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संघीय सरकार क्या है? प्रारूप व विशेषताएं

Times Darpan
Last updated: 2022-10-20 17:35
By Times Darpan 1.3k Views
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15 Min Read
संघीय सरकार

राजनीति शास्त्रियों ने राष्ट्रीय सरकार एवं क्षेत्रीय सरकार के संबंधों की प्रकृति के आधार पर सरकार को दो भागों-एकल व संघीय सरकार में वर्गीकृत किया है।

Contents
संघीय सरकार क्या है?संघीय सरकार का प्रारूपसंविधान की संघीय विशेषताएं1. द्वैध राजपद्धति2. लिखित संविधान3. शक्तियों का विभाजन4. संविधान की सर्वोच्चता5. कठोर संविधान6. स्वतंत्र न्यायपालिका7. द्विसदनीय विधायिकासंघीय एवं एकात्मक सरकार की तुलनात्मक विशेषतासंघीय व्यवस्था का आलोचनात्मक मुल्यांकनRead more Chapter:-

संघीय सरकार क्या है?

संघीय सरकार वह है, जिसमें शक्तियां संविधान द्वारा केंद्र सरकार एवं क्षेत्रीय सरकार में विभाजित होती हैं। दोनों अपने अधिकार क्षेत्रों का प्रयोग स्वतंत्रतापूर्वक करते हैं। अमेरिका, स्विट्जरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, रूस, ब्राजील, अर्जेंटीना आदि में सरकार का संघीय मॉडल है। संघीय मॉडल में राष्ट्रीय सरकार को संघ सरकार या केंद्रीय सरकार या संघीय सरकार के रूप में जाना जाता है और क्षेत्रीय सरकार को राज्य सरकार या प्रांतीय सरकार के रूप में जाना जाता है।

संघ शासन’ शब्द को लैटिन शब्द ‘फोएडस’ से लिया गया है, जिसका अभिप्राय है- ‘संधि’ या ‘समझौता’। इस तरह संघ शासन एक नया राज्य (राजनीतिक व्यवस्था) है, जिसे विभिन्न इकाइयों के बीच संधि या समझौते के तहत निर्मित किया गया है। संघों की इकाइयों को विभिन्न नामों, जैसे राज्य (जैसा कि अमेरिका में) या कैन्टोन (जैसा कि स्विट्जरलैंड में) या प्रांत जैसा कि कनाडा में) या गणतंत्र (जैसा कि रूस में) से पुकारा जाता है।

संघीय सरकार का प्रारूप

संघ शासन दो रूपों में निर्मित होता है।

वे हैं-

  • एकीकरण व
  • विभेदीकरण।

पहले मामले में सैनिक कमजोरी वाले या आर्थिक रूप से पिछड़े राज्य (स्वतंत्र) मिलकर एक बड़े व मजबूत संघ का निर्माण करते हैं, उदाहरण के लिए अमेरिका में।

दूसरे मामले में, बड़ा एकीकृत राज्य संघ में परिवर्तित हो जाता है, जहां राज्यों को स्वायत्तता होती है (उदाहरण के लिए कनाडा में)।

अमेरिका विश्व में पहला व प्राचीनतम संघीय शक्ति वाला देश है, यह अमेरिकी क्रांति (1775-83) के बाद 1787 में बना। इसमें 50 राज्य (मूलत: 13 राज्य) समाहित हैं। संघीय शासन में कनाडा 10 प्रांतों (मूल रूप से 4 प्रांत) से निर्मित] भी काफी पुराना है, जो 1867 में निर्मित हुआ।

भारत के संविधान में संघीय सरकार व्यवस्था को अपनाया गया। संविधान निर्माताओं ने संघीय व्यवस्था को दो कारणों से अपनाया;

  • देश का बृहद आकार एवं
  • सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता।

उन्होंने महसूस किया कि संघीय व्यवस्था से न केवल सरकार की शक्ति बढ़ेगी बल्कि क्षेत्रीय स्वायत्तता एवं राष्ट्रीय एकता में अभिवृद्धि होगी।

