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केन्द्र-राज्य वित्तीय सम्बन्ध

Times Darpan
Last updated: 2022-10-25 21:08
By Times Darpan 602 Views
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28 Min Read
केन्द्र-राज्य वित्तीय सम्बन्ध, केंद्र व राज्य के बीच प्रशासनिक संबंध

संविधान के भाग XII में अनुच्छेद 268 से 293 तक केन्द्र-राज्य वित्तीय सम्बन्ध की चर्चा की गई है। इसके अलावा इसी विषय पर कई अन्य उपबंध भी हैं।

Contents
केन्द्र-राज्य वित्तीय सम्बन्ध | Centre-State Financial Relations1. कराधान शक्तियों का आवंटन2. कर राजस्व का वितरणगैर कर राजस्व का वितरणराज्यों के लिए सहायतार्थ अनुदानविधिक अनुदान:विवेकाधीन अनुदानअन्य अनुदानवस्तु एवं सेवा कर परिषद्‌वित्त आयोगराज्यों के हितों का संरक्षणकेद्र एवं राज्यों द्वारा प्राणअंतर सरकारी कर उन्मुक्तिकेन्द्र की परिसंपत्तियों को राज्य के कर से छूटराज्य की परिसंपत्तियों या आय को केन्द्रीय कर से छूटआपातकाल के प्रभावकेन्द्र-राज्य वित्तीय सम्बन्ध से संबंधित अनुच्छेद: एक नजर मेंRead more Chapter:-

केन्द्र-राज्य वित्तीय सम्बन्ध | Centre-State Financial Relations

इन्हें हम निम्नलिखित शीर्षकों से समझ सकते हैं:

1. कराधान शक्तियों का आवंटन

संविधान ने केंद्र व राज्यों के बीच निम्नलिखित तरीके से कर शक्तियों का आवंटन किया:

  • संसद के पास संघ सूची (जिनकी संख्या 13 है) के बारे में कर निर्धारण का विशेष अधिकार है।
  • राज्य विधानमंडल के पास राज्य सूची (जिनकी संख्या 18 है)’ पर कर निर्धारण का विशेष अधिकार है।
  • समवर्ती सूची में कोई कर प्रविष्टिया नहीं हैं। दूसरे शब्दों में, कर विधायन के सम्बन्ध में समवर्ती क्षेत्रधिकार उपलब्ध नहीं है।

लेकिन 101वें संशोधन अधिनियम, 2016 ने वस्तु एव सेवा कर (GST) के सम्बन्ध में एक विशेष प्रावधान बनाकर एक अपवाद प्रस्तुत किया है। इस संशोधन ने संसद एवं राज्य विधायिकाओं को वस्तु एवं सेवा कर के प्रशासन के लिए समवर्ती अधिकार व शक्ति प्रदान की है।

कर निर्धारण की अवशेषीय शक्ति संसद में निहित है। इस उपबंध के तहत संसद ने उपहार कर, समृद्धि कर और व्यय कर लगाएं हैं।

संविधान कर की उगाही और संक्रमण की शक्ति में स्पष्ट अंतर करता है और इस प्रकार कर की उगाही और एकत्रित कर की प्राप्तियों के उपयोग की शक्ति का भी निर्धारण करता है।

उदाहरण के लिए आयकर की उगाही और एकत्रण केंद्र द्वारा किया जाता है। परंतु इसकी प्राप्तियों को केंद्र और राज्यों के मध्य बांटा जाता है।

इसके अतिरिक्त संविधान ने राज्यों की कर निर्धारण शक्ति पर निम्नलिखित पाबंदियां भी लगाई हैं:

विधानमंडल व्यवसाय, व्यापार एवं रोजगार पर कर लगा सकता है लेकिन एक व्यक्ति पर यह 2,500 रु. प्रतिवर्ष से अधिक नहीं होना चाहिए।

राज्य विधानमंडल वस्तुओं की खरीद-बिक्री (समाचार-पत्रों के अतिरिक्त) पर कर लगा सकता है। लेकिन ऐसी शक्तियों पर चार पाबंदियां हैं

