बौद्ध धर्म के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध का जन्म नेपाल की तराई में अवस्थित कपिलवस्तु राज्य में स्थित लुम्बिनी वन में 563 ई० पू० में हुआ था। इनका बचपन का नाम सिद्धार्थ था। कपिलवस्तु शाक्य गणराज्य की राजधानी थी तथा गौतम बुद्ध के पिता शुद्धोधन यहाँ के राजा थे।
महात्मा बुद्ध के जन्म के सातवें दिन गौतम बुद्ध की माता महामाया का देहान्त हो गया। इनका पालन पोषण इनकी मौसी महाप्रजापति गौतमी ने किया। सांसारिक दु:खों के प्रति चिंतनशील सिद्धार्थ को वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं लगा। गौतम सिद्धार्थ के मन में वैराग्य भाव को प्रबल करने वाली चार घटनायें अत्यन्त प्रसिद्ध हैं।
ज्ञान की खोज में सिद्धार्थ गौतम
उनतीस वर्ष की आयु में सिद्धार्थ गौतम ने ज्ञान प्राप्ति के लिए गृहत्याग कर दिया। गृहत्याग के पश्चात उन्होंने 7 दिन अनूपिय नामक बाग में गुजारा। तत्पश्चात वे राजगृह पहुँचे। कालान्तर में वे आलार कालाम नामक तपस्वी के संसर्ग में आए। पुन: रामपुत्त नामक एक अन्य आचार्य के पास गए। परन्तु उन्हें संतुष्टि नहीं प्राप्त हुई।
फिर गौतम उरुवेला पहुँचे यहाँ उन्हें कौण्डिन्य आदि 5 ब्राह्मण मिले। इनके साथ कुछ समय तक रहे परन्तु इनका भी साथ इन्होंने छोड़ दिया। सात वर्ष तक जगह-जगह भटकने के पश्चात अन्त में गौतम सिद्धार्थ गया पहुँचे। यहाँ उन्होंने निरंजना नदी में स्नान करके एक पीपल के वृक्ष के नीचे समाधि लगाई। यहीं आठवें दिन वैशाख पूर्णिमा पर गौतम को ज्ञान प्राप्त हुआ। इस समय इनकी उम्र 35 वर्ष थी। उस समय से वे बुद्ध कहलाए।
धर्मचक्रप्रवर्तन
गौतम बुद्ध ने अपना पहला प्रवचन वाराणसी के समीप सारनाथ में दिया। इसे ही धम-चक्र-प्रवर्तन कहते हैं। यहीं सारनाथ में ही उन्होंने संघ की स्थापना की। बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश उरुवेला में मिले 5 ब्राह्मण जो इस समय सारनाथ में मिले को दिया। यश नामक एक धनाढ्य श्रेष्ठी भी बौद्ध धर्म का अनुयायी बना। सारनाथ से गौतम काशी पहुँचे, वहाँ से राजगृह तथा कपिलवस्तु इसी तरह गौतम बुद्ध लगातार चालीस साल तक घूमते रहे एवं उपदेश देते रहे।
अपने जीवन के अंमित समय में पावा में बुद्ध ने चुन्द नामक सुनार के घर भोजन किया तथा उदर रोग से पीड़ित हुए। यहाँ से वे कुशीनगर (कसया गाँव, देवरिया जिला, पूर्वी उत्तर प्रदेश) आए जहाँ 80 वर्ष की आयु में 483 ई० पू० में उनका महापरिनिर्वाण हुआ।
महात्मा बुद्ध के प्रमुख शिष्य
- आनन्द – यह महात्मा बुद्ध के चचेरे भाई थे।
- सारिपुत्र – यह वैदिक धर्म के अनुयायी ब्राह्मण थे तथा महात्मा बुद्ध के व्यक्तित्व एवं लोकोपकारी धर्म से प्रभावित होकर बौद्ध भिक्षु हो गये थे।
- मौद्गल्यायन – ये काशी के विद्वान थे तथा सारिपुत्र के साथ ही बौद्ध धर्म में दीक्षित हुए थे।
- उपालि
- सुनीति
- देवदत्त – यह बुद्ध के चचेरे भाई थे।
- अनुरुद्ध – यह एक अति धनाढ्य व्यापारी का पुत्र था।
- अनाथ पिण्डक – यह एक धनी व्यापारी था। इसने जेत कुमार से जेतवन खरीदकर बौद्ध संघ को समर्पित कर दिया था।
- बिम्बिसार और प्रसेनजित – ये क्रमशः मगध और कोशल के सम्राट थे। इन्होंने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में अत्यधिक सहयोग दिया।
बौद्ध धर्म के सिद्धान्त
