वायु, भूमि तथा जल के भौतिक, रासायनिक तथा जैविक लक्षणों में अवांछित परिवर्तन पर्यावरणीय प्रदूषण या प्रदूषण कहलाता है। प्रदूषण प्राकृतिक तथा कृत्रिम (मानवजन्य) दोनों ही प्रकार का हो सकता है। वे पदार्थ अथवा कारक जिनके कारण यह परिवर्तन उत्पन्न होता है, प्रदूषक (Pollutants) कहलाते हैं। सामान्यतः प्रदूषकों को दो वर्गों में बाँटा गया है-
- जैव निम्नीकरण प्रदूषक Biodegradable Pollutants
- जैव अनिम्नीकरणीय प्रदूषक Non-biodegradable Pollutants
Biodegradable Pollutants (जैव निम्नीकरण प्रदूषक)
इस वर्ग के प्रदूषकों का विभिन्न सूक्ष्म जीवों द्वारा अपघटन हो जाता है तथा अपघटित पदार्थ जैव-भू-रासायनिक चक्र में प्रवेश कर जाते हैं। ऐसे पदार्थ उसी अवस्था में प्रदूषक कहलाते हैं, जब अत्यधिक मात्रा में निर्मित इन पदार्थों का उचित समय में अवकर्षण नहीं हो पाता। घर की रसोई का कूड़ा, मलमूत्र, कृषि उत्पादित अपशिष्ट, कागज, लकड़ी तथा कपड़े इसके सामान्य उदाहरण हैं।
Non-biodegradable Pollutants (जैव अनिम्नीकरणीय प्रदूषक)
इस श्रेणी के प्रदूषक सरल उत्पादों में नहीं परिवर्तित होते। इस प्रकार के प्रदूषक हैं- डी० डी० टी०, पीड़कनाशी, कीटनाशी, पारा, सीसा, आर्सेनिक, ऐलुमिनियम, प्लास्टिक तथा रेडियोधर्मी कचरा। यह प्रदूषक कणीय, तरल अथवा गैसीय हो सकते हैं, जो खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर जीवों को हानि पहुँचा सकते हैं।
प्रदूषण के प्रकार (Types of Pollution)
पर्यावरण के विभिन्न घटकों को प्रदूषित होने के आधार पर प्रदूषण को निम्नलिखित वर्गों में बाँटा जा सकता है-
- वायु प्रदूषण,
- जल प्रदूषण,
- ध्वनि प्रदूषण,
- मृदा प्रदूषण एवं
- रेडियो एक्टिव प्रदूषण।
वायु प्रदूषण (Air Pollution)
वायु ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड इत्यादि गैसों का मिश्रण है। वायु में इसका एक निश्चित अनुपात होता है तथा इनके अनुपात में असंतुलन की स्थिति में वायु प्रदूषण उत्पन्न होता है।
Air Pollution (वायु प्रदूषण) के स्रोत
वायु प्रदूषण के स्रोतों को दो समूहों में रखा जा सकता है-
- वायु प्रदूषण के प्राकृतिक स्रोत
- Air Pollution के मानव निर्मित स्रोत
वायु प्रदूषण के प्राकृतिक स्रोत – दावानल (Forest fire), ज्वालामुखी की राख, धूल भरी आंधी, कार्बनिक पदार्थों का अपघटन, वायु में उड़ते परागकण आदि वायु प्रदूषण के प्राकृतिक स्रोत हैं।
वायु प्रदूषण मानव निर्मित स्रोत – जनसंख्या विस्फोट, वनोन्मूलन, शहरीकरण, औद्योगीकरण आदि वायु प्रदूषण के मानव निर्मित स्रोत्र है। मनुष्य के अनेक क्रियाकलापों द्वारा वायु में छोड़ी जाने आर्सेनिक, एस्बेस्टस, धूल के कण तथा रेडियोधर्मी पदार्थों द्वारा भी वायु प्रदूषण हो रहा है।
वायु-प्रदूषण से हानियाँ
