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बायो- मेडिकल कचरा क्या होता है?

Times Darpan
Last updated: 2024-04-29 19:48
By Times Darpan 19.7k Views
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10 Min Read
bio-medical waste

बायो- मेडिकल कचरा (Bio-Medical Waste) के अंतर्गत स्वास्थ्य संस्थानों (जैसे कि अस्पताल, प्रयोगशाला, प्रतिरक्षण कार्य, ब्लड बैंक आदि) में इंसानी और जानवर के शारीरिक सम्बन्धी बेकार वस्तु (waste) और इलाज के लिए उपयोग किए उपकरण आते हैं।

Contents
क्या होता है बायो मेडिकल कचरा (Bio-Medical Waste)?बायोमेडिकल कचरा के स्रोत क्या-क्या हैं ?कितना खतरनाक है यह बायोमेडिकल कचरा (Bio-Medical Waste) ?बायो-मेडिकल कचरा प्रबंधन (Bio-medical waste management)पुर्नचक्रण की प्रक्रिया (Recycling Process by Hospitals)नियम का उल्लंघन2016 का कानून (Bio-Medical Waste Management Rule, 2016 in Hindi)हमें और आपको क्या करना चाहिए?

ये बायोमेडिकल कचरा हमारे-आपके स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिये कितना खतरनाक है, इसका अंदाजा आप और हम नहीं लगा सकते हैं। इससे न केवल और बीमारियाँ फैलती हैं बल्कि जल, थल और वायु सभी दूषित होते हैं।

ये कचरा भले ही एक अस्पताल के लिये मामूली कचरा हो लेकिन भारत सरकार व मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के अनुसार यह मौत का सामान है। ऐसे कचरे से इनफेक्सन, एचआईवी, महामारी, हेपेटाइटिस जैसी बीमारियाँ होने का भी डर बना रहता है।

आइए जानते हैं क्या होता है बायोमेडिकल कचरा, कैसे पैदा होता है और इसका उचित निपटान कैसे किया जाए?

क्या होता है बायो मेडिकल कचरा (Bio-Medical Waste)?

इस कचरे में काँच व प्लास्टिक की ग्लूकोज की बोतलें, इंजेक्शन और सिरिंज, दवाओं की खाली बोतलें व उपयोग किए गए आईवी सेट, दस्ताने और अन्य सामग्री होती हैं। इसके अलावा इनमें विभिन्न रिपोर्टें, रसीदें व अस्पताल की पर्चियाँ आदि भी शामिल होती हैं।

अस्पतालों से निकलने वाले इस कचरे को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार निम्न वर्गों में बाँटा गया है:

  • औषधीय पदार्थ : इसमें बची-खुची और पुरानी व खराब दवाएँ आती हैं।
  • रोगयुक्त पदार्थ : इसमें रोगी का मल-मूत्र, उल्टी, मानव अंग आदि आते हैं।
  • रेडियोधर्मी पदार्थ : इसमें विभिन्न रेडियोधर्मी पदार्थ जैसे कि रेडियम, एक्स-रे तथा कोबाल्ट आदि आते हैं।
  • रासायनिक पदार्थ : इसमें बैटरी व लैब में प्रयुक्त होने वाले विभिन्न रासायनिक पदार्थ आते हैं।

उपरोक्त के अलावा कुछ सामान्य पदार्थ भी होते हैं जिनमें दवाइयों के रैपर, कागज, रिर्पोट, एक्स-रे फिल्में और रसोई से निकलने वाला कूड़ा-कचरा आता है। यही नहीं, कुछ अन्य पदार्थ जैसे कि ग्लूकोज की बोतलें, सूइयाँ, दस्ताने आदि भी बायोमेडिकल कचरे में आते हैं।

बायोमेडिकल कचरा के स्रोत क्या-क्या हैं ?

