पूर्वी समस्या क्या है?
तुर्को ने अपने साम्राज्य में यूरोप के भिन्न-भिन्न जाति के लोगो का शोषण करते रहें। जिसमे तुर्की के पतन के फलस्वरूप यूरोपीय इतिहास में, एक समस्या का जन्म हुआ, उसे ‘पूर्वी समस्या’ (eastern problem) कहते हैं।
तुर्की साम्राज्य की स्थिति
तुर्की ने अपने शुरुआत में जिस साम्राज्य की स्थापना की, वह 3 महाद्वीपों – एशिया, यूरोप और अफ्रीका तक फैला हुआ था। एशिया में मैसोपोटामिया और ईरान, अरब, यूरोप में बाल्कन प्रदेश तथा अफ्रीका में मिस्र तुर्की के साम्राज्य के अधीन था। 1453 ई. में पूर्वी रोमन साम्राज्य की राजधानी कुस्तुन्तुनिया तुर्की के अधीन आ गयी थी। यूरोप में बाल्कन प्रायद्वीप का बहुत बड़ा भाग तुर्की के साम्राज्य में सम्मिलित हो गया। 1683 ई. में तुर्क सेनाओं ने वियना पर भी आक्रमण किया था लेकिन यह आक्रमण सफल नहीं हो सका। हाब्सवर्ग राजवंश के राजाओं ने तुर्की सेनाओं को यूरोप में आगे नहीं बढ़ने दिया फिर भी तुर्की साम्राज्य में पूर्वी यूरोप के बोस्निया, हर्जेगोविना, सर्बिया, यूनान, रूमानिया, अल्बेनिया आदि के भू-भाग सम्मिलित थे। इनके यूरोपीय भाग में भिन्न-भिन्न जातियों के लोग निवास करते थे, जो भाषा, धर्म, रक्त आदि में तुर्को से सर्वथा अलग थे।
पूर्वी समस्या की प्रारंभिक पृष्ठभूमि
18वीं शताब्दी के शुरुआत से ही तुर्की साम्राज्य में निर्बलता के लक्षण प्रकट होने लगे थे। आस्ट्रिया और रूस तुर्की की इस पतन की ओर जाने वाली स्थिति से लाभ उठाने का प्रयत्न करने लगे। आरंभ में रूस ने ही इस ओर पहल की थी। दूसरे यूरोपीय राज्य उस समय तुर्की के प्रति उदासीन थे, रूस को अपनी शक्ति बढ़ाने का मौका मिल गया। सबसे पहले आस्ट्रिया ने 1699 की कालोंविज तथा पासरोविज की संधियों द्वारा हारने के बाद तुर्की के सुल्तान से हंगरी और ट्रासिलवानिया के प्रदेश प्राप्त किये थे। इसके बाद 1774 की कुचुक कैनार्जी की संधि द्वारा रूस ने आजोफ का बंदरगाह प्राप्त किया, साथ ही काले सागर में रूस के व्यापारिक जहाजों के आने जाने का अधिकार भी प्राप्त किया। 18वीं शताब्दी के अन्त तक रूस दक्षिण की ओर लगातार बढ़ता रहा और तुर्की के साम्राज्य को कमजोर बनाता रहा ।
पूर्वी समस्या होने के कारण
1815 की वियना कांग्रेस में तुर्की के सुल्तान को नहीं बुलाया गया था क्योंकि रूस का साथ अलेक्जेण्डर प्रथम नहीं चाहता था। तुर्की साम्राज्य में दूसरे यूरोपीय शक्तियों का अनावश्यक तथा अनाधिकार दखल बढ़े लेकिन रूस की गतिविधियों से यह आशंका उत्पन्न होने लगी थी कि वह तुर्की की कमजोरी से लाभ उठाकर उसे हड़प लेना चाहता है। इसलिये इंग्लैण्ड, फ्रांस और आस्ट्रिया अपने-अपने स्वार्थो से प्रेरित होकर तुर्की की ओर ज्यादा ध्यान देने लगे और यह समस्या अंतर्राष्ट्रीय बन गयी। यही समस्या इतिहास में ‘पूर्वी समस्या’ (eastern problem) के नाम से प्रसिद्ध है।
डॉ. मिलर की राय
यह समस्या तुर्की के साम्राज्य की पतनोन्मुख स्थिति के कारण उत्पन्न हुई। समस्या यह थी कि तुर्की साम्राज्य की समाप्ति, जो निश्चित लगभग थी, के बाद बाल्कन क्षेत्र में उसका स्थान कौन लेगा? डाॅ.मिलर ने इस समस्या को इस प्रकार बतलाया है- ‘‘यूरोप में तुर्की साम्राज्य के क्रमशः विघटन से उत्पन्न शून्यता को भरने की समस्या को ‘निकट पूर्व’ या ‘पूर्वी समस्या’ (eastern problem) कहते हैं।’’
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