- कार्बन मोनोक्साइड (CO) वायु में अधिक मात्रा में होने पर थकावट, मानसिक विकार, फेफड़े का कैन्सर आदि रोग होता है। हीमोग्लोबिन कार्बन मोनोक्साइड के साथ प्रतिक्रिया कर कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन नामक स्थाई यौगिक बनाता है, जो विषैला होता है। इस कारण दम घुटने से मृत्यु तक हो जाती है।
- ओजोन परत में ह्रास के कारण पराबैंगनी (UV) किरणे अधिक मात्रा में पृथ्वी तक पहुँचती हैं। पराबैंगनी किरणों से आँखों तथा प्रतिरक्षी तंत्र को नुकसान पहुँचता है एवं त्वचीय कैन्सर हो जाता है। इसके कारण वैश्विक वर्षा, पारिस्थितिक असंतुलन एवं वैश्विक खाद्यजाल (भोजन) की उपलब्धता पर भी प्रभाव पड़ता है।
नोट: रेफ्रीजेरेटर, अग्निशमन यत्र तथा ऐरोसोल स्प्रे में उपयोग किए जाने वाले क्लोरो-फ्लोरोकाबन (CFC) से आोजोन परत का ह्रास होता है।
- अम्लीय वर्षा का कारण भी वायु प्रदूषण ही है। यह वायु में उपस्थित नाइट्रोजन तथा सल्फर के ऑक्साइड के कारण होती है। इसके कारण अनेक ऐतिहासिक स्मारक, भवन, मूर्तियों का संक्षारण हो जाता है, जिससे उन्हें बहुत नुकसान पहुँचता है। अम्लीय वर्षा से मृदा भी अम्लीय हो जाती है, जिससे धीरे-धीरे इसकी उर्वरता कम होने लगती है, और उसका कृषि उत्पादकता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
- मोटरगाड़ियों की निकासक नली से निर्मुक्त सीसे (Lead) के कणों से एंथ्रैक्स व एक्जिमा रोग होता है।
- कुछ पीड़कनाशियों से भी प्रदूषण होता है। यह पीड़कनाशी जीवों की खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर जाते हैं तथा जीव में उनका सांद्रण बढ़ता जाता है। इस प्रक्रिया की जैव आवर्धन (Bio-magnification) कहते है। इसके कारण वृक्क, मस्तिष्क एवं परिसंचरण तंत्र में अनेक विकार उत्पन्न हो जाते हैं।
- आर्सेनिक पौधों को विषाक्त बना देती है, जिससे चारे के रूप में पौधे की खाने वाले पशुओं की मृत्यु हो जाती है।
- जीवाश्म ईंधन (कोयला, पेट्रोलियम आदि) के जलने से उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड तथा मीथेन जैसी गैसें पृथ्वी से होने वाले ऊष्मीय विकिरण को रोक लेती हैं। इससे पृथ्वी का ताप बढ़ता है, जिसके फलस्वरूप मौसम में परिवर्तन के साथ-साथ समुद्र तल में भी वृद्धि होती है। ताप के बढ़ने से हिमाच्छादित चोटियाँ तथा हिम-खंड पिघलने लगेंगे जिससे बाढ़ आ सकती है।
- कारखानों की चिमनियों से निकलने वाली SO2, श्वासनली में जलन पैदा करती है तथा फेफड़ों को क्षति पहुँचाती है।
ग्रीन हाउस प्रभाव (Greenhouse Effect)
वायुमंडल में बढ़ती हुई हानिकारक गैसें जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड आदि वायुमंडल की ऊपरी सतह पर जमकर पृथ्वी के तापमान में वृद्धि कर रही है। इसे ही ग्रीन हाउस प्रभाव कहते हैं।
