सन 1947 से पहले जब भारत और पाकिस्तान एक देश हुआ करता था तब बहुत से हिन्दू राजाओं ने यह पर शासन करते है, उन्होंने अपने शासन कल में बहुत से ऐसे मंदिर बनाये जो बटवारे के बाद वह पाकिस्तान वाले क्षेत्र में चला गया जिसके इन मंदिरों का पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व भी है, लेकिन बड़े अफ़सोस की बात है कि यह सभी हिंदू मंदिर पाकिस्तान सरकार की उपेक्षा का शिकार हो गए , अब कुछ मंदिरों को छोड़कर बाकी सब जर्जर चुके है. तो चलिए देखते हैं पाकिस्तान में स्थित टॉप हिंदु मंदिरों की तस्वीरें .
1. कटास राज मन्दिर – पाकिस्तान में सबसे बड़ा हिंदू मंदिर कटासराज मंदिर है, जो भगवान शिव को अर्पित है. यह मंदिर लाहौर से 270 किमी की दूरी पर चकवाल जिले में स्थित है. इस मंदिर के पास एक सरोवर के बारे में कहा जाता है कि मां पार्वती के वियोग में जब शिवजी के आंखों से आंसू निकले तो उनके आंसुओं की दो बूंदे धरती पर गिरीं और आंसुओं की यही बूंदे एक विशाल कुंड में परिवर्तित हो गई.
2. हिंगलाज माता मंदिर, बलूचिस्तान – पाकिस्तान में दूसरा विशाल मंदिर हिंगलाज देवी का है. इस मंदिर की गिनती देवी के प्रमुख 51 शक्ति पीठो में होती है. कहा जाता है कि इस जगह पर आदिशक्ति का सिर गिरा था. यह मंदिर बलूचिस्तान के ल्यारी जिला के हिंगोल नदी के किनारे स्थित है.
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3. गौरी मंदिर, थारपारकर – पाकिस्तान में स्थित तीसरा विशाल मंदिर है गौरी मंदिर. यह सिंध प्रांत के थारपारकर जिले में स्थित है. पाकिस्तान के इस जिले में हिंदु बहुसंख्यक हैं और इनमें अधिकतर आदिवासी हैं. पाकिस्तान में इन्हें थारी हिंदु कहा जाता है. गौरी मंदिर मुख्य रूप से जैन मंदिर है, लेकिन इसमें अनेकों देवी-देवताओं की मूर्तियां रखी हुई हैं. इस मंदिर की स्थापत्य शैली भी राजस्थान और गुजरात की सीमा पर बसे माउंट आबू में स्थित मंदिर जैसी ही है.
4. गोरखनाथ मंदिर, पेशावर – पाकिस्तान के पेशावर में मौजूद ये ऐतिहासिक मंदिर 160 साल पुराना है. ये बंटवारे के बाद से ही बंद पड़ा था और यहां रोजाना का पूजा-पाठ भी बंद पड़ा था. पेशावार हाई कोर्ट के आदेश पर छह दशकों बाद नवंबर 2011 में दोबारा खोला गया. इस मंदिर खोलने के लिए पुजारी की बेटी फूलवती ने याचिका दायर की थी, जिस पर कोर्ट ने इसे खोलने का आदेश दिया था।.
5. स्वामी नारायण मंदिर, कराची – कराची में मौजूद स्वामी नारायण मंजिद 32, 306 स्क्वॉयर क्षेत्र में फैला हुआ है. यह एमए जिन्ना रोड पर स्थित है और यह अप्रैल 2004 में मंदिर ने अपनी 150वीं सालगिरह मनाई .इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां हिंदुओं के साथ-साथ मुस्लिम भी पहुंचते हैं. मंदिर में बनी धर्मशाला में लोगों के ठहरने की भी व्यवस्था है.
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