अधिकार (Rights) हमारे जीवन की वह बहुमूल्य अवधारणा है जो हमारी ज़िन्दगी को एक सरल और सुचारु रूप से चलने में मददगार साबित होती है। अधिकार मूल रूप से ऐसा हक़दारी या दावा है जिसका औचित्य हमारे जीवन को सरल बनाना है। यह एक ऐसी चीज़ है जिसको हम अपना प्राप्य समझते है, या एक तरह से हम ऐसा दावा साबित करते है जो चीज़े हमारे लिए अनिवार्य है।
अधिकार उन बातों का द्योतक है जिन्हे हम या अन्य लोग सम्मान गरिमा का जीवन बसर करने के लिए महत्वपूर्ण और आवश्यक समझते है। जैसे की हु मन सकते है कि आजीविका का अधिकार जीवन जीने के लिए जरुरी है। अधिकार हमें सृजनात्मक और मौलिक होना का मौका देता है।
इन सब के बाबजूद हम कह सकते है कि किसी भी चीज़ों का दावा करना चाहे वह हमारे हित में हो या न हो वह हमारा अधिकार है तो हम इसे गलत कह सकते है क्युकि उस जब तक उस दावे को समाज से स्वीकृती नहीं मिल जाये वह अधिकार में प्रभाषित नहीं किया जा सकता। हर समाज अपने आचरण को व्यवस्तिथ करने के लिए कुछ कायदे कानून बनाते है जो हमें यह बताता है कि क्या सही है और क्या गलत ? समाज जिस चीज़ को सही मानता है, सबके अधिकार लायक होता है वही हमारे भी अधिकार होते है।
अधिकार: अर्थ और सिद्धांत
अधिकार सामाजिक जीवन की वे महत्वपूर्ण शर्तें हैं जिनके बिना कोई भी व्यक्ति आमतौर पर अपने सर्वश्रेष्ठ होने का एहसास नहीं कर सकता है। ये व्यक्ति और उसके समाज दोनों के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक शर्तें हैं। यह केवल तभी संभव है जब लोग अधिकारों को प्राप्त करते हैं कि वे अपने व्यक्तित्व को विकसित कर सकें और समाज के लिए अपनी सर्वश्रेष्ठ सेवाओं में योगदान कर सकें।
सरल भाषाओं में हम कहे तो अधिकार लोगो के व सामन्य दावे है जिन्हे प्रत्येक एक सभ्य समाज उनके विकास के लिए आवश्यक दावों के रूप में पहचानता है, और जो इसलिए राज्य द्वारा लागू किए जाते हैं।
लास्की के अनुसार, “अधिकार सामाजिक जीवन की वे स्थितियाँ हैं, जिनके बिना कोई भी व्यक्ति सामान्य रूप से अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकता है।”
वही T. H. Green का कहना है “अधिकार एक नैतिक प्राणी के रूप में मनुष्य की वोकेशन की पूर्ति के लिए आवश्यक शक्तियाँ हैं।”
बेनी प्रसाद ने बताते है कि “अधिकार उन सामाजिक परिस्थितियों से अधिक और न ही कम हैं जो व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक या अनुकूल हैं।”
अधिकारों की मुख्य विशेषताएं:-
- अधिकार केवल समाज में मौजूद हैं। ये सामाजिक जीवन के उत्पाद हैं।
- अधिकार समाज में उनके विकास के लिए व्यक्तियों के दावे हैं।
- अधिकारों को समाज द्वारा सभी लोगों के सामान्य दावों के रूप में मान्यता दी जाती है।
- अधिकार तर्कसंगत और नैतिक दावे हैं जो लोग अपने समाज पर बनाते हैं।
- चूँकि अधिकार यहाँ केवल समाज में हैं, इसलिए इनका समाज के विरुद्ध प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
- लोगों द्वारा उनके विकास के लिए अधिकारों का प्रयोग किया जाता है जो वास्तव में सामाजिक अच्छाई के संवर्धन द्वारा समाज में उनके विकास का मतलब है। सामाजिक अच्छाई के खिलाफ अधिकारों का प्रयोग कभी नहीं किया जा सकता है।