ये गैसें पृथ्वी से वापस लौटने वाली अवरक्त किरणों को रोककर वातावरण को गर्म करती है। यदि वैश्विक तापमान में वृद्धि इसी तरह से होती रहेगी तो ध्रुवों पर स्थित बर्फ पिघलने लगेगें और इसका सीधा प्रभाव समुद्री तटवर्ती शहरों पर पड़ेगा जो जलमग्न हो जाएगें। समुद्रों में स्थित कई द्वीप समूह का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। अतः ग्रीन हाउस प्रभाव आज की गंभीर पर्यावरणीय समस्या है।
जल-प्रदूषण (Water Pollution)
जब जल की भौतिक, रासायनिक तथा जैविक गुणवत्ता में ऐसा परिवर्तन उत्पन्न हो जाए जिससे यह जीवों के लिए हानिकारक तथा प्रयोग हेतु अनुपयुक्त हो जाता है, तो यह जल प्रदूषण कहलाता है।
जल-प्रदूषण के स्रोत
जल-प्रदूषण के स्रोत दो प्रकार के होते है-
- बिन्दु स्रोत (Point sources)
- अबिन्दु स्रोत (Non-point sources)
बिन्दु स्रोत (Point sources): जल स्रोत के निकट बिजलीघर, भूमिगत कोयला खदानें तथा तेल के कुंए इस वर्ग के उदाहरण हैं। यह स्रोत प्रदूषकों को सीधे ही जल में प्रवाहित कर देते हैं।
अबिन्दु स्रोत (Non-point sources): यह अनेक स्थलों पर फैले रहते हैं तथा जल में किसी एक बिन्दु अथवा निश्चित स्थान से प्रवाहित नहीं होते हैं। इनमें खेतों, बगीचों, निर्माण स्थलों, जल-भराव, सड़क एवं गलियों इत्यादि से बहने वाला जल सम्मिलित है।
जल-प्रदूषक (Water pollutants): अनेक पदार्थ, जैसे-कैल्सियम तथा मैग्नीशियम के यौगिक प्राकृतिक स्रोतों से जल में घुल जाते हैं तथा इसे अशुद्ध कर देते हैं। प्रोटोजोआ, जीवाणु तथा अन्य रोगाणु जल को संदूषित करते हैं। जल में तेल, भारी धातुएँ, अपमार्जक, घरेलू कचरा तथा रेडियोधर्मी कचरा भी जल-प्रदूषकों की श्रेणी में आते हैं।
जल प्रदूषण के हानिकारक प्रभाव
- Water Pollution (जल प्रदूषण) के कारण टायफाइड, अतिसार, हैजा, हिपेटाइटिस, पीलिया जैसे रोग फैलते हैं।
- जल में विद्यमान अम्ल तथा क्षार, सूक्ष्म जीवों का विनाश कर देते हैं, जिससे नदियों के जल की स्वतः शुद्धीकरण प्रक्रिया अवरुद्ध होती है।
- प्रदूषित जल में उपस्थित पारा, आर्सेनिक तथा लेड (सीसा) जन्तु व पादपों के लिए विष का कार्य करते हैं।
- वाहित मल, जल में मिलकर शैवालों की वृद्धि को प्रेरित करते हैं, जिससे ये जल की सतह पर फैल जाते हैं। शैवालों की मृत्यु हो जाने पर इनका अपघटन होता है और पानी में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, फलतः जलीय जन्तु मरने लगते हैं।
- क्रोमियम तथा कैडमियम समुद्री जन्तुओं की मृत्यु का कारण बनते हैं।
ध्वनि-प्रदूषण (Sound Pollution)
वातावरण में चारों ओर फैली अनिच्छित या अवांछनीय ध्वनि को ध्वनि प्रदूषण कहते हैं।
ध्वनि प्रदूषण के स्रोत
Sound Pollution (ध्वनि प्रदूषण) का स्रोत शोर (Loudness) ही है, चाहे वह किसी भी तरह से पैदा हुई हो। कूलर, स्कूटर, रेडियो, टी० वी०, कार, बस, ट्रेन, रॉकेट, घरेलू उपकरण, वायुयान, लाउडस्पीकर, वाशिंग मशीन, स्टीरियों, तोप, टैंक तथा दूसरे सुरक्षात्मक उपकरणों के अलावा सभी प्रकार की आवाज करने वाले साधन, कारक या उपकरण ध्वनि प्रदूषण के स्रोत हैं।