  • राज्य के बाहर किसी वस्तु की खरीद-बिक्री पर कर नहीं लगाया जा सकता।
  • आयात या निर्यात के दौरान खरीद-बिक्री पर कर नहीं लगाया जा सकता।
  • अंतर्राज्यीय व्यापार एवं वाणिज्य के दौरान किसी खरीद-बिक्री पर कर नहीं लगाया जा सकता।
  • संसद द्वारा अंतर्राज्यीय व्यापार एवं वाणिज्य के तहत महत्वपूर्ण घोषित मसलों पर क्रय-विक्रय के आधार पर प्रतिबंध।

राज्य विधायिका को निम्नलिखित दो मामलों में वस्तु की, सेवा की, अथवा दोनों की आपूर्ति पर कर अधिरोपित करने से प्रतिबंधित किया गया है

  • जबकि ऐसी आपूर्ति राज्य के बाहर की गई हो, तथा
  • जबकि ऐसी आपूर्ति आयात अथवा निर्यात के दौरान होती हो।

पुनः संसद को यह शक्ति प्राप्त है कि वह अपनी वस्तु, सेवा अथवा दोनों की आपति राज्य से बाहर होने, तथा ऐसी आपूर्ति आयात या निर्यात के दौरान होने के बारे में विनिश्चय कर सिद्धांत अथवा नीति विरूपित करे।

राज्य विधानमंडल किसी अंतर-राज्य नदी या नदी धारा के विनियमन या विकास हेतु संसद द्वारा स्थापित किसी प्राधिकरण को किसी पानी या बिजली एकत्रीकरण उत्पादन खपत, वितरण या बिक्री पर कर निर्धारण कर सकती है लेकिन ऐसे किसी कानून को प्रभावी बनाने से पूर्व राष्ट्रपति की सिफारिश को सुरक्षित रखना होगा और उसकी सहमति लेनी होगी।

2. कर राजस्व का वितरण

80वें संशोधन अधिनियम, 2000 तथा 101वां संशोधन अधिनियम, 2016 द्वारा केंद्र-राज्य के बीच कर राजस्व बंटवारे की योजना पर व्यापक परिवर्तन किया गया। 80वा संशोधन 10वें वित्त आयोग की सिफारिशों को प्रभावी करने के लिए लागू किया गया था। आयोग ने सिफारिश की थी कि कुछ केंद्रीय करों एवं कराधानों से प्राप्त कुल आय का 29 प्रतिशत राज्यों को मिलना चाहिए। इसे ‘अवमूल्यन की वैकल्पिक योजना’ के रूप में जाना गया तथा यह पूर्वव्यापी 1 अप्रैल, 1996 से अस्तित्व में आया। इस संशोधन से आयकर के साथ ही कई अन्य करों, जैसे-निगम कर, कस्टम डड़ूटी आदि का प्रावधान किया गया।

101वें संविधान संशोधन ने देश में करारोपण एवं कर प्रशासन की एक नई व्यवस्था शुरू की है (वस्तु एवं सेवा कर-जीएसटी)। उसी अनुसार संशोधन द्वारा संसद एवं राज्य विधायिकाओं को वस्तु, सेवा अथवा दोनों की आपूर्ति के प्रत्येक लेनदेन में जीएसटी लगाने सम्बन्धी कानून बनाने की शक्ति प्रदान की गई है। जीएसटी के चलते केन्द्र एवं राज्य द्वारा अधिरोपित अनेक अप्रत्यक्ष कर निष्प्रभावी हो गए हैं। जीएसटी लागू करने की मंशा ही यही है कि भारी-भरकम कर व्यवस्था की जटिलता को सुगम बनाकर वस्तुओं एवं सेवाओं का एक साझा राष्ट्रीय बाजार बनाया जाए।

संशोधन ने विभिन्न केन्द्रीय अप्रत्यक्ष करों तथा उगाहियों को, जो अब तक वस्तुओं एवं सेवाओं की आपूर्ति से जुड़ी थीं, जैसे-

  • केन्द्रीय उत्पाद शुल्क
  • अतिरिक्त उत्पाद शुल्क
  • औषधीय एवं प्रसाधन तैयारी (उत्पादन शुल्क) अधिनियम, 1955 के अंतर्गत उगाहा गया उत्पादन शुल्क,
  • सेवा कर,
  • अतिरिक्त सीमा शुल्क, जिसे प्रतिकार शुल्क कहा जाता है
  • विशेष अतिरिक्त सीमा शुल्क तथा
  • केन्द्रीय अधिभार एवं उपकर जहां तक वे वस्तु एवं सेवा आपूर्ति से सम्बच्धित हैं