वैसे संविधान में कहीं भी ‘संघ’ शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है। इसके स्थान पर संविधान का अनुच्छेद 1 भारत को राज्यों के संघ‘ के रूप में परिभाषित करता है। डॉ. बी. आर. अम्बेडकर के अनुसार, ‘राज्यों के संघ’ से दो बातें उभरकर सामने आती हैं

  • अमेरिकी संघ के विपरीत, भारतीय संघ राज्यों के बीच सहमति का प्रतिफल नहीं है तथा
  • राज्यों को यह अधिकार नहीं है कि वे स्वयं को संघ से पृथक कर सकें। फेडरशेन संघ है क्योंकि वह अविभाज्य है।’

भारत की संघीय व्यवस्था कनाडाई मॉडल‘ पर आधारित है। एक अत्यंत सशक्त केंद्र के होने के आधार पर कनाडाई मॉडल, अमेरिकी मॉडल से सर्वथा भिन्न है। भारतीय संघीय व्यवस्था, कनाडाई व्यवस्था से इन आधारों पर समानता प्रदर्शित करती है –

  • इसका निर्माण (यानि की विखंडित होने के तरीकों),
  • संघ’ शब्द का प्रमुखता से प्रयोग (कनाडा में भी संघ शब्द का प्रयोग किया गया है),
  • इसकी केंद्रीयकरण की प्रवृत्ति (राज्यों की तुलना में केंद्र का ज्यादा शक्तिशाली होना)।

संविधान की संघीय विशेषताएं

भारतीय संविधान की संघीय विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

1. द्वैध राजपद्धति

संविधान में संघ स्तर पर केंद्र एवं राज्य स्तर पर राजपद्धति को अपनाया गया। प्रत्येक को संविधान द्वारा क्रमश: अपने क्षेत्रों में संप्रभु शकियां प्रदान की गई हैं। केंद्र सरकार राष्ट्रीय महत्व के मामलों, जैसे-रक्षा, विदेश, मुद्रा, संचार आदि को देखती है, जबकि दूसरी तरफ राज्य सरकरें क्षेत्रीय एवं स्थानीय महत्व के मुद्दों को देखती हैं, जैसे-सार्वजनिक व्यवस्था, कृषि, स्वास्थ्य, स्थानीय प्रशासन आदि।

2. लिखित संविधान

हमारा संविधान न केवल लिखित अभिलेख है, वरन्‌ विश्व का सबसे विस्तृत संविधान भी है। मूलत: इसमें एक प्रस्तावना, 395 अनुच्छेद (22 भागों में विभक्त) और 8 अनुसूचियां थीं। वर्तमान समय (2019) में इसमें 465 अनच्छेद (25 भागों में विभक्त) और 12 अनुसूचिया है। इसमें केंद्रीय एवं राज्य सरकारों की शक्तियों एवं उनके प्रयोग की विस्तृत विवेचना है। अत: यह दोनों के मध्य गतलफहमी और असहमति को उत्पन्न नहीं होने देता।

3. शक्तियों का विभाजन

संविधान में केंद्र एवं राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया। इनमें सातवीं अनुसूची में केंद्र, राज्य एवं दोनों से संबंधित सूची निहित हैं। केंद्र सूची में 90 विषय हैं (मूलत: 97) , राज्य सूची में 59 विषय हैं (मूलत: 66) और समवर्ती सूची में 52 विषय (मूलत: 47) हैं। समवर्ती सूची के विषयों पर केंद्र एवं राज्य दोनों कानून बना सकते हैं। टकराव की स्थिति में केंद्र की विधि प्रभावी होगी। अवशेषीय विषय अर्थात्‌ जो किसी भी सूची में नहीं हैं, केन्द्र को दिए गए हैं।

