आज इक्कीसवीं शताब्दी में हमें यह जानकर आश्चर्य होगा कि मनुष्य जाति ने अपने अस्तित्व के आरम्भ (पुरापाषाण युग) से लेकर आज तक का 99 प्रतिशत हिस्सा शिकारी संग्रहकर्ता के रूप में बिताया है। मनुष्य ने मात्र 10,000 वर्ष पूर्व कृषि द्वारा उत्पादन करना सीखा। इससे पहले वह पूर्णतः प्रकृति पर निर्भर था। अपने भोजन के लिए या तो वे प्रकृति से जड़ें, फल मूल आदि एकत्र करते थे या पक्षियों, जानवरों और मछलियों को पकड़कर अपना भोजन जुटाते थे।
मनुष्य काफी अरसे तक शिकारी /संग्रहकर्ता का जीवन बिताता रहा। इसलिए इस काल के मानव इतिहास को जानना जरूरी है। विश्व में ऐसे अनेक क्षेत्र हैं जहां आज भी लोग शिकारी संग्रहकर्ता का जीवन जी रहे हैं। शिकारी संग्रहकर्त्ताओं द्वारा उपयोग में लाए गए पत्थर के औजार पाए गए हैं। उन औजारों को इनके प्रकार तथा काल के अनुसार मध्यपाषाणीय, पुरापाषाणीय आदि वर्गों में विभाजित किया गया है।
पुरापाषाण युग का उदय
पुरापाषाण संस्कृति का उदय अभिनूतन (Pleistocene) युग में हुआ था। अभिनूतन युग (20 लाख वर्ष पूर्व) एक भूवैज्ञानिक काल है जिसमें हिम युग अपने अन्तिम चरण में था। इस युग में धरती बर्फ से ढकी हुई थी। पुरापाषाण युग के पत्थर के औजारों के वर्गीकरण के संबंध में भारत के पुरातत्ववेत्ताओं के बीच मतभेद हैं:
- कुछ विद्वान धारदार ब्लेड और लक्षणों वाले काल को “उच्च पुरापाषाण” कहते हैं।
- कुछ विद्वान उच्च पुरापाषाण को यूरोपीय पुरापाषाण संस्कृति से जोड़ते हैं। पर अब उच्च पुरापाषाण का प्रयोग भारतीय संदर्भ में भी होता है।
पुरापाषाण युग के औजार
पर्यावरण और जलवायु में हुए परिवर्तन और मनुष्य द्वारा बनाए गए पत्थर के औज़ारों की प्रकृति के आधार पर पुरापाषाण संस्कृति को तीन चरणों में बांटा गया है।
- निम्न पुरापाषाण चरण के औज़ारों में मुख्यतः हाथ की कुल्हाड़ी, तक्षणी, काटने का औज़ार आदि हैं।
- मध्य पुरापाषाण युगीन उद्योग काटने के औज़ारों पर आधारित था, और
- उच्च पुरापाषाण युग की विशेषता थी – तक्षणी और खुरचनी।
अब हम इस काल के कुछ औजारों और उनके उपयोग के बारे में चर्चा करेंगे।
- हाथ की कुल्हाड़ी (Handaxe)– इसका मूठ चौड़ा और आगे का हिस्सा पतला होता है। इसका उपयोग काटने या खोदने के लिए होता होगा।
- चीरने का औज़ार (Cleaver)– इसमें दुहरी धार होती है। इसका उपयोग पेड़ों को काटने और चीरने के लिए होता था।
- काटने के औज़ार (Chopper)– एक बड़ा स्थूल औज़ार जिसमें एक तरफा धार होती है और इसका उपयोग काटने के लिए किया जाता था।
- काटने का औजार (Chopping Tool)– यह भी चौपर के समान एक बड़ा स्थूल औजार है पर इसमें दुहरी धार होती है और इसमें कई पट्टे होते हैं।
- परत (Flake)– यह एक प्रकार का औजार होता है जिसे पत्थर को तोड़कर बनाया जाता है परत की सतह पर सकारात्मक समाघात और इसके सारभाग में एक नकारात्मक समाघात होता है।
- जिस स्थान पर पत्थर के हथौड़े से चोट की जाती है उसे समाघात स्थल कहते हैं।
- इस चोट से जो गोल, हल्का उत्तल हिस्सा कट कर निकलता है उसे सकारात्मक समाघात कहते हैं।
- इस चोट के परिणामस्वरूप सारभाग का जो हिस्सा अवतल हो जाता है उसे नकारात्मक समाघात कहते हैं।

