हम नैतिक क्रियाकलापों को समझाने में प्रयुक्त सामान्य नैतिक अवधारणाओं की रूपरेखा बताएँगे। ये नैतिक चर्चाओं के ‘व्यापारस्थ माल (स्टॉक)’ हैं और हमें उनका अनुसरण करने में मदद करते हैं।
मानव कार्यों (नैतिक क्रियाकलापों) को समझने में प्रयुक्त अवधारणाएँ
बुभुक्षाएं एवं आवेग
बुभुक्षाएँ (माँग) विशेष लक्ष्यों के प्रति अन्ध प्रबल-प्रेरणाएँ हैं। बुभुक्षा की शान्ति अक्सर सुख भोग (pleasures) कहलाती है। शांत न हुई बुभुक्षा पीड़ा (pains) कहलाती है। सुख भोग को तलाशने वाला वह है जो अपनी पाशविक क्षुधा को संतुष्ट करना चाहता है। दर्शन के कुछ सम्प्रदाय जैसे प्राचीन यूनान में भोगवाद एवं प्राचीन भारत में चार्वाक ने सुखभोग की तलाश को मानव क्रियाकलापों का वैध लक्ष्य माना है। तथापि, नीतिशास्त्र में यथा प्रकल्पित आचरण को बौद्धिक (तार्किक) विचारों से दिशा-निर्देशित होना चाहिए। अतः बुभुक्षाओं एवं जरूरतों को बौद्धिक नियन्त्रण के अंतर्गत लाने की आवश्यकता है।
शुभ नैतिक क्रियाकलापों)
‘शुभ’ (Good) नीतिशास्त्र में एक मूलभूत विचार है। शुभ ऐसा कुछ है जिसे लोग सचेतनता से पाना चाहते हैं। कोई भी वस्तु (पदार्थ/विषय) चाहने के योग्य नहीं हो सकती जब तक कि यह सचेतनापूर्वक शुभ न मानी जाए। वास्तविक (सच्ची) इच्छा कुछ ऐसी वस्तु है जो शुभ मानी गई है तथा जिसे सचेतनापूर्वक लक्ष्य के तौर पर चुना गया है। हाँ, ऐसा हो सकता है कि लोग ऐसे लक्ष्य उद्देश्यों (वस्तुओं) को चुन सकते हैं जो वास्तव में शुभ (अच्छे) न हों पर दीखते अच्छे हैं। क्या शुभ (अच्छा) है’ विषय पर दर्शन-शास्त्र में काफी चर्चा हुई है।
इच्छा
लोगों को इच्छाएँ अक्सर ऐसी होती हैं जो अनियमित परस्पर विरोधी होती हैं। इस प्रक्रिया में कुछ इच्छाएँ अन्य इच्छाओं से प्रबल हो जाती हैं। यहाँ ‘इच्छा’ शब्द से तात्पर्य उन इच्छाओं से है जो बनी रहती हैं और प्रभावी हैं। नीतिशास्त्र में इच्छा को इच्छा के विनिश्चित कार्य से भिन्न रखा गया है। इच्छा के हावी हो जाने पर भी हम उसके लिए क्रिया (कर्म) नहीं भी कर सकते हैं। ‘इच्छा की शक्ति’ ही वह ताकत है जो संकल्पों को क्रिया रूप देती है। इच्छा का अर्थ है कि हम किसी वस्तु के लिए केवल इच्छा ही नहीं कर सकते बल्कि उसको पाने के लिए क्रियात्मक कदम उठाते हैं इसमें एक अर्जित करने का तत्व होगा। इच्छा की क्रिया में, हम लक्ष्य को शुभ की प्राप्ति की दृष्टि से नहीं देखते, हम इसे अपने द्वारा स्वयं अर्जित लक्ष्य मानते हैं।
उद्देश्य, अभिप्राय तथा अभिप्रेरक
मानव के नैतिक क्रियाकलापों को समझाने में बार बार प्रयोजन (purpose) अभिप्राय (intention) तथा अभिप्रेरक (motive) शब्दों का प्रयोग किया जाता है। अभिप्राय (intention) का अर्थ कोई ऐसा लक्ष्य है जिसे इच्छा की वस्तु के रूप में निश्चित तौर पर अपनाया गया है। अभिप्रेरक (motive) का अर्थ वह भाव है जो मानव को एक विशिष्ट ढंग से क्रिया करने को संचालित करता है या उसका कारण बनता है। कभी-कभी मानव को भावना या मनोभाव संचालित करते हैं। किन्तु नैतिक निर्णय उन सुविचारित कार्यों या कार्यों पर पारित किए जा सकते हैं जो सचेतनता के साथ जाँचे गए उद्देश्यों पर लक्षित हों।
नैतिक गतिविधि या आचरण प्रयोजन मूलक कार्य है तथा प्रयोजन के साथ किया गया कोई कार्य (गतिविधि) केवल भावना से ही संचालित नहीं होता है। यह तो किसी लक्ष्य की प्राप्ति के विचार से संचालित होता है। अतः, अभिप्रेरक या जो हमें क्रिया करने के लिए प्रेरित करता है, वह है इच्छित लक्ष्य को पाने का विचार किसी क्रिया (कार्य) का अभिप्रेरक हमारी मंशा का सम्पूर्ण नहीं है अपितु उसक एक भाग है। मनुष्य यह तो समझ जाता है कि क्या शुभ (Good) है, पर (उसको पाने में) उसके अनुसरण में असफल हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मानव सक्रियता के अभिप्रेरक अक्सर अंशतः या पूर्णत: अविवेकपूर्ण होते हैं।
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