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रक्षा बंधन का रोचक इतिहास : हर युग में भाई ने निभाया है बहन को दिया वचन

Times Darpan
Last updated: 2019-08-26 10:31
By Times Darpan 1k Views
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6 Min Read

रक्षा बंधन भाई बहन की एक ऐसा त्योहार है जो की भाई बहन की पवित्र रिश्ते को एक मामूली से धागे से एक ऐसा बंधन में बांध देता है की भाई अपनी बहन की रक्षा के लिए अपनी जान न्योछावर करने को तैयार हो जाता है. प्राचीन कालो से चली आ रही है यह पर्व भाई बहन के ऐसे रिश्ते को दर्शाती है जो की अकाल्पनिक है.

रक्षा बंधन का इतिहास बहुत ही पुराना है, जो सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ा हुआ है, असल में रक्षाबंधन की परंपरा उन बहनों ने डाली थी जो सगी नहीं थीं, भले ही उन बहनों ने अपने संरक्षण के लिए ही इस पर्व की शुरुआत क्यों न की हो, लेकिन उसकी बदौलत आज भी इस त्योहार की मान्यता बरकरार है. इतिहास के पन्नों को देखें तो इस त्योहार की शुरुआत 6 हजार साल पहले माना जाता है. इसके कई साक्ष्य भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं. वैसे तो रक्षाबंधन की शुरुआत का साक्ष्य रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूं का है लेकिन कुछ ग्रंथो के अनुसार इस पर्व को शुरुआत के बहुत से कहानी मौजूद है.

रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूं

मध्यकालीन युग में राजपूत और मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था, तब चित्तौड़ के राजा की विधवा रानी कर्णावती ने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख हुमायूं को राखी भेजी थी. तब हुमायूं ने उनकी रक्षा कर उन्हें बहन का दर्जा दिया था.

सिकंदर व पोरस

सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु पुरू को राखी बांध कर अपना मुंहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया . पुरू ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी का और अपनी बहन को दिए हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवनदान दिया.
सिकंदर व पोरस ने युद्ध से पूर्व रक्षा-सूत्र की अदला-बदली की थी. युद्ध के दौरान पोरस ने जब सिकंदर पर घातक प्रहार हेतु अपना हाथ उठाया तो रक्षा-सूत्र को देखकर उसके हाथ रुक गए और वह बंदी बना लिया गया. सिकंदर ने भी पोरस के रक्षा-सूत्र की लाज रखते हुए और एक योद्धा की तरह व्यवहार करते हुए उसका राज्य वापस लौटा दिया.

कृष्ण और द्रोपदी

एक उदाहरण कृष्ण और द्रोपदी का माना जाता है. कृष्ण भगवान ने राजा शिशुपाल को मारा था. युद्ध के दौरान कृष्ण के बाएं हाथ की उंगली से खून बह रहा था, इसे देखकर द्रोपदी बेहद दुखी हुईं और उन्होंने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर कृष्ण की उंगली में बांध दी, जिससे उनका खून बहना बंद हो गया. कहा जाता है तभी से कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन स्वीकार कर लिया था. सालों के बाद जब पांडव द्रोपदी को जुए में हार गए थे और भरी सभा में उनका चीरहरण हो रहा था, तब कृष्ण ने द्रोपदी की लाज बचाई थी .

श्री गणेश और संतोषी मां

भगवान गणेश के बेटे शुभ और लाभ एक बहन चाहते थे. तब भगवान गणेश ने यज्ञ वेदी से संतोषी मां का आह्वान किया. रक्षा बंधन, शुभ, लाभ और संतोषी मां के दिव्य रिश्ते की याद में भी मनाया जाता है. यह रक्षा विधान श्रावण मास की पूर्णिमा को प्रातः काल संपन्न किया गया था तब ही से रक्षा बंधन अस्तित्व में आया और श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाने लगा.

यम और यमुना

भाई और बहन के प्रतीक रक्षा बंधन से जुड़ी एक अन्य रोचक कहानी है, मृत्यु के देवता भगवान यम और यमुना नदी की. पौराणिक कथाओं के मुताबिक यमुना ने एक बार भगवान यम की कलाई पर धागा बांधा था. वह बहन के तौर पर भाई के प्रति अपने प्रेम का इजहार करना चाहती थी. भगवान यम इस बात से इतने प्रभावित हुए कि यमुना की सुरक्षा का वचन देने के साथ ही उन्होंने अमरता का वरदान भी दे दिया. साथ ही उन्होंने यह भी वचन दिया कि जो भाई अपनी बहन की मदद करेगा, उसे वह लंबी आयु का वरदान देंगे.

इंद्राणी एवं इंद्र

और पीछे चलें तो भविष्य पुराण की एक कथा के अनुसार एक बार देवता और दैत्यों (दानवों) में 12 वर्षों तक युद्ध हुआ परन्तु देवता विजयी नहीं हुए. इंद्र हार के भय से दु:खी होकर देवगुरु बृहस्पति के पास विमर्श हेतु गए. गुरु बृहस्पति के सुझाव पर इंद्र की पत्नी महारानी शची ने श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन विधि-विधान से व्रत करके रक्षासूत्र तैयार किए और स्वस्तिवाचन के साथ ब्राह्मण की उपस्थिति में इंद्राणी ने वह सूत्र इंद्र की दाहिनी कलाई में बांधा. जिसके फलस्वरुप इन्द्र सहित समस्त देवताओं की दानवों पर विजय हुई. रक्षा विधान के समय निम्न लिखित मंत्रोच्चार किया गया था जिसका आज भी विधिवत पालन किया जाता है:
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वां अभिबद्धनामि रक्षे मा चल मा चल।।
इस मंत्र का भावार्थ है कि दानवों के महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे, उसी से तुम्हें बांधता हूँ. हे रक्षे! (रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो.

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