उसी प्रकार संशोधन द्वारा अन्य अनेक करों/शुल्कों को भी एकमेव कर दिया- जैसे-

  • राज्य मूल्य वर्द्धित कर
  • बिक्रीकर
  • मनोरंजन कर (स्थानीय निकाय द्वारा उगाहे गए कर के अतिरिक्त,
  • अष्गरद्र्व्य एवं प्रवेश कर
  • क्रय कर
  • विलासिता कर
  • लॉटरी, सट्टा , जुआ आदि पर कर , तथा
  • वस्तु एवं सेवाओं की आपूर्ति पर अधिरोपित राज्य के अधिभार एवं उपकर

इसके अलावा संशोधन ने संविधान के अनुच्छेद 268-ए के साथ ही संघ सूची की प्रविष्टि 92-सी को भी निरसित कर दिया जो कि सेवा कर से संबंधित थी। इन्हें 88 वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 द्वारा जोड़ा गया था। सेवा कर की उगाही केन्द्र द्वारा की जाती थी तथा इसका संग्रहण और विनियोग केन्द्र एवं राज्य दोनों करते थे।

उपरोक्त दोनों संशोधनों (80वां एवं 101 वां संशोधन) के बाद कर राजस्व के केन्द्र और राज्यों के बीच वितरण की वर्तमान स्थिति निम्नवत है:

केंद्र द्वारा उदगृहीत एवं राज्यों द्वारा संगुहीत एवं विनियोजित कर (अनुच्छेद 268)

इस श्रेणी में विनिमय पत्रों, चेकों, वादा नोटों, नीतियों, बीमा तथा शेयरों एवं अन्य के अंतरण पर लगाने वाला स्टाम्प शुल्क आते हैं। किसी राज्य से उगाही की गई इन शुल्कों की प्राप्तियां भारत की समेकित निधि का भाग नहीं होतीं बल्कि उसी राज्य को दी जाती हैं।

केंद्र द्वारा उद्गृहीत सेवा कर लेकिन केंद्र एवं राज्यों द्वारा संगृहीत एवं विनियोजित कर (अनुच्छेद 268-क)

सेवाओं पर कर केंद्र द्वारा लगाया जाता है। लेकिन इनका संग्रहण एवं उपयोग केंद्र एवं राज्य दोनों मिलकर करते हैं। इनके संग्रहण एवं उपभोग संबंधी नियमों का निर्धारण संसद द्वारा किया जाता है।

संघ द्वारा उद्गृहीत एवं संगृहीत किन्तु राज्यों को सौंपे जाने वाले कर (अनुच्छेद 269)

इस श्रेणी में अग्रलिखित कर आते हैं:

  • अंतर-राज्यीय व्यापार या वाणिज्य में वस्तुओं के क्रय-विक्रय से संबंधित कर (समाचार-पत्र को छोड़कर)।
  • माल या समान के अंतर-राज्यीय व्यापार या वाणिज्य के पारेषण से संबंधित कर।

इन करों से प्राप्तियां भारत की समेकित निधि का भाग नहीं बनतीं। इन्हें संसद द्वारा निर्धारित नियमों अनुसार संबंधित राज्य को सौंप दिया जाता है।

वस्तु एवं सेवा कर की उगाही और संग्रहण अंतर-राज्य व्यापार एवं वाणिज्य (अनुच्छेद 269-ए) के दौरानः

अंतर-राज्य व्यापार या वाणिज्य के दौरान हुई आपूर्ति पर वस्तु एवं सेवा कर की उगाही और संग्रहण केन्द्र द्वारा किया जाता है। लेकिन यह कर केन्द्र और राज्यों के बीच उसी प्रकार बाट दिया जाता है जैसा कि जीएसटी काउंसिल की अनुशंसाओं पर संसद निर्धारित करती है। पुन: संसद आपूर्ति का स्थान निर्धारित करने के लिए नीति और सिद्धांत निरूपित करने तथा यह निश्चित करने के लिए अधिकृत है कि अंतर-राज्य व्यापार-वाणिज्य में वस्तु अथवा सेवा अथवा दोनों की आपूर्ति कब होगी।