- अधिकार सभी लोगों के लिए समान रूप से उपलब्ध हैं।
- अधिकारों की सामग्री समय बीतने के साथ बदलती रहती है।
- अधिकार निरपेक्ष नहीं हैं। सार्वजनिक स्वास्थ्य, सुरक्षा, व्यवस्था और नैतिकता बनाए रखने के लिए इन सीमाओं को हमेशा आवश्यक माना जाता है।
- अधिकार कर्तव्यों के साथ अविभाज्य रूप से संबंधित हैं। उनके बीच कोई करीबी रिश्ता नहीं है। कोई अधिकार नहीं कर्तव्य। ” अगर मेरे अधिकार हैं तो समाज में दूसरों के अधिकारों का सम्मान करना मेरा कर्तव्य है “।
- अधिकारों के लिए प्रवर्तन की आवश्यकता होती है और उसके बाद ही इन्हें वास्तव में लोगों द्वारा उपयोग किया जा सकता है। इन्हें राज्य के कानूनों द्वारा संरक्षित और लागू किया जाता है। यह राज्य का कर्तव्य है कि वह लोगों के अधिकारों की रक्षा करे।
अधिकारों के सिद्धांत:-
कई सिद्धांतकारों ने अधिकारों के लिए कुछ सम्मोहक सिद्धांत हैं।
- उपयोगितावाद (Utilitarianism)
- कांटियनिज़्म (देवशास्त्र) (Kantianism (Deontology))
- लास्की का अधिकार का सिद्धांत (Laski’s Theory of Rights)
- बार्कर का अधिकार का सिद्धांत (Barker’s Theory of Right)
उपयोगितावाद (Utilitarianism) :-
यह उपयोगिता सिद्धांत है। उपयोगितावाद पूरी तरह से परिणामवादी है; किसी कार्रवाई या मामलों की स्थिति का न्याय या अन्याय विशेष रूप से उसके द्वारा किए जाने वाले परिणामों से निर्धारित होता है। यह सिद्धांत इसलिए भी महत्वपूर्ण होता है कि यह हमारी उपयोगिता को पूर्ण करती है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि उपयोगितावादी सिद्धांत में कई लोगों ने किसी भी प्रकार के अधिकारों की धारणा के लिए विरोध व्यक्त नहीं की है।
उपयोगिता सिद्धांत द्वारा अधिकार सीमित हैं। यदि एक सही का अभ्यास अच्छे को अधिकतम करता है, तो अधिकार को धारण करना चाहिए। यदि यह ऐसा करने में विफल रहता है, तो अधिकार का हनन हो सकता है।
कांटियनिज़्म (देवशास्त्र) (Kantianism (Deontology) :-
कांटियनिज़्म स्पष्ट रूप से गैर-परिणामवादी नैतिकता है। यह मानव अधिकारों के लिए प्रासंगिक है, क्योंकि हम मानव अधिकारों को सार्वभौमिक रूप से मानव के लिए लागू मानते हैं। केवल उन कार्रवाई के नियमों पर कार्य करें जो आप सार्वभौमिक कानून हो सकते हैं। यह स्थिरता की मांग करता है। मेरे लिए सब ठीक है, अगर आपके लिए हमारी परिस्थितियां समान हैं तो सब ठीक है।
लेकिन यह भी सच है की यह सिद्धांत कार्रवाई के नियमों का समर्थन करता है जो हमारे सबसे बुनियादी हितों की रक्षा करते हैं, और हमारे अधिकारों की भी रक्षा करते हैं। नैतिकता इरादों की बात होनी चाहिए, ये केवल वे चीजें हैं जिनका हम बिना किसी बाहरी प्रभाव के मूल्यांकन कर सकते हैं। इसलिए सही कार्रवाई वह है जो परिणाम की परवाह किए बिना हमारे नैतिक कर्तव्य के अनुरूप हो।
आम तौर पर, हमारा नैतिक कर्तव्य केवल कार्य करना है जहां हमारे कार्यों सार्वभौमिकता और अंत / साधन की आवश्यकता के परीक्षणों को पूरा करना है।
लास्की का अधिकार का सिद्धांत (Laski’s Theory of Rights) :-
