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प्रधानमंत्री के कार्य एवं शक्तियाँ

Times Darpan
Last updated: 2020-04-23 01:08
By Times Darpan 2.1k Views
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15 Min Read
भारत के प्रधानमंत्री

अन्य देशों में प्रधानमंत्री का शक्तियों और कार्य भिन्न होती है। प्रधानमन्त्री को भारत का सबसे महत्त्वपूर्ण राजनैतिक व्यक्तित्व माना जाता है। भारत का प्रधानमंत्री मंत्रि-मण्डल रूपी मेहराब की आधारशिला (Key-stone of the Cabinet Arch) हैं। भारत में राष्ट्रपति राष्ट्र का प्रमुख होता है जबकि प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है। भारत में राष्ट्रपति केवल नाम मात्र का शासक होता है जबकि प्रमुख कार्यकारी शक्तियां प्रधानमंत्री में निहित होती हैं।

Contents
प्रधानमंत्री की नियुक्तिप्रधानमंत्री की पात्रताप्रधानमंत्री के कार्य एवं शक्तियाँ

 

प्रधानमंत्री की नियुक्ति

 

  • भारत में प्रधानमंत्री का चयन लोकसभा का चुनाव के द्वारा होता है, इस चुनाव में लोकसभा के सदस्यों को 18 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों के मतदान के द्वारा चुना जाता है।
  • चुनाव में जिस दल को बहुमत प्राप्त होता है, उस दल के नेता को राष्ट्रपति द्वारा प्रधान मंत्री पद के लिए आमंत्रित किया जाता है।
  • इसके बाद राष्ट्रपति के द्वारा बहुमत प्राप्त दल के नेता को शपथ ग्रहण कराई जाती है, इसके कुछ समय बाद संसद में संबंधित व्यक्ति को लोकसभा में मतदान द्वारा विश्वासमत प्राप्त करना होता है।
  • इस प्रकार उस व्यक्ति को प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्ति किया जा सकता है।

 

प्रधानमंत्री की पात्रता

 

  • भारतीय संविधान, प्रधानमंत्री पद हेतु किसी प्रकार की विशेष अर्हताएँ निर्दिष्ट नहीं करता है। प्रधानमन्त्री के पास लोकसभा अथवा राज्यसभा की सदस्यता होनी चाहिए, और उनके पास लोकसभा में बहुमत का समर्थन होना चाहिये।
  • भारतीय संसद के दो सदनों में से किसी भी सदन का सदस्य नहीं होता है तो नियुक्ति के 6 महीनों के मध्य ही उन्हें संसद की सदस्यता प्राप्त करना अनिवार्य है अन्यथा उनका प्रधानमंत्रित्व खारिज हो जायेगा।
  • भारतीय संविधान के पंचम् भाग का 84वाँ अनुच्छेद, एक सांसद की अर्हताओं को निर्दिष्ट करता है, जिसके अनुसार कोई व्यक्ति संसद‌ के किसी स्थान को भरने के लिए चुने जाने के लिए अर्हित तभी होगा
    • वह भारत का नागरिक है और निर्वाचन आयोग द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी व्यक्ति के समक्ष तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्रारूप के अनुसार शपथ लेता है या प्रतिज्ञान करता है और उस पर अपने हस्ताक्षर करता है
    • वह राज्य सभा में स्थान के लिए कम से कम तीस वर्ष की आयु का और लोकसभा में स्थान के लिए कम से कम पच्चीस वर्ष की आयु का है
    • उसके पास ऐसी अन्य अर्हताएँ हैं जो संसद‌ द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन इस निमित्त विहित की जाएँ।

 

प्रधानमंत्री के कार्य एवं शक्तियाँ

 

संविधान अपने भाग 5 के विभिन्न अनुच्छेदों में प्रधानमन्त्री पद के संवैधानिक अधिकारों और कर्तव्यों को निर्धारित करता है।

 

मंत्रि-परिषद् का निर्माण

 

  • भारतीय सविंधान के अनुच्छेद 75 के तहत मंत्रियों की नियुक्ति, राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमन्त्री की सलाह के अनुसार की जायेगी, एवं मंत्री को विभिन्न कार्यभार भी राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री की सलाह के अनुसार ही देंगे।
  • संवैधानिक दृष्टि से भी राष्ट्रपति अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति प्रधानमंत्री की सिफारिश पर करता है।
  • वह मन्त्रियों के नामों की सूची तैयार करता है तथा नियुक्ति करने के लिए राष्ट्रपति के पास भेजता है।
  • मंत्रि-परिषद् के निर्माण में प्रधानमंत्री को पर्याप्त स्वतंत्रता प्राप्त होती है।
  • राष्ट्रपति अपनी रुचि व अरुचि के अनुसार प्रधानमंत्री को किसी व्यक्ति को मंत्रि-परिषद् में शामिल करने या न करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता।
  • प्रधानमंत्री का निर्णय अन्तिम निर्णय होता है। उसे अपने दल के सभी प्रमुख व प्रभावशाली सदस्यों को मंत्रि-परिषद् में शामिल करना पड़ता है।
  • उसे यह भी देखना होता है कि मंत्रि-परिषद् में सभी राज्यों, धर्मों, सम्प्रदायों आदि को उचित प्रतिनिधित्व प्राप्त हो।

