प्रोटेस्टेंट आंदोलन की शुरुआत मार्टिन लूथर ने की थी जो कि विटेनबर्ग के गिरजाघर में एक स्थानीय पुजारी थे। इसने रोमन कैथोलिक चर्च व्यवस्था “जिसमे आस्था के बदले अच्छे कार्य को मानव मुक्ति का साधन बताया गया था। परंतु अच्छे कार्य को उन्होंने अपने ढंग से परिभाषित करते हुए पुरोहितवाद (पादरी) और संस्कारवाद पर बल दिया अर्थात् प्रत्येक ईसाई को पुरोहित (पादरी) का निर्देश मानना और सात संस्कारों को पालन करना था” को ही अस्वीकार कर दिया।
इसका कहना था कि रोमन कैथोलिक धर्म को पीछे जाकर आरंभिक संतों की शिक्षा से जुड़ना चाहिए जो आस्था की बात करते थे। वस्तुतः रोमन कैथोलिक चर्च व्यवस्था का आधार ईसाई संत पीटर लोम्बार्ड और टॉमस एक्वीनॉश की शिक्षा पर आधारित था जबकि प्रोटेस्टेन्टों का कहना था कि ईसाई धर्म को उसके मूल स्वरूप की ओर लौटना चाहिए। इसलिए प्रोटेस्टेन्ट सुधारकों ने सेंट पॉल और सेंट ऑगस्टाईन की शिक्षा पर बल दिया। वस्तुतः यूरोप आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक परिवर्तन की प्रक्रिया से गुजर रहा था, फिर धर्म का क्षेत्र अछूता कैसे रह सकता था।
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प्रोटेस्टेंट आंदोलन के कारण
अगर हम प्रोटेस्टेंट आंदोलन के कारणों पर विचार करते हैं तो हमें यह ज्ञात होता है कि इसका एक कारण धार्मिक भ्रष्टाचार अवश्य था, परंतु आर्थिक एवं राजनीतिक कारण उससे भी अधिक निर्णायक सिद्ध हुए।
धार्मिक कारण
रोमन कैथोलिक चर्च व्यवस्था में धार्मिक भ्रष्टाचार घर कर गया था। नियमों के अनुसार पादरियों को ब्रह्मचर्य रहने की शपथ लेनी होती थी, परन्तु व्यवहार में वे इसका उल्लंघन करते थे। फिर धार्मिक भ्रष्टाचार का सबसे उग्र रूप था मुक्ति पत्र की बिक्री जिसमे ईसाई अनुयायी मुक्ति के लिए अपने पुण्य को चर्च से पैसे देकर खरीद सकता था ।
आर्थिक कारण
रोमन कैथोलिक चर्च के द्वारा मुनाफा अर्जन और ब्याज लेने को अनैतिक करार दिया गया था, वहीं प्रोटेस्टेंट पंथ ने उन्हें स्वीकृति प्रदान कर दी। इससे व्यापार को फायदा मिला। अतः व्यापारी वर्ग अथवा मध्यवर्ग का समर्थन प्रोटेस्टेंट आंदोलन को मिल गया।
राजनीतिक कारण
यह वह काल था जब सामन्तवाद के विघटन के पश्चात् यूरोपीय राजतंत्र का विकास हो रहा था तथा यूरोप के महत्वाकांक्षी शासकों के द्वारा अपनी राष्ट्रीय सीमा खींची जा रही थी। परन्तु इसके मार्ग में एक बड़ी बाधा थी सर्वव्यापी चर्च व्यवस्था। इसके तहत क्षेत्रीय चर्च राजतंत्र की अधीनता और राष्ट्रीय सीमा को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे और वे अपने को सीधा रोम के अधीन मानते थे। अतः यूरोप के कुछ महत्वाकांक्षी शासकों की सोची-समझी योजना के तहत प्रोटेस्टेंट धर्म को प्रोत्साहन दिया गया।
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प्रोटेस्टेंट आंदोलन का प्रभाव
प्रोटेस्टेंट आंदोलन का प्रभाव न केवल यूरोप में बल्कि विश्वभर में दिखाई दिया, इसने पश्चिमी ईसाई धर्म को भी कई तरीकों से प्रभावित किया
राष्ट्रीय-राज्य का उद्भव
इसने सर्वव्यापी चर्च व्यवस्था में विभाजन उत्पन्न कर राष्ट्रीय-राज्य के उद्भव का रास्ता तैयार कर दिया क्योंकि एक मध्य युगीन संस्था सर्वव्यापी चर्च व्यवस्था छिनन-भिन्न हो गयी थी।
चर्च की शक्ति में कमी
इस आंदोलन के पश्चात चर्च कि शक्ति मे भी भारी कमी आई, जिसमे चर्च के धन और संपत्ति को कम कर तथा धार्मिक कर लगाने कि प्रथा भी खत्म कर दी गई ।
लोगों को अधिक धार्मिक स्वतंत्रता
प्रोटेस्टेंट आंदोलन ने लोगों को अधिक धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करने में मदद की । इससे लोगों को अपने विश्वासों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने और अपनी पसंद के धर्म का पालन करने का अधिकार मिला ।
पूँजीवाद का विकास
इसने व्यापार और व्यापारी वर्ग को समर्थन देकर पूँजीवाद को प्रोत्साहन दिया।
महिलाओं के अधिकारों में वृद्धि
प्रोटेस्टेंट आंदोलन के तत्पश्चात महिलाओं के अधिकारों में वृद्धि हुई । इससे महिलाओं को धार्मिक और सामाजिक मामलों में अधिक अधिकार प्राप्त हुए ।
शिक्षा में सुधार
प्रोटेस्टेंट आंदोलन ने शिक्षा में सुधार में मदद की । इससे प्रोटेस्टेंट चर्चों ने स्कूलों और विश्वविद्यालयों की स्थापना की ।
प्रोटेस्टेंट आंदोलन एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना थी, जिसने पश्चिमी दुनिया को गहराई से प्रभावित किया । इस आंदोलन ने धर्म, राजनीति, शिक्षा और समाज में कई महत्वपूर्ण बदलाव लाए ।
अतः हम यह कह सकते हैं कि प्रोटेस्टेंट आन्दोलन में निर्णायक भूमिका आर्थिक एवं राजनीतिक कारकों ने निभायी।
Frequently Asked Questions
प्रोटेस्टेंट आंदोलन क्या था?
प्रोटेस्टेंट आंदोलन 16वीं शताब्दी में रोमन कैथोलिक चर्च के खिलाफ एक धार्मिक आंदोलन था । जिसने यूरोप कि आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक परिवर्तन की प्रक्रिया मे भी अहम भूमिका निभाई ।
प्रोटेस्टेंट आंदोलन के प्रमुख नेता कौन थे?
इस आंदोलन के नेता मार्टिन लूथर, जॉन केल्विन और जॉन वाइक्लिफ थे ।
प्रोटेस्टेंट आंदोलन के प्रमुख सिद्धांत क्या थे?
इस आंदोलन ने आधुनिक धर्म, धर्मनिरपेक्षता, महिलाओं के अधिकार, शिक्षा और समाज को गहराई से प्रभावित किया ।
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