मध्य पाषाण युग का आरम्भ बी.सी.ई 8000 के आसपास हुआ। यह पुरापाषाण और नव पुरापाषाण युग के बीच का संक्रमण काल है। धीरे-धीरे तापक्रम बढ़ा और मौसम गरम और सूखा होने लगा। परिवर्तन से मनुष्य का जीवन प्रभावित हुआ। पशु-पक्षी तथा पेड़-पौधों की किस्मों या प्रजातियों में भी परिवर्तन आया | औज़ार बनाने की तकनीक में परिवर्तन हुआ और छोटे पत्थरों का उपयोग किया जाने लगा।
मनुष्य मूलतः शिकारी-संग्रहकर्ता ही रहा, पर शिकार करने की तकनीक में परिवर्तन हो गया। अब न केवल बड़े बल्कि छोटे जानवरों का भी शिकार करने लगा। मछलियाँ पकड़ने लगा और पक्षियों का भी शिकार करने लगा। यह भौतिक और पारिस्थितिकी परिवर्तन पत्थर पर हुई चित्रकारी से भी प्रतिबिम्बित होता है।
मध्य पाषाण युग के औजार
मध्य पाषाण युग के औज़ार छोटे पत्थरों से बने हुए हैं। ये सूक्ष्म औज़ार आकार में काफी छोटे हैं और इनकी लम्बाई 4 से 8 से. मी. तक है। कुछ सूक्ष्म औज़ारों का आकार ज्यामितीय होता है। ब्लेड, कोर, नुकीले, त्रिकोण, नवचन्द्राकार और कई अन्य प्रकार के औज़ार मध्य पाषाण काल में उपयोग में लाए जाने वाले मुख्य ज्यामितीय औज़ार हैं। इनके अलावा इस काल में पुरापाषाण युग के औज़ार जैसे तक्षणा, खुरचनी और यहां तक कि गंडासा भी मिलते हैं।
- ब्लेड (Blade): यह एक प्रकार का विशेषीकृत परत होता है। इसकी लम्बाई इसकी चौड़ाई से दुगनी होती है। इनका उपयोग संभवतः काटने के लिए किया जाता होगा। मध्य पाषाण युग में औज़ार बनाने की तकनीक को फ्लूटिंग (गएागड़) कहा जाता है। ये ब्लेड साधारण ब्लेडों से कहीं अधिक पैने तथा कारगर होते हैं।
- कोर (Core): कोर साधारणतया आकार में बेलनाकार होता है जिसकी पूरी लंबाई में फ्लूटिंग के निशान होते हैं और इसमें एक सपाट प्लेटफार्म होता है।
- नुकीला औजार (Point): नुकीला औजार एक प्रकार का टूटा तिकोना ब्लेड होता है। इसके दोनों सिरे ढलवां तथा धारदार होते हैं। इसके सिरे सरल रेखीय या वक्र रेखीय भी हो सकते हैं।
- त्रिकोण (Triangle): इसमें साधारणत: एक सिरा और एक आधार होता है और सिरे को धारदार बनाया जाता है। इसका उपयोग काटने के लिए किया जाता है या इसे तीर के अग्र भाग में भी लगाया जाता है।
- नवचन्द्राकार (Lunate): नवचन्द्राकर औज़ार भी एक तरह का ब्लेड होता है लेकिन इसका एक सिरा वृत्ताकार होता है। यह एक वृत्त के हिस्से के समान मालूम होता है। इनका उपयोग अवतल कटाई के लिए किया जा सकता था या ऐसे दो औज़ारों को मिलाकर तीर का अग्रभाग तैयार किया जा सकता था।
- समलम्ब औजार (Trapeze): यह भी एक ब्लेड के समान ही दिखाई पड़ता है। इसके एक से अधिक सिरे धारदार होते हैं। किसी-किसी समलम्ब औज़ारों के तीन सिरे धारदार से लगभग होते हैं। इनका उपयोग तीर के अग्रभाग के रूप में होता होगा।