 

विभागों का बंटवारा

 

  • यह निश्चित करता है कि किस मंत्री को कौन सा विभाग दिया जायेगा और वह उनको आवंटित विभाग में फेरबदल भी कर सकता है l
  • मंत्रियों की नियुक्ति के पश्चात् प्रधानमंत्री उनमें प्रशासकीय विभागों को बाँटता है।
  • विभागों का बँटवारा करते समय राजनैतिक महत्व को ध्यान में रखते हुए विभिन्न राज्यों, प्रदेशों व सम्प्रदायों की ओर विशेष ध्यान देता है।
  • वह एक लोकप्रिय व शक्तिशाली प्रधानमंत्री अपनी इच्छानुसार मंत्रि-परिषद् की बनावट निश्चित करता है।

 

मंत्रियों को हटाने की शक्ति

 

  • सैद्वान्तिक रूप में मंत्री राष्ट्रपति के प्रसाद-पर्यन्त पद पर बने रहते हैं परन्तु राष्ट्रपति को पद से अलग करने का निर्णय प्रधानमंत्री के कहने पर ही होता है।
  • मंत्री द्वारा सुचारु रूप से काम नहीं करने पर मंत्री पद में फेरबदल भी कर सकता है।
  • अगर मंत्री मंडल में किसी प्रतिनिधित्व का फेरबदल करना हो तो प्रधानमंत्री राष्ट्रपति को कहकर उसे पदच्युत करवा सकता है।

 

लोक सभा का नेतृत्व करता है

 

  • इंग्लैण्ड की भाँति भारत का प्रधनमंत्री लोक सभा का नेतृत्व करता है। वह सदन में सरकार की नीति से संबंधित महत्त्वपूर्ण घोषणाएँ करता है और प्रश्नों का उत्तर देता है। 
  • वह लोक सभा में वाद-विवाद को आरंभ करता है तथा मंत्रियों का सदन में आलोचना से सुरक्षा करता है।
  • वह अपने दल के सदस्यों को सचेतक द्वारा आदेश तथा निर्देश भेजता है तथा उन पर निगरानी और नियन्त्रण रखता है। 
  • वह स्पीकर के साथ मिलकर सदन का कार्य करता है तथा सदन में अनुशासन बनाए रखने के लिए स्पीकर की सहायता करता है।
  • वह मंत्री परिषद् की बैठक की अध्यक्षता भी करता है और अपनी मर्जी के हिसाब से निर्णय बदल  भी सकता है।

 

केबिनेट का नेतृत्व

 

  • मंत्रिमण्डलीय सभाएँ, कैबिनेट की गतिविधियाँ और सरकार की नीतियों पर भी प्रधानमन्त्री का पूरा नियंत्रण होता है।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 74 में स्पष्ट रूप से मंत्रिपरिषद की अध्यक्षता तथा संचालन हेतु प्रधानमन्त्री की उपस्थिति को आवश्यक माना गया है।
  • वे मंत्रिमण्डलीय सभाओं की अध्यक्षता करते हैं, तथा इन बैठकों की कार्यसूची, तथा चर्चा के अन्य विषय वो ही तय करते हैं। 
  • कैबिनेट बैठकों में उठने वाले सारे मामले व विषयसूची, प्रधानमन्त्री की ही स्वीकृति व सहमति से निर्धारित किये जाते हैं।
  • कैबिनेट की बैठकों में उठने वाले विभिन्न प्रस्तावों को मंज़ूर या नामंज़ूर करना, प्रधानमन्त्री की इच्छा पर होता है।

 

राष्ट्रपति तथा मंत्रीमण्डल के बीच संपर्क सूत्र

 

