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भारतीय संविधान का संशोधन (Amendment)

Gulshan Kumar
Last updated: 2020-08-15 23:17
By Gulshan Kumar 1.4k Views
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18 Min Read
भारतीय संविधान के संशोधन

भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ था। इसका निर्माण ‘संविधान सभा‘ ने किया था, जिसकी पहली बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को हुई थी। संविधान सभा ने 26 नवम्बर, 1949 को संविधान को अंगीकार कर लिया था। संविधान सभा की पहली बैठक अविभाजित भारत के लिए बुलाई गई थी। 4 अगस्त, 1947 को संविधान सभा की बैठक पुनः हुई और उसके अध्यक्ष सच्चिदानन्द सिन्हा नियुक्त हुए थे। उनके निधन के बाद डॉ. राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष बने। फ़रवरी, 1948 में संविधान का मसौदा प्रकाशित हुआ। 26 नवम्बर, 1949 को संविधान अन्तिम रूप में स्वीकृत हुआ और 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ। भारतीय संविधान का संशोधन भारत के संविधान में परिवर्तन करने की प्रक्रिया है।

इस तरह के परिवर्तन भारत की संसद के द्वारा किये जाते हैं। इन्हें संसद के प्रत्येक सदन से पर्याप्त बहुमत के द्वारा अनुमोदन प्राप्त होना चाहिए और विशिष्ट संशोधनों को राज्यों के द्वारा भी अनुमोदित किया जाना चाहिए। इस प्रक्रिया का विवरण संविधान के लेख 368, भाग XX में दिया गया है। इन नियमों के बावजूद 1950 में संविधान के लागू होने के बाद से इस में 126 संशोधन किये जा चुके हैं।

भारतीय संविधान के संशोधन (Amendment)