राजनीति विज्ञान के एक प्रभावशाली व्यक्ति और रचनात्मक लेखक हेरोल्ड लास्की, जिन्होंने लगभग राजनीतिक विज्ञानं पर 20 पुस्तकों के लेखक हैं, उन्होंने अधिकारों के सिद्धांत को उजागर किया है और यह कई मामलों में एक क्लासिक प्रतिनिधित्व है।उनके अनुसार अधिकार सामाजिक अवधारणा हैं और सामाजिक जीवन से गहराई से जुड़े हुए हैं।अधिकारों की अनिवार्यता का पता हमें इसी बात से लगता है कि व्यक्ति अपने सर्वश्रेष्ठ स्वयं के विकास के लिए दावा करते हैं।
लास्की के सिद्धांत का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा अधिकारों का कार्यात्मक पहलू है। यह अधिकार और कर्तव्य के बीच संबंध पर जोर देता है। उन्होंने कहा कि अधिकार कार्यों के लिए सहसंबद्ध हैं। यह निश्चित रूप से अधिकारों के कानूनी सिद्धांत के व्यापक रूप से ज्ञात सिद्धांत का विरोध करता है। लेकिन आज, अधिकारों को मुख्य रूप से राजनीतिक विचारों पर मान्यता प्राप्त और संरक्षित किया जाता है।
बार्कर का अधिकार का सिद्धांत (Barker’s Theory of Right) :-
बार्कर का अधिकार का सिद्धांत लास्की का अधिकार का सिद्धांत लास्की से भिन्न नहीं है। दोनों उदारवादी दार्शनिक हैं, लेकिन बार्कर के सिद्धांत आदर्शवाद के लिए एक स्पष्ट पूर्वाग्रह है। राज्य के सभी राजनीतिक संगठन का मुख्य उद्देश्य यह देखना है कि व्यक्ति के व्यक्तित्व में विकास की पर्याप्त गुंजाइश हो। उस उद्देश्य के लिए आवश्यक शर्तों की गारंटी देना और सुरक्षित करना राज्य का कर्तव्य है। किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व अपने आप में या अधिकांश प्रतिकूल या विरोधी वातावरण में विकसित नहीं हो सकता है, व्यक्तित्व के विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियों की आवश्यकता होती है और इन्हें कानून के अधिनियमन के माध्यम से राज्य द्वारा गारंटी दी जाती है।
बार्कर अधिकारों के नैतिक पहलू पर भी चर्चा करते हैं। वह कहते हैं, राज्य का कानून मुझे अधिकारों को सुरक्षित करने में मदद करता है।व्यक्ति एक नैतिक व्यक्ति है और यह उसका दृढ़ संकल्प है कि वह अधिकारों के माध्यम से अपने नैतिक व्यक्तित्व का विकास करेगा। उसका उद्देश्य समाज को कोई नुकसान पहुँचाना नहीं है। नैतिकता का अर्थ है, – वह समाज के सामान्य कल्याण के लिए अपने सर्वोत्तम प्रयासों को जारी करता है।
अधिकारों के प्रकार:
- प्राकृतिक अधिकार (Natural Rights)
- नैतिक अधिकार (Moral Rights)
- क़ानूनी अधिकार (Legal Rights)
- मानव और कानूनी अधिकार (Human and Legal Rights)
- संविदा अधिकार (Contractual Rights)
प्राकृतिक अधिकार (Natural Rights) :-
प्राकृतिक अधिकारों में विश्वास कई विद्वानों द्वारा दृढ़ता से व्यक्त किया गया है। वे मानते हैं कि लोगो को प्रकृति से कई अधिकार प्राप्त करते हैं। जब हम किसी समाज और किसी राज्य के वासी होते है इससे पहले हम जन्म के साथ ही प्रकृति की स्थिति में रहते है जिसमे हमें जन्म के साथ ही प्राकृतिक अधिकार होते है। जैसे कि हमें जीवन का अधिकार, प्राप्त स्वतंत्रता का अधिकार और संपत्ति का अधिकार।