- खुरचनी (Side Scraper) – इसमें एक पत्तर या ब्लेड होता है और इसका किनारा धारदार होता है। इसका उपयोग पेड़ की खाल या जानवरों का चमड़ा उतारने में किया जाता होगा।
- तक्षणी (Burin) – यह भी पत्तर या ब्लेड के समान ही होता है, पर इसका किनारा दो तलों के मिलने से बनता है | तक्षणी के काम वाले हिस्से की लम्बाई 2-3 से.मी. से अधिक नहीं होती है। इसका उपयोग मुलायम पत्थरों, हड्डियों, कोरों या गुफाओं की दीवारों पर नक्काशी के लिए होता होगा।
पुरापाषाण युग की बस्तियाँ
शिकारी /संग्रहकर्ताओं द्वारा प्रयुक्त औज़ार पुरातत्ववेताओं को किन-किन क्षेत्रों में मिले हैं। इन औज़ारों से हमें क्षेत्रीय फैलाव के साथ-साथ शिकारी /संग्रहकर्ताओं के निवास स्थलों और उस पर्यावरण की भी जानकारी मिलती है जिसमें वे रहते थे।
1. कश्मीर घाटी
कश्मीर घाटी दक्षिण पश्चिम में पीर पंजाल पहाड़ियों और उतर पूर्व हिमालय से घिरी है।
- कश्मीर में लिद्दर नदी के किनारे पहलगांव से एक हाथ की कुल्हाड़ी प्राप्त हुई थी।
किन्तु पुरापाषाण युग के औज़ार कश्मीर में ज्यादा नहीं मिलते क्योंकि हिम युग में कश्मीर में अत्यधिक ठंड होती थी। इस इलाके में विवर्तनिक बदलाव आया था और इस क्रम में सिंधु और सोहन नदियों की उत्पत्ति हुई थी।
- सोहन घाटी में हाथ की कुल्हाड़ी और काटने के औज़ार मिले हैं।
- ब्यास, बाणगंगा और सिरसा नदियों के किनारे भी पुरापाषाण युग के औज़ार पाए गए हैं।
ये औज़ार अड़ियाल, बलवाल और चौन्टरा जैसी महत्वपूर्ण पुरापाषाणीय बस्तियों में पाये गए हैं।
2. लूनी नदी
लूनी नदी (राज्स्थान) के आसपास के क्षेत्र में कई पुरापाषाण युगीन बस्तियाँ पाई गई हैं। लूनी नदी का उद्गम अरावली क्षेत्र में हुआ था। मेवाड़ की वगांव और कदमली नदियों के आसपास भी मध्य पुरापाषाण युगीन बस्तियाँ पाई गई हैं।
- चितौढ़गढ़ (गंभीर नदी घाटी) कोटा (चंबल नदी घाटी) और नगरई (बेराच नदी घाटी) में पुरापाषाण युग के औज़ार पाए गए हैं
- मेवाड़ की वगांव और कदमली नदियों के आसपास भी खुरचनी, बेधक औज़ार और नुकीले औज़ार भी पाए गए हैं।
3. साबरमती, माही और उनकी सहायक नदियों
गुजरात में साबरमती, माही और उनकी सहायक नदियों के आसपास पुरापाषाण युग के अनेक औज़ार पाए गए हैं ॥ साबरमती नदी अरावली से निकल कर खम्बात की खाड़ी में जा गिरती है।
- ओरसंग घाटी के नजदीक भंडारपुर में भी मध्य पुरापाषाण युग के औज़ार पाए गए हैं।
- सौराष्ट्र में भद्दर नदी के आसपास पुरापाषाण युग के अनेक औज़ार मिले हैं जैसे हाथ की कुल्हाड़ियाँ, खुरचनी, काटने के औज़ार, नुकीले औज़ार, बेधक औज़ार आदि |
- कच्छ क्षेत्र में भी पुरापाषाण युग के अनेक औज़ार मिले हैं जैसे – खुरचनी, हाथ की कुल्हाड़ी और काटने के औज़ार।

4. नर्मदा नदी
नर्मदा नदी मैकॉल पर्वत श्रृंखला से निकलती है और खम्बात की खाड़ी में जाकर मिल जाती है।
- नर्मदा के समतलों में पुरापाषाण युग के अनेक औज़ार पाए गए हैं, जैसे हाथ की कुल्हाड़ियां और चीरने के औज़ार।
- विंध्य क्षेत्र में अवस्थित भीमबेटका (भोपाल के निकट) में पहले एश्यूलियन संस्कृति के औज़ार उपयोग में लाए जाते थे।
5. ताप्ती, गोदावरी, भीमा और कृष्णा नदियों
