निदेशक तत्वों का क्रियान्वयन (Implementation of Directive Principles)
1950 से केंद्र में अनुवर्ती सरकारों एवं राज्य ने निदेशक तत्व को लागू करने के लिए अनेक कार्यक्रम एवं विधियों (Implementation of Directive Principles in hindi) को बनाया गया। इनका उल्लेख निम्नलिखित है:
1. योजना आयोग की स्थापना
1950 में योजना आयोग की स्थापना की गई ताकि देश का विकास नियोजित तरीके से हो सके। अनुवर्ती पंचवर्षीय योजनाओं का उददेश्य समाजार्थिक न्याय प्राप्ति तथा आय, प्रतिष्ठा और अवसर की असमानताओं को कम करना है। 2015 में योजना आयोग के स्थान पर एक निकाय नीति आयोग (नेशनल इंस्टीट्युशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया) की स्थापना की गई।
2. भू-सुधार कानून
लगभग सभी राज्यों में भू-सुधार कानून पारित किए गए है ताकि ग्रामीण स्तर पर कृषि समुदाय स्थिति में सुधार हो सके। इन उपायों में शामिल हैं:
- बिचौलियों, जैसे जमींदार, जागीरदार, ईनामदार आदि को समाप्त किया गया।
- किराएदारी सुधार, जैसे किराएदार की सुरक्षा, उचित किराया आदि।
- भूमि सीमांकन व्यवस्था।
- अतिरिक्त भूमि का भूमिहीनों में वितरण।
- सहकारी कृषि।
3. श्रमिक वर्गों के हितों के संरक्षण
श्रमिक वर्गों के हितों के संरक्षण के लिए
- न्यूनतम मजदूरी अधिनियम (1948),
- मजदूरी संदाय अधिनियम (1936),
- बोनस संदाय अधिनियम (1965),
- ठेका श्रम (विनियमन और उत्सादन) अधिनियम (1970),
- बाल श्रम (प्रतिषेध और विनियमन) अधिनियम (1986),
- बंधुआ श्रम पद्धति (उत्सादन) अधिनियम (1976),
- व्यवसाय संघ अधिनियम, (1926),
- कारखाना अधिनियम (1948),
- खान अधिनियम (1952),
- औद्योगिक विवाद अधिनियम (1947),
- कर्मकार प्रतिकार अधिनियम (1923), आदि
लागू किया गया है।
वर्ष 2006 में सरकार ने बाल श्रम पर प्रतिबंध लगाया। 2016 में बाल श्रम निषेध एवं विनियमन अधिनियम (1986) का नाम बदलकर बाल एवं किशोर श्रम निषेध एवं अविनियमन अधिनियम, 1980 कर दिया गया।
4. महिला कर्मचारियों के हितों की रक्षा
प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम (1961) और समान पारिश्रमिक अधिनियम (1976) को महिला कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए बनाया गया।
5. वित्तीय संसाधनों के प्रयोग
सामान्य वस्तुओं के प्रोत्साहन हेतु वित्तीय संसाधनों के प्रयोग के लिए कुछ पैमाने तय किए गए । इनमें शामिल हैं-
- जीवन बीमा का राष्ट्रीकरण (1956),
- 14 प्रमुख बैंकों का राष्ट्रीयरण (1969),
- सामान्य बीमा का राष्ट्रीयकरण (1974),
- शाही खर्च की समाप्ति (1974) आदि।
6. गरीबों को नि:शुल्क एवं उचित कानूनी सहायता
विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम (1987) का राष्ट्रीय स्तर पर गठन किया गया ताकि गरीबों को नि:शुल्क एवं उचित कानूनी सहायता प्राप्त हो सके। इसके अलावा समान न्याय को बढ़ावा देने के लिए लोक अदालतों का गठन किया गया।
लोक अदालत सांविधानिक फोरम हैं, जो कानूनी विवाद का निपटारा करते हैं, इन्हें जन अधिकार अदालतों के समान स्तर दिया गया। इनके निर्णय मानने की बाध्यता होती है और इनके फैसले के विरुद्ध किसी न्यायालय में कोई अपील नहीं है।
7. ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योग विकास
खादी एवं ग्राम उद्योग बोर्ड, खादी एवं ग्राम उद्योग आयोग, लघु उद्योग बोर्ड, राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम, हैंडलूम बोर्ड, हथकरघा बोर्ड, कॉयर बोर्ड, सिल्क बोर्ड आदि की ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योग विकास के लिए स्थापना की गई।
8. रोजगार तथा विकास योजना
