अनुच्छेद 124 (Article 124 in Hindi) – उच्चतम न्यायालय की स्थापना और गठन
(1) भारत का एक उच्चतम न्यायालय होगा जो भारत के मुख्य न्यायमूर्ति और, जब तक संसद विधि द्वारा अधिक संख्या विहित नहीं करती है तब तक, सात* से अधिक अन्य न्यायाधीशों से मिलकर बनेगा।
(2) उच्चतम न्यायालय के और राज्यों के उच्च न्यायालयों के ऐसे न्यायाधीशों से परामर्श करने के पश्चात्, जिनसे राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिए परामर्श करना आवश्यक समझे, राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा उच्चतम न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को नियुक्त करेगा और वह न्यायाधीश तब तक पद धारण करेगा जब तक वह पैंसठ वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर लेता है:
परन्तु मुख्य न्यायमूर्ति से भिन्न किसी न्यायाधीश की नियुक्ति की दशा में भारत के मुख्य न्यायमूर्ति से सदैव परामर्श किया जाएगा:
परन्तु यह और कि —
- कोई न्यायाधीश, राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा;
- किसी न्यायाधीश को खंड (4) में उपबंधित रीति से उसके पद से हटाया जा सकेगा।
(2) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की आयु ऐसे प्राधिकारी द्वारा और ऐसी रीति से अवधारित की जाएगी जिसका संसद विधि द्वारा उपबंध करे।
(3) कोई व्यक्ति, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए तभी अर्हित होगा जब वह भारत का नागरिक है और–
- किसी उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों का लगातार कम से कम पाँच वर्ष तक न्यायाधीश रहा है या
- किसी उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों का लगातार कम से कम दस वर्ष तक अधिवक्ता रहा है; या
- राष्ट्रपति की राय में पारंगत विधिवेत्ता है।
(4) उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश को उसके पद से तब तक नहीं हटाया जाएगा जब तक साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर ऐसे हटाए जाने के लिए संसद के प्रत्येक सदन द्वारा अपनी कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा समर्थित समावेदन, राष्ट्रपति के समक्ष उसी सत्र में रखे जाने पर राष्ट्रपति ने आदेश नहीं दे दिया है।
(5) संसद खंड (4) के अधीन किसी समावेदन के रखे जाने की तथा न्यायाधीश के कदाचार या असमर्थता के अन्वेषण और साबित करने की प्रक्रिया का विधि द्वारा विनियमन कर सकेगी।
(6) उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश होने के लिए नियुक्त प्रत्येक व्यक्ति, अपना पद ग्रहण करने के पहले राष्ट्रपति या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्ति व्यक्ति के समक्ष, तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्ररूप के अनुसार, शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा।
(7) कोई व्यक्ति, जिसने उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पद धारण किया है, भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर किसी न्यायालय में या किसी प्राधिकारी के समक्ष ओंभवचन या कार्य नहीं करेगा।
अनुच्छेद 124 – भारत का सर्वोच्च न्यायालय
अनुच्छेद 124 (1) के तहत भारतीय संविधान में कहा गया है कि भारत का एक सर्वोच्च न्यायालय होगा जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश (CJI) होगा तथा सात से अधिक अन्य न्यायाधीश नहीं हो सकते जब तक कि कानून द्वारा संसद अन्य न्यायाधीशों की बड़ी संख्या निर्धारित नहीं करती है।
- सर्वोच्च न्यायालय,
- उच्च न्यायालय और
- अधीनस्थ न्यायालय।
सर्वोच्च न्यायालय का संगठन
- वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में 31 न्यायाधीश (एक मुख्य न्यायाधीश एवं तीस अन्य न्यायाधीश) हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय (न्यायाधीशों की संख्या) 2019 के विधेयक में चार न्यायाधीशों की वृद्धि की गई। इसने मुख्य न्यायाधीश सहित न्यायिक शक्ति को 31 से बढ़ाकर 34 कर दिया।
- मूल रूप से सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या आठ (एक मुख्य न्यायाधीश एवं सात अन्य न्यायाधीश) निर्धारित की गई थी।
- संसद उन्हें विनियमित करने के लिये अधिकृत है।
सर्वोच्च न्यायालय का स्थान
- संविधान दिल्ली को सर्वोच्च न्यायालय का स्थान घोषित करता है। यह मुख्य न्यायाधीश को अन्य किसी स्थान अथवा एक से अधिक स्थानों को सर्वोच्च न्यायालय के स्थान के रूप में नियुक्त करने का अधिकार प्रदान करता है।
- वह राष्ट्रपति के अनुमोदन से ही इस संबंध में निर्णय ले सकता है। यह प्रावधान केवल वैकल्पिक है, अनिवार्य नहीं है। इसका अर्थ यह है कि कोई भी अदालत राष्ट्रपति या मुख्य न्यायाधीश को सर्वोच्च न्यायालय को किसी अन्य स्थान पर नियुक्त करने के लिये कोई निर्देश नहीं दे सकती है।
न्यायाधीशों की नियुक्तियाँ
- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। यदि राष्ट्रपति आवश्यक समझता है तो मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के लिये सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की सलाह ली जाती है।