  • पहला संशोधन (1951) —इस संशोधन द्वारा नौवीं अनुसूची को शामिल किया गया।
  • दूसरा संशोधन (1952) —संसद में राज्यों के प्रतिनिधित्व को निर्धारित किया गया।
  • सातवां संशोधन (1956) —इस संशोधन द्वारा राज्यों का अ, ब, स और द वर्गों में विभाजन समाप्त कर उन्हें 14 राज्यों और 6 केंद्रशासित क्षेत्रों में विभक्त कर दिया गया।
  • दसवां संशोधन (1961) —दादरा और नगर हवेली को भारतीय संघ में शामिल कर उन्हें संघीय क्षेत्र की स्थिति प्रदान की गई।
  • 12वां संशोधन (1962) —गोवा, दमन और दीव का भारतीय संघ में एकीकरण किया गया।
  • 13वां संशोधन (1962) —संविधान में एक नया अनुच्छेद 371 (अ) जोड़ा गया, जिसमें नागालैंड के प्रशासन के लिए कुछ विशेष प्रावधान किए गए। 1दिसंबर, 1963 को नागालैंड को एक राज्य की स्थिति प्रदान कर दी गई।
  • 14वां संशोधन (1963) —पांडिचेरी को संघ राज्य क्षेत्र के रूप में प्रथम अनुसूची में जोड़ा गया तथा इन संघ राज्य क्षेत्रों (हिमाचल प्रदेश, गोवा, दमन और दीव, पांडिचेरी और मणिपुर) में विधानसभाओं की स्थापना की व्यवस्था की गई।
  • 21वां संशोधन (1967) —आठवीं अनुसूची में ‘सिंधी’ भाषा को जोड़ा गया।
  • 22वां संशोधन (1968) —संसद को मेघालय को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में स्थापित करने तथा उसके लिए विधानमंडल और मंत्रिपरिषद का उपबंध करने की शक्ति प्रदान की गई।
  • 24वां संशोधन (1971) —संसद को मौलिक अधिकारों सहित संविधान के किसी भी भाग में संशोधन का अधिकार दिया गया।
  • 27वां संशोधन (1971) —उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र के पाँच राज्यों तत्कालीन असम, नागालैंड, मेघालय, मणिपुर व त्रिपुरा तथा दो संघीय क्षेत्रों मिजोरम और अरुणालच प्रदेश का गठन किया गया तथा इनमें समन्वय और सहयोग के लिए एक ‘पूर्वोत्तर सीमांत परिषद्’ की स्थापना की गई।
  • 31वां संशोधन (1974) —लोकसभा की अधिकतम सदंस्य संख्या 547 निश्चित की गई। इनमें से 545 निर्वाचित व 2 राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत होंगे।
  • 36वां संशोधन (1975) —सिक्किम को भारतीय संघ में संघ के 22वें राज्य के रूप में प्रवेश प्रदान किया गया।
  • 37वां संशोधन (1975) —अरुणाचल प्रदेश में व्यवस्थापिका तथा मंत्रिपरिषद् की स्थापना की गई।
  • 42वां संशोधन (1976) —इसे ‘लघु संविधान’ (Mini Constitution) की संज्ञा प्रदान की गई है।
    1. इसके द्वारा संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’, ‘समाजवादी’ और ‘अखंडता’ शब्द जोड़े गए।
    2. इसके द्वारा अधिकारों के साथ-साथ कत्र्तव्यों की व्यवस्था करते हुए नागरिकों के 10 मूल कर्त्तव्य निश्चित किए गए।
    3. लोकसभा तथा विधानसभाओं के कार्यकाल में एक वर्ष की वृद्धि की गई।
    4. नीति-निर्देशक तत्वों में कुछ नवीन तत्व जोड़े गए।
    5. इसके द्वारा शिक्षा, नाप-तौल, वन और जंगली जानवर तथा पक्षियों की रक्षा, ये विषय राज्य सूची से निकालकर समवर्ती सूची में रख दिए गए।
    6. यह व्यवस्था की गई कि अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत आपातकाल संपूर्ण देश में लागू किया जा सकता है या देश के किसी एक या कुछ भागों के लिए।
    7. संसद द्वारा किए गए संविधान संशोधन को न्यायालय में चुनौती देने से वर्जित कर दिया गया।
  • 44वां संशोधन (1978) —संपत्ति के मूलाधिकार को समाप्त करके इसे विधिक अधिकार बना दिया गया।
    1. लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं की अवधि पुनः 5 वर्ष कर दी गई।
    2. राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष्ज्ञ के चुनाव विवादों की सुनवाई का अधिकार पुनः सर्वोच्च तथा उच्च न्यायालय को ही दे दिया गया।
    3. मंत्रिमंडल द्वारा राष्ट्रपति को जो भी परामार्श दिया जाएगा, राष्ट्रपति मंत्रिमंडल को उस पर दोबारा विचार करने लिए कह सकेंगे लेकिन
    4. पुनर्विचार के बाद मंत्रिमंडल राष्ट्रपति को जो भी परामर्श देगा, राष्ट्रपति उस परामर्श को अनिवार्यतः स्वीकार करेंगे।
