शोषण के विरुद्ध अधिकार ( अनुच्छेद 23 – 24)
भारतीय सविंधान के भाग – 3 में अनुच्छेद 23-24 तक में शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right against exploitation in hindi) का वर्णन है।
मानव ढ्॒र्व्यापार एवं बलात् श्रम का निषेध – अनुच्छेद 23
अनुच्छेद 23 मानव दुर्व्यापार, बेगार (बलात् श्रम) और इसी प्रकार के अन्य बलात् श्रम के प्रकारों पर भी प्रतिबंध लगाता है। इस व्यवस्था के अंतर्गत कोई भी उल्लंघन कानून के अनुसार दंडनीय होगा। यह अधिकार नागरिक एवं गैरनागरिक दोनों के लिए उपलब्ध होगा। यह किसी व्यक्ति को न केवल राज्य के खिलाफ बल्कि व्यक्तियों के खिलाफ भी सुरक्षा प्रदान करता है।
‘मानव दुर्व्यापार’ शब्द में शामिल हैं-
- पुरुष, महिला एवं बच्चों की वस्तु के समान खरीद-बिक्री,
- महिलाओं और बच्चों का अनैतिक दुर्व्यापार, इसमें वेश्यावृत्ति भी शामिल है,
- देवदासी और
- दास।
इस तरह के कृत्यों पर दंडित करने के लिए संय अनैतिक दुर्व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1950 बनाया है।
बेगार का अभिप्राय है बिना परिश्रमिक के काम कराना । एक विशिष्ट भारतीय व्यवस्था थी, जिसके तहत क्षेत्रीय जारी कभी-कभी अपने नौकरों या उधार लेने वालों से बिना कोई भगत किए कार्य कराते थे। अनुच्छेद 23 बेगार के अलावा बलात पर अन्य प्रकारों, यथा बंधुआ मजदूरी पर भी रोक लगाता है। श्रम का अर्थ है कि किसी व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध उससे लेना।
बलात् श्रम में केवल शारीरिक अथवा कानूनी बलात् स्थिति ही शामिल नहीं है, बल्कि इसमें आर्थिक परिस्थितियों से उत्पन्न बाध्यता यथा-न्यूनतम मजदूरी से कम पर काम कराना आदि भी शामिल है। इस संबंध में
- बंधुआ मजदूरी व्यवस्था (निरसन) अधिनियम, 1976
- न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948
- ठेका श्रमिक अधिनियम 1970, और
- समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976
बनाए गए।
अनुच्छेद 23 में इस उपबंध के अपवाद का भी प्रावधान है। यह राज्य को अनुमति प्रदान करता है कि सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए अनिवार्य सेवा, उदाहरण के लिए सैन्य सेवा एवं सामाजिक सेवा आरोपित कर सकता है, जिनके लिए वह धन देने को बाध्य नहीं है। लेकिन इस तरह की सेवा में लगाने में राज्य को धर्म, जाति या वर्ग के आधार पर भेदभाव की अनुमति नहीं है।
कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का निषेध – अनुच्छेद-24
अनुच्छेद-24 किसी फैक्ट्री, खान अथवा अन्य परिसंकटमय गतिविधियों यथा निर्माण कार्य अथवा रेलवे में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के नियोजन का प्रतिषेध करता है, लेकिन यह प्रतिषेध किसी नुकसान न पहुंचाने वाले अथवा निर्दोष कार्यों में नियोजन का प्रतिषेध नहीं करता है।
बाल श्रम (प्रतिषेध एवं नियमन) अधिनियम, 1986 इस दिशा में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कानून है।
इसके अलावा
- बालक नियोजन अधिनियम, 1938
- कारखाना अधिनियम, 1948
- खान अधिनियम, 1952
- वाणिज्य पोत परिवहन अधिनियम, 1958
- बागान श्रम अधिनियम, 1951
- मोटर परिवहन कर्मकार अधिनियम, 1951
- प्रशिक्षु अधिनियम, 1961
- बीड़ी तथा सिगार कर्मकार, अधिनियम 1966
और इसी प्रकार के अन्य अधिनियम निश्चित आयु से कम के बालकों के नियोजन का प्रतिषेध करते हैं।
1996 में उच्चतम न्यायालय ने बाल श्रम पुनर्वास कल्याण कोष की स्थापना का निर्देश दिया, जिसमें बालकों को नियोजित करने वाले द्वारा प्रति बालक 20,000 रुपए जमा कराने का प्रावधान है। इसने बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य एवं पोषण में सुधार के लिए भी निर्देश दिए।
बालक अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005 बालकों के अधिकारों के संरक्षण के लिए एक राष्ट्रीय आयोग और राज्य आयोगों की स्थापना और बालकों के विरुद्ध अपराधों अथवा बालक अधिकारों के उल्लघन पर शीघ्र विचारण के लिए अधिनियमित किया गया।
2006 में सरकार ने बच्चों के घरेलू नौकरों के रूप में काम करने पर अथवा व्यावसायिक प्रतिष्ठानों, जेसे होटलों, रेस्तरां, दुकानों, कारखानों, रिसॉर्ट, स्पा चाय की दुकानों आदि में नियोजन पर रोक लगा दी है। इसमें 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को नियोजित करने वालों के विरुद्ध अभियोजन और दंडात्मक कार्रवाई की चेतावनी दी गई है।
बाल श्रम संशोधन (2016)
बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2016 द्वारा बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986 को संशोधित कर दिया। इसने मूल अधिनियम का नाम बदलकर बाल एवं किशोर श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986 कर दिया है।
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