सामुदायिक विकास कार्यक्रम (1952), पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम (1960), सूखा संभावित क्षेत्र कार्यक्रम (1973), न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम (1974), एकीकृत ग्रामीण विकास योजना (1978), जवाहर रोजगार योजना (1989), स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना (1999), संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना (2004), राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी योजना (2006) आदि को मानक जीवन जीने के उद्देश्य से प्रारंभ किया गया।
9. वन्य जीवों एवं वनों के लिए संरक्षण
वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 एवं वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 को वन्य जीवों एवं वनों के लिए सुरक्षा कवच के रूप में प्रभावी बनाया गया। राष्ट्रीय वन नीति (1988) का उद्देश्य वनों की सुरक्षा, संरक्षण और विकास करना है।
10. पर्यावरण की सुरक्षा एवं सुधार
जल एवं वायु अधिनियमों ने केंद्र एवं राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड स्थापित किए, जो पर्यावरण की सुरक्षा एवं सुधार में कार्यरत हैं।
11. कृषि का आधुनिकीकरण
कृषि को आधुनिक बनाया गया, इसमें कृषि उपायों में सुधार के अलावा बीज, खाद एवं सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराई गई। पशु चिकित्सा की आधुनिकता के लिए कई कदम उठाए गए।
12. पंचायती राज व्यवस्था
त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था (ग्राम, ताल्लुक एवं जिला स्तर) को चालू किया गया ताकि गांधी जी का सपना कि हर गांव गणतंत्र हो, साकार हो सके। 73वें संशोधन अधिनियम (1992) को इन पंचायती राज संस्थानों को संवैधानिक दर्जा देने के लिए प्रभावी बनाया गया।
13. अनुसूचित जाति एवं जनजाति का संरक्षण
शैक्षणिक संस्थानों, सरकारी नौकरियों एवं प्रतिनिधि निकायों में अनुसूचित जाति, जनजाति एवं कमजोर वर्गों के लिए सीटों को सुरक्षित किया गया। अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम, 1955 को सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1976 नया नाम दिया गया और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 को अनुसूचित जाति एवं जनजाति की सुरक्षा में प्रभावी बनाया गया, ताकि उन्हें शोषण से मुक्ति और सामाजिक न्याय मिले। 65वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1990 के तहत अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की गई। ताकि उनके हितों की रक्षा हो सके। बाद में, 89वें संवेधानिक संशोधन अधिनियम, 2003 ने इस संयुक्त आयोग को दो पृथक निकायों अर्थात् राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग में बांट दिया।
- अनेक राष्ट्रीय स्तर के आयोगों का गठन समाज के कमजोर वर्गों के सामाजिक, शैक्षिक एवं आर्थिक हितों के संवर्द्धन एवं संरक्षण के लिए किया गया है। इनके अंतर्गत शामिल हैं-पिछड़े वर्गों के लिए राष्ट्रीय आयोग (1993), राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (1993), राष्ट्रीय महिला आयोग (1992) तथा राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (2007)। पुनः, 102वां संशोधन अधिनियम 2018 ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया और इसके प्रकार्यों का विस्तार किया।
- 2019 में केन्द्र सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 40 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था शैक्षिक संस्थानों तथा भारत सरकार की असैन्य पदों एवं सेवाओं में की। इस आरक्षण का लाभ आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के उन्हीं व्यक्तियों को मिलेगा जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा पिछड़ा वर्गों के लिए पहले से जारी आरक्षण से आवरित नहीं है। इस आरक्षण व्यवस्था को 103वें संशोधन अधिनियम, 2019 द्वारा लागू किया गया।