      ‘व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार’ को शासन के द्वारा आपातकाल में भी स्थगित या सीमित नहीं किया जा सकता, आदि।
  • 52वां संशोधन (1985) —इस संशेधन द्वारा संविधान में दसवीं अनुसूची जोड़ी गई। इसके द्वारा राजनीतिक दल-बदल पर कानूनी रोक लगाने की चेष्टा की गई है।
  • 55वां संशोधन (1986) —अरुणाचल प्रदेश को भारतीय संघ के अन्तर्गत राज्य की दर्जा प्रदान किया गया।
  • 56वां संशोधन (1987) —इसमें गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा देने तथा ‘दमन व दीव’ को नया संघीय क्षेत्र बनाने की व्यवस्था है।
  • 58वां संशोधन (1987) —इसके द्वारा राष्ट्रपति को संविधान का प्रामाणिक हिंदी संस्करण प्रकाशित करने के लिए अधिकृत किया गया।
  • 60वां संशोधन (1988) —इसके अंतर्गत व्यवसाय कर की सीमा 250 रुपये से बढ़ाकर 2500 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष कर दी गई।
  • 61वां संशोधन (1989) —मताधिकार के लिए न्यूनतम आवश्यक आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई।
  • 65वां संशोधन (1990) —‘अनुसूचित जाति तथा जनजाति आयोग’ के गठन की व्यवस्था की गई।
  • 69वां संशोधन (1991) —दिल्ली का नाम ‘राष्ट्रीय राजधानी राज्य क्षेत्र दिल्ली’ किया गया तथा इसके लिए 70 सदस्यीय विधानसभा तथा 7 सदस्यीय मंत्रिमंडल के गठन का प्रावधान किया गया।
  • 70वां संशोधन (1992) —दिल्ली तथा पांडिचेरी संघ राज्य क्षेत्रों की विधानसभाओं के सदस्यों को राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल में शामिल करने का प्रावधान किया गया।
  • 71वां संशोधन (1992) —तीन और भाषाओं कोंकणी, मणिपुरी और नेपाली को संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित किया गया।
  • 73वां संशोधन (1992) —संविधान में एक नया भाग 9 तथा एक नई अनुसूची ग्यारहवीं अनुसूची जोड़ी गई और पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया।
  • 74वां संशोधन (1993) —संविधान में एक नया भाग 9क और एक नई अनुसूची 12वीं अनुसूची जोड़कर शहरी क्षेत्र की स्थानीय स्वशासन संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया।
  • 76वां संशोधन (1994) —इस संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान की नवीं अनुसूची में संशोधन किया गया है और तमिलनाडु सरकार द्वारा पारित पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में 69 प्रतिशत आरक्षण का उपबंध करने वाली अधिनियम को नवीं अनुसूची में शामिल कर दिया गया है।
  • 78वां संशोधन (1995) —इसके द्वारा नवीं अनुसूची में विभिन्न राज्यों द्वारा पारित 27 भूमि सुधर विधियों को समाविष्ट किया गया है। नवीं अनुसूची में सम्मिलित अधिनियमों की कुल संख्या 284 हो गई है।
  • 79वां संशोधन (1999) —अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण की अवधि 25 जनवरी 2010 तक के लिए बढ़ा दी गई है। इस संशोधन के माध्यम से व्यवस्था की गई कि अब राज्यों को प्रत्यक्ष केंद्रीय करों से प्राप्त कुल धनराशि का 29 % हिस्सा मिलेगा।
  • 82वां संशोधन (2000) —इस संशोधन के द्वारा राज्यों को सरकारी नौकरियों से आरक्षित रिक्त स्थानों की भर्ती हेतु प्रोन्नति के मामलों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के अभ्यर्थियों के लिए न्यूनतम प्राप्ताकों में छूट प्रदान करने की अनुमति प्रदान की गई है।
  • 83वां संशोधन (2000) —इस संशोधन द्वारा पंचायती राज सस्थाओं में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण का प्रावधान न करने की छूट प्रदान की गई है। अरुणाचल प्रदेश में कोई भी अनुसूचित जाति न होने के कारन उसे यह छूट प्रदान की गई है।
  • 84वां संशोधन (2001) —इस संशोधन अधिनियम द्वारा लोक सभा तथा विधान सभाओं की सीटों की संख्या में वर्ष 2016 तक कोई परिवर्तन न करने का प्रावधान किया गया है।
  • 85वां संशोधन (2001) —सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जाति जनजाति के अभ्यर्थियों के लिए पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था।
