कोविड-19 महामारी को देखते हुए वर्ष 2020 में वर्चुअल और प्रत्यक्ष रूप (Virtual And Physical Mode) में आयोजित की राष्ट्रीय लोक अदालत (National Lok Adalat) के जरिये 10 लाख से अधिक मामले निपटाए गए हैं। राष्ट्रीय लोक अदालत आयोजित करने के लिए 31 एसएलएसए द्वारा कुल मिलाकर 8152 खंडपीठों का गठन किया गया था। इस लोक अदालत में 10,42,816 मामलों का सफलतापूर्वक निपटान किया गया। निपटान किए गए मामलों में कुल 5,60,310 मामले प्री-लिटिगेशन(pre-litigation) चरण के थे और 4,82,506 मामले ऐसे थे जो विभिन्न न्यायालयों में लंबित थे।
क्या होते है लोक अदालत (Lok Adalat)?
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (National Legal Services Authority-NALSA) द्वारा आयोजित लोक अदालत, विवादों का निपटान करने का एक वैकल्पिक तरीका है(Alternative Method Of Dispute Resolution)। जहां न्यायालयों में लंबित वाद-विवाद/मुकदमे या प्री-लिटिगेशन चरण के मामलों का सौहार्दपूर्ण निपटारा किया जाता है।
लोक अदालतों को विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987(Legal Services Authorities Act, 1987) के तहत वैधानिक दर्जा दिया गया है। इस अधिनियम के तहत, लोक अदालतों द्वारा दिए गए निर्णय को सिविल न्यायालय का निर्णय माना जाता है; जो सभी पक्षों पर अंतिम और बाध्यकारी होता है;। ऐसे निर्णयों के बीच किसी भी अदालत के कानून के समक्ष अपील नहीं की जा सकती है।
लोक अदालत के लाभ
- न्यायिक सेवा अधिकारियों द्वारा आयोजित लोक अदालतें (राज्य स्तरीय और राष्ट्रीय) वैकल्पिक विवाद समाधान का एक तरीका है।
- इसमें मुकदमाबाजी से पूर्व और अदालतों में लंबित मामलों को मैत्रीपूर्ण आधार पर सुलझाया जाता है।
- इन अदालतों में निःशुल्क सुनवाई होती है; जिससे वादियों पर अनावश्यक आर्थिक भार नहीं पड़ता है। यदि न्यायालय में लंबित मुकदमें में कोर्टं शुल्क जमा करवाया गया होता है; तो लोक अदालत में विवाद के निपटारे के बाद वह शुल्क वापस कर दी जाती है।
- इनके माध्यम से मुकदमों की तीव्र सुनवाई होती है; मुकदमे से संबंधित पक्षों को तेजी से एक राय पर लाया जाता है; इससे दोनों पक्ष कठिन न्यायिक प्रणाली के बोझ से छुटकारा मिलता है।
लोक अदालत के कार्यान्वयन से जुड़ी चुनौतियाँ
- भारत की एक बड़ी आबादी अशिक्षित है; जो न तो कानूनी प्रक्रिया व उसकी प्रणालियों से परिचित है और न ही संवैधानिक अधिकारों के प्रति सजग है।
- भारत में एक बड़ी आबादी ऐसी है; जो कानूनी मदद इसलिए नहीं प्राप्त होती क्योंकि वे सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हैं।
- यह एक आम धारणा है; कि निःशुल्क विधिक सेवा की गुणवत्ता अपेक्षाकृत अच्छी नहीं है। कई बार ऐसा भी देखा गया है; कि सरकारी वकील बड़े नामचीन वकीलों के समक्ष अपने प्रकरण को ठीक ढंग से पेश नहीं कर करते हैं; जिससे फरियादी का कानून के प्रति अविश्वास बढ़ने लगता है।
- विधिक सेवा देने के लिए वकीलों की कमी भी एक मुख्य चुनौती है।
- भारत में डिजिटल डिवाइड अधिक होने और डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर कमजोर होने से ई-लोक अदालत का उच्चतम लाभ नहीं मिल पा रहा है।
क्या होते ई-लोक अदालत (e-Lok Adalat)?
- ऑनलाइन लोक अदालत या ई-लोक अदालत न्यायिक सेवा संस्थानों का एक नवाचार है; जिसमें अधिकतम लाभ के लिए टैक्नोलॉजी का उपयोग किया गया है।
- यह लोक अदालत का ही एक वर्चुअल प्रारूप है जो लोगों को घर बैठे ही न्याय प्राप्त करने के लिए एक मंच प्रदान करता है।
- ई-लोक अदालतों के संचालन में खर्च कम होते है, क्योंकि इसमें परम्परागत रूप से केस से संबंधी खर्चों की जरूरत समाप्त हो जाती है।
उपरोक्त राष्ट्रीय लोक अदालत में श्रम विवाद, धन वसूली, भूमि अधिग्रहण, वैवाहिक विवाद (तलाक को छोड़कर), वेतन, भत्तों और सेवानिवृत्ति आदि से संबंधित मामलों की सुनवाई की गई और राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण(National Legal Services Authority) के तत्वावधान में वर्ष 2020 की अंतिम राष्ट्रीय लोक अदालत का 12 दिसम्बर, 2020 को वर्चुअल और प्रत्यक्ष रूप में आयोजन किया गया।
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