संघ द्वारा उद्गृहीत एवं संगृहित किये जाने वाले तथा केन्द्र एवं राज्यों के बीच बंटने वाले कर बंटवारे की उक्त व्यवस्था (अनुच्छेद 270)

इस श्रेणी में संघ सूची में उल्लिखित सभी कर और शुल्क आते हैं:

  • संविधान के अनुच्छेद 268, 269 एवं 269क में उल्लिखित कर (ऊपर उल्लिखित)।
  • संविधान के अनुच्छेद 271 में उल्लिखित कर (नीचे उल्लिखित) पर अधिभार।
  • किसी विशिष्ट प्रायोजन के लिये लगाया गया कोई सेस।

इन करों और शुल्कों की कुल प्राप्तियों के वितरण की प्रक्रिया राष्ट्रपति द्वारा वित्त आयोग की सिफारिश पर अनुशंसित की जाती है।

कुछ शुल्कों और करों पर संघ के प्रयोजनों के लिए अधिभार (अनुच्छेद 271)

संसद किसी भी समय उपरोक्त वर्णित द्वितीय एवं तृतीय श्रेणी के करों पर अपनी आवश्यकता पूर्ति के लिये (अनुच्छेद 269 एवं 270 में उल्लिखित) अविभार लगा सकता है। ये सीधे केंद्र को प्राप्त होते हैं। दूसरे शब्दों में, राज्यों को इनका कोई हिस्सा प्राप्त नहीं होता है।

तथापि वस्तु एवं सेवा कर (GST) इस अधिभार से मुक्त है। दूसरे शब्दों में यह अधिभार जीएसटी पर अधिरोपित नहीं किया जा सकता।

राज्यों द्वारा उद्गृहीत, संगृहीत एवं उपभोग किये जाने वाले कर

ये पूर्णतया राज्यों के कर हैं। इनका उल्लेख राज्य सूची में किया गया है तथा इनकी संख्या 18 है। ये इस प्रकार हैं।

  • भू-राजस्व
  • कृषि आय पर कर,
  • कृषि भूमि के उत्तरवर्तन से संबंधित शुल्क,
  • कृषि भूमि से संबंधित संपदा शुल्क,
  • भूमि और भवनों पर कर
  • खनिज अधिकारों पर कर,
  • बिजली के उपयोग एवं बिक्री पर कर,
  • सड़क अथवा अंतर्देशीय जल परिवहन में वस्तुओं तथा यात्रियों को होने पर लगा कर,
  • वाहनों पर कर,
  • पशुओं तथा नौकाओं पर कर
  • पथकर
  • व्यवसाय, व्यापार, कॉलिग्स तथा रोजगारों पर कर
  • कैपिटेशन कर,
  • मनोरंजन तथा मनबहलाव पर उस उस हद तक कर जहां तक पंचायत, नगरपालिका अथदवा क्षेत्रीय परिषद्‌ अथवा जिला परिषद संग्रह करते हों,
  • दस्तावेजों पर स्टाम्प शुल्क (जो संघीय सूची में विनिर्दिष्ठट हैं, उनके अलावा), तथा;
  • राज्य सूची में शामिल सामग्री पर शुल्क (कोर्ट शुल्क के अतिरिक्‍्त)।

गैर कर राजस्व का वितरण

अ. केंद्र: केंद्र के गैर-राजस्व स्रोतों से व्यापक प्राप्तियां निम्नलिखित से हैं

  • डाक एवं तार
  • रेलवे,
  • बैंकिंग,
  • प्रसारण,
  • सिक्के एवं मुद्रा,
  • केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रम ,
  • समयावधि समाप्त होने पर उगाही, और अन्य।

ब. राज्य: गैर राजस्व कर के द्वारा राज्य को प्राप्त व्यापक स्रोत इस तरह हैं

  • सिंचाई,
  • वन,
  • मत्स्य पालन,
  • राज्य सार्वजनिक उपक्रम ,
  • समय चूकने पर उगाही एवं अन्य।

राज्यों के लिए सहायतार्थ अनुदान

केंद्र एवं राज्यों के बीच करों की हिस्सेदारी के संविधान में व्यवस्था की गई है कि राज्यों को केन्द्र से सहायतार्थ अनुदान प्राप्त हो। अनुदान दो प्रकार के होते हैं

