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आर्यभट्ट द्वारा विज्ञान के क्षेत्र में विकास में योगदान

Times Darpan
Last updated: 2022-03-02 01:06
By Times Darpan 2.2k Views
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5 Min Read
आर्यभट्ट का जीवन परिचय

आर्यभट्ट (aryabhatta) प्राचीन भारत के विख्यात एवं महान गणितज्ञ, नक्षत्रविद्‌, ज्योतिषविद्‌ एवं भौतिकशास्त्री थे। इनके जन्म के वास्तविक स्थान को लेकर विवाद है। कुछ विद्वान मानते हैं कि इनका जन्म नर्मदा और गोदावरी के मध्य स्थित क्षेत्र में हुआ था, जिसे अश्माका के रूप में जाना जाता था। वर्तमान समय में यह क्षेत्र मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में शामिल है। हालाँकि, कुछ बौद्ध ग्रंथों में इस प्रदेश की अवस्थिति दक्षिण बताई गई है। एक नवीन अध्ययन के अनुसार आर्यभट्ट का जन्म केरल के चाम्रवत्तम में हुआ था, जबकि आर्यभट्ट रचित ग्रंथ ‘आर्यभट्टीय’ में उनका जन्म काल शक संवत्‌ 398 तथा जन्म स्थान कुसुमपुरा लिखा है। भास्कर द्वारा कुसुमपुरा की पहचान पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) के रूप में की गई है।

Contents
Facts about Aryabhata in Hindi (आर्यभट्ट का जीवन परिचय )आर्यभट्ट द्वारा विज्ञान के विकास में योगदान (Aryabhatta’s contribution to the development of science in hindi)

Facts about Aryabhata in Hindi (आर्यभट्ट का जीवन परिचय )

  • आर्यभट्ट (aryabhatta) बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे; जिसका प्रमाण मात्र 23 वर्ष की आयु में उनके द्वारा रचित आर्यभट्टीय नामक ग्रंथ से हमें पता चलता है।
  • आर्यभट्ट द्वारा रचित ग्रंथ दशगीतिका तथा आर्यभट्टीय हमें आज भी सुलभ हैं।
  • इनके द्वारा घनमूल, वर्गमूल, समांतर श्रेणी तथा विभिन्‍न प्रकार के गणितीय उपयोग के समीकरणों की रचना कौ गईं।
  • आर्यभट्ट द्वारा लिखित आर्यभट्टीय नामक ग्रंथ में गणित के श्लोक तथा नक्षत्र विज्ञान से संबंधित सिद्धांतों को दिया गया है।
  • इनके द्वारा रचित आर्यभट्टीय नामक ग्रंथ में खगोल विज्ञान से संबंधित यंत्रों का विवरण भी दिया गया है।
  • आर्यभट्ट द्वारा रचित ग्रंथों में देश-विदेश की पूर्ववर्ती अवधारणाओं को भी स्थान दिया गया है।
  • गणित विषय के संबंध में दिये गए सिद्धांत आज भी अस्तित्व में हैं।
  • आर्यभट्ट के समय भारत में गुप्तकाल चल रहा था। इस काल में कला, साहित्य और विज्ञान के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति होने के कारण इसे भारत का स्वर्ण युग कहा जाता है।
  • आर्यभट्ट का सर्वाधिक प्रभाव विश्व और भारतीय ज्योतिष सिद्धांतों पर पड़ा।
  • भारत में इनके ज्योतिष सिद्धांतों का सर्वाधिक प्रभाव हमें केरल प्रदेश की ज्योतिष परंपरा में देखने को मिलता है।
  • आर्यभट्ट ने जहाँ आकिमिडीज से भी अधिक सही तथा सुनिश्चित पाई (70 के मान को प्रस्तुत किया, वहीं दूसरी ओर
  • खगोल विज्ञान में उदाहरण के साथ सबसे पहले यह उद्‌घाटित किया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है।
  • आर्यभट्ट ने सौरमंडल के एक भूकेंद्रीय मॉडल का वर्णन किया है; जिसमें बताया गया कि सूर्य और चंद्रमा ग्रहचक्र द्वारा गति करते हैं।

आर्यभट्ट द्वारा विज्ञान के विकास में योगदान (Aryabhatta’s contribution to the development of science in hindi)

  • Aryabhatta के अनुसार किसी वृत्त कौ परिधि और व्यास का संबंध 62,832 : 20,000 आता है; यह दशमलव के चार स्थान तक शुद्ध होता है।
  • आर्यभटट ने बड़ी संख्याओं को अक्षरों के समूह से निरूपित करने की वैज्ञानिक विधि का विकास किया।
  • आर्यभट्ट की गणना के अनुसार पृथ्वी की परिधि 39968.0582 किलोमीटर है; जो इसके वास्तविक मान 40075.067 किलोमीटर से केवल 0.2 प्रतिशत कम है।
  • समय को अगर आधुनिक अंग्रेज़ी इकाइयों में जोड़ा जाए तो; आर्यभट्ट की गणनानुसार पृथ्वी का आवर्तकाल (स्थिर तारों के संदर्भ में पृथ्वी की अवधि) 23 घंटे 56 मिनट और 4.] सेकेंड था, जो कि आधुनिक समय में 23 घंटे 56 मिनट और 4.9] सेकेंड है।
  • इसी प्रकार आर्यभट्ट के द्वारा पृथ्वी के वर्ष की अवधि 365 दिन 6 घंटे 2 मिनट 30 सेकेंड आकलित की गई; जो आधुनिक समय की गणना से 3 मिनट 20 सेकेंड की त्रुटि दिखाती है।
  • आर्यभट्ट के अनुसार एक कल्प में 4 मन्वंतर और एक मन्वंतर में 72 महायुग (चतुर्युग) तथा एक चतुर्युग में सतयुग, त्रेता, द्वार और कलियुग को समान माना गया है।
  • आर्यभटूट द्वारा लिखित आर्यभट्टीय ग्रंथ में अंकगणित, बीजगणित, सरल त्रिकोणमिति और गोलीय त्रिकोणमिति से संबंधित सिद्धांत दिये गए हैं।
  • गुप्तकाल में मगध में स्थित नालंदा विश्वविद्यालय ज्ञानदान का प्रमुख और प्रसिद्ध केंद्र था। यहाँ खगोलशास्त्र के अध्ययन के लिये एक विशेष विभाग था। एक प्राचीन श्लोक में ऐसा वर्णित है कि आर्यभट्ट नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति भी थे।
  • कॉपर्निकस के पूर्व ही आर्यभट्ट ने यह सिद्ध कर दिया था कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती है। इन्होंने ‘गोलापाद’ में लिखा कि “नाव में बैठा हुआ मनुष्य जब प्रवाह के साथ आगे बढ़ता है तब वह समझता है कि अचर वृक्ष, पाषाण, पर्वत आदि पदार्थ उल्टी गति से जा रहे हैं, उसी प्रकार गतिमान पृथ्वी से स्थिर नक्षत्र भी उलटी गति से जाते हुए दिखाई देते हैं।”

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