सामयिक अंकेक्षण (Periodical audit) में पूरे वर्ष में अंकेक्षण का कार्य एक बार ही होता है। यह अंकेक्षण अंतिम लेखे तैयार होने के पश्चात शुरु होता है अर्थात् जब कोई वित्तीय वर्ष समाप्त हो जाता है और अंतिम खाते तैयार हो जाते हैं, उसके पश्चात अंकेक्षण का कार्य आरंभ होता है। इसे वार्षिक, पूर्णकृत, अन्तिम एवं चिट्ठा अंकेक्षण भी कहते हैं।
सामयिक अंकेक्षण परिभाषा (Definition of periodical audit)
1. स्पाईसर एवं पेग्लर – “एक अंतिम अथवा पूर्ण अंकेक्षण का आशय सामान्यतः ऐसे अंकेक्षण से होता है जो उस समय तक प्रारंभ नहीं होता, जब तक कि वित्तीय वर्ष समाप्त न हो जाए। उसके पश्चात यह कार्य तब तक जारी रहता है जब तक पूरा नहीं होता।”
2. जे.आर. बाटलीबॉय – “सामयिक अथवा चिट्ठा अंकेक्षण वह है जिसमें अंकेक्षक अवधि के अंत में अंकेक्षण करता है, वह लेखा पुस्तकों की प्रमाणकों या प्रपत्रों से सूक्ष्म जाँच कर लेखों के अंतिम विवरण को प्रमाणित करता है।”
उपरोक्त परिभाषा से यह स्पष्ट होता है कि अंकेक्षण वित्तीय काल के समाप्ति के पश्चात किया जाता है और एक बार में ही पूरा किया जाता है।
सामयिक अंकेक्षण की विशेषताएँ (Features of Periodical audit)
- सामयिक अंकेक्षण वित्तीय वर्ष की समाप्त होने तथा अंतिम लेखे तैयार होने के पश्चात आरंभ होता है।
- Periodical audit में अंकेक्षण कार्य एक ही सत्र में पूरा होता है।
- सामयिक अंकेक्षण के अंकेक्षक एक ही बार मुवक्किल के संस्था में जाते हैं।
- सामयिक अंकेक्षण मितव्ययी है।
सामयिक अंकेक्षण के उपयोगिता क्षेत्र (Utility Areas of Periodical Audit)
- जहाँ व्यवसाय का कारोबार कम होता है।
- जहाँ आंतरिक निरीक्षण प्रणाली संतोषजनक है।
- जहाँ अंतरिम खाते नहीं बनाए जाते हैं।
- जहाँ गहन एवं विस्तृत जाँच की आवश्यकता न हो।
- जहाँ वित्तीय वर्ष समाप्त होने के पश्चात अंतिम लेखे शीघ्र जारी करने की आवश्यकता नहीं होती है।
सामयिक अंकेक्षण के लाभ (Benefit of Periodical Audit)
- मितव्ययी पद्धति
- दैनिक कार्यों में बाधा नहीं आती।
- नैतिक प्रभाव अधिक
- सुविधाजनक
- अंक परिवर्तन की सम्भावना कम
- एक ही सत्र में अंकेक्षण
- शीघ्र जाँच संभव
- कार्य विभाजन तत्त्व का अनुसरण सरल
1. मितव्ययी पद्धति
सामयिक अंकेक्षण चालू अंकेक्षण से मितव्ययी है, क्योंकि Periodical audit में अंकेक्षक तथा उसके कर्मचारी मुवक्किल के कार्यालय में बार-बार नहीं आते। वे वित्तीय वर्ष समाप्ति तथा अंतिम लेखे तैयार होने के पश्चात आते हैं जिससे समय एवं पैसों की मितव्ययता होती है।
2. दैनिक कार्यों में बाधा नहीं आती
Periodical audit में अंकेक्षक तथा उसके कर्मचारी निरंतर मुवक्किल के कार्यालय में नहीं आते। वह एक ही बार वित्तीय वर्ष समाप्ति के बाद आते हैं जिससे मुवक्किल के संस्था में रोजाना कार्य प्रभावित नहीं होता।
3. नैतिक का प्रभाव
अधिक सामयिक अंकेक्षण में अंकेक्षक तथा उनके कर्मचारियों में निरंतर मुवक्किल के कर्मचारियों से संबंध प्रस्थापित नहीं होते जिससे उनमें अनौपचारिक संबंध नहीं बन पाते, इसलिए अंकेक्षक तथा उनके कर्मचारियों का मुवक्किल के कर्मचारियों पर नैतिक प्रभाव अधिक होता है।
