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शुष्क कृषि- बिना पानी के खेती ?

Times Darpan
Last updated: 2023-11-29 23:59
By Times Darpan 1.3k Views
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7 Min Read
शुष्क कृषि

शुष्क एवं अर्द्ध-शुष्क भाग, (Dry farming) जहाँ औसत वार्षिक वर्षा 75 सेमी. से कम होती है, वहाँ की जाने वाली खेती शुष्क कृषि (Dry farming) कहलाती है। भारत के प्रायद्वीपीय पठार के वृष्टिछाया प्रदेश में शुष्क कृषि की जाती है। शुष्क कृषि में गोबर की खाद, बार-बार खेत की जुताई फसलों की निराई-गुडाई तथा खरपतवार को खेत से निकालने पर विशेष बल दिया जाता है । 

Contents
मुख्य पृष्ट्भूमि (Dry farming Important facts in hindi)शुष्क कृषि का महत्त्व (Importance of Dry farming in hindi)कैसे की जाती है शुष्क कृषिशुष्क कृषि के समक्ष समस्याएँ (Problem for Dry farming in hindi)

शुष्क कृषि द्वारा वर्षा की कमी के कारण मिट्टी की नमी को बनाये रखने तथा उसे बढ़ाने का निरन्तर प्रयास किया जाता है। इसके लिए गहरी जुताई की जाती है और वाष्पीकरण को रोकने का प्रयत्न किया जाता है। इसके अंतर्गत अल्प नमी में तथा कम समय में उत्पन्न होने वाली फसलें उत्पन्न की जाती हैं।

मुख्य पृष्ट्भूमि (Dry farming Important facts in hindi)

  • ऎसी कृषि ऐसे क्षेत्रो में की जाती है जहाँ वर्षा 75 सेमी से भी कम होती है।
  • हमारे देश में ऐसा 22% भाग है जहां इस प्रकार की कृषि होती है, इसका 60% भाग राजस्थान, 20% भाग गुजरात तथा शेष पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र आन्ध्र प्रदेश एवं कर्नाटक राज्यों में की जाती है।
  • शुष्क क्षेत्र कृषि प्रधान क्षेत्र है, जहाँ जनसंख्या का 72% भाग कृषि पर आधारित है| यहाँ के 65% क्षेत्र पर कृषि की जाती है, जबकि 2.9% क्षेत्र स्थायी चरगाहों , 20% क्षेत्र कृषि योग्य बंजर एवं 12% परती भूमि के रूप में पाया जाता है।
  • कम उत्पादकता के कारण इस क्षेत्र में देश के कुल 4% खाद्यान्न उत्पादन होता है, जो मोटे अनाजों के रूप में है।
  • ज्वार, बाजरा, मक्का, कपास, मूंगफली, दालें एवं तिलहन इस क्षेत्र की प्रमुख फसलें हैं।
  • शुष्क क्षेत्र के समुचित विकास के लिए अनेक कार्यक्रमों की शुरुआत की गयी है जिसके अंतर्गत 4609 सूक्ष्म जलविभाजक क्षेत्रों को विशेष रूप से चुना गया है, जिनका कुल क्षेत्रफल 3545 हेक्टेयर है।
  • इसके अंतर्गत वर्षा जल के वैज्ञानिक प्रबंधन से लेकर भूमि विकास, व्रक्षारोपण, पशुधन विकास आदि कार्यक्रम सम्मिलित है।

शुष्क कृषि का महत्त्व (Importance of Dry farming in hindi)

भारत जैसे देश में दालें प्रोटीन का महत्त्वपूर्ण स्रोत है। शुष्क कृषि प्रदेशों में ही देश की लगभग 85% दालें उपजाई जाती हैं।

देश का लगभग 75% तिलहन, 80% मक्का और 95% ज्वार शुष्क कृषि के माध्यम से ही पैदा होता है।

भारत में 62 प्रतिशत कृषि क्षेत्र वर्षा पर निर्भर करते हैं, जिनसे अनाज के कुल उत्पादन का 40 प्रतिशत उत्पादित किया जाता है । शुष्क कृषि की प्रमुख विशेषताएं तालिका 10.26 में दी गई हैं ।

dry farming talika

भारत में सिंचित कृषि एवं वर्षा आधारित कृषि क्षेत्रफल तालिका 10.27 में दिखाया गया है ।

कैसे की जाती है शुष्क कृषि

  • बिरसा कृषि विश्वविद्यालय स्थित अखिल भारतीय सूखा खेती अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत ऐसी तकनीक का विकास किया गया है, जिसके अनुसार मिट्टी, जल एवं फसलों का उचित प्रबंधन कर असिंचित अवस्था में भी ऊँची जमीन में अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है।
  • मिट्टी एवं नमी संरक्षण खरीफ फसल कटने के बाद नमी संरक्षण के लिए खेत में पुआल या पत्तियाँ बिछा दी जाती है ताकि खेत की नमी नहीं उड़ने पाये। इस तकनीक को मल्चिंग कहते हैं। यह तकनीक बोआई के तुरन्त बाद भी अपना सकते हैं।
  • जल छाजन (वाटर शेड) के अनुसार भूमि का वर्गीकरण किया जाता है। उसके समुचित उपयोग से भूमि एवं जल का प्रबंधन सही ढंग से किया जा सकता है।
  • वर्षा जल को तालाब में या बाँधकर जमा रखा जाता है। इस पानी से खरीफ फसल को सुखाड़ से बचाया जा सकता है और रबी फसलों की बुआई के बाद आंशिक सिंचाई की जा सकती है।
  • खरीफ फसल कटने के तुरन्त बाद रबी फसल लगायी जाती है ताकि मिट्टी में बची नमी से रबी अंकुरण हो सके।
  • फसल प्रबंधन पथरीली जमीन में वन वृक्ष के पौधे, जैसे काला शीसम, बेर, बेल, जामुन, कटहल, शरीफा तथा चारा फसल में जवार या बाजरा लगाया जाता है।
  • कृषि योग्य ऊँची जमीन में धान, मूंगफली, सोयाबीन, गुनदली, मकई, अरहर, उरद, तिल, कुलथी, एवं मड़ुआ खरीफ में लगायी जाती है
  • मानसून का प्रवेश होते ही खरीफ फसलों की बोआई शुरु कर दें। साथ ही 90 से 105 दिनों में तैयार होने वाली फसलों को लगाया जाता है ।

शुष्क कृषि के समक्ष समस्याएँ (Problem for Dry farming in hindi)

  • शुष्क कृषि वाले इलाकों में वर्षा अनिश्चित,अनियमित व परिवर्तनशील होती है, जिससे किसानों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। 
  • अधिकांश क्षेत्रों की मृदा में ह्यूमस व अन्य पोषक तत्त्वों की कमी होती है, जिससे मृदा की उर्वरता कम होती है। 
  • इन इलाकों में वायु द्वारा मृदा अपरदन का खतरा सदा ही बना रहता है। 
  • कुछ इलाकों में मृदा उपजाऊ है, परंतु सिंचाई व्यवस्था की कमी के कारण कृषि उत्पादन में वृद्धि करना कठिन है।

सिंचाई की उचित सुविधाओं, मृदा अपरदन पर नियंत्रण, खाद के नियंत्रित उपयोग और फसलों के विविधीकरण आदि के द्वारा शुष्क कृषि से भी उत्पादन में वृद्धि किया जाना संभव है। और शुष्क कृषि के लिये ऐसे बीजों का चयन करना चाहिये जो कम वर्षा होने पर भी अच्छा उत्पादन दे सकें और फसल कम समय में तैयार हो सके ।

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