  • 86वां संशोधन (2002) —इस संशोधन अधिनियम द्वारा देश के 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देने संबंधी प्रावधान किया गया है, इसे अनुच्छेद 21 (क) के अंतर्गत संविधान जोड़ा गया है. इस अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 51 (क) में संशोधन किए जाने का प्रावधान है
  • 87वां संशोधन (2003) —परिसीमन में संख्या का आधार 1991 की जनगणना के स्थान पर 2001 कर दी गई है।
  • 88वां संशोधन (2003) —संविधान के अनुच्छेद 268 के बाद निम्नलिखित अनुच्छेद जोड़ा जाए:-
    “268 ए (1) सेवाओं पर कर भारत सरकार द्वारा लगाया जाएगा और इन करों का संग्रहण और उपयोग भारत सरकार और राज्यों द्वारा धारा (2) में दिए प्रावधानों के अनुसार किया जाएगा।”
  • 89वां संशोधन (2003) —अनुसूचित जनजाति के लिए पृथक राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की व्यवस्था
  • 90वां संशोधन (2003) —असम विधान सभा में अनुसूचित जनजातियों और गैर अनुसूचित जनजातियों का प्रतिनिधित्व बरक़रार रखते हुए बोडोलैंड, टेरिटोरियल कौंसिल क्षेत्र, गैर जनजाति के लोगों के अधिकारों की सुरक्षा
  • 91वां संशोधन (2003) —इसमें दल-बदल विरोधी कानून में संशोधन किया गया।
  • 92वां संशोधन (2003) —इसमें आठवीं अनुसूची में चार और भाषाओं-मैथिली, डोगरी, बोडो और संथाली को जोड़ा गया।
  • 93वां संशोधन (2005) —इसमें एससी/एसटी व ओबीसी बच्चों के लिए गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों में 25 प्रतिशत सीटें आरक्षित रखने का प्रावधान किया गया।
  • 97वां संशोधन (2011) —इसमें संविधान के भाग 9 में भाग 9ख जोड़ा गया और हर नागरिक को कोऑपरेटिव सोसाइटी के गठन का अधिकार दिया गया।
  • 98वां संशोधन (2012) —कर्नाटक के राज्यपाल को हैदराबाद कर्नाटक क्षेत्र के लिए एक अलग विकास बोर्ड गठित करने का अधिकार दिया गया।
  • 99वां संशोधन (2014) —राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग का गठन सर्वोच्च न्यायालय द्वारा घोषित सन 2015 बांग्लादेश सीमा समझौता लागू किया गया।
  • 100वां संशोधन (2015) —बांग्लादेश के स्दाथ भूमि-सीमा समझौता (LBA) लागू किया गया।
  • 103वाँ संशोधन (2015) —जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा
  • 108वां संशोधन (2008) —इसके अन्तर्गत लोक सभा व राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है।
  • 109वाॅ संशोधन (2009) —पंचायती राज्य में महिला आरक्षण 33% से 50%
  • 110वां संशोधन (2010) —स्थानीक निकायों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान।
  • 111वां संशोधन —सहकारी संस्थाओं के नियमित चुनाव और उनमें आरक्षण।
  • 112वां संशोधन —नगर निकायों में महिलाओं के 33 प्रतिशत के स्थान पर 50 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान।
  • 113वां संशोधन —आठवीं अनुसूची में उडि़या भाषा के स्थान पर ओडिया किया जाना।
  • 114वां संशोधन —उच्च न्यायालयों में जजों की संवानिवृति आयु 62 वर्ष से बढ़ाकर 65 वर्ष किया जाना।
  • 115वां संशोधन —वस्तु एवं सेवा कर (GST) हेतु परिषद व विवाद निस्तारण प्राधिकरण की स्थापना।
  • 116वां संशोधन (2011) —लोकपाल बिल लोकसभा ने पारित कर दिया है, राज्यसभा में विचाराधीन है।
  • 117वां संशोधन (2012) —SC व ST को सरकारी सेवाओं में पदोन्नति आरक्षण
  • 118वां संशोधन (2012)
    1. पूर्वोत्‍तर क्षेत्र (पुनर्गठन) संशोधन विधेयक, 2012.
    2. मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम (संशोधन) विधेयक, 2012
    3. विनियोग (संख्‍या-4) विधेयक, 2012
    4. संविधान (118वां संशोधन) विधेयक, 2012
    5. गैर कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) संशोधन विधेयक, 2012
    6. बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक, 2012
    7. सुरक्षा हित एवं ऋण वसूली कानूनों का प्रवर्तन (संशोधन) विधेयक, 2012
  • 119वां संशोधन (2013) —बांग्लादेश सीमा समझौते की ओर एक कदम

