकृतिक रूप से नागरिकता का प्रमाण-पत्र प्रदान किए जाने की स्थिति में, वह भारत में रहने का इच्छुक हो या भारत सरकार सेवा या किसी अंतरराष्ट्रीय संगठन में जिसका भारत सदस्य हो या भारत में स्थापित किसी सोसायटी, कंपनी या व्यक्तियों का निकाय हो में प्रवेश या उसे जारी रखे।
हालांकि भारत सरकार उपरोक्त प्राकृतिक शर्तों के मामलों पर एक या सभी पर दावा हटा सकती है यदि व्यक्ति की विशेष सेवा विज्ञान, दर्शन, कला, साहित्य, विश्व शांति या मानव उन्नति से संबद्ध हो। इस प्रकार से नागरिक बने हर व्यक्ति को भारत के संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेनी होगी।
5. क्षेत्र समाविष्टि द्वारा
किसी विदेशी क्षेत्र द्वारा भारत का हिस्सा बनने पर भारत सरकार उस क्षेत्र से संबंधित विशेष व्यक्तियों को भारत का नागरिक घोषित करती है। ऐसे व्यक्ति उल्लिखित तारीख से भारत के नागरिक होते हैं। उदाहरण के लिए, जब पांडिचेरी, भारत का हिस्सा बना, तो भारत सरकार ने नागरिकता (पांडिचेरी) आदेश, 1962 जारी किया। यह आदेश नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत जारी किया गया।
6. असम समझौते से आच्छादित व्यक्तियों के लिए नागरिकता का विशेष प्रावधान
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 985 असम समझौते (विदेशी मुद्दे पर) आच्छादित व्यक्तियों की नागरिकता के लिए निम्नलिखित विशेष प्रावधान करता है:
- भारतीय मूल के सभी व्यक्ति जो 1 जनवरी, 1966 के पहले बांग्लादेश से असम आए और जो अपने प्रवेश के बाद से ही साधारणतः असम के निवासी हैं, को 1 जनवरी, 1966 से भारत का नागरिक मान लिया जाएगा।
- भारतीय मूल का प्रत्येक व्यक्ति जो | जनवरी, 966 को या उसके बाद लेकिन 25 मार्च, 497] के पहले बांग्लादेश से असम आया और अपने प्रवेश के समय से ही साधारणतया असम का निवासी हैं और जिसे विदेशी के रूप में पहचाना गया है, को स्वयं को निबंधित करना होगा।
- ऐसा निबंधित व्यक्ति भारत का नागरिक मान लिया जाएगा, सभी उद्देश्यों के लिए विदेशी के रूप में पहचाने जाने के बाद से दस वर्षों की अवधि की समाप्ति की तारीख के बीच। लेकिन इन दस वर्षों के बीच की अवधि में उसे भारत के नागरिक के समान ही अधिकार होंगे लेकिन मत देने का अधिकार नहीं होगा।
नागरिकता की समाप्ति
नागरिकता अधिनियम, 1955 में अधिनियम या संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार प्राप्त नागरिकता खोने के तीन कारण बताए गए हैं-
- त्यागना,
- बर्खास्तगी या
- वंचित करना होना।
1. स्वैच्छिक त्यागः एक भारतीय नागरिक जो पूर्ण आयु और क्षमता का हो। ऐसी घोषणा के उपरांत वह भारत का नागरिक नहीं रहता। अपनी नागरिकता को त्याग सकता है। यदि इस तरह की घोषणा तब हो जब भारत युद्ध में व्यस्त हो तो केंद्र सरकार इसके पंजीकरण को एकतरफ रख सकती है। जब कोई व्यक्ति अपनी नागरिकता का परित्याग करता है। तो उस व्यक्ति का प्रत्येक नाबालिग बच्चा भारतीय नागरिक नहीं रहता, यद्यपि इस तरह के बच्चे की उम्र 8 वर्ष भारतीय होने पर वह प्रार्थना-पत्र देकर भारतीय नागरिक बन सकता
2. बर्खास्तगी के द्वारा: यदि कोई भारतीय नागरिक स्वेच्छा से किस अन्य देश की नागरिकता ग्रहण कर ले तो उसकी भारतीय नागरिकता स्वयं बर्खास्त हो जाएगी। हालांकि यह व्यवस्था तब लागू नहीं होगी जब भारत युद्ध में व्यस्त हो।