महात्मा बुद्ध एक व्यावहारिक धर्म सुधारक थे। उन्होंने भोग विलास और शारीरिक पीड़ा इन दोनों को चरम सीमा की वस्तुएँ कहकर उनकी निंदा की ओर उन्होंने मध्यम मार्ग का अनुसरण करने पर जोर दिया। बौद्ध धर्म का विशद ज्ञान हमें त्रिपिटकों से होता है जो पालि भाषा में लिखे गये हैं।
चार आर्य सत्य
बौद्ध धर्म की आधारशिला उसके चार आर्य सत्य हैं।
- दुःख – बौद्ध धर्म दु:खवाद को लेकर चला। महात्मा बुद्ध का कहना था कि यह संसार दुःख से व्याप्त है।
- दुःख समुदाय – दु:खों के उत्पन्न होने के कारण हैं। इन कारणों को द:ख समुदाय के अन्तर्गत रखा गया है। सभी कारणों का मूल है तृष्णा। तृष्णा से आसक्ति तथा राग का जन्म होता है। रूप, शब्द, गंध, रस तथा मानसिक तर्क-वितर्क आसक्ति के कारण हैं।
- दुःख निरोध – दु:ख निरोध अर्थात् दु:ख निवारण के लिए तृष्णा का उच्छेद या उन्मूलन आवश्यक है। रूप वेदना, संज्ञा, संस्कार और विज्ञान का निरोध ही दु:ख का निरोध है।
- दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा – इसे अष्टांगिक मार्ग भी कहते हैं। यह दु:ख निवारण का उपाय है।
अष्टांगिक मार्ग
- सम्यक दृष्टि
- सम्यक् संकल्प
- सम्यक् कर्म
- सम्यक् आजीव
- सम्यक् वाणी
- सम्यक् स्मृति
- सम्यक् समाधि
दस शील
निर्वाण प्राप्ति के लिए सदाचार तथा नैतिक जीवन पर बुद्ध ने अत्यधिक बल दिया, ये दस शील हैं।
- अहिंसा
- सत्य
- अस्तेय (चोरी न करना)
- धन संचय न करना
- व्यभिचार न करना
- असमय भोजन न करना
- सुखप्रद बिस्तर पर न सोना
- धन संचय न करना
- स्त्रियों का संसर्ग न करना
- मद्य का सेवन न करना।
बौद्ध संगीतियाँ
प्रथम बौद्ध संगीति
स्थान – सप्तपर्ण बिहार पर्वत( राजगृह)
समय – 483 ई० पू०
शासनकाल – अजातशत्रु
अध्यक्ष – महाकस्सप
कार्य – बुद्ध की शिक्षाओं की सुत्तपिटक तथा विनय पिटक नामक पिटकों में अलग-अलग संकलन किया गया।
द्वितीय बौद्ध संगीति
स्थान – वैशाली
समय – 383 ई० पू०
शासनकाल – कालाशोक
अध्यक्ष – साबकमीर
कार्य – पूर्वी तथा पश्चिमी भिक्षुओं के आपसी मतभेद के कारण संघ, का स्थविर एवं महासंघिक में विभाजन
तृतीय बौद्ध संगीति
स्थान – पाटलिपुत्र
समय – 250 ई० पू०
शासनकाल – अशोक
अध्यक्ष – मोग्गलिपुत्त तिस्स ।
कार्य – अभिधम्मपिटक का संकलन एवं संघभेद को समाप्त करने के लिए कठोर नियम
चतुर्थ बौद्ध संगीति
स्थान – कुण्डलवन (कश्मीर)
समय – प्रथम शताब्दी ई०
शासनकाल – कनिष्क
अध्यक्ष – वसुमित्र
उपाध्यक्ष – अश्वघोष
कार्य – ‘विभाषाशास्त्र’ नामक टीका का संस्कृत में संकलन, बौद्ध संघ का हीनयान एवं महायान सम्प्रदायों में विभाजन
महात्मा बुद्ध से जुड़ी महत्वपूर्ण घटनाएं
जन्म | 563 ई० में कपिलवस्तु में (नेपाल की तराई में स्थित) |
मृत्यु | 483 ई० में कुशीनारा में (देवरिया उ० प्र०) |
ज्ञान प्राप्ति | बोध गया |
प्रथम उपदेश | सारनाथ स्थित मृगदाव में |
बौद्ध धर्म से जुड़ी महत्वपूर्ण चिह्न या प्रतीक
जन्म | कमल या सांड |
गर्भ में आना | हाथी |
समृद्धि | शेर |
गृहत्याग | अश्व |
ज्ञान | बोधिवृक्ष |
निर्वाण | पद चिह्न |
मृत्यु | स्तूप |
बौद्ध धर्म से जुड़ी शब्दावली
गृहत्याग | महाभिनिष्क्रमण |
ज्ञानप्राप्ति | सम्बोधि |
प्रथम उपदेश | धर्मचक्रप्रवर्तन |
मृत्यु | महापरिनिर्वाण |
संघ में प्रविष्ट होना | उपसम्पदा |
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