अनुच्छेद 154 (Article 154 in Hindi) – राज्य की कार्यपालिका शक्ति
(1) राज्य की कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित होगी और वह इसका प्रयोग इस संविधान के अनुसार स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा करेगा।
(2) इस अनुच्छेद की कोई बात–
- किसी विद्यमान विधि द्वारा किसी अन्य प्राधिकारी को प्रदान किए गए कृत्य राज्यपाल को अंतरित करने वाली नहीं समझी जाएगी; या
- राज्यपाल के अधीनस्थ किसी प्राधिकारी को विधि द्वारा कृत्य प्रदान करने से संसद या राज्य के विधान-मंडल को निवारित नहीं करेगी।
अनुच्छेद 154 – राज्य की कार्यपालिका शक्ति
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 154 के अनुसार राज्य की सभी कार्यकारी शक्तियाँ राज्यपाल में निहित हैं।
- इस प्रावधान का तात्पर्य यह है कि राज्यपाल राज्य के मुख्यमंत्री के साथ ही राज्य के महाधिवक्ता और राज्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की शक्ति रखता है। केंद्र में सत्तासीन राजनीतिक पार्टी द्वारा अपनी राज्य इकाई या गठबंधन साझीदार किसी क्षेत्रीय पार्टी के पक्ष में बार-बार राज्यपाल की शक्तियों का दुरुपयोग किया जाता है।
- राज्यपाल की सर्वोपरि कार्यकारी शक्ति यह है कि वह किसी राज्य में संवैधानिक आपातकाल लगाने की अनुशंसा कर सकता है।
राज्यपाल की भूमिका
राज्य के राज्यपाल की भूमिका कमोबेश देश के राष्ट्रपति के सामान ही होती है। राज्यपाल सामान्यतः राज्यों के लिये राष्ट्रपति जैसी भूमिका का निर्वाह करता है।
राज्यपाल के कार्यों को मुख्यतः 4 भागों
- कार्यकारी
- विधायी
- वित्तीय
- न्यायिक
में विभाजित किया गया है।
कार्यकारी
राज्य का संवैधानिक प्रमुख होने के नाते राज्यपाल को कई महत्त्वपूर्ण कार्य करने होते हैं, इसमें बहुमत प्राप्त दल के नेता को राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त करना तथा राज्य मंत्रिमंडल के गठन में मुख्यमंत्री की सहायता करना आदि शामिल हैं। साथ ही राज्य के महाधिवक्ता तथा राज्य लोक आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति का कार्य भी राज्यपाल द्वारा ही किया जाता है।
विधायी
राज्यपाल के पास राज्य की विधानसभा की बैठक को किसी भी आपात स्थिति में बुलाने और किसी भी समय स्थगित करने का अधिकार होता है। साथ ही उसे दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाने का भी अधिकार है। उसे राज्य विधानसभा में पारित किये जाने वाले किसी भी विधेयक को रद्द करने, समीक्षा के लिये वापस भेजने और राष्ट्रपति के पास भेजने का अधिकार है। इसका अर्थ है कि राज्य विधानसभा में कोई भी विधेयक राज्यपाल की अनुमति के बिना पारित नहीं किया जा सकता। राज्य में आपातकाल के दौरान किसी भी प्रकार का अध्यादेश जारी करने का कार्य भी राज्यपाल का होता है।
वित्तीय
राज्यपाल का कार्य यह सुनिश्चित करना भी होता है कि वार्षिक वित्तीय विवरण (राज्य-बजट) को राज्य विधानमंडल के सामने रखा जाए। साथ ही किसी भी धन विधेयक को विधानसभा में उसकी अनुमति के बाद ही प्रस्तुत किया जा सकता है। पंचायतों एवं नगरपालिका की वित्तीय स्थिति की हर पाँच वर्षों बाद समीक्षा करने के लिये राज्यपाल राज्य वित्त आयोग का भी गठन करता है।
न्यायिक
राज्यपाल के न्यायिक कार्यों में राज्य के उच्च न्यायालय के साथ विचार कर ज़िला न्यायाधीशों की नियुक्ति, स्थानांतरण और पदोन्नति संबंधी निर्णय लेना शामिल है। वह राज्य न्यायिक आयोग से जुड़े लोगों की नियुक्ति भी करता है।