  • विधिक अनुदान एवं
  • विवेकाधीन अनुदान।

विधिक अनुदान:

अनुच्छेद 275 संसद को इस बात का अधिकार प्रदान करता है कि वह राज्यों को आवश्यकता पड़ने पर अनुदान उपलब्ध कराये। यद्यपि प्रत्येक राज्य के लिये ऐसा करना आवश्यक नहीं है। इसके अलावा अलग अलग राज्यों के लिये सहायता राशि भी भिन्न भिन्न निर्धारित की जा सकती है। यह राशि प्रत्येक वर्ग भारत की सचित निधि पर भारित होती है।

इस सामान्य प्रावधान के अतिरिक्त संविधान राज्यों में जनजातियों के उत्थान एवं कल्याण तथा अनुसूचित जनजाति बाहुल्य राज्यों में प्रशासनिक विकास के लिये भी राज्यों को विशेष सहायता प्रदान करने की शक्ति संसद को देता है ऐसे राज्यों में असम भी सम्मिलित है।

अनुच्छेद 275 के अन्तर्गत वर्णित यह अनुदान (सामान्य एवं विशेष) वित्त आयोग की अनुशसा पर दी जाती है।

विवेकाधीन अनुदान

अनुच्छेद 282 संघ एवं राज्य दोनों को इस बात का अधिकार देता है कि किसी लोक प्रयोजन के लिये वे अनदान आवंटित कर सकते हैं। इस प्रावधान के अन्तर्गत केन्द्र राज्यों को अनुदान प्रदान कर सकते हैं।

“इन अनुदानों को विवेकाधीन अनुदान के नाम से जाना जाता है। इसका कारण यह है कि इसके लिये केन्द्र बाध्य नहीं है तथा यह पूर्णतया उसके स्वविवेक पर निर्भर करता है।

इन अनुदानों के दो उद्देश्य होते हैं-

  • योजनागत लक्ष्यों की प्राप्ति के निमित राज्यों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना तथा
  • राष्ट्रीय योजना के लिये राज्यों को प्रभावित करना।

अन्य अनुदान

संविधान एक अन्य तरह के अनुदान की भी व्यवस्था करता है किंतु यह अल्प अवधि के लिए होता है। इस प्रकार, जूट एवं जूट उत्पादों (असम, बिहार, ओडिशा एवं प. बंगाल के लिये) के निर्यात शुल्क की जगह अनुदान का प्रावधान किया गया था। यह अनुदान संविधान प्रारंभ होने से 10 वर्ष की अवधि के लिये किये गये थे। ये अनुदान भारत की संचित निधि पर भारित थे तथा वित्त आयोग की अनुशंसा पर राज्यों को उपलब्ध कराये गये थे।

वस्तु एवं सेवा कर परिषद्‌

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के सक्षम और कुशल प्रशासन के लिए केन्द्र और राज्यों बीच सहयोग और समन्वय जरूरी है। इस आपसी सहयोग और परामर्श को संभव बनाने के लिए 101वें संशोधन अधिनियम, 2016 ने वस्तु एवं सेवा कर परिषद्‌ (जीएसटी काउंसिल) की स्थापना का प्रावधान किया है।

अनुच्छेद 279-ए राष्ट्रपति को एक आदेश’ द्वारा जीएसटी काउंसिल गठित करने के लिए अधिकृत करता है। यह केन्द्र और राज्यों का एक संयुक्त फोरम है। इससे अपेक्षा की जाती है कि यह निम्नलिखित मामलों में केन्द्र और राज्यों को अनुशंसा करेगा:

  • केन्द्र, राज्यों तथा स्थानीय निकायों द्वारा वसूले गए कर, उपकर एवं अधिभार जिनका जीएसटी में विलय हो जाता है।
  • वे वस्तुएं और सेवाएं जिन पर जीएसटी लगेगा, या जो जीएसटी से मुक्त होंगी।
  • आदर्श जीएसटी कानून, वसूली के सिद्धांत, अंतर-राज्य वाणिज्य-व्यापार में आपूर्तियों पर उगाहे गए जीएसटी के बटवारे, और वह नीति जिसके आधार पर आपूर्ति के स्थान का प्रशासन होता है।
  • कारोबार की शुरुआती सीमा जिसके नीचे जीएसटी से छूट मिल जाती है। च. जीएसटी बैंड के साथ न्यूनतम नियत दरें।
  • किसी प्राकृतिक प्रकोप या आपदा के दौरान अतिरिक्त संसाधन जुटाने के लिए एक समय विशेष के लिए दा या दरें।