मध्य पाषाण युग की बस्तियाँ
अब हम भारत में मध्य पाषाण युग की महत्वपूर्ण बस्तियों के विषय में चर्चा करेंगे।
1. पचपद्र नदी घाटी
पचपद्र नदी घाटी और सोजत (राजस्थान) इलाके में सूक्ष्म औजार काफी मात्रा में मिले हैं। यहां पाई गई एक महत्वपूर्ण बस्ती तिलवारा है। तिलवारा में दो सांस्कृतिक चरण पाए गए हैं।
- पहला चरण मध्य पाषाण युग का प्रतिनिधित्व करता है तथा इस चरण की विशेषता सूक्ष्म औजारों का पाया जाना है।
- दूसरे चरण में चाक पर बने हुए मिट्टी के बर्तन और लोहे के टुकड़े इन सूक्ष्म औजारों के साथ पाए गए हैं।
मध्य पाषाण युग की बड़ी बस्तियों में से एक है – बंगोर (राजस्थान) जो कोठारी नदी के किनारे स्थित है। बगोर में खुदाई की गई तो तीन सांस्कृतिक अवस्थाएं पाई गई। सबसे प्रारंभिक अवस्था का समय 5000 से 2000 बी.सी.ई. निश्चित किया गया है।
2. ताप्ती, नर्मदा, माही और साबरमती नदियों
गुजरात में ताप्ती, नर्मदा, माही और साबरमती नदियों के आसपास भी कई मध्य पाषाण युग की बस्तियाँ पाई गई हैं। अक्खज, बलसाना, हीरपुर और लंघनाज साबरमती नदी के पूरब में स्थित है।
- सूक्ष्म औजारों में ब्लेड, त्रिकोणीय औजार, अर्धचन्द्रकार औज़ार, खुरचनी और तक्षणी आदि प्रमुख हैं।
3. विन्धय और सतपुरा
विन्धय और सतपुरा इलाके में मध्य पाषाण युग की अनेक बस्तियाँ पाई गई हैं। कैमूर पर्वत श्रृंखला में मध्य पाषाण युग की दो प्रमुख बस्तियाँ पाई गई हैं – मोरहाना पहाड़ (उतर प्रदेश) और लेखहीया (उतर प्रदेश)।
- भीमबेटका (मध्य प्रदेश) में अनेक सूक्ष्म औज़ार मिले हैं।
- भीमबेटका में पारिस्थितिकी संतुलन बसने के लिए अनुकूल था।
- भीमबेटका के दक्षिण में आदमगढ़ (होशंगाबाद) में मध्य पाषाण युग की एक प्रमुख बस्ती पाई गई है।
4. कोंकण के तटीय इलाके
कोंकण इलाके में कसूशोअल, जनयेरी, दभालगो और जलगढ़ जैसी कुछ प्रमुख बस्तियाँ पाई गई हैं। असिताश्म के बने दक्षिण पठार में भी अनेक मध्य पाषाण युग की 08 बस्तियाँ पाई गई हैं।
- कोंकण के तटीय इलाके और आन्तरिक पठार में भी मध्य पाषाण युग के औज़ार पाए गए हैं।
- धुलिया और पूना जिले में सूक्ष्म औज़ार पाए गए हैं।
5. छोटा नागपुर पठार
- छोटा नागपुर पठार, उडीशा के तटीय मैदानी क्षेत्र, बंगाल डेल्टा, ब्रहमपुत्र घाटी और शिलांग पठारी इलाके में भी सूक्ष्म औज़ार पाए गए हैं।
- प्राक् नवपाषाण युग के सूक्ष्म औज़ार छोटा नागपुर पठार में पाए गए हैं।
- मयूरभंज, कियोनझर और सुन्दरगढ़ में भी सूक्ष्म औज़ार पाए गए हैं।
- पश्चिम बंगाल में दामोदर नदी के किनारे बीभानपुर की भी खुदाई हुई है। यहां पर भी सूक्ष्म औज़ार पाए गए हैं।