ध्वनि प्रदूषण के हानिकारक प्रभाव
- सतत् शोर होने के कारण सुनने की क्षमता कम हो जाती है तथा आदमी के बहरा होने की संभावना बढ़ जाती है।
- इसके कारण थकान, सिरदर्द, अनिद्रा आदि रोग होते हैं।
- शोर के कारण रक्त दाब बढ़ता है तथा हृदय की धड़कन बढ़ जाती है।
- इसके कारण धमनियों में कोलेस्ट्रोल का जमाव बढ़ता है, जिसके कारण रक्तचाप भी बढ़ता है।
- इसके कारण क्रोध तथा स्वभाव में उत्तेजना पैदा होती है।
- शोर में लगातार रहने पर बुढ़ापा जल्दी आता है।
- अत्यधिक शोर के कारण एड्रीनल हार्मोनों का स्राव अधिक होता है।
- हमेशा शोर में रहने पर जनन क्षमता भी प्रभावित होती है।
- इसके कारण उपापचयी क्रियाएँ प्रभावित होती हैं।
- इसके कारण संवेदी तथा तंत्रिका तंत्र कमजोर हो जाता है।
नोट : सामान्य वातfलाप का शोर मूल्य 60 डेसीबल होता है जबकि अंतर्राष्ट्रीय मानक के अनुसार ध्वनि 45 डेसीबल होनी चाहिए।
भूमि या मृदा प्रदूषण(Soil Pollution)
भूमि का विकृत रूप ही भूमि प्रदूषण कहलाता है, जो मुख्यतः ठोस कचरे के कारण उत्पन्न होता है। ठोस कचरा (वर्ज्य) प्रायः घरों, मवेशी गृहों, उद्योगों, कृषि तथा अन्य स्थानों से आता है। इसके ढेर टीलों का रूप ले लेते हैं। ठोस कचड़े में राख, काँच, फल तथा सब्जियों के छिलके, कागज, कपड़े, प्लास्टिक, रबड़, चमड़ा, ईट, रेत, धातुएँ, मवेशी गृह का कचरा, गोबर इत्यादि वस्तुएँ सम्मिलित हैं। वायु में छोड़े गए अनेक रसायन जैसे सल्फर तथा सीसा के यौगिक अन्ततः मृदा में पहुँच जाते हैं तथा इसे प्रदूषित करते हैं।
पैदावार को बढ़ाने के लिए तरह-तरह के कीटनाशियों, शाकनाशियों तथा रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है। ये सभी रासायनिक पदार्थ भूमि में मिलकर भूमि को प्रदूषित करते हैं। भले ही ये तत्कालिक लाभ देते हों, लेकिन इनका परिणाम हानिकारक ही होता है। ये सभी पदार्थ धीरे-धीरे भूमि की उपजाऊ शक्ति को कम करते हैं, तथा पौधों द्वारा खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करके खाद्य श्रृंखला के सभी जीवों को प्रभावित करते हैं।
कचरे के ठोस ढेर प्राकृतिक सौंदर्य को तो नष्ट करते हैं साथ ही वातावरण को भी गंदा करते हैं। सूअर, कुत्ते, चूहे, मक्खी, मच्छर, फेंके गए कचरे में विचरण करते हैं तथा इनसे दुर्गंध फैलती है। साथ ही कचरा नाले तथा नीचले स्थानों में पानी के बहाव को भी अवरुद्ध कर देता है और मक्खी, मच्छरों के प्रजनन-स्थल बन जाते हैं। मच्छर डेगू, मलेरिया, कालाजार, परजीवी के वाहक हैं। संदूषित जल के प्रयोग से हैजा, अतिसार तथा डायरिया जैसे अनेक रोग फैलते है।
रेडियो एक्टिव प्रदूषण (Radioactive Pollution)
रेडियो एक्टिव प्रदूषण रेडियोएक्टिव किरणों से उत्पन्न होता है। रेडियो एक्टिव किरणे मुख्यतः रेडियोएक्टिव पदार्थ से उत्पन्न होता है। रेडियो एक्टिव किरणे मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं-