बायोमेडिकल कचरे (Bio-Medical Wastes) के मुख्य स्रोत तो सरकारी और प्राइवेट अस्पताल, नर्सिंग होम, डिस्पेंसरी तथा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र होते हैं। इनके अलावा विभिन्न मेडिकल कॉलेज, रिसर्च सेंटर, पराचिकित्सक सेवाएं, ब्लड बैंक, मुर्दाघर, शव-परीक्षा केंद्र, पशु चिकित्सा कॉलेज, पशु रिसर्च सेंटर, स्वास्थ्य संबंधी उत्पादन केंद्र तथा विभिन्न बायोमेडिकल शैक्षिक संस्थान भी बड़ी मात्रा में बायोमेडिकल कचरा पैदा करते हैं।

उपरोक्त के अलावा सामान्य चिकित्सक, दंत चिकित्सा क्लीनिकों, पशु घरों, कसाईघरों, रक्तदान शिविरों, एक्यूपंक्चर विशेषज्ञों, मनोरोग क्लीनिकों, अंत्येष्टि सेवाओं, टीकाकरण केंद्रों तथा विकलांगता शैक्षिक संस्थानों से भी थोड़ा-बहुत बायोमेडिकल कचरा निकलता है।

कितना खतरनाक है यह बायोमेडिकल कचरा (Bio-Medical Waste) ?

अस्पतालों से निकलने वाला कचरा काफी घातक होता है। खुले में फेंकने से प्रयोग की गई सूई और दूसरे उपकरणों के पुनः इस्तेमाल से संक्रामक बीमारियों का खतरा बना रहता है। सामान्य तापमान में इसे जलाकर खत्म भी नहीं किया जा सकता है।

अगर कचरे को 1,150 डिग्री सेल्सियस के निर्धारित तापमान पर भस्म नहीं किया जाता है तो यह लगातार डायोक्सिन और फ्यूरान्स जैसे आर्गेनिक प्रदूषक पैदा करता है, जिनसे कैंसर, प्रजनन और विकास संबंधी परेशानियाँ पैदा हो सकती हैं। ये न केवल रोग प्रतिरोधक प्रणाली और प्रजनन क्षमता पर असर डालते हैं बल्कि ये शुक्राणु भी कम करते हैं और कई बार मधुमेह का कारण भी बनते हैं।

बायो-मेडिकल कचरा प्रबंधन (Bio-medical waste management)

अस्पताल के कचरों में से 85% खतरनाक नहीं होते और शेष 15% से जानवरों और इंसानों में कई प्रकार की बीमारियां फ़ैल सकती हैं। इसलिए इन बायो-मेडिकल वस्तुओं के पुनर्चक्रण (recycle) पर जोर दिया जाता है जिससे प्रतिरोधी सूक्ष्मजीवों का निर्माण होगा।

पुर्नचक्रण की प्रक्रिया (Recycling Process by Hospitals)

बायो-मेडिकल वेस्ट संयंत्र प्लांट और निपटान सुविधाओं के सहायता से सभी अस्पतालों को इन वस्तुओं का ध्यान से निपटारा करना होता है। अगर किसी अस्पताल में प्रति महीना 1000 से अधिक लोगों का उपचार होता है तो उस अस्पताल को कानून के हिसाब से बायो-मेडिकल वेस्ट को विभिन्न श्रेणियों के अनुसार वर्गीकृत करके निपटारा करना होता है।

अगर गंदगी में शारीरिक द्रव्य (bodily fluids) मौजूद हैं तो उनको जला देना जरुरी है, लेकिन ज्यादातर अस्पताल ऐसा नहीं करते। कई बार इन वस्तुओं को सीधे समुद्रों में दाल दिया जाता है जो वापस बहकर तटीय इलाकों में पहुंच जाते हैं।

कई डॉक्टर और स्वास्थ्य अधिकारियों को इन वस्तुओं से कैसे निपटना है, यह नहीं पता। कई प्रकार के मेडिकल सम्बन्धी कचरों के अलग अलग रंग के बैग आते हैं। जैसे कि सुई, खून से सने  हुए बैंडेज आदि को लाल रंग के बैग में डाल कर जला देना होता है।

सेन्ट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की गाइडलाइन में भी स्पष्ट निर्देश है कि बायोमेडिकल वेस्ट रोज नष्ट कर दिए जाने चाहिए। इसके लिये सिरिंज, सूइयाँ एवं बोतलों आदि को ऑन द स्पाट डिस्पोज करके यानि उपयोग के तुरंत बाद नष्ट करके अलग-अलग थैलियों में डालकर डिपो तक पहुँचाना चाहिए।

इसके विपरीत हकीकत यह है कि अस्पताल के वार्डों व ऑपरेशन थिएटरों के कचरे को खुली ट्रॉलियों के माध्यम से ले जाया जाता है। इनमें से रक्त तथा अन्य कचरा रास्ते में भी गिरता जाता है, इससे अस्पताल में मरीजों व उनके परिजनों में संक्रमण फैलने की संभावना बनी रहती है।