4. सुविधाजनक
सामयिक अंकेक्षण अंकेक्षक तथा मुवक्किल दोनों के लिए सुविधाजनक होता है, क्योंकि इसमें अंकेक्षक को मुवक्किल की संस्था में निरंतर आने की आवश्यकता नहीं होती। साथ ही, मुवक्किल की संस्था का दैनिक कार्य प्रभावित नहीं होता, इसलिए यह अंकेक्षण दोनों के लिए सुविधाजनक माना जाता है।
5. अंक परिवर्तन की संभावना कम
सामयिक अंकेक्षण में अंकेक्षण कार्य एक ही सत्र में पूरा होता है, इसलिए लेखा पुस्तकों के अंकों में परिवर्तन करने की सम्भावना अत्यल्प रहती है।
6. एक ही सत्र में अंकेक्षण
Periodical audit में वित्तीय वर्ष तथा अंतिम लेखे तैयार होने के पश्चात आरंभ होता है और एक ही सत्र में कार्य पूरा किया जाता है।
7. शीघ्र जाँच संभव
सामयिक अंकेक्षण में वित्तीय वर्ष तथा अंतिम लेखे तैयार होने के पश्चात आरंभ होता है और यह कार्य उस समय तक जारी रहता है, जब तक कार्य पूरा नहीं होता। इसमें कोई भी समय अंतराल नहीं होता, इसलिए वह कार्य शीघ्र पूरा होता है।
8. कार्य विभाजन तत्त्व का अनुसरण सरल
सामयिक अंकेक्षण में अंकेक्षण कार्य एक ही सत्र में पूरा होने के कारण, कार्य विभाजन तत्त्व तथा उनका अनुसरण करना अंकेक्षक के लिए सरल होता है।
सामयिक अंकेक्षण के दोष (Faults of periodical audit)
- विस्तृत एवं गहन जाँच का अभाव
- अंतिम खाते जारी करने में देरी
- छल-कपट एवं त्रुटियों का शीघ्र पता नहीं लगता
- मार्गदर्शन असंभव
- लेखा पुस्तक अद्यतन की सम्भावना अत्यल्प
- अंतरिम खाते तैयार करना असंभव
1. विस्तृत एवं गहन जाँच का अभाव
सामयिक अंकेक्षण में विस्तृत एवं गहन जाँच संभव नहीं होती, क्योंकि यह कम समय में किया जाता है।
2. अंतिम खाते जारी करने में देरी
Periodical audit में चालू अंकेक्षण की तरह पूर्ण वर्ष अंकेक्षण कार्य जारी नहीं रहते, अतः अंतिम खाते जारी करने में देरी होती है।
3. छल-कपट एवं त्रुटियों का शीघ्र पता नहीं लगता
सामयिक अंकेक्षण में वर्ष समाप्ति के पश्चात अंकेक्षण कार्य आरंभ होता है। इस वजह से छल-कपट एवं त्रुटियों का शीघ्र पता नहीं लगता।
4. मार्गदर्शन असंभव
सामयिक अंकेक्षण में अंकेक्षक का मुवक्किल के कर्मचारियों को लेखा कार्य के दौरान मार्गदर्शन नहीं मिल पाता, क्योंकि अंकेक्षण वित्तीय वर्ष समाप्ति के बाद में वह मुवक्किल के संस्था में आता है।
5. लेखा पुस्तक अद्यतन की सम्भावना अत्यल्प
Periodical audit में अंकेक्षण वित्तीय वर्ष समाप्ति के बाद आरंभ होता है, इस वजह से अंकेक्षक लेखा पुस्तक वित्तीय वर्ष के दौरान अद्यतन रहने की सम्भावना अत्यल्प रहती है।
6. अंतरिम खाते तैयार करना असंभव
सामयिक अंकेक्षण वित्तीय वर्ष समाप्त होने के पश्चात आरंभ होता है जिस कारण संस्था के स्वामी अथवा संचालक मंडल को जब विशेष अवधि समाप्ति के पश्चात उस अवधि के अतरिम खाते की आवश्यकता होती है, तब वह तैयार करना असंभव होता है।
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