भारतीय योजना आयोग ने बाल कल्याण का अर्थ ‘‘बालक के सम्पूर्ण कल्याण से लगाया है।’’ इसके अन्तर्गत वे सम्पूर्ण आर्थिक, प्रशासनिक, प्राविधिक शैक्षिक और सामाजिक प्रयत्न आते है जिनका उद्देश्य प्रत्येक बालक का विकास एवं वृद्धि के समान अवसर प्रदान करता है।
बाल कल्याण के उद्देश्य (Objectives of Child Welfare in hindi)
- बालकों की मौलिक आवश्यकताओं की पूतिर् करना और उनके विकास के अधिकाधिक अवसर उपलब्ध कराना।
- शारीरिक, मानसिक, सांवेगिक, शैक्षिक एवं व्यावहारिक विकास के लिए सेवाओं का आयोजन करना।
- कमजोर एवं पिछड़े बालकों को सुरक्षा प्रदान करना जिससे उनका विकास अवरूद्ध न हो और वे स्वस्थ व्यक्तित्व विकसित कर सके।
- ऐसे बच्चों के लिए जो अपनी व्यक्तिगत परिस्थितियों के साथ सामंजस्य में कठिनाई अनुभव कर रहे है विशेष प्रकार की सेवायें आयोजित करना।
- शारीरिक संवेगात्मक, मानसिक तथा सामाजिक रूप से अधिक बच्चों की चिकित्सा व्यवस्था एवं पुनर्वास का प्रबन्ध करना।
- रोगों से बचाव करना तथा स्वास्थ्य सेवायें उपलब्ध कराना
- आत्मनिर्भरता विकसित करना।
बाल कल्याण का क्षेत्र (Sector of child welfare)
बाल कल्याण के 5 वृहद क्षेत्र है जिनमें विभिन्न प्रकार की सेवायें उपलब्ध करवाई जाती है –
- उपचारात्मक सेवायें
- सुधारात्मक सेवायें
- पुनर्वास सम्बन्धी सेवायें
- निरोधात्म्क सेवायें
- विकासात्मक सेवायें
चिकित्सात्मक क्षेत्र में चिकित्सा सम्बन्धी सेवायें जैसे अस्पताल, डिस्पेन्सरी, क्लीनिक बाल मार्गदर्शन केन्द्र, मनोसामाजिक एवं मानसिक रोग से सम्बन्धित सेवोयं, अपंग एवं नियोग्य व्यक्तियों के लिए चिकित्सा सेवायें, उपलब्ध करायी जाती है। अपराधी एवं उपेक्षित बालकों के लिए सुधारात्मक सेवायें जैसे शिशु गृह, बाल गृह, विशेष गृह, सम्प्रेषण गृह आदि संस्थागत सुविधायें प्रदान की जाती है।
बाल कल्याण सेवाओं का विकास (Development of child welfare services)
परम्परागत रूप से बच्चों के भरण पोषण देख रेख एवं संरक्षण का उतरदायित्व परिवार का रहा है। उनकी आवश्यकताओं की संतुष्टि में परिवार की एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है क्योंकि वह प्रेम और सदभावना का स्रोत है। परिवार की संरचना और पृष्ठभूमि में उसका पालन पोषण, सांस्कृतिक संरक्षण और विकास की आधारशिला रखी जाती है।
परन्तु आधुनिक समय में सामाजिक परिवर्तन, औद्योगीकरण और नगरीकरण ने जटिल सामाजिक समस्याओं को जन्म दिया है और परिवार की संरचना और भूमिका को परिवतिर्त कर दिया है। आज ऐसे व्यवस्थित प्रयासों की अत्यन्त आवश्यकता है जो बालकों के सर्वांगीण विकास में योगदान कर सकें।
बालकों के संरक्षण के संवैधानिक प्रावधान (Constitutional Provisions for Protection of Children)
भारतीय संविधान में बच्चों के अधिकार और कल्याण को विशेष मान्यता एवं महत्व प्रदान किया गया है। बालकों के संदर्भ में भारतीय संविधान में दी गयी धारायें है –
- संविधान के अनुच्छेद 15(3) में कहा गया है कि राज्य को महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान बनाने का अधिकार है।
- अनुच्छेद 17 के अन्तर्गत अस्पृश्यता को समाप्त कर दिया गया है तथा किसी भी प्रकार से इसका अभ्यास वजिर्त है।
- अनुच्छेद 24 के अनुसार 14 वर्ष की आयु से कम की आयु के बच्चों को किसी कारखाने अथवा खान अथवा जोखिम वाले कार्य में लगाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है।
- संविधान के चौथे भाग के नीति निर्देशक तत्वों के अन्तर्गत अनुच्छेद 39 में कहा गया है कि राज्य अपने उद्योग में काम करने वाले श्रमिकों और महिलाओं के स्वास्थ्य की ओर विशेष ध्यान देगा।
- अनुच्छेद 39(एफ) जिसे 42वें संशोधन अधिनियम 1976 के फलस्वरूप जोड़ा गया है में भी बच्चों को स्वस्थ एवं मुक्त वातावरण में अपने विकास के अवसर प्रदान करने की बात कही गयी है।
- अनुच्छेद 45 के अनुसार इस संविधान के लागू होने के 10 वर्ष के अन्दर राज्य 14 वर्ष तक की आयु तक के बच्चों को निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा देने का प्रबन्ध करेगा।
