राजनीतिक सिद्धांत ही वह साधन है जो राजनीतिक तथ्यों एवं घटनाओं, अध्ययन पद्धतियों तथा मानव-मूल्यों में एक गत्यात्मक सन्तुलन स्थापित कर सकता है। राजनीति के वास्तविक प्रयोगकर्ताओं-राजनीतिज्ञों, नागरिकों, प्रशासकों, राजनेताओं एवं राजनयिकों के लिए राजनीतिक सिद्धांत का बहुत महत्व हैं राजनीतिक सिद्धांत ही इन सभी को राजनीति के वास्तविक स्वरूप से परिचित करा सकता है।
राजनीतिक सिद्धांत के महत्व हम इनसे समझ सकते है कि महान विचारक हैलोवैल का कहना है – राजनीतिक दर्शन का एक प्रमुख कार्य यह है कि वह मानव के विश्वासों को आत्म-सजगता में लाए और तर्क व बुद्धि के आधार पर उनकी समीक्षा करें। राजनीतिक दर्शन और राजनीतिक सिद्धांत में प्रमुख अन्तर यही है कि दार्शनिक सिद्धांतशास्त्री हो सकता है जैसे प्लेटो व अरस्तु थे, लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि सिद्धांतशास्त्री दार्शनिक भी हो।
राजनीतिक सिद्धांत का महत्व
यह राजनीतिक घटनाओं की वैज्ञानिक व्याख्या तथा सामान्यीकरण के आधार पर राजनीतिक व्यवहार का एक विज्ञान विकसित करने में मदद करता है। इसके द्वारा ज्ञान के नए क्षेत्रों की खोज व सिद्धांतों की प्राप्ति होती है। एक अच्छा राजनीतिक सिद्धांत अनुशासन में एकसमता, सम्बद्धता तथा संगति का गुण पैदा करता है। यह राजनीतिक शासन-प्रणाली एवं शासकों को औचित्यपूर्णता प्रदान करता है। यह कभी समाजवाद के रूप में कार्य करता है तो कभी विशिष्ट वर्ग के रूप में।
राजनीतिक सिद्धांत में राज्य, सरकार, शक्ति, सत्ता, नीति-निर्माण, राजनीतिक विकास, राजनीतिक आधुनिकीकरण, राजनीतिक दल, मताधिकार, चुनाव, जनमत, राजनीतिक संस्कृति, राजनीतिक अभिजनवाद, अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध व संस्थाएं, क्षेत्रीय संगठन, नारीवाद आदि का अध् ययन किया जाता है। आज राजनीतिक सिद्धांत एक स्वतन्त्र अनुशासन की दिशा में गतिमान है।
राजनीतिक सिद्धांत की आवश्यकता इस बात में है कि यह राजनीति विज्ञान के एक अनुशासन के रूप में परम् आवश्यक है। इसी पर इस विषय में एकीकरण सामंजस्य, पूर्वकथनीयता एवं वैज्ञानिकता लाना एवं शोद्य सम्भावनाएं निर्भर हैं। बिना सिद्धांत के न तो रजनीति-विज्ञान का विकास संभव है और न ही कोई शोद्य कार्य, अवधारणात्मक विचारबद्ध के रूप में राजनीतिक सिद्धांत राजनीति विज्ञान में तथ्य संग्रह एवं शोद्य को प्रेरणा एवं दिशा प्रदान करता है। यह राजनीति विज्ञान में एक दिशा मूलक की तरह कार्य करता है।
विकासशील देशों की अपेक्षा विकसित देशों में राजनीतिक सिद्धांत की स्थिति कुछ अच्छी है। आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत आज अनेक समस्याओं से जूझ रहा है। अनेक प्रयासों के बावजूद भी राजनीतिक-विज्ञान आज तक किसी वैज्ञानिक राजनीतिक सिद्धांत का निर्माण नहीं कर पाए हैं।
राबर्ट डाहल ने तो यहां तक कह दिया कि राजनीतिक सिद्धांत अंग्रेजी भाषी देशों में तो मृत हो चुका है। साम्यवादी देशों में बन्दी है तथा अन्यत्र मरणासन्न है।
इसी कारण मानव समाज की राजनीतिक, संविधानिक और वैधानिक प्रगति के लिए राजनीतिक सिद्धांत का होना अति आवश्यक है। आज के परमाणु युग में शक्ति पर नियन्त्रण रखने का मार्गदर्शन आनुभाविक राजनीतिक सिद्धांत द्वारा ही सम्भव है। राजनीति के रहस्यों, प्रतिक्षण परिवर्तनशील घटनाओं तथा जटिल अन्त:सम्बन्धों तक पहुंचने के लिए राजनीतिक सिद्धांत एक सुरंग की तरह कार्य करता है।
संक्षेप में, राजनीतिक सिद्धांत का महत्त्व निम्नलिखित आधारों पर समझा जा सकता है:
- ये राज्य और सरकार की प्रकृति तथा उद्देश्यों का क्रमबद्ध ज्ञान उपलब्ध करवाते हैं,
- ये सामाजिक और राजनीतिक वास्तविकता तथा किसी भी समाज के आदर्शों एवं उद्देश्यों में संबंध स्थापित करने में सहायता करते हैं।
- सिद्धांत का कार्य केवल स्थिति की व्याख्या करना नहीं होता। ये सामाजिक सुधार अथवा क्रांतिकारी तरीकों से परिवर्तन सम्बन्धी सिद्धांत भी प्रस्तुत करते हैं।
- ये व्यक्ति को सामाजिक स्तर पर अधिकार, कर्तव्य, स्वतंत्रता, समानता, सम्पत्ति, न्याय आदि के बारे में सचेत करवाते हैं।
- ये सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था को समझने तथा उससे संबंधित समस्याओं, जैसे गरीबी, हिंसा, भ्रष्टाचार, जातिवाद आदि के साथ जूझने के सैद्धान्तिक विकल्प प्रदान करते हैं।
जब किसी समाज के राजनीतिक सिद्धांत अपनी भूमिका सही तरीके से निभाते हैं तो वे मानवीय विकास का एक महत्त्वपूर्ण साधन बन जाता है। जनसाधारण को सही सिद्धांत से परिचित करवाने का अर्थ केवल उन्हें अपने उद्देश्य और साधनों को सही तरीके से चुनने में सहायता करना ही नहीं है। बल्कि उन रास्तों से भी बचाना है जो उन्हें निराशा की तरफ ले जा सकते हैं।
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