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आंग्ल-मराठा युद्ध के कारण और परिणाम

Gulshan Kumar
Last updated: 2020-09-09 23:03
By Gulshan Kumar 11.1k Views
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6 Min Read
Anglo-Maratha war

भारत के इतिहास में तीन आंग्ल-मराठा युद्ध (Anglo-Maratha war) हुए। ये तीनों युद्ध 1775 ई. से 1819 ई. तक चले। ये युद्ध ब्रिटिश सेनाओं और ‘मराठा महासंघ’ के बीच हुए। इन युद्धों में मराठा महासंघ का पूरी तरह विनाश हो गया। मराठों में पहले से आपस में काफ़ी भेदभाव थे, जिस कारण वह अंग्रेज़ों के विरुद्ध एकजुट नहीं हो सके। जहाँ रघुनाथराव ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी से मित्रता करके पेशवा बनने का सपना देखा और अंग्रेज़ों के साथ सूरत की संधि की, वहीं बाजीराव द्वितीय ने बसीन भागकर अंग्रेज़ों के साथ बसीन की संधि की और मराठों की स्वतंत्रता को बेच दिया।

Contents
युद्ध अंग्रेज़ों और मराठों के मध्य तीन आंग्ल-मराठा युद्ध (Anglo-Maratha war) हुए-प्रथम युद्ध (1775-1782 ई.)द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध (Anglo-Maratha war)तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध(Anglo-Maratha war)

युद्ध अंग्रेज़ों और मराठों के मध्य तीन आंग्ल-मराठा युद्ध (Anglo-Maratha war) हुए-

  • प्रथम युद्ध (1775-1782 ई.)
  • द्वितीय युद्ध (1803-1805 ई.)
  • तृतीय युद्ध (1817-1819 ई.)

प्रथम युद्ध (1775-1782 ई.)


पहला युद्ध(1775-1782 ई.) रघुनाथराव द्वारा महासंघ के पेशवा (मुख्यमंत्री) के दावे को लेकर ब्रिटिश समर्थन से प्रारम्भ हुआ।

सूरत की संधि:- प्रथम युद्ध का प्रारम्भ सूरत की संधि के साथ हुआ यह युद्ध 1775 से 1782 तक चला। सूरत की संधि को कलकत्ता काउंसलिंग ने मानने से इनकार कर दिया 1776 में अपना एक प्रतिनिधि पूना की सरकार के पास भेजा

पुरंदर की संधि:- कलकत्ता काउंसलिंग ने पेशवा के साथ 1776 में पुरंदर की संधि की इसके अनुसार सालसेर द्वीप अंग्रेजों को मिला भडौच के जिले की आय भी कम्पनी को मिलना शुरु हो गयी। 10 लाख रु. क्षतिपूर्ति के रूप में अंग्रेजों को मराठों द्वारा दिया जाना तय हुआ तथा नवजात शिशु माधव राय द्वितीय को पेशवा मान लिया गया। यह भी तय हुआ कि अंग्रेज़ रघुनाथ राव को शरण नहीं देंगे तथा उसे अच्छी पेंशन देकर गुजरात भेज दिया जायेगा। पुरंदर की संधि से बम्बई काउंसिल असंतुष्ट थी उसने गृह सरकार की आज्ञा प्राप्त करके पुरंदर की संधि का उल्लंघन करते हुए रघुनाथ राव को सूरत में शरण दे दी।

मराठों पर आक्रमण:- रघुनाथ राव को पेशवा बनाने के उद्देश्य से 1778ई. में ब्रिट्रिश सेना ने मराठों पर आक्रमण कर दिया।

बडगाँव की संधि:- बाल गाँव नामक स्थान पर मराठों ने अंग्रेजों को बुरी तरह परास्त कर दिया और अंग्रेजों को एक अपमान जनक बडगाँव की संधि करनी पडी। बडगाँव की संधि के तहत अंग्रेजों को तमाम प्रदेश मराठों को लौटने पडे जो उन्होंने 1773 से अब तक जीते थे। बंगाल के गवर्नर वारेंग हेंगस्टिंन ने बडगाँव की संधि की अवहेलना करके 2 सेनाओं मराठों पर आक्रमण करने के लिए भेजी।

सालबाई की संधि:- उसमें से एक ने ग्वालियर पर अधिकार प्राप्त कर लिया ग्वालियर के मराठा शासक महाद जी सिंधिया को 1782 को सालबाई की संधि करनी पडी। इसके बाद सालसेठ पर अंग्रेजों का अधिकार स्वीकार कर लिया गया यमुना नदी के पश्चिम के प्रदेश पर सिंधिया का अधिकार बना रहा। नारायण राव के पुत्र माधव राव को अंग्रेजों ने पेशवा मान लिया पूना सरकार की ओर से रघुनाथ राव को पेंशन दे दी गयी।

युद्ध का अंतिम निर्णय:- इस प्रकार 7 वर्ष तक चले इस युद्ध में कोई अंतिम निर्णय नहीं हुआ और अगले 20 वर्ष तक शांति छायी रही।

द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध (Anglo-Maratha war)


द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध (Anglo-Maratha war) 1803 ई. से 1806 ई. तक चला। आंग्ल मराठा युद्ध का दूसरा दौर फ्रांसीसी भय से संलग्न था

लॉर्ड वेलेजली का निर्णय:- लॉर्ड वेलेजली ने इससे बचने के लिए सभी भारतीय प्रांतों को अपने अधीन करने का निश्चय किया।

द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध (Anglo-Maratha war) का कारण:- लॉर्ड वेलेजली के मराठों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप की नीति और सहायक संधि थोपने के चलते द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध प्रारंभ हुआ।

बेसिन की संधि:- 1802 ई. में पेशवा ने अंग्रेजों के साथ बेसिन की संधि की जिसके अंतर्गत पेशवा ने अंग्रेजों का संरक्षण स्वीकार कर लिया वह पूर्ण रुपेण अंग्रेजों पर निर्भर हो गया था।

राज घाट की संधि:- इससे क्रोधित होकर मराठा सरदारों ने अंग्रेजों को चुनौती दी इसके अंतर्गत अनेक युद्ध हुए और अंत में 1806 में होलकर व अंग्रेजों के मध्य राज घाट की संधि हुई और युद्ध समाप्त हो गया।

तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध(Anglo-Maratha war)


तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध (Anglo-Maratha war) 1817 ई. से 1818 ई. तक चला। इसमें मराठों सरदारों द्वारा अपनी खोई हुई स्वतंत्रता को पुन: प्राप्त करने का प्रयास किया गया।

तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध (Anglo-Maratha war) के कारण:- अंग्रेज रेजीडेंट द्वारा मराठा सरदारों पर कठोर नियंत्रण प्रयासों के चलते ये युद्ध हुआ। लॉर्ड हेंगस्टिंग के पिण्डारियों के अभियान से मराठों के प्रभुत्व को चुनौती मिली तथा दोनों पक्षों के मध्य युद्ध आरम्भ हो गया

बाजीराव द्वितीय का आत्मसमर्पण:- 1818 ई. को बाजीराव द्वितीय ने सर जॉन मेलकन के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।

पेशवा पद की समाप्ति:- इसके बाद पेशवा का पद समाप्त कर दिया गया और पेशवा विठूर भेज दिया गया। पूना पर अंग्रेजों का अधिकार स्थापित हो गया।

सतारा राज्य की स्थापना:- मराठों के आत्मसम्मान की तुष्टि के लिए सतारा नामक एक छोटे राज्य का अंग्रेजों द्वारा निर्माण किया गया तथा इसे शिवाजी के वंशज को सौंप दिया गया।

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