संविधान के अनुच्छेद 72 में राष्ट्रपति की क्षमादान करने की शक्तियाँ उन व्यक्तियों को प्रदान की गई है, जो निम्नलिखित मामलों में किसी अपराध के लिए दोषी करार दिए गए हैं:
- संघीय विधि के विरुद्ध किसी अपराध में दिए गए दंड में;
- सैन्य न्यायालय द्वारा दिए गए दंड में, और;
- यदि दंड का स्वरूप मृत्युदंड हो।
राष्ट्रपति की क्षमादान करने की शक्तियाँ
राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति न्यायपालिका से स्वतंत्र है। वह एक कार्यकारी शक्ति है परंतु राष्ट्रपति इस शक्ति का प्रयोग करने के लिए किसी न्यायालय की तरह पेश नहीं आता। राष्ट्रपति की इस शक्ति के दो रूप है-
- विधि के प्रयोग में होने वाली न्यायिक गलती को सुधारने के लिए,
- यदि राष्ट्रपति दंड का स्वरूप अधिक कड़ा समझता है तो उसका बचाव प्रदान करने के लिए।
भारत के राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति में निम्नलिखित बातें सम्मिलित हैं-
1. क्षमा
इसमें दण्ड और बंदीकरण दोनों को हटा दिया जाता है तथा दोषी की सभी दण्ड, दण्डादेशों और निर्रहताओं से पूर्णत: मुक्त कर दिया जाता है।
2. लघुकरण
इसका अर्थ है कि दंड के स्वरूप को बदलकर कम करना। उदाहरणार्थ मृत्युदंड का लघुकरण कर कठोर कारावास में परिवर्तित करना, जिसे साधारण कारावास में परिवर्तित किया जा सकता है।
3. परिहार
इसका अर्थ है, दंड के प्रकृति में परिवर्तन किए बिना उसकी अवधि कम करना। उदाहरण के लिए दो वर्ष के कठोर कारावास को एक वर्ष के कठोर कारावास में परिहार करना।
4. विराम
इसका अर्थ है किसी दोषी को मूल रूप में दी गई सजा को कि विशेष परिस्थितियों में कम करना जैसे शारीरिक अपंगता अथवा महिलाओ को गर्भावस्था की अवधि के कारण।
5. प्रविलवन
इसका अर्थ है किसी दंड (विशेषकर मृत्यु दंड) पर अस्थायी रोग लगाना। इसका उद्देश्य है कि दोषो व्यक्ति का क्षमा याचना अथवा दड के स्वरूप परिवर्तन को याचना के लिए समय देना।
राज्यपाल भी क्षमादान को शक्तिया
संविधान के अनुच्छेद 161 के अंतर्गत राज्य का राज्यपाल भी क्षमादान को शक्तिया रखता है। अत: राज्यपाल भी किसी दंड को क्षमा कर सकता है अस्थाई रूप से रोक सकता है, सजा को या सजा की अवधि को कम कर सकता है।
परंतु निम्नलिखित दो परिस्थितियों में राज्यपाल की क्षमादान शक्तिया राष्ट्रपति से भिन्न हैं:-
- राष्ट्रपति सैन्य न्यायालय द्वारा दी गई सजा को क्षमा कर सकता है परंतु राज्यपाल नहीं।
- राष्ट्रपति मृत्युदंड को क्षमा कर सकता है परंतु राज्यपाल नहीं कर सकता।
हालांकि राज्यपाल मृत्युदंड को निलंबित दंड का स्वरूप परिवर्तित अथवा दडावधि को कम कर सकता है।
दंड का स्वरूप बदलने के संबंध में उच्चतम न्यायालय का सिद्धात
मृत्युदंड के निलंबन, दंडावधि कम करने, दंड का स्वरूप बदलने के संबंध में राज्यपाल व राष्ट्रपति की शक्तिया समान उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति का विभिन्न मामलों में अध्ययन कर निम्नलिखित सिद्धात बनाए हैं:
- दया की याचना करने वाले व्यक्ति को राष्ट्रपति से मौखिक सुनवाई का अधिकार नहीं है।
- राष्ट्रपति प्रमाणी (साक्ष्य) का पुनः अध्ययन कर सकता है और उसका विचार न्यायालय से भिन्न हो सकता है।
- राष्ट्रपति इस शक्ति का प्रयोग केंद्रीय मंत्रिमंडल के परामर्श पर करेगा।
- राष्ट्रपति अपने आदेश के कारण बताने के लिए बाध्य नहीं
- राष्ट्रपति न केवल दंड पर राहत दे सकता बल्कि प्रमाण भूल के लिए भी राहत दे सकता है।
- राष्ट्रपति को अपनी शक्ति का प्रयोग करने के लिए उच्चतम यायालय द्वारा कोई भी दिशा-निर्देश निर्धारित करने की आवश्यकता नहीं है।
- राष्ट्रपति की इस शक्ति पर कोई भी न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती
- जब क्षमादान की पूर्व याचिका राष्ट्रपति ने रद्द कर दी हो, तो दूसरी याचिका नहीं दायर की जा सकती।
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- Chapter-2: संविधान का निर्माण
- Chapter-3: भारतीय संविधान की विशेषताएं व आलोचना
- Chapter-4: संविधान की प्रस्तावना
- Chapter-5: संघ एवं इसका क्षेत्र
- Chapter-6: नागरिकता | Citizenship
- Chapter-7: मूल अधिकार | Fundamental Rights
- Chapter-8: राज्य के नीति निदेशक तत्व
- Chapter-9: मूल कर्तव्य | Fundamental Duties
- Chapter-10: संविधान का संशोधन प्रक्रिया क्या है? आलोचना व महत्व
- Chapter-11: संविधान की मूल संरचना का विकास, सिद्धांत, तत्व और सम्बंधित मामले
- Chapter-12: संसदीय व्यवस्था की परिभाषा, विशेषतायें, गुण तथा दोष
- Chapter-13: संघीय व्यवस्था तथा एकात्मक व्यवस्था
- Chapter-14: केंद्र-राज्य संबंध
- Chapter-15: अंतर्राज्यीय संबंध | Interstate Relation
- Chapter-16: आपातकालीन प्रावधान | Emergency Provision
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