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मूल कर्तव्य क्या है? सूची, विशेषताएं, आलोचना व महत्व

Times Darpan
Last updated: 2022-10-18 22:17
By Times Darpan 1k Views
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14 Min Read
मूल कर्तव्य क्या है? सूची, विशेषताएं, आलोचना व महत्व

यद्यपि नागरिकों के अधिकार और कर्तव्य आपस में संबंधित और अविभाज्य हैं लेकिन मूल संविधान में मूल अधिकारों को रखा गया, न कि मूल कर्तव्यों को। दूसरे शब्दों में, संविधान निर्माताओं ने यह आवश्यक नहीं समझा कि नागरिकों के मूल कर्तव्यों को संविधान में जोड़ा जाए। हालांकि उन्होंने राज्य के कर्तव्यों को राज्य के निदेशक तत्वों के रूप में शामिल किया। बाद में 1976 में नागरिकों के मूल कर्तव्यों को संविधान में जोड़ा गया। 2002 में एक और मूल कर्तव्य को जोड़ा गया।

Contents
मूल कर्तव्य (Fundamental Duties)स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशेंमूल कर्तव्यों की सूची (list of fundamental duties)मूल कर्तव्यों की विशेषताएं (Features of Fundamental Duties)मूल कर्तव्यों की आलोचना (Criticism of Fundamental Duties)मूल कर्तव्यों का महत्व (Importance of Fundamental Duties)मूल कर्तव्यों का क्रियान्वयन (Implementation of fundamental duties)वर्मा समिति की टिप्पणियां

मूल कर्तव्य (Fundamental Duties)

भारतीय संविधान में मूल कर्तव्यों को पूर्व रूसी संविधान से प्रभावित होकर लिया गया है। उल्लेखनीय है कि प्रमुख लोकतांत्रिक देशों, जैसे- अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया आदि के संविधानों में नागरिकों के कर्तव्यों को विश्लेषित नहीं किया गया है। संभवतः एकमात्र जापानी संविधान में नागरिकों के कर्तव्यों को रखा गया है। इसके विपरीत समाजवादी देशों ने अपने नागरिकों के मूल अधिकारों एवं कर्तव्यों को बराबर महत्व दिया है। रूस के संविधान में घोषणा की गई कि नागरिकों के अधिकार प्रयोग एवं स्वतंत्रता उनके कर्तव्यों एवं दायित्वों के निष्पादन से अविभाज्य हैं।

स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशें

1976 में कांग्रेस पार्टी ने सरदार स्वर्ण सिंह समिति का गठन किया, जिसे राष्ट्रीय आपातकाल के (1975-77) दौरान मूल कर्तव्यों, उनकी आवश्यकता आदि के संबंध संस्तुति देनी थी। समिति ने सिफारिश की कि संविधान में मूल कर्तव्यों का एक अलग पाठ होना चाहिए। इसमें बताया गया कि नागरिकों को अधिकारों के प्रयोग के अलावा अपने कर्तव्यों को निभाना भी आना चाहिए।

केंद्र में कांग्रेस सरकार ने इन सिफारिशों को स्वीकार करते हुए 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 को लागू किया। इसके माध्यम से संविधान में एक नए भाग 4क को जोड़ा गया। इस नए भाग में केवल एक अनुच्छेद था और वह अनुच्छेद 51 क था, जिसमें पहली बार नागरिकों के दस मूल कर्तव्यों का विशेष उल्लेख किया गया। सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी ने घोषणा की कि संविधान में मूल कर्तव्यों को न जोड़ा जाना ऐतिहासिक भूल थी और दावा किया कि जो काम संविधान निर्माता नहीं कर पाए, उसे अब किया गया है।

यद्यपि स्वर्ण सिंह समिति ने संविधान में आठ मूल कर्तव्यों को जोड़े जाने का सुझाव दिया था, लेकिन 42वें संविधान संशोधन अधिनियम (1976) द्वारा 10 मूल कर्तव्यों को जोड़ा गया।