3. वंचित करने द्वारा: केंद्र सरकार द्वारा भारतीय नागरिक को आवश्यक रूप से बर्खास्त करना होगा यदि:
- यदि नागरिकता फर्जी तरीके से प्राप्त की गयी हो।
- यदि नागरिक ने संविधान के प्रति अनादर जताया हो।
- यदि नागरिक ने युद्ध के दौरान शत्रु के साथ गैर-कानूनी रूप से संबंध स्थापित किया हो या उसे कोई राष्ट्रविरोधी सूचना दी हो।
- पंजीकरण या प्राकृतिक नागरिकता के पांच वर्ष के दौरान नागरिक को किसी देश में दो वर्ष की कैद हुई हो।
- नागरिक सामान्य रूप से भारत के बाहर सात वर्षों से रह रहा हो।
एकल नागरिकता
यद्यपि भारतीय संविधान संघीय है और इसने दोहरी राजपद्धति (केंद्र एवं राज्य) को अपनाया है, लेकिन इसमें केवल एकल नागरिकता की व्यवस्था की गई है अर्थात् भारतीय नागरिकता। यहां राज्यों के लिए कोई पृथक नागरिकता की व्यवस्था नहीं है। अन्य संघीय राज्यों, जेसे-अमेरिका एवं स्विट्जरलैंड में दोहरी नागरिकता की व्यवस्था को अपनाया गया है।
अमेरिका में प्रत्येक व्यक्ति न केवल अमेरिका का नागरिक है, वरन उस राज्य विशेष का भी नागरिक है जहां वह रहता है। इस तरह उसे दोहरी नागरिकता प्राप्त है और इसी संदर्भ में उसे राष्ट्रीय सरकार एवं राज्य सरकार के दोहरे अधिकार प्राप्त हैं। यह व्यवस्था भेदभाव की समस्या पैदा कर सकती है।
जैसा कि राज्य अपने नागरिकों के प्रति भेदभाव बरत सकता है। यह भेदभाव मताधिकार, सार्वजनिक पदों, व्यवसाय आदि को लेकर हो सकता है। ऐसी समस्या को दूर करने के लिए ही भारत में एकल नागरिकता की व्यवस्था को अपनाया गया।भारत में सभी नागरिकों को, चाहे उनका जन्म कहीं और निवास कहीं और हो, पूरे देश में समान नागरिक अधिकार प्राप्त होते हैं। उनके बीच किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जा सकता। हालांकि भेदभाव रहित इस व्यवस्था में कुछ अपवाद भी हैं:
अपवाद 1. संसद (अनुच्छेद 16 के तहत) ऐसी व्यवस्था कर सकती है कि किसी राज्य विशेष में रहने वाले लोगों को कुछ नौकरियों या नियुक्तियों में अलग सुविधा मिले।
यह सुविधा उस राज्य या केंद्र शासित क्षेत्र के तहत स्थानीय या अन्य प्रशासन के तहत हो सकती है। संसद ने इसी से संबंधित सार्वजनिक रोजगार (निवासी के रूप में जरूरत) अधिनियम, 1957 को प्रभावी बनाया। भारत सरकार को यह अधिकार दिया गया कि गैर-राजपत्रित पदों पर नियुक्ति के लिए आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर और त्रिपुरा के लिए निवास की अनिवार्यता करे। जैसा कि यह अधिनियम 1974 में समाप्त हो गया, उसके बाद आंध्र प्रदेश और तेलंगाना को छोड़कर किसी भी राज्य में ऐसी व्यवस्था नहीं है।
अपवाद 2. संविधान (अनुच्छेद 15) किसी भी नागरिक के खिलाफ धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग, जन्म-स्थान या निवास के आधार पर भेदभाव करने पर प्रतिबंध लगाता है।
इसका अभिप्राय है कि निवास के आधार पर राज्य किसी को विशेष सुविधा दे सकता है, जो कि संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों के सीमा क्षेत्र में आने वाला मामला न हो। उदाहरण के लिए एक राज्य अपने निवासियों के लिए शैक्षणिक शुल्क में छूट दे सकता
अपवाद 3. निवास एवं घूमने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19 के अंतर्गत) अनुसूचित जनजातियों के हित में सुरक्षा का विषय है।
