अनुच्छेद 34 मूल अधिकारों पर तब प्रतिबंध लगाता है जब भारत में कहीं भी मार्शल लॉ लागू हो। यह संसद को इस बात की शक्ति देता है कि किसी भी सरकारी कर्मचारी को या अन्य व्यक्ति को उसके द्वारा किए जाने वाले कार्य की व्यवस्था को बरकरार रखे या पुनर्निर्मित करे संसद किसी मार्शल लॉ वाले क्षेत्र में जारी दंड या अन्य आदेश को वैधता प्रदान कर सकता है। संसद द्वारा बनाए गए क्षतिपूर्ति अधिनियम को किसी न्यायालय में केवल इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती कि वह किसी मूल अधिकार का उल्लंघन है।
मार्शल लॉ एवं मूल अधिकार
मार्शल लॉ के सिद्धांत को अंग्रेजी कानून से लिया गया। हालांकि ‘मार्शल लॉ’ की संविधान में व्याख्या नहीं की गई पर इसका शाब्दिक अर्थ है-सैन्य शासन । यह ऐसी स्थिति का परिचायक है, जहां सेना द्वारा सामान्य प्रशासन को अपने नियम कानूनों के तहत संचालित किया जाता है । इस तरह वहां साधारण कानून निलंबित हो जाता है और सरकारी कार्यों को सैन्य अधिकरणों के अधीन किया जाता है।
यह सैन्य कानून से अलग है, जो कि सशस्त्र बलों पर लागू होता है। मार्शल लॉ घोषित होने पर संविधान में कोई विशेष प्राधिकरण की व्यवस्था नहीं है, हालांकि इसे अनुच्छेद 34 के तहत भारत में कहीं भी लागू किया जा सकता है। मार्शल लॉ को असाधारण परिस्थितियां, जैसे-युद्ध, अशांति, दंगे या कानून का उल्लंघन आदि में लागू किया जाता है। इसका न्यायोचित उद्देश्य यही है कि समाज में व्यवस्था बनाई रखी जा सके।
मार्शल लॉ के क्रियान्वयन के समय सैन्य प्रशासन के पास जरूरी कदम उठाने के लिए असाधारण अधिकार मिल जाते हैं वे अधिकारों पर प्रतिबंध यहां तक कि किसी मामले में नागरिकों को मृत्युदंड तक लागू कर सकता है।
मार्शल लॉ और राष्ट्रीय आपातकाल में अंतर
अनुच्छेद 34 के तहत मार्शल लॉ की घोषणा अनुच्छेद 352 के अंतर्गत राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा से भिन्न है। दोनों के बीच विभेद या अंतर को तालिका में दर्शाया गया है।
मार्शल लॉ (सैन्य कानून) | राष्ट्रीय आपातकाल |
1. यह सिर्फ मूल अधिकारों को प्रभावित करता है। | 1. यह न केवल मूल अधिकारों को प्रभावित करता है, बल्कि केंद्र- राज्य संबंधों को भी प्रभावित करता है। इसके अलावा राजस्व वितरण एवं निकायी शक्तियों को प्रभावित करने के साथ संसद का कार्यकाल भी बढ़ा सकता है। |
2. यह सरकार एवं साधारण कानूनी न्यायालयों को निलंबित करता है। | 2. यह सरकार एवं सामान्य कानूनी न्याय को जारी रखता है। |
3. यह कानून एवं व्यवस्था के भंग होने पर उसे दोबारा निर्धारित करता है। | 3. यह सिर्फ तीन आधारों पर ही लागू हो सकता है- युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह। |
4. इसे देश के कुछ विशेष क्षेत्रों में ही लागू किया जा सकता है। | 4. इसे पूरे देश या देश के किसी हिस्से में लागू किया जा सकता है। |
5. इसके लिए संविधान में कोई विशेष व्यवस्था नहीं है। यह अव्यक्त है। | 5. संविधान में इसकी विशेष व्यवस्था है, यह सुस्पष्ट एवं विस्तृत है। |
उच्चतम न्यायालय ने घोषणा की कि मार्शल लॉ प्रतिक्रियावादी परिणाम के तहत बदी प्रत्यक्षीकरण रिट को निलंबित नहीं कर सकता।
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