शाहजहाँ का शासनकाल 1628 ई. से 1658 ई. तक था। उनके तीस वर्ष के शासन में भारत की समृद्धि में काफी बढ़ोतरी हुई थी। प्रारम्भ में विद्रोह, सुदूर सीमावर्ती एवं मध्य एशिया पर आक्रमण तथा दक्षिण राज्यों के विरुद्ध सैनिक अभियान के फलस्वरूप राजस्व के बहुत बड़े भाग का अपव्यय हुआ था और अपार धन-जन की हानि हुई थी। दक्षिण भारत और गुजरात में भीषण अकाल पड़ा था, फिर भी शाहजहाँ के शासनकाल में अभूतपूर्व प्रगति और समृद्धि हुई थी जिससे उसके शासनकाल को स्वर्ण युग कहा गया।
शाहजहाँ का स्वर्णयुग
एलिफिस्टन, बर्नियर, मेनोकी, लेनपूल, हंटर विदेशी इतिहासकारों ने शाहजहाँ के शासनकाल को स्वर्णयुग बताया है। परन्तु वी.ए. स्मिथ ने शाहजहाँ के युग को स्वर्णयुग नहीं माना है। स्वर्णयुग उस युग को कहते हैं जिसमें राष्ट्र का बहुमुखी विकास होता है।
साम्राज्य विस्तार
मध्यकालीन युग के शासक साम्राज्यवादी थे। मुग़ल साम्राज्यवाद की नींव बाबर ने डाली थी, किन्तु उसका वास्तविक संस्थापक अकबर था। जहाँगीर ने पिता की नीति का अनुकरण कर मुग़ल साम्राज्य का विस्तार किया था। शाहजहाँ का शासनकाल साम्राज्य-विस्तार की दिशा से अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। उसने मुग़ल साम्राज्य को सुरक्षित के साथ उसकी सीमा का विस्तार और प्रभाव बढ़ाया।
उत्तम प्रशासनिक व्यवस्था
साम्राज्य-विस्तार के साथ-साथ साम्राज्य को संगठित रखने का श्रेय शाहजहाँ को प्राप्त है। वह अपने पूर्वजों की तरह निरंकुश शासक था। परन्तु उसका शासन उदार और प्रजा के लिए लाभकारी था।
मनसबदारी प्रथा में सुधार
मनसबदारी व्यवस्था अकबर के समय में प्रारम्भ की गई थी। कुछ समय बाद उसमें कुछ दोष आने लगा। मनसबदारी प्रथा को दोषरहित बनाने में शाहजहाँ ने अपना योगदान दिया है। शाहजहाँ ने मनसबदारों का वेतन घटा दिया था।
सम्पन्नता का काल
देश के अंदर शान्ति और बाह्य आक्रमण से सुरक्षा आम लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार करवाया था। शाहजहाँ कृषकों को हानि नहीं पहुँचाना चाहता था। उत्पादन में वृद्धि के फलस्वरूप राजकीय आय में वृद्धि हुई।
व्यापार का विकास
शाहजहाँ के शासनकाल में व्यापार में प्रगति हुई थी। भारतवर्ष से अनेक वस्तुओं का निर्यात विदेशों में होता था जिसमें रेशम और सूती कपड़े, नमक, लाह, अफीम, मोम, मसाला आदि थे।
निष्पक्ष न्याय-प्रणाली
शाहजहाँ स्वयं न्याय-विभाग का सर्वोच्च अधिकारी था। न्याय के काम में काजी-उल-कुज्जात या प्रधान काजी बादशाह को परमार्श देता था। वर्नियर ने लिखा है कि -“भारत में प्रत्येक एकड़ भूमि पर सम्राट का अधिकार था, परन्तु यदि किसी किसान को क्षति पहुँचाई जाती थी तो यह समझा जाता था कि सम्राट के राज्य पर डकैती डाली गई है।”
शिक्षा का प्रचार
शाहजहाँ के शासनकाल में शिक्षा-प्रचार का काम हुआ था। शाहजहाँ ज्ञान-विज्ञान के विकास और संस्कृति का संरक्षक था। उसने आगरा और दिल्ली में दो सरकारी विद्यालयों की स्थापना की थी जिसमें शिक्षकों की नियुक्ति सम्राट के द्वारा की जाती थी।
साहित्य का विकास
शाहजहाँ का शासनकाल साहित्यिक विकास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण माना जाता है। फारसी और हिंदी भाषा का विकास हुआ। फारसी राजदरबार की भाषा थी। इस शैली के कई नामी विद्वान् शाहजहाँ के शासनकाल में हुए जिनमें अब्दुल हमीद लाहौरी, मुहम्मद वारिस, चंद्रभान और मुहम्मद स्वालेह के नाम हैं।
कला
कला के क्षेत्र में शाहजहाँ का शासनकाल शानदार था। ताजमहल और तख्ते ताऊस या मयूर सिंहासन शाहजहाँ के समय ही ऐसी अद्वितीय उपलब्धि है जिसके निर्माण में कई वर्षों का समय लगा। चित्रकला में शाहजहाँ की अभिरुचि थी। लाल खां ध्रुपद के श्रेष्ठ गायक थे।
विपक्ष में तर्क
समकालीन इतिहासकारों और यात्रियों के द्वारा शाहजहाँ के शासनकाल के ऐश्वर्य और समृद्धि का जो चित्र अंकित किया गया है, वह वस्तुतः भ्रामक है। साम्राज्य का धन-वैभव का प्रतीक बड़े-बड़े स्मारकों का निर्माण या कला-कौशल को प्रश्रय देना मानकर इतिहासकारों ने शाहजहाँ के शासनकाल को स्वर्णयुग (golden era of mughal empire) कहा है।
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