भारत का राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission (NHRC)) एक स्वायत्त विधिक संस्था है, जो मानवाधिकारों की रक्षा और उसे बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदारी के लिए कार्यरत है।
क्या है राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (What is National Human Rights Commission?
- यह आयोग देश में मानवाधिकारों का प्रहरी है,यह सविंधान द्वारा अभिनिश्चित तथा अंतरराष्ट्रीय संधियों में निर्मित व्यक्तिगत अधिकारों का संरक्षक है।
- इसकी स्थापना मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के प्रावधानों के तहत 12 अक्टूबर, 1993 को की गई थी।
- मानवाधिकार आयोग का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है और 12 अक्टूबर, 2018 को इसने अपनी स्थापना के 25 वर्ष पूरे किये।
- राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन पेरिस सिद्धांतों के अनुरूप है जिन्हें अक्तूबर, 1991 में पेरिस में मानव अधिकार संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिए राष्ट्रीय संस्थानों पर आयोजित पहली अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला में अंगीकृत किया गया था।
मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के अनुसार आयोग ” संविधान या अंतरराष्ट्रीय संविदा द्वारा व्यक्ति को दिए गए जीवन, आजादी, समानता और मर्यादा से संबंधित अधिकारों” का रक्षक है।
मानवाधिकारों का इतिहास
मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (Universal Declaration of Human Rights- UDHR) एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज़ है, जिसे संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 10 दिसंबर, 1948 को पेरिस में अपनाया गया था। उसके बाद 1991 में पेरिस में हुई संयुक्त राष्ट्र की बैठक ने सिद्धांतों का एक समूह (जिन्हें पेरिस सिद्धांतों के नाम से जाना जाता है) तैयार किया जो आगे चलकर राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाओं की स्थापना और संचालन की नींव साबित हुए तथा 20 दिसम्बर, 1993 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा संकल्प 48/134 के रूप में समर्थित किया गया था। इन्हीं अधिकारों का अनुसरण करते हुए भारत में मानवाधिकारों में अधिक जवाबदेही और मज़बूती लाने के उद्देश्य से मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 बनाया गया।
मानवाधिकार के बारे में मुख्य तथ्य
- संयुक्त राष्ट्र (UN) की परिभाषा के अनुसार ये अधिकार जाति, लिंग, राष्ट्रीयता, भाषा, धर्म या किसी अन्य आधार पर भेदभाव किये बिना सभी को प्राप्त हैं।
- मानवाधिकारों में मुख्यतः जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार, गुलामी और यातना से मुक्ति का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार और काम एवं शिक्षा का अधिकार, आदि शामिल हैं।
- हर साल 10 दिसंबर को UDHR की सालगिरह के रूप में मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है।
- यह अधिनियम सभी राज्य सरकारों को भी राज्य मानवाधिकार आयोग बनाने का अधिकार देता है।
- कोई भी व्यक्ति बिना किसी भेदभाव के इन अधिकारों को प्राप्त करने का हक़दार होता है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की संरचना (Structure of National Human Rights Commission)
- NHRC एक बहु-सदस्यीय संस्था है जिसमें एक अध्यक्ष सहित 7 सदस्य होते हैं। जिसमे :-
- अध्यक्ष को भारत का सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश होना चाहिए।
- एक सदस्य, भारत के सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश या भूतपूर्व न्यायाधीश,
- एक सदस्य, उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश या भूतपूर्व न्यायाधीश
- और दो ऐसे सदस्य जिन्हें मानवाधिकार संबंधित मामलों की जानकारी हो या वे इस क्षेत्र में व्यावहारिक अनुभव रखते हों, की नियुक्ति की जाती है।
- अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली उच्चस्तरीय कमेटी की सिफारिशों के आधार पर की जाती है।
- अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्षों या 70 वर्ष की उम्र, जो भी पहले हो, तक होता है।
- इसके अतिरिक्त आयोग में पाँच विशिष्ट विभाग (विधि विभाग, जाँच विभाग, नीति अनुसंधान और कार्यक्रम विभाग, प्रशिक्षण विभाग और प्रशासन विभाग) भी होते हैं।