हालाँकि कुछ राजनीतिक विद्वान इसे काल्पनिक मानते है वो समझते है कि अधिकार सामाजिक जीवन के उत्पाद हैं। इनका उपयोग किसी समाज में ही किया जा सकता है। लेकिन सुचारु रूप से समाज के विकास के लिए सामान्य दावों के रूप में समाज की मान्यता के पीछे उनके अधिकारों की आवश्यकता है, और इसीलिए राज्य इन अधिकारों की रक्षा करता है।
जैसे कि हम अपनी अनुसार अपनी ज़िन्दगी को सकते है कही भी जा सकते है है आ सकते है यह सब हमें प्राकृतिक अधिकार के अनुरूप हमें ये अधिकार प्राप्त होते है।
नैतिक अधिकार (Moral Rights) :-
नैतिक अधिकार वे अधिकार हैं जो मानव चेतना पर आधारित हैं। यानि कि यह अधिकार हमारे मन के नैतिक बल द्वारा समर्थित होते है। ये मानव की अच्छाई और न्याय की भावना पर आधारित होते है। हम यह भी सकते है कि यह अधिकार हमारे अंतरात्मा की आवाज को सम्बोधित करता है।
यदि कोई व्यक्ति किसी नैतिक अधिकार का उल्लंघन करता है, तो उसके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती है। उदाहरण के तौर पर हम समझ सकते है कि अगर किसी भी प्राणी को मदद की आवश्यकता है तो हमारा नैतिक अधिकार हमें उसे मदद करने ले लिए बाध्य करता है लेकिन वह हम पर निर्भर करता है कि हम उसका मदद करने अथवा न करें। या हम यह भी कह सकते है किसी को सम्मान देना यह हमारे मन पर निर्भर करता है लेकिन दोनों स्तिथि में देखें तो हमें मदद न करना या किसी कि सम्मान न करना ये दोनों बातें नैतिक अधिकारों का उलन्घन करते है। लेकिन इसके लिए हमारा कानून में इसके लिए सजा का कोई भी प्रावधान नहीं है।
क्यों कि नैतिक अधिकार हमारा मन चेतन पर निर्भर करता है और नैतिक अधिकारों में मुख्यतः अच्छे आचरण, शिष्टाचार और नैतिक व्यवहार के नियम को बढ़ावा देता है।
क़ानूनी अधिकार (Legal Rights) :-
कानूनी अधिकार वे अधिकार हैं जिन्हें राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त होते है और यह राज्य द्वारा लागू किया जाता है। किसी भी कानूनी अधिकार का उल्लंघन करने पर कानून द्वारा दंडित किया जाता है। राज्य की कानून समाज को व्यवस्तिथ रखने के लिए कुछ कानूनी अधिकारों को लागू करती हैं। ये अधिकार व्यक्तियों के खिलाफ और सरकार के खिलाफ भी लागू किए जा सकते हैं।
कानूनी अधिकार सभी नागरिकों के लिए समान रूप से उपलब्ध हैं। इसमें सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के इसका पालन करता है और किसी के द्वारा कानून उलंघन करने पर वो अदालत भी जा सकते है।
कानूनी अधिकार तीन प्रकार के होते हैं:-
- नागरिक अधिकार (Civil Rights)
- राजनीतिक अधिकार (Political Rights)
- आर्थिक अधिकार (Economic Rights)
नागरिक अधिकार (Civil Rights) :-
नागरिक अधिकार वे अधिकार हैं जो प्रत्येक व्यक्ति को सभ्य सामाजिक जीवन जीने का अवसर प्रदान करते हैं। ये समाज में मानव जीवन की बुनियादी जरूरतों को पूरा करते हैं। इसमें जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता और समानता का अधिकार नागरिक अधिकार के अंतर्गत आता हैं। नागरिक अधिकारों को राज्य द्वारा संरक्षित किया जाता है।
राजनीतिक अधिकार (Political Rights) :-
