मोलेक्यूलर बायोलॉजी (molecular biology) जीव विज्ञान का वह भाग है जिसमें हमारे शारीरिक संरचना के कार्यप्रणाली का और हमारे शरीर के आणविक संश्लेषण, संशोधन, तंत्र और इंटरैक्शन सहित कोशिकाओं का अध्ययन होता है।
विभिन्न प्रकार के कोशिकाओं में डीएनए और RNA अणुओं के बीच होने वाली परस्पर क्रिया, प्रोटीन संश्लेषण और यह सब संरचनाएं किस प्रकार व्यवस्थित रहती हैं – इस विषय में इन सब पर शोध होता है।
मोलेक्यूलर बायोलॉजी का इतिहास (history of molecular biology in hindi)
इस विषय के ऊपर सन्न 1930 से शोध होना चालू हुआ था जब वैज्ञानिक उन मैक्रोमोलेक्यूल का अध्ययन कर रहे थे जिनके कारण हमारा जीवन संभव है। फिर 1940 के दशक में दो वैज्ञानिक जॉर्ज बिडल और एडवर्ड टाटॉम ने हमें जीण और प्रोटीन के बीच के सम्बन्ध से हमें अवगत कराया जोकि मोलेक्यूलर बायोलॉजी विषय का एक महत्वपूर्ण खोज था।
साल 1953 में फ्रांसिस क्रीक एवं जेम्स वाटसन नामक शोधकर्ताओं ने DNA अणुओं के दोहरे पेचीदार संरचना की खोज की थी जिसके लिए उन्हें 1962 में जीव-विज्ञान विषय में नोबेल पुरस्कार भी मिला। तीस साल बाद कैरी मुलिस ने जेनेटिक इंजीनियरिंग में शोध की शुरुआत की और उन्होंने पोलीमरेज़ चेन प्रतिक्रिया की खोज की जिसे जीव-विज्ञान में प्रतियां बनाने वाला मशीन माना गया।
जबसे जीव विज्ञान के अंतर्गत अनुवांशिकता की खोज हुई है, यह कई शोध प्रक्रियाओं के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ है। इससे यह पता चला कि शरीर में पाए जाने वाले अणु किस प्रकार से मेटाबॉयलिज़्म को सुचारु रूप से चलते हैं और ऊर्जा के निर्माण में किस प्रकार से प्रगति करते हैं।
मोलेक्यूलर बायोलॉजी का उपयोग (uses of molecular biology in hindi)
मोलेक्यूलर बायोलॉजी (molecular biology) में हुए तकनिकी खोजों कि मदद से जीवविज्ञानी इस बात के शोध में लगे हुए हैं कि पौधों और बाकि जीव-जंतुओं में यह प्रक्रिया किस प्रकार सुचारु रूप से चलती है। इस प्रक्रिया के मदद से वैज्ञानिक पौधों के जीण में बदलाव करने की प्रणाली में लगे हुए है जिससे खेती के पैदावारों को बढ़ाया जा सकेगा। जीण थेरेपी प्रक्रिया के विकास में भी कार्य किया जा रहा है।
साल 1990 के दौरान इस विषय में एक अंतराष्ट्रीय परियोजना चालू हुआ जिसका लक्ष्य इंसानों के जीण पर काम करना था, इस परियोजना को Human Genome Project के नाम दिया गया । इसके अंतर्गत लगभग 25,000 जीण की खोज हुई जिससे भविष्य में होने वाले शोधों का काम आसान हो गया। 3 बिलियन डीएनए सबयूनिट के अनुक्रम का पता लगाया गया। E.Coli नामक बैक्टीरिया एवं चूहों पर तकनिकी की मदद से कई प्रयोग किये गए ताकि यह पता चल सके कि इंसानी जीण में उसी प्रकार के बदलाव सफलतापूर्वक किये जा सकते हैं या नहीं।
कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएं
- DNA फॉरेंसिक (dna forensic)- यह DNA के पहचान के लिए उपयोग में लाया जाता है। जैसे कि दुर्घटना में मारे गए लोगों के पहचान के लिए, किसी अपराध अनुक्रम के दौरान आदि।
- फंक्शनल Genomics (functional genomics)- इसके अंतर्गत जीण, उनमे पाए जाने वाले प्रोटीन और वे प्रोटीन विभिन्न जीव-जंतुओं के शारीरिक संरचनाओं में किस प्रकार अलग-अलग भूमिका निभाते हैं – इन सब चीजों पर शोध होता है।
- जीनोमिक्स (genomics)- इसके अंतर्गत जीण और उनके कार्य-प्रणालियों के ऊपर शोध होता है।
- Toxicogenomics – इसमें इस बात के ऊपर शोध होता कि विभिन्न जीण वातावरण के प्रक्रिया के साथ किस प्रकार तालमेल बिठाते हैं।
- Proteomics – इसके अंतर्गत इस चीज की शोध की जाती है कि प्रोटीन किस प्रकार जीण के द्वारा व्यवस्थित होता है।
- Pharmagenomics- इंसानी जीण पर दवाई किस प्रकार प्रभाव डालता है – इस विषय पर अध्ययन किया जाता है।
आणविक जीव विज्ञान (molecular biology) से उत्पन्न कुछ नैदानिक अनुसंधान और चिकित्सा उपचार जीन थेरेपी के तहत आते हैं, जबकि चिकित्सा में आणविक जीव विज्ञान (molecular biology) या आणविक कोशिका जीव विज्ञान का उपयोग अब आणविक चिकित्सा के रूप में जाना जाता है।
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