वित्त आयोग

अनुच्छेद 280 अर्द्ध-न्यायिक निकाय के रूप में वित्त आयोग की यवस्था करता है। इसका गठन हर पांच वर्ष में राष्ट्रपति द्वारा स्थापित किया जाता है। यह निम्नलिखित मामलों पर राष्ट्रपति को सिफारिश करता है:

  • केंद्र एवं राज्यों के बीच कराधान व्यवस्था का निर्धारण और ऐसी प्राप्तियों का राज्यों के बीच हिस्सेदारी का निर्धारण।
  • वे सिद्धांत, जिनके तहत राज्य केंद्र (भारत की संचित निधि से) से आर्थिक अनुदान लेकर कार्य करता है।
  • राज्य वित्त आयोग की संस्तुति के आधार पर राज्य पंचायतों और नगरपालिकों के स्रोतों की पूर्ति के लिए राज्य की संचित निधि को बढ़ाने के लिए किए जाने वाले उपाए।
  • राष्ट्रपति द्वारा वित्तीय मामलों के संबंध में सौंपा गया कोई अन्य कार्य।

1960 तक आयोग असम, बिहार, ओडिशा एवं प. बंगाल के लिये जूट एवं जूट उत्पादों के निर्यात शुल्क के ऐवज में प्रतिवर्ष प्रदान किये जाने वाले अनुदान के संबंध में सरकार को सुझाव देता था।

संविधान वित्त आयोग को देश में वित्तीय संघात्मकता के संतुलन चक्र के रूप में परिकल्पित करता है। यद्यपि गैर-संवैधानिक, गैर-विधायी निकाय योजना आयोग के उद्धव के उपरांत केन्द्र-राज्य संबंधों के संदर्भ में वित्त आयोग की भूमिका संकुचित हुयी है।

राज्यों के हितों का संरक्षण

वित्तीय मामलों पर राज्य हितों की रक्षा के लिए संविधान में यह व्यवस्था की गई है कि संसद सिर्फ राष्ट्रपति की सिफारिश पर निम्नलिखित विधेयकों को संसद में प्रस्तुत करे:

  • ऐसा विधेयक जिसमें राज्यों का हित हो और वह किसी कर या शुल्क को अध्यारोपित करे।
  • ऐसा विधेयक जो भारतीय आयकर को लागू करने संबंधी प्रयोजनों हेतु परिभाषित अभिव्यक्ति कृषि आय के अर्थ में परिवर्तन करे।
  • ऐसा विधेयक जो राज्यों में वितरित या वितरण की जाने वाली राशियों के नियम को प्रभावित करे।
  • ऐसा विधेयक जो राज्य के प्रयोजन हेतु किसी विशिष्ट कर या शुल्क पर अधिभार अध्यारोपित करे।

कर या शुल्क जिसमें राज्य का हित हो अभिव्यक्ति का अर्थ है-

  • कर या शुल्क जिसकी कुल प्राप्तियों का पूर्ण या कोई भाग किसी राज्य को सौपा जाता है या
  • शुल्क जहा कल प्राप्तियों के संदर्भ में फिलहाल इस राशि को भारत की संचित निधि से प्रदान कुल प्राप्तिया अभिव्यक्ति का अर्थ है

सग्रहण की लागत को घटाकर प्राप्त हुई कर या शुल्क पाप्तिया किसी क्षेत्र में कर या शुल्क की कल प्राप्तियों का निर्धारण और प्रमाणन भारत के नियंत्रक और महालेख परीक्षक द्वारा किया जाता है।

केद्र एवं राज्यों द्वारा प्राण

संविधान केंद्र एवं राज्यों के कर्ज लेने की शक्ति पर निम्नलिखित प्रावधान तय करता है:

केंद्र सरकार या तो भारत में या इसके बाहर से भारत की संचित निधि की प्रतिभ या गारटी देकर ऋण ले सकती है। लेकिन दोनों ही मामलों में सीमा निर्धारण संसद द्वारा किया जाएगा।