राजनीतिक अधिकार वे अधिकार हैं जिनके आधार पर नागरिकों को राजनीतिक प्रक्रिया में हिस्सा ले सकते है। इन अधिकारों में मतदान का अधिकार, निर्वाचित होने का अधिकार, सार्वजनिक पद धारण करने का अधिकार और सरकार की आलोचना और विरोध करने का अधिकार शामिल हैं। प्राचीन समय में ये अधिकार लोगो के पास नहीं थें लेकिन लोकतंत्र आने के बाद ये अधिकार समाज के हर नागरिक को सामान रूप से मिलता है।
आर्थिक अधिकार (Economic Rights) :-
आर्थिक अधिकार वे अधिकार हैं जो लोगों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करते हैं। यह अधिकार नागरिक के लिए बहुत महत्वपूर्ण है इसके बिना उपरोक्त अधिकार का उचित उपयोग नहीं हो पता है। यह प्रत्येक व्यक्ति की बुनियादी ज़रूरतें उसके भोजन, कपड़े, आश्रय, चिकित्सा उपचार आदि से जुड़ी होती हैं। इनकी पूर्ति के बिना कोई भी व्यक्ति वास्तव में अपने नागरिक और राजनीतिक अधिकारों का आनंद नहीं ले सकता है।
इसलिए यह आवश्यक है, कि प्रत्येक व्यक्ति को काम करने का अधिकार, पर्याप्त मजदूरी का अधिकार, अवकाश और आराम का अधिकार और बीमारी, शारीरिक विकलांगता और बुढ़ापे के मामले में सामाजिक सुरक्षा का अधिकार प्राप्त होना चाहिए।
मानव और कानूनी अधिकार (Human and Legal Rights) :-
नैतिक या मानवाधिकारों और कानूनी अधिकारों के बीच कुछ अंतर है। कानूनी अधिकारों को स्थापन के लिए मौजूदा कानून व्यवस्था की आवश्यकता होती है।
कानूनी अधिकार को सुवस्तिथ रखने के लिए अधिकृत प्राधिकारी को कानून द्वारा कुछ विशेष बल प्राप्त होते है। लेकिन उस बल का वह नागरिक पर अनुचित प्रयोग न करे इसके लिए लोगो को मानवाधिकारों की धारणा का उसे पालन करने होता है जो उसे कानून का अपनाने का समर्थन करते है।
लेकिन मानव या नैतिक अधिकारों को कानूनी अधिकारों के अलावा किसी अन्य स्रोत के माध्यम से अपनी वैधता प्राप्त करनी चाहिए, क्योंकि लोग कानून की आलोचना करने के लिए मानव या नैतिक अधिकारों की अपील कर सकते हैं या कानून (या कानूनी अधिकारों) में बदलाव की वकालत कर सकते हैं।
संविदा अधिकार (Contractual Rights):-
सविदा का अधिकार मुख्यतः लोगो के वादे को पालन करने से उत्त्पन हुई है। वे उन विशेष व्यक्तियों पर लागू होते हैं जिनके साथ अनुबंध संबंधी वादे किए गए हैं।
यदि इसे हम सरल भाषा में कहे तो आप सब Contract नाम से परिचित होंगे, “Contract एक तरह का दो पार्टियों के बीच का कानूनी भाषा में लिखित ऐसा समझौता है जिसमे दोनों पार्टियों एक दूसरे से अपनी जरूरतों को पूरा करने का वादा करते है।“ इसके तहत दोनों पार्टियों को पूरा अधिकार होता है कि एक दूसरे को वादे पूरा ना कर पाने पर वह कानूनन करवाई कर सकते है और कानून द्वारा इस संविदात्मक अधिकारों को बरकरार रखा जाता है। लेकिन यह तभी संभव है जब Contract कानून ढांचे के अंदर तैयार किया गया हो।
संविदात्मक अधिकारों के कई उदाहरण हैं:-
- किसी विशेष उत्पाद या सेवा को खरीदने का अधिकार
- एक उत्पाद या सेवा को बेचने के लिए अधिकार
- अधिकार केवल विक्रेता या खरीदार होना
- वितरण और समय पर भुगतान करने के लिए अधिकार
- रिफंड या मरम्मत के लिए अधिकार
- प्रत्येक पार्टी के विशिष्ट इरादों के अनुसार विभिन्न अधिकार
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