- मेघालय की गारो पहाड़ियों में स्थित सेबालगिरी-2 में भी प्राक नव पाषीणयुगीन सूक्ष्म औज़ार पाए गए हैं।
6. कृष्णा और भीमा नदी
- कृष्णा और भीमा नदी में भी अनेक सूक्ष्म औज़ार पाए गए हैं। ये सूक्ष्म औजार नव पाषाण संस्कृति के चरण में भी पाए गए हैं
- कर्नाटक पठार के पश्चिमी किनारे पर स्थित सगंनकल में अनेक औजार मिले हैं जैसे कोर, नुकीले औजार, अर्धचन्द्राकार पतर आदि।
7. गोदावरी डेल्टा
बगोर, सराय-नहर राय और अदमगढ़ में मध्य पाषाण युग की बस्तियाँ पाई गई हैं।
- गोदावरी डेल्टा में भी सूक्ष्म औज़ार काफी मात्रा में पाए गए है।
- कुरनूल इलाके में भी काफी मात्रा में सूक्ष्म औज़ार पाए गए हैं।
- आन्ध्र प्रदेश के चित्तूर इलाके में रेणीगुंटा में सूक्ष्म औज़ार पाए गए हैं।
चूंकि मध्य पाषाण युग की काल सीमा काफी लंबी थी और भारत में अनेक मध्यपाषाण युग की बस्तियाँ पाई गई हैं। अतः विभिन्न बस्तियों को कालक्रमानुसार और वहां प्राप्त भौतिक अवशेषों के आधार पर वर्गीकृत करने का प्रयास किया गया है। कालक्रम तथा सूक्ष्म औज़ारों की बहुतायत मध्य पाषाण युग के सूचक हैं।
जीवन यापन के तरीके
मध्य पाषाण युग के दौरान लोग शाकाहारी एवं मांसाहारी दोनों प्रकार का भोजन खाते थे। मध्य पाषाण युग की अनेक बस्तियों जैसे लंघनाज और ततीलवारा से मछली, कछुए, खरगोश, नेवले, साही, मृग, नीलगाय के अवशेष पाए गए हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि भोजन के रूप में इनका उपयोग किया जाता होगा। शिकार करने और मछली मारने के अलावा मध्य पाषाण युग के लोग जंगली कन्द मूल, फल और मधु आदि का भी संग्रह करते थे और यह उनके भोजन का पूर्ण हिस्सा था।
पत्थर की गुफाओं की दीवारों पर बनाए गये चित्रों और नक््काशियों से मध्य पाषाण युग के सामाजिक जीवन और आर्थिक क्रियाकलाप से संबंधित काफी जानकारी मिलती है। भीमबेटका, आदमगढ़, प्रतापगढ़, मिर्जापुर, मध्य पाषाण युग की कला और चित्रकला की दृष्टि से समृद्ध हैं। इन चित्रों से शिकार करने, भोजन जुटाने, मछली पकड़ने और अन्य मानवीय क्रियाकलापों की भी झलक मिलती है। इन चित्रों और नक्काशियों से यौन संबंधों, बच्चों के जन्म, बच्चे के पालन पोषण और शव दफन से संबंधित अनुष्ठानों की भी झलक मिलती हैं।
निष्कर्ष
इन सब बातों से यह संकेत मिलता है कि मध्य पाषाण युग में पुरापाषाण युग की अपेक्षा सामाजिक संगठन अधिक सुदृढ़ हो गया था। ऐसा प्रतीत होता है कि मध्य पाषाण युग के लोगों का धार्मिक विश्वास पारिस्थितिकी और भौतिक परिस्थितियों से प्रभावित था।
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