- अल्फा (α),
- बीटा (β) एवं
- गामा (γ)।
इसके अतिरिक्त सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणे भी रेडियोएक्टिव किरणों के समान जीवों को प्रभावित करती हैं। इस प्रकार रेडियो एक्टिव प्रदूषण के निम्न स्रोत हो सकते हैं-
- चिकित्सा में उपयोग होने वाली किरणों से प्राप्त प्रदूषण।
- परमाणु भट्टियों में प्रयुक्त होने वाले ईंधन से उत्पन्न प्रदूषण।
- नाभिकीय शस्त्रों के उपयोग से उत्पन्न प्रदूषण।
- परमाणु बिजलीघरों से निकलने वाले अपशिष्ट से उत्पन्न प्रदूषण।
- शोध कार्यों में प्रयुक्त रेडियोधर्मी पदार्थों से उत्पन्न प्रदूषण।
- सूर्य की पराबैंगनी किरणों, अंतरिक्ष किरणों एवं पृथ्वी में विद्यमान रेडियोधर्मी पदार्थों के विखण्डन से उत्पन्न प्रदूषण इत्यादि।
रेडियोएक्टिव प्रदूषण के हानिकारक प्रभाव
- रेडियोधर्मी पदार्थों के प्रदूषण से ल्यूकेमिया व हड्डी का कैन्सर उत्पन्न हो जाता है।
- इस पदार्थों के प्रभाव से जीवों की जर्मिनल कोशिकाओं के जीन्स में उत्परिवर्तन उत्पन्न हो जाते हैं, जिससे विकृत एवं विकलांग शिशुओं का जन्म होता है।
- रेडियोधर्मी पदार्थों के प्रभाव से मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिससे अनेक प्रकार की बीमारियाँ शरीर में प्रवेश कर जाती हैं।
- इसके प्रभाव से प्रजनन क्षमता क्षीण हो जाती है तथा असामयिक बुढ़ापा आ जाता है।
- इसके प्रभाव से त्वचा पर घाव बन जाते हैं, ऊतक, आँख आहारनाल पर बुरा प्रभाव पड़ता है तथा इन अंगों पर सूजन, दर्द तथा जलन जैसे लक्षण दिखाई पड़ते हैं।
प्रदूषण नियंत्रण (Control of Pollution)
प्रदूषण की रोकथाम के लिए प्रदूषित गंदे जल को नदियों में प्रवाहित नहीं करना चाहिए। सीवेज को सीवेज ट्रीटमेंट से शुद्ध करना चाहिए। मोटर-वाहनों का रख-रखाव उचित तरीके से करना चाहिए ताकि वे अधिक धुआँ वायुमंडल में न छोड़े। औद्योगिक कल-कारखानों की चिमनियों से निकलने वाले धुओं को फिल्टर करके निकालना चाहिए। कीटनाशी, पीड़कनाशी, कवकनाशी, शाकनाशी आदि को उचित ढंग से लागू करना चाहिए। वन उन्मूलन पर रोक लगनी चाहिए; साथ-ही-साथ नए वन लगाने के कार्यक्रम को तेज करना चाहिए। इससे वायुमंडल में एक ओर जहाँ ऑक्सीजन की कमी नहीं होगी वहीं दूसरी ओर CO2 की मात्रा भी नियंत्रित रहेगी।
संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) ने विश्व में पर्यावरण सुरक्षा के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की स्थापना की है। इसका मुख्यालय अफ्रीकी देश कीनिया की राजधानी नैरोबी में है। विश्व में पर्यावरण के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करने हेतु प्रतिवर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस (world environment day) मनाया जाता है।
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