- राज्य मानवाधिकार आयोग में अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा राज्य के मुख्यमंत्री, गृह मंत्री, विधानसभा अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष के परामर्श पर की जाती है।
- इन्ह्ने तभी निष्काषित किया जा सकता है जब सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की जाँच में उन पर दुराचार या असमर्थता के आरोप सिद्ध हो जाएं।
वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त जस्टिस एच.एल. दत्तू राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष हैं।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के कार्य और शक्तियाँ (Functions and powers of National Human Rights Commission)
मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के अनुसार, एनएचआरसी के कार्य इस प्रकार है–
- मानवाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित कोई मामला यदि NHRC के संज्ञान में आता है या शिकायत के माध्यम से लाया जाता है तो NHRC को उसकी जाँच करने का अधिकार है।
- किसी न्यायालय के समक्ष न्यायालय की अनुमति के साथ मानवाधिकारों के उल्लंघन के किसी भी मामले की सुनवाई में हस्तक्षेप करना।
- कैदियों की स्थिति का अध्ययन करने के लिए किसी भी जेल या नदरबंद स्थान की यात्रा करना और उस पर अनुशंसाएं देना।
- NHRC संविधान या किसी अन्य कानून द्वारा मानवाधिकारों को बचाने के लिये प्रदान किये गए सुरक्षा उपायों की समीक्षा कर सकता है और उनमें बदलावों की सिफारिश भी करना।
- मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए प्रदान किए गए सुरक्षा उपायों या तत्कालीन प्रवृत्त किसी कानून के संविधान के तहत की समीक्षा करना और उसके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए उपायों की सिफारिश करना।
- मानवाधिकारों के उपयोग को रोकने वाले आतंकवादी कृत्यों समेत कारकों की समीक्षा करना और उपयुक्त उपचारात्मक उपायों की सिफारिश करना।
- आयोग प्रकाशनों, मीडिया, सेमिनारों और अन्य माध्यमों से समाज के विभिन्न वर्गों के बीच मानवाधिकारों से जुड़ी जानकारी का प्रचार करना और लोगों को इन अधिकारों की सुरक्षा के लिये प्राप्त उपायों के प्रति भी जागरूक करना।
- मानवाधिकार के क्षेत्र में अनुसंधान करना और उसे बढ़ावा देना।
- समाज के विभिन्न वर्गों में मानवाधिकार साक्षरता फैलाना और इन अधिकारों के संरक्षण हेतु उपलब्ध सुरक्षा उपायों के बारे में जागरुकता को बढ़ावा देना।
- मानवाधिकार के क्षेत्र में काम करने वाले गैर– सरकारी संगठनों और संस्थानों के प्रयासों को प्रोत्साहित करना।
- यह राज्य तथा केंद्र सरकारों को मानवाधिकारों के उल्लंघन को रोकने के लिये महत्त्वपूर्ण कदम उठाने की सिफ़ारिश भी कर सकता है।
- आयोग अपनी रिपोर्ट भारत के राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करता है जिसे संसद के दोनों सदनों में रखा जाता है।
NHRC की सीमाएँ (Limitations of National Human Rights Commission)
- NHRC के पास किसी भी मामले के संबंध में मात्र सिफारिश करने का ही अधिकार है, वह किसी को निर्णय लागू करने के लिये बाध्य नहीं कर सकता।
- NHRC उन शिकायतों की जाँच नहीं कर सकता जो घटना होने के एक साल बाद दर्ज कराई जाती हैं और इसीलिए कई शिकायतें बिना जाँच के ही रह जाती हैं।
- राज्य मानवाधिकार आयोग केंद्र सरकार से किसी भी प्रकार की सूचना नहीं मांग सकते, जिसका सीधा सा अर्थ यह है कि उन्हें केंद्र के तहत आने वाले सशस्त्र बलों की जाँच करने से रोका जाता है।
- NHRC के पास जाँच करने के लिये कोई भी विशेष तंत्र नहीं है। अधिकतर मामलों में यह संबंधित सरकार को मामले की जाँच करने का आदेश देता है।
- केंद्रीय सशस्त्र बलों के संदर्भ में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की शक्तियों को भी काफी सीमित कर दिया गया है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission) को सही मायनों में मानवाधिकारों के उल्लंघन का एक कुशल प्रहरी बनाने के लिये उसमें कई सुधार करने की आवश्यकता है। आयोग के कार्य में सरकार और अन्य प्राधिकरणों का हस्तक्षेप न्यूनतम होना चाहिए, क्योंकि ऐसा होने से आयोग का काम प्रभावित हो सकता है। भारत में मानवाधिकार स्थितियों को सुधारने और मजबूत करने के लिये राज्य अभिकर्त्ताओं और गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं (State & Non-state Actors) को एक साथ मिलकर काम करना होगा।