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रामायण के 7 कांड कौन-कौन से है तथा उसका महत्व क्या है?

Gulshan Kumar
Last updated: 2023-11-30 00:36
By Gulshan Kumar 1.5k Views
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8 Min Read

रामायण आदिकवि वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य है। जिसे भगवान श्री राम की कथा कहा जाता है, इसमें लगभग 24,000 श्लोक, 500 सर्ग एवं 7 कांड हैं। इसमें श्लोकबद्ध 7 अध्याय आते हैं और उन्हें ही रामायण के 7 कांड कहा जाता है। यह हिन्दुओं का सबसे लोकप्रिय ग्रंथ हैं। प्रभु श्री राम के वन से अयोध्या लौटने के बाद रामायण की रचना हुई है, जिसके मुख्य पात्र- श्री राम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान, सुग्रीव, अंगद, मेघनाद, विभीषण, कुंभकर्ण तथा रावण हैं। रामायण के 7 अध्याय हैं जिन्हें कांड के नाम से जाना जाता हैं।

Contents
सम्पूर्ण रामायण के 7 कांड है जो निम्न है-रामायण के 7 कांड के नाम इस प्रकार है –1. बालकांड2. अयोध्या कांड3. अरण्यकांड4. किष्किन्धाकांड5. सुन्दरकांड6. लंकाकांड7. उत्तरकांड

सम्पूर्ण रामायण के 7 कांड है जो निम्न है-

  1. बालकांड
  2. अयोध्याकांड
  3. अरण्यकांड
  4. किष्किन्धाकांड
  5. सुन्दरकांड
  6. लंकाकांड एवं
  7. उतरकांड।

रामायण के 7 कांड के नाम इस प्रकार है –

1. बालकांड

अयोध्या के राजा दशरथ एवं उनके शासन तथा नीति का वर्णन हैं। राजा दशरथ पुत्र-प्राप्ति के निमित्त पुत्रोष्टि (यज्ञ) करते हैं तथा ऋष्यशृंग के द्वारा यज्ञ सम्पन्न होता है और राजा को चार पुत्र होते हैं। राजा की तीन पटरानियों मे से-कौशल्या से राम, कैकेयी से भरत एवं सुमित्रा से लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न उत्पन्न होते हैं।

विश्वामित्र अपने यज्ञ की रक्षा के लिए राजा दशरथ से राम-लक्ष्मण को अपने साथ ले जाते हैं, वहाँ उन्हें महर्षि द्वारा बला और अतिबला नामक दो विद्याएँ तथा अनेक अस्त्रों की प्राप्ति होती है तथा वे उनके संचालन की विधि का भी ज्ञान प्राप्त करते हैं। राम विश्वामित्र के यज्ञ में बाधा डालने वाले राक्षसों–ताड़का, मारीच तथा सुबाहु-का वध कर सिद्धाश्रम देखते हैं।

बाल कांड में अन्य कथाएं

बालकांड में बहुत-सी कथाओं जिसमे विश्वामित्र के वंश का वर्णन तथा तत्संबंधी कथाएँ, गंगा एवं पार्वती की उत्पत्ति की कथा, कार्तिकेय का जन्म, राजा सागर एवं उनके साठ सहत्र पुत्रों की कथा, भगीरथ की कथा, दिति-अदिति की कथा तथा समुद्र-मंथन का वृत्तान्त, गौतम-अहल्या की कथा तथा राम के दर्शन से उसका उद्धार।

विश्वामित्र की तपस्या एवं मेनका द्वारा उनकी तपस्या भंग होना, विश्वामित्र का पुन: तपस्या में प्रवृत्त होना एवं ब्रह्मर्षि-पद की प्राप्ति, राम-लक्ष्मण का विश्वामित्र के साथ मिथिला में पधारना, सीता और उर्मिला की उत्पति का वर्णन, राम द्वारा शिव धनुष का तोड़ना एवं चारों भाइयों का विवाह।

2. अयोध्या कांड

इसमें अधिकांश कथाएँ मानवीय हैं। राजा दशरथ द्वारा राम के राज्याभिषेक की चर्चा सुन कर कैकेयी की दासी मंथरा का कैकेयी को बहकाना, कैकेयी का कोपभवन में जाना। राजा के मनाने पर पूर्व प्राप्त दो वरदानों को मांगना, जिसके अनुसार राम को चौदह वर्षो का वनवास एवं भरत को राजगद्दी की प्राप्ति। इसके फलस्वरूप राम, सीता और लक्ष्मण का वन-गमन एवं उनके वियोग में राजा दशरथ की मृत्यु।

ननिहाल से भरत का अयोध्या आगमन और राम को मनाने के लिय उनका चित्रकूट में प्रस्थान करना, राम-लक्ष्मण का भरत-संबंधी सन्देह तथा परस्पर वार्त्तालाप, भरत और राम का विलाप, जाबालि द्वारा राम को नास्तिक धर्म का उपदेश तथा राम का उन पर क्रोध करना।