14. आपराधिक प्रक्रिया संहिता
आपराधिक प्रक्रिया संहिता (1973) राज्य की लोक सेवा में कार्यकारिणी को विधिक सेवा से विभकत करती है। इस विभाजन से पूर्व जिला प्राधिकारी, जैसे-कलेक्टर, उप-खंड अधिकारी, तहसीलदार आदि विधिक शक्तियों का इस्तेमाल परंपरागत कार्यकारी शक्तियों के साथ करते थे। विभाजन के बाद विधिक शक्तियों को इन कार्यकारियों से अलग कर जिला न्यायिक मजिस्ट्रेटों के हाथों में सॉंप दिया गया है, जो राज्य उच्च न्यायालय के नियंत्रण में काम करते हैं।
15. राष्ट्रीय महत्व के संस्मारकों के स्थानों के संरक्षण
प्राचीन एवं ऐतिहासिक संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम (1954) को राष्ट्रीय महत्व के संस्मारकों के स्थानों के संरक्षण हेतु प्रभावी बनाया गया।
16. सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र एवं अस्पतालों को सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए देश भर में स्थापित किया गया। इसके अलावा खतरनाक बीमारियों, जैसे मलेरिया, टीबी, कुष्ठ, एड्स, कैंसर, फाइलेरिया, कालाजार, गलचघोंटू, जापानी बुखार आदि को समाप्त करने के लिए विशेष योजनाएं प्रारंभ की गईं।
17. पशु बलि पर रोक
कुछ राज्यों में गायों, बछड़ों और बैलों को काटने पर कानूनी प्रतिबंध लगाया गया।
18. वृद्धावस्था पेंशन
कुछ राज्यों में 65 वर्ष से अधिक आयु वाले लोगों के लिए तात्कालिक वृद्धावस्था पेंशन शुरू की गई।
19. गुट निरपेक्ष नीति एवं पंचशील की नीति
भारत ने गुट निरपेक्ष नीति एवं पंचशील की नीति को अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए अपनाया।
केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा उपरोक्त कदम उठाए जाने के बावजूद निदेशक तत्व को पूर्ण एवं प्रभावी तरीके से लागू नहीं किया जा सका।
इसके कारण हैं-
- अपर्याप्त वित्तीय संसाधन,
- प्रतिकूल सामाजिक-आर्थिक परिस्थिति,
- जनसंख्या विस्फोट,
- केंद्र-राज्य-तनावपूर्ण संबंध, आदि।
भाग IV से बाहर के निदेश
भाग IV में उल्लिखित निदेशों के अतिरिक्त संविधान के अन्य भागों में भी कई निदेश दिये गये हैं, जिनका विवरण इस प्रकार है:
1. सेवाओं के लिए अनुसूचित जातियों और जनजातियों के दावे
संघ या किसी राज्य के कार्यकलाप से संबंधित सेवाओं और पदों के लिए नियुक्तियां करने में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के दावों का, प्रशासन की दक्षता बनाए रखने की संगति के अनुसार ध्यान रखा जाएगा (भाग 16 में अनुच्छेद 325)।
2. मातृभाषा में शिक्षा
प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी भाषाई अल्पसंख्यक-वर्गों के बालकों को शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की पर्याप्त सुविधाओं की व्यवस्था करने का प्रयास करेगा (भाग 17 में अनुच्छेद 350क में) |
3. हिंदी भाषा का विकास
संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिन्दी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके (भाग 17 में अनुच्छेद 354)।
उक्त निर्देश भी प्रकृति में न्याय योग्य नहीं हैं। हालांकि, न्यायालय द्वारा इन्हें भी अन्य निर्देशों के समान, उतना ही महत्व दिया जाता है तथा उन्हें भी संविधान का भाग माना जाता है।
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- Chapter-1: संवैधानिक विकास का चरण – ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- Chapter-2: संविधान का निर्माण
- Chapter-3: भारतीय संविधान की विशेषताएं व आलोचना
- Chapter-4: संविधान की प्रस्तावना
- Chapter-5: संघ एवं इसका क्षेत्र
- Chapter-6: नागरिकता | Citizenship
- Chapter-7: मूल अधिकार | Fundamental Rights
- Chapter-8: राज्य के नीति निदेशक तत्व