दूसरे शब्दों में, जनजातीय क्षेत्रों में प्रवेश एवं निवास प्रतिबंधित है। निश्चित रूप से ऐसी व्यवस्था उनकी विशेष संस्कृति, भाषा, रिवाज आदि को बचाने के लिए की गई है। यही नहीं, यह व्यवस्था उनकी संपत्ति एवं परंपरा को बचाने एवं उनके शोषण के विरुद्ध एक सुरक्षा कवच भी है।
अपवाद 4. 2019 तक जम्मू एवं कश्मीर की विधायिका निम्नलिखित के लिए अधिकृत थी :
- उन व्यक्तियों को परिभाषित करना जो जम्मू एवं कश्मीर राज्य के स्थाई निवासी हैं, और;
- ऐसे स्थाई निवासियों को निम्न मामलों में विशेष अधिकार एवं सुविधाएं प्रदान करनाः
- राज्य सरकार की सेवा में रोजगार
- राज्य में अचल सम्पत्ति अर्जित करना
- राज्य द्वारा छात्रवृत्ति या अन्य प्रकार की सहायता प्राप्त करने का अधिकार
उपरोक्त प्रावधान भारत के संविधान के अनुच्छेद 35ए (35A) पर आधारित थे। यह अनुच्छेद ‘संविधान (जम्मू एवं कश्मीर पर लागू) आदेश’ द्वारा संविधान में जोड़ा गया था। यह संवैधानिक आदेश राष्ट्रपति द्वारा संविधान के अनुच्छेद 370 के अंतर्गत पारित किया गया था जिसने जम्मू एवं कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा दे रखा था। 2019 में एक नये आदेश के तहत- ‘संविधान (जम्मू एवं कश्मीर पर लागू) आदेश, 2019 द्वारा राष्ट्रपति ने इस विशेष दर्जे को वापस ले लिया। इस नये आदेश ने पूर्व के आदेश को अधिक्रमित कर दिया।
भारत का संविधान, कनाडा की तरह एकल नागरिकता का उपबंध करता है और एकीकृत अधिकार (कुछ मामलों को छोड़कर) प्रदान करता है। यह व्यवस्था भाई-चारे और लोगों के बीच एकता बनाए रखने के लिए की गई, ताकि एक शक्तिशाली भारतीय राष्ट्र की स्थापना हो सके। इसके बावजूद भारत में सांप्रदायिक दंगे, वर्ग संघर्ष, जातीय युद्ध, भाषायी विवाद आदि होते रहे हैं। इस तरह संविधान निर्माताओं का एक एकीकृत भारतीय राष्ट्र निर्माण का लक्ष्य पूरा नहीं किया जा सका है।
विदेशी भारतीय नागरिकता
सितंबर 2000 में भारत सरकार (विदेश मंत्रालय) ने भारतीय डायस्पोरा पर एल.एम. सिंघवी की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया। कमिटी को वैश्विक भारतीय डायस्पोरा के व्यापक अध्ययन करने तथा उनके साथ रचनात्मक सम्बन्ध बनाने के उपायों पर अनुशंसा देने का कार्य सौंपा गया। समिति ने अपनी रिपोर्ट जनवरी 2002 में सौंपी। इसने नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन की सिफारिश की ताकि भारतीय मूल के व्यक्तियों (Persons of Indian Origin, PIOs) को दोहरी नागरिकता प्रदान की जा सके, लेकिन कुछ विशेष देशों के रहने वालों को ही।
उसी अनुसार नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2003 में विदेशी भारतीय नागरिकता का प्रावधान किया गया। 16 निर्दिष्ट देशों के पीआईओ, यानी भारतीय मूल के व्यक्तियों के लिए, पाकिस्तान और बांग्लादेश को छोड़कर। इस अधिनियम ने पूर्व मुख्य अधिनियम के राष्ट्रमंडल नागरिकता से सम्बन्धित सभी प्रावधान हटा दिए।
बाद में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2005 में सभी देशों के भारतीय मूल के व्यक्तियों को विदेशी भारतीय नागरिकता प्रदान करने के (अपवाद पाकिस्तान और बांग्लादेश) प्रावधान किए गए जब तक कि उनके गृह देश स्थानीय कानूनों के अनुसार दोहरी नागरिकता प्रदान करते हों।