  • संविधान के विशेषाधिकार के अनुसार मंत्रिपरिषद् और राष्ट्रपति के बीच का संपर्क सूत्र है।
  • यह विशेषाधिकार केवल प्रधानमन्त्री को दिया गया है, जिसके माध्यम से प्रधानमन्त्री समय-समय पर, राष्ट्रपति को मंत्रीसभा में लिए जाने वाले निर्णय और चर्चाओं से संबंधित जानकारी से राष्ट्रपति को अधिसूचित कराते रहते हैं।
  • प्रधानमन्त्री के अलावा कोई भी अन्य मंत्री, स्वेच्छा से मंत्रीसभा में चर्चित किसी भी विषय को राष्ट्रपति के समक्ष उद्घाटित नहीं कर सकता है।
  • राष्ट्रपति प्रत्येक मामले पर प्रधानमंत्री की सलाह लेता है और उसके द्वारा दी गई सलाह के अनुसार ही कार्य करता है, वह उसकी सलाह को मानने के लिए बाध्य है।
  • राष्ट्रपति को प्रशासन के बारे में किसी भी प्रकार की सूचना प्राप्त करनी हो, वह प्रधानमंत्री के द्वारा ही सूचना प्राप्त करता है।

 

“यह विशेषाधिकार की महत्व व अर्थ यह है की मंत्रिमण्डलीय सभाओं में चर्चित विषयों में से किन जानकारियों को गोपनीय रखना है, एवं किन जानकारियों को दुनिया के सामने प्रस्तुत करना है, यह तय करने का अधिकार भी प्रधानमन्त्री के पास है।”

 

प्रशासनिक शक्तियाँ

 

  • प्रधानमन्त्री, राज्य के विभिन्न अंगों के मुख्य प्रबंधक के रूप में कार्य करते है, जिसका कार्य, राज्य के सारे विभागों व अंगों से, अपनी इच्छानुसार कार्य करवाना है।
  • सरकार के विभिन्न विभागों और मंत्रालयों के बीच समन्वय बनाना, और कैबिनेट द्वारा लिए गए निर्णयों को कार्यान्वित करवाना तथा विभिन्न विभागों को निर्देशित करना भी उनका काम है। 
  • शासन व सरकार के प्रमुख होने के नाते, कार्यकारिणी की तमाम नियुक्तियाँ वास्तविक तौरपर प्रधानमन्त्री द्वारा की जाती है।
  • सारे उच्चस्तरीय अधिकारी व पदाधिकारी उच्च-सलाहकारों तथा सरकारी मंत्रालयों और कार्यालयों के उच्चाधिकारी समेत, विभिन्न राज्यों के राज्यपाल, महान्यायवादी, महालेखापरीक्षक, लोक सेवा आयोग के अधिपति, व अन्य सदस्य, विभिन्न देशों के राजदूत, वाणिज्यदूत इत्यादि की नियुक्ति प्रधानमंत्री की सलाह पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है।

 

सरकार की योग्यता के लिए उत्तरदायी

 

  • डॉ. अम्बेडकर ने संविधान सभा में कहा था, प्रधानमंत्री केबिनेट रूपी मेहराब का बीच वाला स्तम्भ है, जब तक हम उसे वैधानिक आधार पर मन्त्रिमण्डल के सदस्यों को नियुक्ति करने तथा पद्च्युत करने का अधिकार नहीं देते, सामूहिक उत्तरदायित्व का सिद्वान्त लागू नहीं किया जा सकता।
  • सरकार और मंत्रिपरिषद के प्रमुख होने के नाते, प्रधानमन्त्री सदन में सरकार द्वारा लिए गए महत्वपूर्ण विधेयक और घोषणाएँ प्रधानमन्त्री करेंगे तथा उन महत्वपूर्ण निर्णयों के विषय में सत्तापक्ष की तरफ़ से प्रधानमंत्री उत्तर देंगे।
  • राष्ट्रपति की कार्यपालिका, न्यायपालिका, आपातकालीन आदि समस्त शक्तियों का प्रयोग प्रधानमंत्री करता है तथा राष्ट्रपति केवल परामर्श अथवा उत्साह दे सकता है और अवसर पड़ने पर चेतावनी भी दे सकता है।
  • भारत के प्रधानमन्त्रीपद के राजनैतिक महत्त्व एवं उसके पदाधिकारी की जननायक और राष्ट्रीय नेतृत्वकर्ता की छवि के लिहाज़ से, प्रधानमन्त्री पद के पदाधिकारी से यह आशा की जाती है, कि वे भारत के जनमानस को भली-भाँति जाने, समझें एवं राष्ट्र को उचित दिशा प्रदान करें। 

 

वैश्विक संबंधों में किरदार

 