पिता के वचन को सत्य करने के लिए राम का भरत को लौटकर राज्य करने का उपदेश, राम की चरण-पादुका का लेकर भरत का लौटना और नन्दिगा्रम में वास, राम का दण्डकारण्य में प्रवेश करना।

3. अरण्यकांड

अरण्यकाण्ड में राम का स्वागत तथा पंचवटी में राम का आगमन, जटायु से भेंट, शूर्पनखा वृत्तान्त, खरदूषण एवं मारीच का स्वर्ण मृग बनना, स्वर्ण मृग का राम द्वारा वध एवं सूना आश्रम देख कर रावण का सीता-हरण करना, पक्षिराज जटायु का रावण से सीता को छुड़ाने के प्रयत्न में घायल होना तथा राम-लक्ष्मण द्वारा उसका वध।

दिव्य रूप धारी कबन्ध का राम-लक्ष्मण को सुग्रीव से मित्रता करने की राय देकर ऋष्यमूक तथा पम्पा सरोवर का मार्ग बताना, राम-लक्ष्मण का पम्पा सरोवर के तट पर मतंग वन में जाना तथा शबरी से भेंट, अपने शरीर की आहुति देकर शबरी का दिव्यधाम में पहुँचना।

4. किष्किन्धाकांड

पम्पा के तीर पर राम-लक्ष्मण का शोकपूर्ण संवाद तथा पम्पासर का वर्णन, राम और सुग्रीव की मैत्री, सुग्रीव का राम से बाली की कथा कहना एवं राम द्वारा बाली का वध, सुग्रीव का राज्याभिषेक एवं सीता की खोज करने के लिये उसका वानरों को भेजना, वानरों का मायासुर-रक्षित ऋक्षबिल में जाना तथा वहाँ स्वयंप्रभा तपस्विनी की सहायता से सागर-तट पर पहुँचना, हनुमान का समुद्र लाँघने के लिए उत्साह प्रकट करना।

5. सुन्दरकांड

समुद्र-संतरण करते हुए हनुमान का लंका में जाना, लंकापुरी का अलंकृत वर्णन, रावण के शयन एवं पानभूमि का वर्णन, अशोक वन में सीता को देखकर हनुमान् का विषाद करना, लंका-दहन तथा वाटिकाविध्वंस कर हनुमान द्वारा सीता का कुशल राम-लक्ष्मण को सुनाना।

6. लंकाकांड

राम का हनुमान की प्रशंसा, लंका की स्थिति के सम्बन्ध में प्रश्न, रामादि का लंका प्रयाण, विभीषण का राम की शरण में आना और राम की उसके साथ मंत्रणा, समुद्र पर बाँध बाँधना, लंका पर चढ़ाई, मेघनाद द्वारा ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर राम-लक्ष्मण को मूिच्र्छत करना, हनुमान का द्रोण-पर्वत को लाकर राम-लक्ष्मण एवं वानर-सेना को चेतना प्राप्त कराना।

मेघनाद एवं कुम्भकर्ण का वध, राम-रावण युद्ध, रावण की शक्ति से लक्ष्मण का मूिच्र्छत होना, इन्द्र के सारथी मातलि के परामर्श से ब्रह्मास्त्र से राम द्वारा रावण का वध, राम के सम्मुख सीता का आना तथा लक्ष्मण रचित अग्नि में सीता का प्रवेश तथा सीता को निर्दोष सिद्ध करते हुए अग्नि का राम को समर्पित करना, वनवास की अवधि की समाप्ति के पश्चात् राम का अयोध्या लौटना तथा अभिषेक, सीता का हनुमान को हार देना तथा रामराज्य का वर्णन।

7. उत्तरकांड

राम के पास कौशिक, अगस्त्य आदि ऋषियों का आगमन, अगस्त्य मुनि द्वारा रावण के पितामह पुलस्त्य एंव पिता विश्रवा की कथा सुनाना, रावण, कुम्भकर्ण एवं विभीषण की जन्म-कथा तथा रावण की विजयों का विस्तारपूर्वक वर्णन, (रावण का वेदवती नामक तपस्विनी को भ्रष्ट करना और उसका सीता के रूप में जन्म लेना)

हनुमान् के जन्म की कथा जनक-केकय, सुग्रीव, विभीषण आदि का प्रस्थान, सीता-निर्वासन तथा वाल्मीकि के आश्रम में उनका निवास, लवणासुर के वध के लिए शत्रुघ्न का प्रस्थान तथा वाल्मीकि के आश्रम पर ठहरना, लव-कुश की जन्म, दुर्वासा का आगमन एवं लक्ष्मण को शाप देना, लक्ष्मण की मृत्यु तथा सरयू तीर पर पधार का राम का स्वर्गारोहण करना।

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