समिति द्वारा दी गई कुछ सिफारिशों को कांग्रेस पार्टी द्वारा स्वीकार नहीं किया गया और इन्हें संविधान में शामिल नहीं किया गया।

इनमें शामिल हैं:

  • संसद किसी आर्थिक दंड या सजा का प्रावधान तब कर सकती है, जब कोई किसी कर्तव्य के अनुपालन से इन्कार कर दे।
  • मूल अधिकारों के लागू करने के आधार या मूल कर्तव्यों के अरुचिकर होने के आधार पर कोई भी कानून इस तरह का अर्थ दंड या सजा लगाने का प्रावधान अदालत द्वारा नहीं करेगा।
  • कर अदायगी भी नागरिकों का मूल कर्तव्य होना चाहिए।

मूल कर्तव्यों की सूची (list of fundamental duties)

अनुच्छेद 51क के अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा कि वहः

  1. संविधान का पालन करें और उसके आदर्शो, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र गान का आदर करे।
  2. स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखें और उनका पालन करे।
  3. भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण रखे।
  4. देश की रक्षा करें और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे।
  5. भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग आधारित सभी भेदभाव से परे हों, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध है।
  6. हमारी संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझें और उसका परिरक्षण करे।
  7. प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करें और उसका संवर्द्धन करें तथा प्राणिमात्र के प्रति दया भाव रखें।
  8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे।
  9. सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहे।
  10. व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करें जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रगति और उपलब्धि की नई ऊचाइयों को छू ले।
  11. 6 से 14 वर्ष तक की उम्र के अपने बच्चों को शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराना। यह कर्तव्य 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 के द्वारा जोड़ा गया।

मूल कर्तव्यों की विशेषताएं (Features of Fundamental Duties)

निम्नलिखित बिंदुओं को मूल कर्तव्यों की विशेषताओं के संदर्भ में उल्लिखित किया जा सकता है:

  1. उनमें से कुछ नेतिक कर्तव्य हैं तो कुछ नागरिक । उदाहरण के लिए स्वतंत्रता संग्राम के उच्च आदर्शों का सम्मान एक नैतिक दायित्व है, जबकि राष्ट्रीय ध्वज एवं राष्ट्रीय गान का आदर करना नागरिक कर्त॑व्य।
  2. ये मूल्य भारतीय परंपरा, पौराणिक कथाओं, धर्म एवं पद्धतियों से संबंधित हैं। दूसरे शब्दों में, ये मूलतः भारतीय जीवन पद्धति के आंतरिक कर्तव्यों का वर्गीकरण हैं।
  3. कुछ मूल अधिकार जो सभी लोगों के लिए हैं चाहे वे नागरिक हों या विदेशी, लेकिन मूल कर्तव्य केवल नागरिकों के लिए हें न कि विदेशियों के लिए।
  4. निदेशक तत्वों की तरह मूल कर्तव्य गैर-न्यायोचित हैं। संविधान में सीधे न्यायालय के जरिए उनके क्रियान्वयन की व्यवस्था नहीं है। यानी उनके हनन के खिलाफ कोई कानूनी संस्तुति नहीं है यद्यपि संसद उपयुक्त विधान द्वारा इनके क्रियान्वयन के लिए स्वतंत्र है।

मूल कर्तव्यों की आलोचना (Criticism of Fundamental Duties)

संविधान के भाग 4 क में उल्लिखित मूल कर्तव्यों की निम्नलिखित आधार पर आलोचना की जाती है:

  1. कर्तव्यों की सूची पूर्ण नहीं है क्योंकि इनमें कुछ अन्य कर्तव्य जैसे मतदान, कर अदायगी, परिवार नियोजन आदि समाहित नहीं हैं। असल में कर अदायगी के कर्तव्य को स्वर्ण सिंह समिति की संस्तुति मिली थी।
  2. कुछ कर्तव्य अस्पष्ट, बहुअर्थी एवं आम व्यक्ति के लिए समझने में कठिन हैं। उदाहरण के लिए विभिन्न शब्दों की भिन्न व्याख्या हो सकती है ‘उच्च आदर्श’, ‘समग्र संस्कृति’, ‘वैज्ञानिक दृष्टिकोण’ आदि।’
  3. अपनी गैर-न्यायोचित छवि के चलते इन्हें आलोचकों द्वारा नैतिक आदेश करार दिया गया। प्रसंगवश स्वर्ण सिंह समिति ने मूल कर्तव्यों को न निभाने पर अर्थ दंड व सजा की सिफारिश की थी।
  4. संविधान में इन्हें शामिल करने को आलोचकों द्वारा अतिरेक करार दिया गया। ऐसा इसलिए क्‍योंकि संविधान में शामिल मूल कर्तव्यों को उन सभी को मानना है जो संविधान से संबद्ध न भी हों।’
  5. आलोचकों ने कहा कि संविधान के भाग 4 में इनको शामिल करना, मूल कर्तव्यों के मूल्य व महत्व को कम करती है। उन्हें भाग तीन के बाद जोड़ा जाना चाहिए था, ताकि वे मूल अधिकारों के बराबर रहते।

मूल कर्तव्यों का महत्व (Importance of Fundamental Duties)

आलोचनाओं एवं विरोध के बावजूद मूल कर्तव्यों की विशेषताओं को निम्नलिखित दृष्टिकोण के आधार पर स्वीकार किया जा सकता है:

  1. अपने अधिकारों का प्रयोग करते वक्‍त यह नागरिकों को अपने देश के प्रति कर्तव्य की याद दिलाते हैं। नागरिकों को अपने देश, अपने समाज और अपने साथी नागरिकों के प्रति अपने कर्तव्यों के संबंध में भी जानकारी रखनी चाहिए।
  2. मूल कर्तव्य राष्ट्र विरोधी एवं समाज विरोधी गतिविधियों, जेसे-राष्ट्र ध्वज को जलाने, सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने के खिलाफ चेतावनी के रूप में करते हैं।
  3. मूल कर्तव्य नागरिकों के लिए प्ररेणा स्रोत हैं, और उनमें अनुशासन और प्रतिबद्धता को बढ़ाते हैं। वे इस सोच को उत्पन्न करते हैं कि नागरिक केवल मूक दर्शक नहीं हैं बल्कि राष्ट्रीय लक्ष्य की प्राप्ति में सक्रिय भागीदार हैं।
  4. मूल कर्तव्य, अदालतों को किसी विधि की संवैधानिक वैधता एवं उनके परीक्षण के संबंध में सहायता करते हैं।
  5. मूल कर्तव्य विधि द्वारा लागू किए जाते हैं। इनमें से किसी के भी पूर्ण न होने पर या असफल रहने पर संसद उनमें उचित अर्थदंड या सजा का प्रावधान कर सकती है।

1992 में उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी कि किसी कानून की संवैधानिकता की दृष्टि से व्याख्या में यदि अदालत को पता लगे कि मूल कर्तव्यों के संबंध में विधि में प्रश्न उठते हैं तो अनुच्छेद 14 या अनुच्छेद 19 (6 स्वतंत्रताओं) के संदर्भ में इन्हें तर्कसंगत माना जा सकता है और इस प्रकार ऐसी विधि को असंवैधानिकता से बचाया जा सकता है।

मूल कर्तव्यों का क्रियान्वयन (Implementation of fundamental duties)

तत्कालीन विधि मंत्री एच.आर. गोखले ने संविधान लागू होने के 26 वर्षों बाद मूल कर्तव्यों को शामिल करने के निम्नलिखित कारण बताए, “स्वतंत्र भारत के बाद विशेषत: जून 1975 को आपातकाल की पूर्व संध्या पर लोगों के एक वर्ग ने स्थापित विधिक व्यवस्था का सम्मान करने की अपनी मूल प्रतिबद्धता के प्रति कोई उत्सुकता नहीं दिखाई। मूल कर्तव्यों संबंधी पीठ के प्रावधानों का आंदोलनकारी लोग, जिन्होंने विगत में राष्ट्र विरोधी आंदोलन और असंवैधानिक विद्रोह किए हों, पर संयमी प्रभाव होगा।”