  • सरकार और मंत्रिपरिषद् पर अपनी अपार नियंत्रण के कारण, भारतीय राज्य की वैश्विक नीति निर्धारित करने में प्रधानमन्त्री की सबसे अहम भूमिका होती है।
  • वैश्विक संबंधों और उनसे जुड़े मामलों भारत का विदेश मंत्रालय संभालता है परंतु क्योंकि विदेश नीतियाँ, इत्यादि, प्रधानमन्त्री निधारित करते हैं, अतः, विदेश मंत्री अंत्यतः प्रधानमन्त्री द्वारा लिए गए निर्णयों और नीतियों को कार्यान्वित करने का काम करता है।
  • विभिन्न देशों से सामरिक, आर्थिक, कूटनीतिक, वाणिज्यिक और संसाधनिक, इत्यादि संधियाँ और समझौते, तथा उनसे जुड़ी कूटनीतिक बहस और वार्ताओं में प्रधानमन्त्री का किरदार सबसे महत्वपूर्ण होता है, और ऐसी वार्ताओं में वे देश का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • प्रधानमन्त्री, जनप्रतिनिधि व शासनप्रमुख होने के नाते, विदेशों में भारत का प्रतिनिधित्व भी करते हैं। वे संयुक्त राष्ट्र संघ, जी-20, ब्रिक्स, सार्क, गुट निरपेक्ष आंदोलन, राष्ट्रमण्डल, इत्यादि जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं, और भारत का पक्ष रखते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय मंच पर देश की छवि बनाने, और कूटनीतिक वार्ताओं द्वारा देश के हित की आपूर्ति करने में प्रधानमन्त्री का स्थान बेहद महत्वपूर्ण है।

 

लोक सभा को भंग करवाने का अधिकार

 

  • प्रधानमन्त्री का एक पूरा कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, जिसके बाद उसकी पुनःसमीक्षा होती है।
  • यदि किसी कारणवश, लोकसभा सरकार के विरोध में अविश्वास मत पारित करे अथवा यदि किसी कारणवश, प्रधानमन्त्री की संसद की सदस्यता शुन्य घोषित हो जाए तो प्रधानमन्त्री, किसी भी समय, अपने पद का त्याग, राष्ट्रपति को एक लिखित त्यागपत्र सौंप के कर सकते हैं।
  • राष्ट्रपति लोक सभा को प्रधानमंत्री की सलाह से ही भंग करता है। परन्तु यदि राष्ट्रपति यह समझे कि लोक सभा को भंग करना राष्ट्र के हित में नहीं है तो वह प्रधानमंत्री की सलाह को मानने से इनकार कर सकता है।
  • प्रधानमंत्री के मृत्यु या पदत्याग की दशा मे समस्त परिषद को पद छोड़ना पडता है। और लोकसभा भंग हो जाता है।

 

दिसम्बर 1970 में राष्ट्रपति वी.वी. गिरी ने प्रधानमंत्री की सलाह पर लोक सभा भंग की। 18 जून, 1977 को राष्ट्रपति श्री फखरूद्दीन अली अहमद ने प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी की सलाह पर लोक सभा भंग की। 22 अगस्त, 1979 को राष्ट्रपति संजीवा रेड्डी ने प्रधानमंत्री चौधरी चरण ¯सह की सलाह पर लोक सभा को भंग किया, जिस पर जनता पार्टी के द्वारा राष्ट्रपति के इस कार्य की कड़ी आलोचना की गई। 

 

प्रधानमंत्री की आपातकालीन शक्तियाँ

 

  • भारतीय संविधान के अन्तर्गत धारा 352, 356, 360 के द्वारा भारत के राष्ट्रपति इन शक्तियों का प्रयोग प्रधानमंत्री की सलाह के अनुसार ही करता है। 
  • अनुच्छेद 356 के अन्तर्गत राज्यों में राष्ट्रपति शासन भी प्रधानमंत्री की सलाह के अनुसार लगाया जाता है।
  • 44 वें संशोधन के अनुसार राष्ट्रपति अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत आपातकाल की घोषणा तभी कर सकता है, यदि मन्त्रिमण्डल आपातकाल की घोषणा करने की लिखित सलाह दे। 

 

इसके साथ ही प्रधानमंत्री के पास और भी शक्तियों होते है क्युकिं प्रधानमन्त्री केंद्र सरकार के मंत्रिपरिषद् का प्रमुख और राष्ट्रपति का मुख्य सलाहकार होता है। वह भारत सरकार के कार्यपालिका का प्रमुख होता है और सरकार के कार्यों के प्रति संसद को जवाबदेह होता है। सैद्धांतिक रूप में संविधान भारत के राष्ट्रपति को देश का राष्ट्रप्रमुख घोषित करता है और सैद्धांतिक रूप में, शासनतंत्र की सारी शक्तियों को राष्ट्रपति पर निहित करता है। संविधान अपने भाग 5 के विभिन्न अनुच्छेदों के तहत राष्ट्रपति के सारे कार्यकारी अधिकारों को प्रयोग करने की शक्ति, लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित, प्रधानमन्त्री को दी गयी है।

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