पुनः नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2015 ने मुख्य अधिनियम में विदेशी भारतीय नागरिकता (OCI) सम्बन्धी प्रावधानों को संशोधित कर दिया। इसने भारतीय विदेशी नागरिकता कार्डहोल्डर‘ (Overseas Citizen of Indian Cardholder) के नाम से एक नई योजना शुरू की है जिसमें पीआईओ कार्ड स्कीम तथा ओसीआई कार्ड स्कीम को मिला (विलयित) दिया गया है।
- पीआईओ कार्ड स्कीम को 09.08.2002 में शुरू किया गया था और
- उसके बाद OCI कार्ड स्कीम 2.2.2005 में शुरू की गयी थी। दोनों स्कीमें साथ-साथ चल रही थीं, । आवेदक इस कारण भ्रम की स्थिति में थे। आवेदकों का भ्रम दूर कर उन्हें अधिक सुविधाएं प्रदान करने के लिए
- भारत सरकार ने POI तथा OCI को मिलाकर एकल स्कीम का सूत्रण किया, जिसमें दोनों स्कीमों के सकारात्मक पक्षों को शामिल किया गया।
- इस प्रकार इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2015 अधिनियमित किया गया।
- POI स्कीम 09.01.2015 के प्रभाव से रद्द कर दी गयी और
- यह अधिसूचित किया गया कि सभी चालू पीआईओ कार्डधारक 09.01.2015 से OCI कार्डधारक मान लिए जाएंगे।’
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2015 ‘विदेशी भारतीय नागरिक’ को बदलकर ‘विदेशी भारतीय नागरिक कार्डधारक’ (Overseas Citizen of Indian Holder) कर दिया और मुख्य अधिनियम में निम्नलिखित प्रावधान किए
1. विदेशी भारतीय नागरिक कार्ड होल्डर का निबंधन
भारत सरकार आवेदन प्राप्त होने पर किसी विदेशी भारतीय नागरिक कार्डधारक (होल्डर) को पंजीकृत कर सकती है:
1. पूर्ण आयु एवं क्षमतावाला कोई व्यक्ति
- जो कि किसी अन्य देश का नागरिक है, लेकिन संविधान लागू होने के समय अथवा उसके बाद भारत का नागरिक था, अथवा
- जो कि किसी अन्य देश का नागरिक है लेकिन संविधान लागू होने के समय भारत का नागरिक होने के लिए अर्ह था, अथवा
- जो कि किसी अन्य देश का नागरिक है लेकिन उस भू-भाग से सम्बन्ध रखता है जो 5 अगस्त, 1947 के भारत का भाग हो गया, अथवा
- जो कि ऐसे किसी नागरिक का पुत्रपुत्री या पौत्र/पौती या प्रपौत्र/प्रपौत्री हो, अथवा
2. कोई व्यक्ति जो धारा (७) में उल्लिखित व्यक्ति का नाबालिग बच्चा हो, अथवा
कोई व्यक्ति जो कि नाबालिग बच्चा हो
- जिसके माता-पिता भारत के नागरिक हैं अथवा
- दोनों में से एक भारत का नागरिक हो, अथवा
3. भारतीय नागरिक का विदेशी मूल का/की पति/पत्नी, अथवा विदेशी भारतीय नागरिक कार्डधारक का विदेशी मूल का/की पति/पत्नी जिसका विवाह निबंधित है और आवेदन प्रस्तुत करने की तिथि के पूर्व कम-से-कम दो वर्ष तक लगातार चला हो।
अपवाद: कोई भी व्यक्ति जो स्वयं अथवा जिसके माता-पिता में से कोई एक अथवा जिसके दादा/दादी, परदादा/ परदादी पाकिस्तान, बांग्लादेश अथवा ऐसे किसी देश जिन्हें भारत सरकार उल्लिखित कर सकती है, विदेशी भारतीय नागरिक कार्डहोल्डर के लिए निबंधन के लिए अर्ह नहीं होगा।
भारत सरकार उस आंकड़े/डाटा को उल्लिखित कर सकती है जिसमें से सूचीबद्ध भारतीय मूल के कार्डधारक व्यक्तियों को विदेशी भारतीय नागरिक कार्डहोल्डर मान लिया जाएगा।
बिन्दु (1) में कोई बात पहले रहते भी, केन्द्र सरकार अगर संतुष्ट हो कि कोई विशेष परिस्थिति बनती है उन परिस्थितियों को लिखित में अभिलेखित कर, किसी व्यक्ति को विदेशी भारतीय नागरिक कार्डहोल्डर के रूप में निबंधित कर सकती है।