ताप्ती, गोदावरी, भीमा और कृष्णा नदियों के आसपास भी कई पुरापाषाण युग की बस्तियाँ पाई गई हैं। भीमा और कृष्णा नदियों के ऊपरी हिस्से के आसपास के क्षेत्रों में कम पुरापाषाणीय बस्तियाँ पाई गई हैं। महाराष्ट्र में कोरेगांव, चन्दौली और शिकारपुर पुरापाषाण युग की अन्य प्रमुख बस्तियाँ हैं।
- महाराष्ट्र में नवासा के नजदीक चिरकी में हाथ की कुल्हाड़ियां, काटने के औजार, बेधक औजार, खुरचनी और मिट्टी तोड़ने के औजार पाए गए हैं।
6. रोरो नदी
पूर्वी भारत में रोरो नदी (सिंहभूम, बिहार) में भी बहुत सी पुरापाषाण युग की बस्तियाँ मिली है।
- यहाँ भी हाथ की कुल्हाड़ियां, काटने के औज़ार, पत्तर आदि अनेक पुरापाषाण युग के औज़ार पाए गए हैं।
- दामोदर और सुवर्णरखा नदियों की घाटी से भी पुरापाषाण युग के औज़ारों के पाए जाने की सूचना मिली है।
- उडीशा में वैतरनी, ब्राहमणी और महानदी के डेल्टा क्षेत्र में भी पुरापाषाण युग के कुछ औज़ार पाए गए हैं।
7. मालप्रभा, घाटप्रभा और कृष्णा की सहायक नदियों
मालप्रभा, घाटप्रभा और कृष्णा की सहायक नदियों के आसपास पुरापाषाण युग की कई बस्तियाँ पाई गई हैं।
- घाटप्रभा नदी घाटी में एश्यूलियन हाथ की कुल्हाड़ियां काफी संख्या में पाई गई हैं।
- तमिलनाडु में पलर, पेनियार और कावेरी में भी पुरापाषाण युग के अनेक औज़ार पाए गए हैं।
- अतिरमपक्कम और गुड्डियम में प्रारंभिक और मध्य पुरापाषाण युगीन औज़ार पाए गए है जैसे हाथ की कुल्हाड़ियां, खुरचनी, पत्तर, ब्लेड आदि।
जीवन यापन के तरीके
पुरापाषाण युग की बस्तियों में भारतीय और विदेशी मूल के जानवरों के अवशेष काफी मात्रा में पाए गए हैं। नर वानर, जिराफ, कस्तूरी मृग, बकरी, भैंसा, गाय और सुअर स्वदेशी मूल के पशु प्रतीत होते हैं। दरियाई घोड़ा और हाथी मध्य अफ्रीका से भारत आये थे। जिससे प्रतीत होता है उस समय अफ्रीका और भारत के बीच काफी आदान-प्रदान होता था।
इन अवशेषों से पता चलता है कि लोग भोजन के लिए शिकारी और संग्रहकर्ता अवस्था में थे। एक इलाके के रहने वाले मनुष्यों और पशुओं की संख्या के बीच संतुलन रहा होगा। उस समय के लोगों ने आसपास पाये जाने वाले पशुओं और वानस्पतिक संसाधनों का भोजन के रूप में उपयोग किया होगा। मनुष्य छोटे और मध्यम आकार के जानवरों विशेषतः खुरों वाले पशुओं का शिकार करता होगा। पुरापाषाण युग के लोग मुख्य रूप से बैल, गवल, नीलगाय, भैंसा, चिंकारा, हिरण, बारहसिंगे, साभ्भर, जंगली सुअर, कई तरह के पक्षियों, कुछओं, मछलियों, मधु और फलदायक पौधों के फलों, मूल, बीज और पत्तों को भोजन के रूप में इस्तेमाल करते थे।
पत्थर पर की गई चित्रकारी और खुदाई से भी हमें पुरापाषाण युग के लोगों के रहन-सहन और सामाजिक जीवन के बारे में पता चलता है। सबसे पुरानी चित्रकारी उत्तर पुरापाषाण युग की है। प्रथम काल में उतर पुरापाषाण युग की चित्रकारी में हरे और गहरे लाल रंग का उपयोग हुआ है। इन चित्रों में भेंसे, हाथी, बाघ, गैंडे और सुअर के चित्र प्रमुख हैं। खुदाई और चित्रकारी से पता चलता है कि शिकार ही जीवन यापन का मुख्य साधन था। इन चित्रों में बनी शारीरिक संरचना के आधार पर पुरूष और स्त्री में सरलता से भेद किया जा सकता है। इन चित्रों से यह भी पता चलता है कि पुरापाषाण युग के लोग छोटे-छोटे समूहों में रहते थे और उनका जीवन निर्वाह पशुओं और पेड़ पौधों पर निर्भर था।
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