संसद द्वारा इस संबंध में कोई कानून नहीं बनाया गया है। इसी तरह, एक राज्य सरकार भारत में (बाहर नहीं) राज्य की सचित निधि की प्रतिभू या गारंटी देकर ऋण ले सकता है, लेकिन सीमा निर्धारण राज्य विधानमंडल द्वारा किया जाएगा।

केंद्र सरकार किसी राज्य सरकार को ऋण दे सकती है या किसी राज्य द्वारा लेने पर पर गारंटी दे सकती है। ऋण के ऐसे प्रयोजन हेतु आवश्यक धनराशि भारत की संचित निधि पर भारित होगी। राज्य केन्द्र की अनुमति के बिना ऋण नहीं ले सकता, यदि केन्द्र द्वारा दिए गए ऋण का कोई भाग बकाया हो या जिसके संबंध में केन्द्र ने गारंटी दी हो।

अंतर सरकारी कर उन्मुक्ति

अन्य संघीय संविधानों के समान भारतीय संविधान में भी ‘पारस्परिक कराधान से उन्मुक्तियों’ के नियम हैं। इस संबंध में निम्न प्रावधान किये गये हैं:

केन्द्र की परिसंपत्तियों को राज्य के कर से छूट

केन्द्र की सभी परिसंपत्तियों को राज्य या उसके विभिन्न निकायों, यथा नगरपालिकाओं जिला बोर्डी, पंचायतों इत्यादि को सभी प्रकार के करों से छूट प्राप्त होती है। यद्यपि संसद को यह अधिकार है कि वह इस प्रतिबंध को समाप्त कर सकती है। संपत्ति’ शब्द से अभिप्राय भूमि, भवन, चल संपत्ति, शेयर, जमा इत्यादि उन सभी चीजों से है, जिनका कोई मूल्य होता है। संपत्ति में चल एवं अचल दोनों प्रकार की संपत्तिया सम्मिलित है। संपत्ति का उपयोग संप्रभु (जैसे सशणब्त्र सेनाये) या वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिए किया जा सकता है।

केन्द्र सरकार द्वारा निर्मित निगमों या कंपनियों को राज्य कराधान या स्थानीय कराधान से उन्मुक्ति प्राप्त नहीं है। इसका कारण यह है कि निगम या कंपनी एक पृथक विधिक अस्तित्व है।

राज्य की परिसंपत्तियों या आय को केन्द्रीय कर से छूट

राज्यों की परिसंपत्तियां एवं आय को भी केन्द्रीय कर से छूट प्राप्त होती है। यह आय संप्रभु कार्यों या वाणिज्यिक कार्यों से हो सकती है। किंतु यदि संसद अनुमति दे तो केन्द्र वाणिज्यिक आय पर कर लगा सकता है। यद्यपि केन्द्र चाहे तो वह किसी कार्य या व्यवसाय विशेष को इस कर से छूट भी दे सकता है।

उल्लेखनीय है कि राज्य में स्थित स्थानीय संस्थायें केन्द्रीय कर से मुक्त नहीं होती है। इसी तरह निगमों एवं राज्य की स्वामित्व वाली कंपनियों की परिसंपत्तिया एवं आय पर केंद्र कर लगा सकती है।

1963 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक सलाहकारी निर्णय में यह सलाह दी थी कि केन्द्र द्वारा राज्यों को दी जाने वाली छट ऐसी होनी चाहिये, जिससे सीमा और उत्पाद शुल्क पर कोई प्रभाव न पड़े। दसरे शब्दों में केंद्र, राज्य द्वारा आयातित या निर्यातित वस्तुओं पर कर लगा सकती है या वह राज्य में उत्पादित या विर्निमित सामान पर उत्पाद शुल्क लगा सकती है।

आपातकाल के प्रभाव

केंद्र-राज्य के बीच संबंध आपातकाल के दौरान बदल जाते हैं। निम्नलिखित हैं:

राष्ट्रीय आपातकाल

जब राष्ट्रीय आपातकाल लागू हो (अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत) राष्ट्रपति केंद्र व राज्यों के बीच संवैधानिक राजस्व वितरण को परिवर्तित कर सकता है। इसका तात्पर्य है- राष्ट्रपति या तो वित्तीय अंतरण को कम कर सकता है या रोक सकता है। ऐसे परिवर्तन जिस वर्ष आपातकाल की घोषणा की गई हो उस वित्तीय वर्ष की समाप्ति तक प्रभावी रहते

