वास्तव में संविधान के भाग 3 में उल्लिखित 7 मूल अधिकारों में से संपत्ति का अधिकार एक था। अनुच्छेद 19 (1) (च) एवं अनुच्छेद 31 में वर्णित था। अनुच्छेद 19(1)(च) प्रत्येक नागरिक को संपत्ति को अधिग्रहण करने उसको रखने एवं निपटाने की गारंटी देता था, जबकि टूसरी तरफ अनुच्छेद 31 प्रत्येक व्यक्ति को चाहे वह नागरिक हो या गैर-नागरिक को अपनी संपत्ति वंचन करने के खिलाफ अधिकार प्रदान करता है। इसमें यह व्यवस्था है कि बिना विधि सम्मत कानून के कोई भी संपत्ति पर अधिकार नहीं जताएगा।
संपत्ति के अधिकार की वर्तमान स्थिति
यह राज्य को किसी व्यक्ति की संपत्ति अधिग्रहण कर दो शर्तों के अधार पर शक्ति प्रदान करता है-
- इसे सार्वजनिक उद्देश्य के लिए किया जाना चाहिए, और-
- इसका हरजाना (क्षतिपूर्ति) उसके मालिक को दिया जाना चाहिए।
संविधान लागू होने के समय से ही संपत्ति का मूल अधिकार सबसे अधिक विवादास्पद रहा। इसके कारण संसद व उच्चतम न्यायालय के बीच विवाद उत्पन्न हुआ। इस पर कई सारे संविधान संशोधन हुए। उनमें पहला, चौथा, सातवा, पच्चीसवां, उनतालिसवा, चालीसवा एवं बयालिसवां संशोधन शामिल हैं। इन संशोधन के द्वारा अनुच्छेद 31क, 31ख और 31ग को जोड़ा गया और समय समय पर उच्चतम न्यायालय के फैसले को इस विवादास्पद अधिकार के संबंध में कम किया गया। इनमें से अधिकतर मामले निजी संपत्ति के लिए अनुरोध, उनके अधिग्रहण एवं उनके क्षतिपूर्ति के भुगतान के संबंध में थे।
इस प्रकार 44वें संशोधन अधिनियम 1978 द्वारा मूल अधिकारों में से Property Rights को भाग 3 में अनुच्छेद 19 (1) और अनुच्छेद 31 को निरसित किया गया। ‘संपत्ति का अधिकार’ शीर्षक के तहत भाग 12 में नए अनुच्छेद 300A को शुरू किया गया। इसमें व्यवस्था दी गई कि कोई भी व्यक्ति कानून के बिना संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा। इस तरह संपत्ति का अधिकार अब भी एक कानूनी या संवैधानिक अधिकार है। यद्यपि यह कोई मूल अधिकार नहीं है। यह संविधान के मूल ढांचे का भी हिस्सा नहीं है।
संपत्ति का अधिकार एक विधिक अधिकार
संपत्ति का अधिकार एक विधिक अधिकार की तरह (जैसा कि मूल अधिकारों से अलग) निम्नलिखित तरीकों से लागू होता है:
- इसे बिना संविधान संशोधन के संसद के साधारण कानून के तहत नियमित, कम या पुनर्निर्धारित किया जा सकता
- यह कार्यकारी क्रिया के खिलाफ निजी संपत्ति की रक्षा करता है लेकिन विधायी कार्य के खिलाफ नहीं।
- उल्लंघन के मामले में पीड़ित व्यक्ति अनुच्छेद 32 (संवैधानिक उपचार के अधिकार जिसमें रिट शामिल है) के तहत सीधे उच्चतम न्यायालय नहीं जा सकता। वह अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय जा सकता है
- राज्य द्वारा निजी संपत्ति के अधिग्रहण या अनुरोध के मामले में हरजाने के अधिकार की कोई गारंटी नहीं।
इस तरह संपत्ति के मूल अधिकार को भाग 3 से समाप्त कर दिया गया है।
भाग 3 में अब भी यह व्यवस्था है कि राज्य द्वारा निजी संपत्ति के अधिग्रहण पर हरजाने का अधिकार होगा।
इन दो मामलों में भुगतान होगा:
- जब राज्य द्वारा किसी अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान (अनुच्छेद 30) की संपत्ति का अधिग्रहण किया जाए और
- जब राज्य उस संपत्ति का अधिग्रहण करे, जिस पर व्यक्ति अपनी फसल उगा रहा है और भूमि सांविधिक निर्धारित सीमा के अंदर (अनुच्छेद 31क)।
पहली व्यवस्था को 44वें संशोधन अधिनियम (1978) के तहत जोड़ा गया, जबकि दूसरी व्यवस्था को 17वें संशोधन अधिनियम (1964) के तहत। इस तरह अनुच्छेद 31 क, 31ख, और 31ग को मूल अधिकारों के प्रतिवाद के रूप में स्थापित किया गया।
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