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 28 मई 2015 को 119 वें संविधान संशोधन विधेयक, 2013 को मंजूरी दे दी। इससे पहले, यह विधेयक मई 2015 में संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिया गया था। यह विधेयक भारत बांग्लादेश के बीच भूमि सीमा समझौते (लैंड बाउंड्री एग्रीमेंट) से संबंधित है जिसके तहत दोनों देशों की सीमा के मध्य मौजूद कुछ क्षेत्रों के आदान-प्रदान का प्रावधान है। इस विधेयक के अनुपालन के लिए संविधान की पहली अनुसूची में संशोधन किया जायेगा।

विधेयक का प्रभाव

इस विधेयक के प्रभावी होने के बाद बांग्लादेश को भारत से 111 परिक्षेत्र मिलेंगे (17160 एकड़) जबकि भारत को बांग्लादेश से 51 परिक्षेत्र (7110 एकड़) प्राप्त होंगे।

असम में भारत को 470 एकड़ भूमि बांग्लादेश से प्राप्त होगी जबकि 268 एकड़ बांग्लादेश को दिया जायेगा। परिक्षेत्र प्रत्येक देश के एक छोटे भूभाग को कहते हैं जो दूसरे देश के अधिकार क्षेत्र में घिरा होता है। इस विधेयक में असम, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा तथा मेघालय में मौजूद परिक्षेत्र शामिल हैं।

  • 120वां संशोधन (2013) —न्यायिक नियुक्तियां आयोग के गठन हेतु

राज्यसभा ने न्यायिक नियुक्तियां आयोग (जेएसी) के गठन के लिए संविधान (120वां संशोधन) विधेयक (The Constitution (120th Amendment) Bill 2013) 5 सितंबर 2013 को पारित कर दिया. यह आयोग सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति की मौजूदा कोलेजियम (चयन मंडल) प्रणाली का स्थान लेगा. विधेयक के पक्ष में 131 और विरोध में 1 मत पड़े. भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों के सदन से वॉक आउट कर दिया.

न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक 2013 को संसद की स्थायी समिति में भेज दिया गया. इस विधेयक में प्रस्तावित आयोग के गठन की बात कही गई है. इससे पहले सरकार और विपक्ष कोलेजियम प्रणाली को समाप्त करने पर एक मत थे. कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने संविधान संशोधन विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका की भूमिका जरूरी है. उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति की वर्तमान प्रणाली ठीक से काम नहीं कर रही है.

कोलेजियम प्रणाली

कोलेजियम प्रणाली पांच न्यायाधीशों का एक समूह है. जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठ न्यायाधीश होते हैं. इसका अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय का प्रधान न्यायाधीश होता है. यह समूह ही उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति की सिफारिश करता है.

  • 121वां संशोधन (2014) —राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक

उच्चतम न्यायालय और देश के विभिन्न राज्यों के उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए संविधान के अनुच्छेद 124(2) और 217 के निर्वचन पर आधारित ‘कॉलेजियम’ व्यवस्था की जगह अब ‘न्यायिक नियुक्ति आयोग’ का गठन किया जाएगा। इस व्यवस्था को स्थापित करने के लिए संसद ने संविधान संशोधन (121वां) विधेयक, 2014 के साथ-साथ न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक, 2014 को भी पारित कर दिया है, किंतु संविधानिक व्यवस्था के अंतर्गत इन दोनों विधेयकों पर अभी कम से कम देश के आधे राज्यों की विधान सभाओं का अनुसमर्थन आवश्यक होने के कारण इस पर राष्ट्रपति का हस्ताक्षर नहीं हो सका है।

  • 122वां संशोधन (2016) —वस्तु एवं सेवा कर विधेयक (GST Bill)

भारत में वस्तु एवं सेवा कर विधेयक (Goods and Services Tax Bill या GST Bill) एक बहुचर्चित विधेयक है जिसमें 1 जुलाई 2017 से पूरे देश में एकसमान मूल्य वर्धित कर लगाने का प्रस्ताव है। इस कर को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) कहा गया है। यह एक अप्रत्यक्ष कर होगा जो पूरे देश में निर्मित उत्पादों और सेवाओं के विक्रय एवं उपभोग पर लागू होगा। 03 अगस्त 2016 को राज्यसभा में यह बिल पारित हो गया।

  • 123वां संशोधन (2017) —राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा
  • 124वां संशोधन (2019) —सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10 फीसदी आरक्षण .
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