वित्तीय आपातकाल

जब वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360 के अन्तर्गत) लागू हो केंद्र राज्यों को निर्देश दे सकता है-

  • वित्तीय औचित्य संबंधी सिद्धांतों का पालन,
  • राज्य की सेवा में लगे सभी वर्गों के लोगों के वेतन एवं भत्ते कम करे, और
  • सभी धन विधेयकों या अन्य वित्तीय विधेयकों को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए आरक्षित रखे।

केन्द्र-राज्य वित्तीय सम्बन्ध से संबंधित अनुच्छेद: एक नजर में

अनुच्छेदिषय-वस्तु
268संघ द्वारा आरोपित किन्तु राज्यों द्वारा संगृहीत एवं उपयोग किए गए कर।
268 Aसंघ द्वारा आरोपित तथा राज्यों द्वारा संगृहीत एवं उपयोग किया गया सेवा कर (निरस्त)।
269केन्द्र द्वारा लगाए गए एवं संगृहीत किए गए किन्तु राज्यों को दिए जाने वाले कर।
269 Aअंतर-राज्यीय व्यापार या वाणिज्य के दोरान वस्तु और सेवा कर की उगाही और संग्रह।
270केन्द्र एवं राज्यों के बीच लगाए गए कर एवं संघ तथा राज्यों के बीच वितरण।
271संघ के लिए कतिपय करों पर अतिरिक्त कर (सरचार्ज)।
272संघ द्वारा लगाए गए एवं संगृहीत किए गए कर, जो कि संघ और राज्यों के बीच वितरित भी किए जा सकते हैं (निरस्त)।
273जूट एवं जूट उत्पादों पर निर्यात कर के लिए अनुदान।
274कराधान को प्रभावित करने वाले विधेयक को, जिनमें कि राज्यों की भी रुचि है, पर राष्ट्रपति की अनुशंसा लेना।
275कतिपय राज्यों को संघ द्वारा अनुदान।
276व्यवसाय, व्यापार, कॉलिंग तथा रोजगारों पर कर।
277बचत।
278कतिपय वित्तीय मामलों से संबंधित प्रथम अनुसूची के भाग-बी के संबंध में राज्यों के साथ समझौता (निरस्त)।
279“कुल प्राप्तियों” की गणना इत्यादि।
279 Aवस्तु और सेवा कर परिषद्‌
280वित्त आयोग।
281वित्त आयोग की अनुशंसाएं।
282संघ अथवा किसी राज्य द्वारा अपने राजस्व में से अदा करने योग्य खर्च।
283संचित निधियों, आकस्मिकता निधियों तथा लोक लेखा में जमा धनराशि का संरक्षण।
284सूटर्स डिपॉजिट” तथा अन्य धन राशि, जो कि लोक सेवकों एवं न्यायालयों द्वारा प्राप्त होती है, का संरक्षण।
285राज्य कराधान में संघ की सम्पत्तियों की छूट।
286वस्तुओं की बिक्री अथवा खरीद पर करारोपण पर प्रतिबंध।
287बिजली
288कतिपय मामलों में पानी तथा बिजली से संबंधित राज्यों द्वारा करारोपण से छूट।
289किसी राज्य की संपत्ति एवं आय का संघीय करारोपण से छूट।
290कतिपय खर्चों एवं पेंशन से संबंधित समायोजना।
290Aदेवसेवम्‌ कोषों को वार्षिक भुगतान
291शासकों के “प्रिवीपर्स” (निरस्त)
292भारत सरकार द्वारा लिए गए उधार।
293राज्यों द्वारा लिया गया उधार

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  • Chapter-7: मूल अधिकार | Fundamental Rights
  • Chapter-8: राज्य के नीति निदेशक तत्व
  • Chapter-9: मूल कर्तव्य | Fundamental Duties
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  • Chapter-11: संविधान की मूल संरचना का विकास, सिद्धांत, तत्व और सम्बंधित मामले
  • Chapter-12: संसदीय व्यवस्था की परिभाषा, विशेषतायें, गुण तथा दोष
  • Chapter- 13: संघीय व्यवस्था तथा एकात्मक व्यवस्था
  • Chapter- 14: केंद्र-राज्य संबंध
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