- अनुच्छेद 42, 46, 47 में राज्य को निर्देश दिया गया है कि वह मातृत्व सहायता और कमजोर वर्गों के लोगों को शैक्षिक एवं आर्थिक उन्नति के अवसर प्रदान करें।
बालकों के लिए राष्ट्रीय नीति (National Policy for Children)
किसी भी राष्ट्र की आर्थिक व भौतिक सम्पदा चिरस्थायी नहीं रह सकती, यदि उसकी नई पीढ़ी गुणवत्तायुक्त न हो। मानव संसाधन के लिए बनने वाली राष्ट्रीय नीतियों में बालकों के कार्यक्रमों को प्रमुखता से शामिल किया जाना चाहिए। अत: देश के भविष्य को बेहतर बनाने व सुरक्षित करने के लिए आवश्यक हो जाता है कि बालकों के शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक विकास पर सार्वजनिक ध्यान दिया जाए।
प्रथम प्रधानमन्त्री पं. जवाहरलाल नेहरू के जन्म-दिवस 14 नवम्बर, को ‘बाल-दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। 14 तारीख इसी बात को इंगित करती है कि 14 वर्ष से कम आयु के बालक श्रमिकों की श्रेणी में नहीं रखे जा सकते हैं। इस हेतु कई कल्याणकारी योजनाएँ व कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं।
बालकों के कल्याण के लिए भारत सरकार काफी लम्बे समय से एक राष्ट्रीय नीति के निर्माण हेतु प्रयासरत रही है। जिसके अन्तर्गत निम्न बिन्दुओं को शामिल किया जाये:-
- बालकों का सम्पूर्ण विकास अर्थात् शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक।
- संतुलित विकास के साथ अधिकतम अनुकूल स्थितियों की उपलब्धता तथा उनके उपभोग करने की समुचित व्यवस्था।
- समस्त बालकों को एक व्यापक कार्यक्रम के अन्तर्गत पोषाहार, शिक्षा, सामान्य स्वास्थ्य में सुधार, समुचित देखभाल आदि व्यवस्था की जायेगी।
- गरीब व असहाय बालकों को अनौपचारिक शिक्षा, अनिवार्य शिक्षा व नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जाये।
- विशेष सहायता कार्यक्रम के अन्तर्गत सबकों समान अवसर उपलब्ध कराना, अनुसूचित जनजातियों के लिए विशेष सहायता, सामाजिक रूप से अक्षम तथा बाल-अपराधि प्रवृत्ति वाले बालकों को उपयोगी नागरिक बनाने के लिए मदद।
- 14 वर्ष से कम आयु के किसी भी बालक को किसी खतरनाक व्यवसाय में लगाने पर रोक, स्कूलों में सामुदायिक केन्द्रों में और ऐसे ही अन्य संस्थानों में शारीरिक शिक्षाएँ, खेलकूद और दूसरी मनोरंजक एवं सांस्कृतिक और वैज्ञानिक गतिविधियों को प्रोत्साहन दिया जायेगा।
- मानसिक दृष्टि से मंदबुद्धि, शारीरिक दृष्टि से अपंग तथा भावात्मक दृष्टि से विक्षुब्द बालकों को विशेष उपचार, शिक्षा, उचित देखभाल तथा पुनर्वास की व्यवस्था की जायेगी।
वर्तमान सरकार का मानना है कि बालश्रम को समाप्त करना कठिन कार्य है इसलिए सरकार ने उनकी स्थिति में ही सुधार का प्रयास राष्ट्रीय नीति के माध्यम से किया है। सरकार द्वारा घोषित राष्ट्रीय नीति बाल श्रमिकों की निम्न समस्याओं के हल पर बल देती है :-
- काम के घंटों को कम करना।
- न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करना।
- स्वास्थ्य और शिक्षा को सुनिश्चित करना।
यह कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय नीति के तीन प्रमुख अपादान है। कानूनी कार्यवाही जो सार्वजनिक कल्याण पर केन्दि्रत है।
निष्कर्ष
बाल श्रमिक विश्व के सभी देशों में मौजूद हैं। जिसमें अत्यन्त गरीब देश से लेकर सबसे सम्पन्न देश अमरीका तक शामिल हैं। अमरीका की सरकार ने यह घोषणा की थी कि भारत तथा अन्य एशियाई देशों से वह उन उद्योगों में निर्मित समान आयात नहीं करेगी, जिसमें बाल श्रमिक कार्यरत हैं। बालकों के कल्याण के लिए भारत सरकार काफी लम्बे समय से एक राष्ट्रीय नीति के निर्माण हेतु प्रयासरत रही है।
लेकिन आज भी असंगठित क्षेत्रों में ही (जैसे घरेलू नौकर, फेरी लगाने वाले, चिथड़े उठाने वाले, कागज बेचने वाले, कृषि श्रमिक और ताले बनाने वाले उद्योग जैसे औद्योगिक कारोबार भी) बच्चों का अधिक शोषण होता है। सरकार को इसके लिए उचित कदम उठाने की आवयश्कता है।