- अन्य न्यायाधीशों को राष्ट्रपति द्वारा मुख्य न्यायाधीश एवं सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के ऐसे अन्य न्यायाधीशों के साथ परामर्श के बाद नियुक्त किया जाता है, यदि वह आवश्यक समझता है। मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त किसी अन्य न्यायाधीश की नियुक्ति के मामले में मुख्य न्यायाधीश के साथ परामर्श करना अनिवार्य है।
- वर्ष 1950 से वर्ष 1973 तक मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति: सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश को भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की परंपरा रही है।
- 1973 में इस परंपरा का उल्लंघन किया गया था जब तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों को छोड़कर ए एन रे को भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था।
- वर्ष 1977 में इसका पुनः उल्लंघन किया गया जब तत्कालीन 10 वरिष्ठतम न्यायाधीशों को छोड़कर एम. यू. बेग को भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था।
- सरकार की इस स्वायत्तता को सर्वोच्च न्यायालय ने द्वितीय न्यायाधीश मामले (1993) में रद्द कर दिया था, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश को ही भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया जाना चाहिये।
न्यायाधीशों की योग्यताएँ
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किये जाने वाले व्यक्ति में निम्नलिखित योग्यताएँ होनी चाहिये
- भारत का नागरिक होना चाहिये।
- उसे कम-से-कम पाँच वर्षों के लिये किसी उच्च न्यायालय (या उत्तरोतर एक से अधिक न्यायालय) का न्यायाधीश होना चाहिये, या
- उसे दस वर्षों के लिये उच्च न्यायालय ( या उत्तरोतर एक से अधिक उच्च न्यायालय) का अधिवक्ता होना चाहिये, या
- राष्ट्रपति के मत में एक प्रतिष्ठित न्यायवादी होना चाहिये।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिये संविधान में न्यूनतम आयु निर्धारित नहीं की गई है।
शपथ या प्रतिज्ञान
सर्वोच्च न्यायालय के लिये नियुक्त न्यायाधीश को अपना कार्यभार संभालने से पूर्व राष्ट्रपति या इस कार्य के लिये राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त व्यक्ति के समक्ष निम्नलिखित शपथ लेनी होगी कि मैं-
- भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा;
- भारत की प्रभुता एवं अखंडता को अक्षुण्ण रखूँगा;
- अपनी पूरी योग्यता ज्ञान और विवेक से अपने पद के कर्त्तव्यों का बिना किसी भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के पालन करूँगा;
- संविधान एवं विधि की मर्यादा बनाए रखूँगा।
न्यायाधीशों का कार्यकाल (Tenure )
संविधान ने सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश का कार्यकाल तय नहीं किया है। हालाँकि इस संबंध में निम्नलिखित तीन प्रावधान किये गए हैं:
- वह 65 वर्ष की आयु तक पदासीन रह सकता है। उसके मामले में किसी प्रश्न के उठने पर संसद द्वारा स्थापित संस्था इसका निर्धारण करेगी।
- वह राष्ट्रपति को लिखित त्यागपत्र देकर पद त्याग सकता है।
- संसद की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा उसे पद से हटाया जा सकता है।
न्यायाधीशों को अपदस्थ करना
राष्ट्रपति के आदेश से सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को पद से हटाया जा सकता है। राष्ट्रपति उसे हटाने का आदेश तभी जारी कर सकता है, जब इस प्रकार हटाए जाने हेतु संसद द्वारा उसी सत्र में ऐसा संबोधन किया गया हो।
इस आदेश को संसद के दोनों सदस्यों के विशेष बहुमत (अर्थात् सदन की कुल सदस्यता का बहुमत एवं सदन में उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों का दो-तिहाई) का समर्थन प्राप्त होना चाहिये। उसे हटाने का आधार दुर्व्यवहार या अक्षमता होना चाहिये।
न्यायाधीश जाँच अधिनियम (1968) सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने के संबंध में महाभियोग की प्रक्रिया का उपबंध करता है-
- अभी तक सर्वोच्च न्यायालय के किसी भी न्यायाधीश पर महाभियोग नहीं लगाया गया है। न्यायमूर्ति वी रामास्वामी (1991-1993) और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा (2017-18) के महाभियोग के प्रस्ताव संसद में पारित नहीं हुए।
वेतन एवं भत्ते
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन, भत्ते, विशेषाधिकार, अवकाश और पेंशन समय-समय पर संसद द्वारा निर्धारित किये जाते हैं। वित्तीय आपातकाल के अतिरिक्त नियुक्ति के बाद इनमें कटौती नहीं की जा सकती है।
कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश
राष्ट्रपति भारत के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में सर्वोच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश की नियुक्ति कर सकता है जब:
- मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त हो।
- अस्थायी रूप से मुख्य न्यायाधीश अनुपस्थित हो।
- मुख्य न्यायाधीश अपने दायित्वों के निर्वहन में असमर्थ हो।