2. विदेशी भारतीय नागरिक कार्डहोल्डर को प्राप्त अधिकार
एक विदेशी भारतीय नागरिक कार्डहोल्डर को ऐसे अधिकार प्राप्त होंगे जेसा कि केन्द्र सरकार उल्लिखित या विशिष्ट निर्देशित कर सकती है।
एक विदेशी भारतीय नागरिक कार्डहोल्डर को निम्नलिखित अधिकार नहीं होंगे (जो कि किसी भारतीय नागरिक को होते हैं)
- उसे सार्वजनिक रोजगार के मामले में अवसर की संभावना का अधिकार नहीं होगा।
- वह राष्ट्रपति चुने जाने के लिए अर्ह नहीं होगा।
- वह उप-राष्ट्रपति चुने जाने के लिए अर्ह नहीं होगा।
- वह सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किए जाने के लिए अर्ह नहीं होगा।
- वह उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किए जाने के लिए अर्ह नहीं होगा
- वह एक मतदाता के रूप में पंजीकृत किए जाने का अधिकारी नहीं होगा।
- वह लोक सभा या राज्य सभा का सदस्य बनने के लिए अर्ह नहीं होगा।
- वह राज्य विधानसभा या राज्य विधान परिषद का सदस्य चुने जाने के लिए अर्ह नहीं होगा।
- वह सार्वजनिक सेवाओं में नियुक्ति तथा संघ अथवा राज्य के मामलों से सम्बन्धित पद के लिए अर्ह नहीं होगा, जब तक कि ऐसी सेवाओं एवं पदों पर नियुक्ति के लिए केन्द्र सरकार विशिष्ट निर्देश न दे।
3. विदेशी भारतीय नागरिकता कार्ड का परित्याग
यदि कोई विदेशी भारतीय नागरिक कार्डहोल्डर निर्धारित प्रपत्र पद्धति से उस कार्ड के परित्याग की घोषणा करता है, जो उसे विदेशी भारतीय नागरिक के रूप में पंजीकृत करती है, तब इस घोषणा को केन्द्र सरकार द्वारा पंजीकृत किया जाएगा तथा इस पंजीकरण के पश्चात वह व्यक्ति विदेशी भारतीय नागरिक नहीं रह जाएगा।
जब एक व्यक्ति विदेशी भारतीय नागरिक कार्ड होल्डर नहीं रह जाता हैं तब उसका विदेशी मूल की उसकी/ का पत्नी/पति जिसने विदेशी भारतीय नागरिक कार्ड प्राप्त किया है और उसका नाबालिग बच्चा जो कि विदेशी भारतीय नागरिक के रूप में पंजीकृत है, भारत का विदेशी नागरिक नहीं रह जाएगा।
4. विदेशी भारतीय नागरिक कार्डहोल्डर के रूप में पंजीकरण का रद्द होना
केन्द्र सरकार विदेशी भारतीय नागरिक कार्डहोल्डर के रूप में किसी व्यक्ति का पंजीकरण रद्द कर सकती है, यदि वह संतुष्ट है कि:
- विदेशी भारतीय नागरिकता कार्डहोल्डर धोखाधड़ी, असत्य प्रतिनिधित्व अथवा भौतिक साक्ष्यों को छुपाकर प्राप्त की गई है अथवा
- विदेशी भारतीय नागरिक कार्डहोल्डर ने भारत के संविधान के प्रति अनिष्ठा प्रदर्शित की है, अथवा
- विदेशी भारतीय नागरिक कार्डहोल्डर ने, ऐसे किसी युद्ध जिसमें भारत भी संलग्न है, के दौरान शत्रु के साथ गैर-कानूनी रूप से संपर्क स्थापित किया है, अथवा
- विदेशी भारतीय नागरिक कार्डहोल्डर ने पंजीकरण के पांच वर्षों के अंदर दो वर्षोंसे कम की कैद की सजा भुगती है अथवा
- यदि ऐसा करना भारत की संप्रभुता एवं अखंडता भारत की सुरक्षा, किसी टूसरे देश के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध अथवा सामान्य जनता के हित में हो, अथवा
- किसी विदेशी भारतीय नागरिक कार्डहोल्डर का विकास विवाह
- किसी सक्षम न्यायालय द्वारा या अन्य द्वारा भंग कर दिया गया हो अथवा
- भंग नहीं किया गया हो, लेकिन ऐसे विवाह के बने रहते ही उसने किसी और के साथ विवाह कर लिया हो।
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