अनुच्छेद 170 (Article 170 in Hindi) – विधानसभाओं की संरचना
(1) अनुच्छेद 333 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, प्रत्येक राज्य की विधानसभा उस राज्य में प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने हुए पाँच सौ से अनधिक और साठ से अन्यून सदस्यों से मिलकर बनेगी।
(2) खंड (1) के प्रयोजनों के लिए, प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में ऐसी रीति से विभाजित किया जाएगा कि प्रत्येक निर्वाचन-क्षेत्र की जनसंख्या का उसको आबंटित स्थानों की संख्या से अनुपात समस्त राज्य में यथासापय एक ही हो।
(3) प्रत्येक जनगणना की समाप्ति पर प्रत्येक राज्य की विधानसभा में स्थानों की कुल संख्या और प्रत्येक राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजन का ऐसे प्राधिकारी द्वारा और ऐसी रीति से पुनःसमायोजन किया जाएगा जो संसद विधि द्वारा अवधारित करे :
परंतु यह और भी कि जब तक सन् : 2026 के पश्चात् की गई पहली जनगणना के सुसंगत आँकड़े प्रकाशित नहीं हो जाते हैं तब तक : इस खंड के अधीन,–
- प्रत्येक राज्य की विधानसभा में 1971 की जनगणना के आधार पर पुन: समायोजित स्थानों की कुल संख्या का; और
- ऐसे राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में विभाजन का, जो 2001 की जनगणना के आधार पर पुन: समायोजित किए जाएँ, पुन: समायोजन आवश्यक नहीं होगा।
अनुच्छेद 170 : विधानसभाओं की संरचना
संविधान के अनुच्छेद 170 के अनुसार, विधानसभाओं की संरचना का प्रावधान है।
विधान सभा के सदस्य राज्यों के लोगों के प्रत्यक्ष प्रतिनिधि होते हैं क्योंकि उन्हें किसी एक राज्य के 18 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के नागरिकों द्वारा सीधे तौर पर चुना जाता है।
- राज्य विधानमंडल के निचले सदन को विधानसभा कहा जाता है,
- इस सदन के सदस्यों का चुनाव जनता द्वारा प्रत्यक्ष रुप से किया जाता है |
- राज्य विधानसभा की सदस्य संख्या राज्य की जनसंख्या के आधार पर निर्धारित की जाती है।
- विधानसभाओं के सदस्यों की संख्या निर्धारित करते समय जनसंख्या के आंकड़े लिए जाते हैं; जो पिछली जनगणना में प्रकाशित किए गए थे।
इसके अधिकतम आकार को भारत के संविधान के द्वारा निर्धारित किया गया है; जिसमें 500 से अधिक व् 60 से कम सदस्य नहीं हो सकते। हालाँकि विधान सभा का आकार 60 सदस्यों से कम हो सकता है संसद के एक अधिनियम के द्वारा: जैसे गोवा , सिक्किम , मिजोरम और केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी।
कार्यकाल
- प्रत्येक विधान सभा का कार्यकाल पाँच वर्षों का होता है।
- आपातकाल के दौरान, इसके सत्र को छः महीनों के लिए बढ़ाया जा सकता है; या इसे भंग किया जा सकता है।
- मुख्यमंत्री के अनुरोध पर राज्यपाल द्वारा इसे पाँच साल से पहले भी भंग किया जा सकता है।
- विधान सभा को बहुमत प्राप्त या गठबंधन सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाने पर भी भंग किया जा सकता है।
सदस्य बनने हेतु योग्यता
विधानसभा का सदस्य बनने के लिए,
- व्यक्ति को भारत का नागरिक होना आवश्यक है।
- वह 25 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो।
- वह मानसिक रूप से ठीक व दीवालिया न हो।
- कोई भी आपराधिक मुकदमा न होने का प्रमाण पत्र भी देना होता है।
विधान सभा की विशेष शक्तियां
- सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव केवल विधान सभा में पारित किया जा सकता है।
- अगर यह बहुमत के साथ पारित हो जाता है तो उसके बाद मुख्यमंत्री और उसके मंत्रियों की परिषद् सामूहिक रूप से इस्तीफा दे देते हैं।
- मनी बिल को केवल विधानसभा में लाया जा सकता है (द्विसदनीय प्रणालियों में विधान सभा से पास हो जाने के बाद इसे विधान परिषद् के पास भेजा जाता है जहाँ इसे अधिकतम 14 दिनों के लिए रखा जा सकता है।)
- साधारण बिलों में विधान सभा का ही मत चलता है और यहाँ संयुक्त बैठक का भी कोई प्रावधान नहीं होता।
विधानसभा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष
विधानसभा का अध्यक्ष लगभग वही कार्य Legislative Assembly में करता है; जो कार्य लोकसभा का अध्यक्ष करता है। उसके कार्यों में मुख्य हैं :>>
- सदन में अनुशासन बनाए रखना
- सदन की कार्यवाही का सुचारू रूप से संचालित करना
- सदस्यों को बोलने की अनुमति प्रदान करना
- पक्ष और विपक्ष में सामान मत आने पर निर्णायक मत प्रदान करना
अधिवेशन, मतदान और गणपूर्ति
राज्य की विधानसभा का एक वर्ष में कम से कम दो अधिवेशन अवश्य होने चाहिए। इस प्रकार का नियम रखा गया है कि प्रथम सत्र के अंतिम अधिवेशन की तिथि और दूसरे सत्र की प्रथम तिथि में 6 महीने से ऊपर का अंतर नहीं होना चाहिए परन्तु इन नियमों का पालन नहीं किया जाना कानून का उल्लंघन नहीं है। राज्य के राज्यपाल को Legislative Assembly का अधिवेशन बुलाने का अधिकार होता है और वह यह कार्य मुख्यमंत्री की सलाह से करता है। विधानसभा (Legislative Assembly) में कोई भी निर्णय सदस्यों के बहुमत द्वारा किया जाता है। गणपूर्ति के लिए कुल सदस्यों का 1/10 भाग सदन में होना आवश्यक है।