नियम का उल्लंघन

बायोमेडिकल वेस्ट (Bio-Medical Waste) के नियमों का उल्लंघन करने वालों की सूची स्थानीय राज्य सरकारों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास होती है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को दोषी पाए जाने वाले अस्पतालों चाहे वे सरकारी हों व निजी अस्पताल या फिर नर्सिंग होम हो, इनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।

2016 का कानून (Bio-Medical Waste Management Rule, 2016 in Hindi)

2016 का यह कानून 1998 के कानून का संशोधन है। ये नए नियम स्वच्छ भारत अभियान को ध्यान में रखकर बनाये गए हैं।

इस कानून में रक्तदान शिविर, टीकाकरण शिविर, सर्जिकल शिविर और अन्य सभी प्रकार के स्वास्थ्य शिविर को शामिल किया गया है।

इस नियम के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य हैं:-

  • जिन बायो-मेडिकल चीजों से भरे बैग का निपटारा होना है, उनके लिए बार कोड प्रणाली लागु किया जाये।
  • सभी स्वास्थ्यकर्मियों को नियमित रूप से प्रशिक्षण दिया जाये और उनका समय समय पर रोगक्षम (immunization) हो।
  • क्लोरीन सहित प्लास्टिक बैग, दस्ताने, ब्लड बैग आदि हर दो साल में बदले जाएँ।
  • डायोक्सिन आदि के उत्सर्जन की एक सीमा तय की जाये।
  • प्रयोगशाला, सूक्ष्मजीवी सम्बन्धी वस्तु, खून के नमूने, खून के बैग आदि को विसंक्रमित (sterilization) करके सयंत्रित करना।
  • हर क्षेत्र में एक प्रमुख बायो-मेडिकल वेस्ट निपटारन केंद्र बनाने के लिए राज्य सरकार द्वारा व्यवस्था करनी चाहिए।
  • इस काम के लिए क़ानूनी प्रक्रियाओं को आसान बनाना चाहिए।
  • बायो-मेडिकल वेस्ट को चार श्रेणियों में बांटा जाये ताकि इनको आसानी से निपटाया जा सके।
  • बायो-मेडिकल चीजों का नियमित रूप से उपचार हो और इसकी रिपोर्ट सरकार को दी जाए।
  • जहां बायो-मेडिकल वेस्ट उपचार केंद्र है, उसके कई किमी के अंदर कोई आवासीय काम्प्लेक्स नहीं होना चाहिए।

हमें और आपको क्या करना चाहिए?

बायोमेडिकल कचरे (Bio-Medical Waste) के उचित निपटान एवं प्रबंधन में हमारी और आपकी भी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इसके लिये हम निम्न बातों को अपना कर इस बायोमेडिकल कचरे से खुद को और अपने पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचा सकते हैं :

  1. कचरे को बंद वाहनों में ले जाना चाहिए। मिश्रित कचरे को अलग-अलग करके निर्धारित प्रक्रिया के तहत उसका निस्तारण करना चाहिए।
  2. कचरे को जलाकर नष्ट करने के बजाय उसकी री-साइकिल करने की व्यवस्था होनी चाहिए।
  3. बायोमेडिकल और इंडस्ट्रियल कचरे को शहरी कचरे में नहीं मिलाना चाहिए।
  4. जगह-जगह पर कचरा पात्र रखे होने चाहिए, जहाँ से कचरा नियमित रूप से उठाने की व्यवस्था हो।
  5. ठोस कचरा प्रबंधन की जानकारी के लिये जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए।
  6. व्यक्तियों के द्वारा कचरा उठाकर डालने की प्रक्रिया पूर्णतयः प्रतिबंधित होनी चाहिए।
  7. लैंडफिल साइट पर बायोमेडिकल कचरा न डालें। यदि लैंडफिल पर कचरा डालना भी हो तो कचरा डालते ही तत्काल 10 मिलीमीटर की मिट्टी की परत बिछा देनी चाहिए।
  8. अस्पतालों को भी बायोमेडिकल कचरा निपटान के नियमों का पूरी तरह से पालन करना चाहिए।

Read more:

  • मानव कोशिका क्या है?
  • Genetic code क्या हैं?

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