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संविधान में मूल कर्तव्यों को जोड़ने को उचित ठहराते हुए यह तर्क दिया कि इससे लोकतंत्र को मजबूती मिलेगी। उन्होंने कहा, “मूल कर्तव्यों का नेतिक मूल्य अधिकारों को कम करना नहीं होना चाहिए लेकिन लोकतांत्रिक संतुलन बनाते हुए लोगों को अपने अधिकारों के समान कर्तव्यों के प्रति भी सजग रहना चाहिए।”

संसद में विपक्ष ने संविधान में कांग्रेस सरकार द्वारा मूल कर्तव्यों को जोड़े जाने का कड़ा विरोध किया। यद्यपि मोरारजी देसाई के नेतृत्व में नई जनता सरकार ने आपातकाल के बाद इन मूल कर्तव्यों को समाप्त नहीं किया। उल्लेखनीय है कि, नई सरकार 43वें संशोधन अधिनियम (1977) एवं 44वें संशोधन अधिनियम (1978) के द्वारा 42वें संविधान संशोधन अधिनियम (1976) में अनेक परिवर्तन करना चाहती थी। यह परिलक्षित करता है कि संविधान में मूल कर्तव्यों को जोड़ा जाना आवश्यक था। यह ज्यादा स्पष्ट हो गया, जब वर्ष 2002 में 86वें संशोधन अधिनियम के द्वारा एक और मूल कर्तव्य को जोड़ा गया।

वर्मा समिति की टिप्पणियां

नागरिकों के मूल कर्तव्यों संबंधी वर्मा समिति (1999) ने कुछ मूल कर्तव्यों की पहचान व उनके क्रियान्वयन के लिए कानूनी प्रावधानों को लागू करने की व्यवस्थाएं कीं।

वे निम्नलिखित हैं:

  • राष्ट्र गौरव अपमान निवारण अधिनियम (1974) यह भारत के संविधान, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीय गान के अनादर का निवारण करता है।
  • बहुत-से आपराधिक कानून लोगों के मध्य भाषा, मूल वंश, जन्म स्थान, धर्म आदि के आधार पर विभेद फैलाने वाले को दंड देने की व्यवस्था करते हैं।
  • सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम (1955) जाति एवं धर्म से संबंधित अपराधों पर दंड की व्यवस्था करता है।
  • भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) घोषणा करती है कि राष्ट्रीय अखण्डता के लिए पूर्वग्रह से ग्रस्त अभ्यारोयण और अभिकथन दंडात्मक अपराध होगा।
  • विधि विप्त क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, 1976 किसी सांप्रदायिक संगठन को गैर-कानूनी घोषित करने की व्यवस्था करता है।
  • लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (1954) भ्रष्टाचार में संलिप्त, धर्म के आधार पर मत मांगने, लोगों में धर्म, जाति, भाषा के आधार पर विभेद बढ़ाने वाले संसद सदस्यों एवं राज्य विधानमंडल सदस्यों को अयोग्य घोषित करने की व्यवस्था करता है।
  • वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 दुर्लभ और लुपष्तप्राय प्रजातियों के व्यापार पर प्रतिबंध लगाता है।
  • वन (संरक्षण, अधिनियम, 1980 वनों की अनियंत्रित कटाई एवं वन भूमि के गैर-वन उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल पर रोक लगाता है।

Read more chapter:-

  • Chapter-1: संवैधानिक विकास का चरण – ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
  • Chapter-2: संविधान का निर्माण
  • Chapter-3: भारतीय संविधान की विशेषताएं व आलोचना
  • Chapter-4: संविधान की प्रस्तावना
  • Chapter-5: संघ एवं इसका क्षेत्र
  • Chapter-6: नागरिकता | Citizenship
  • Chapter-7: मूल अधिकार | Fundamental Rights
  • Chapter-8: राज्य के नीति निदेशक तत्व
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