अनुच्छेद 31ग (Article 31(C) in Hindi) – कुछ निदेशक तत्त्वों को प्रभावी करने वाली विधियों की व्यावृत्ति
अनुच्छेद 13 में किसी बात के होते हुए भी, कोई विधि, जो भाग 4 में अधिकथित सभी या किन्हीं तत्त्वों को सुनिश्चित करने के लिए राज्य की नीति को प्रभावी करने वाली है, इस आधार पर शून्य नहीं समझी जाएगी कि वह अनुच्छेद 14 या अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी से असंगत है या उसे छीनती है या न्यून करती है और कोई विधि, जिसमें यह घोषणा है कि वह ऐसी नीति को प्रभावी करने के लिए है, किसी न्यायालय में इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी कि वह ऐसी नीति को प्रभावी नहीं करती है :
परंतु जहाँ ऐसी विधि किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई जाती है वहाँ इस अनुच्छेद के उपबंध उस विधि को तब तक लागू नहीं होंगे जब तक ऐसी विधि को, जो राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखी गई है, उसकी अनुमति प्राप्त नहीं हो गई है।
अनुच्छेद 31ग (Article 31(C) in Hindi)
संविधान (पच्चीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1971 की धारा 3 द्वारा (20-4-1972 से) अंतःस्थापित।
संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 4 द्वारा (3-1-1977 से) ”अनुच्छेद 39 के खंड (ख) या खंड (ग) में विनिर्दिष्ट सिद्धांतों” के स्थान पर प्रतिस्थापित। धारा 4 को उच्चतम न्यायालय द्वारा, मिनर्वा मिल्स लि. और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य (1980) 2 एस.सी.सी. 591 में अधिमान्य घोषित कर दिया गया।
संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 8 द्वारा (20-6-1979 से) ”अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 19 या अनुच्छेद 31” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
उच्चतम न्यायालय ने केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) अनुपूरक एस.सी.आर. 1 में कोष्ठक में दिए गए उपबंध को अधिमान्य घोषित कर दिया है।
अनुच्छेद 31ग के अनुसार ,अगर राज्य द्वारा कोई विधि बनायीं गयी हो जो अनुच्छेद 14 या अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से उसे छीनती है या न्यून करती है तो विधि तब तक मान्य नहीं होगा जब तक राष्ट्रपति द्वारा अनुमति प्राप्त नहीं हो गई है।
इसमें दो प्रावधान शामिल थे:
- यह कहता है कि कोई भी कानून जिसमें अनुच्छेद 39 (B) और (C) में विनिर्दिष्ट समाजवादी निर्देशक सिद्धांतों को लागू करने की मांग की गई है, अनुच्छेद 14 या अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के आधार अमान्य घोषित नहीं होंगे।
- इसके अतिरिक्त कोई भी कानून जो यह घोषणा करे कि यह ऐसी नीति को प्रभावित करने हेतु है, उसे किसी भी न्यायालय में इस आधार पर चुनौती दी जा सकती है कि यह ऐसी नीति को प्रभावित नहीं करता है।