4. संविधान की सर्वोच्चता

संविधान सर्वोच्च है, केंद्र या राज्य सरकार द्वारा प्रभावी कानूनों के विषय में इसकी व्यवस्था सुनिश्चित होनी चाहिए अन्यथा इन्हें उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय में न्यायिक समीक्षा के तहत अवैध घोषित किया जा सकता है। इस तरह सरकार के घटकों (विधायिका, कार्यकारी एवं न्यायिक) को दोनों स्तरों पर संविधान द्वारा विधित क्षेत्र के अंतर्गत कार्य करना चाहिए।

5. कठोर संविधान

संविधान द्वारा शक्तियों का विभाजन एवं संविधान की सर्वोच्चता तभी बनाए रखी जा सकती है, जब संविधान में संशोधन की प्रक्रिया कठोर हो। यद्यपि संविधान में संशोधन इस सीमा तक कठोर है, जिससे वे प्रावधान जो संघीय संरचना (यथा- केंद्र-राज्य संबंध एवं न्यायिक संगठन) से संबंधित हैं, मात्र केंद्र एवं राज्य सरकारों की समान संस्तुति से ही संशोधित किए जा सकते हैं। इन प्रावधानों के संशोधन हेतु संसद के विशेष बहुमत’ एवं संबंधित राज्यों में से आधे से अधिक की स्वीकृति अनिवार्य होती है।

6. स्वतंत्र न्यायपालिका

संविधान ने दो कारणों से उच्चतम न्यायालय के नेतृत्व में स्वतंत्र न्यायपालिका का गठन किया है। एक, अपनी न्यायिक समीक्षा के अधिकार का प्रयोग कर संविधान की सर्वोच्चता को स्थापित करना, और दूसरा, केंद्र एवं राज्य के बीच विवाद के निपटारे के लिए। संविधान ने विभिन्न तरीकों से न्यायपालिका को स्वतंत्र बनाया है, जैसे-न्यायाधीशों के कार्यकाल की सुरक्षा, निश्चित सेवा शर्ते आदि।

7. द्विसदनीय विधायिका

संविधान ने द्विसदनीय विधायिका की स्थापना की है उच्च सदन (राज्यसभा) और निम्न सदन (लोकसभा)। राज्यसभा, भारत के राज्यो का प्रतिनिधित्व करती है, जबकि लोकसभा भारत के लोगों (पूर्ण रूप से) का। राज्यसभा (यद्यपि कम शक्तिशाली है) केन्द्र के अनावश्यक हस्तक्षेप से राज्यों के हितों की रक्षा करती है।

संघीय एवं एकात्मक सरकार की तुलनात्मक विशेषता

संघीय एवं एकात्मक सरकार की विशेषताओं को निम्नलिखित तरीके से तुलनात्मक रूप में उल्लिखित किया गया है

संघीय सरकारएकात्मक सरकार
1. दोहरी सरकार (अर्थात्‌ राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय सरकार)।1. एकल सरकार राष्ट्रीय सरकार होती है, जो क्षेत्रीय सरकार बना सकती है।
2. लिखित संविधान।2. संविधान लिखित भी हो सकता है (फ्रांस) या अलिखित (ब्रिटेन) भी।
3. राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय सरकारों के मध्य शक्तियों का विभाजन।3. शक्तियों का कोई विभाजन नहीं होता तथा समस्त शक्तियां राष्ट्रीय सरकार में निहित होती हैं।
4. संविधान की सर्वीच्चता।4. संविधान सर्वोच्च भी हो सकता है (जापान) और नहीं भी (ब्रिटेन)।
5. कठोर संविधान5. संविधान कठोर भी हो सकता है (फ्रांस) या लचीला (ब्रिटेन) भी
6. स्वतंत्र न्यायपालिका।6. न्यायपालिका स्वतंत्र भी हो सकती है नहीं भी।
7. द्विसदनीय विधायिका।7. विधायिका द्विसदनीय भी हो सकती है (ब्रिटेन) और एक सदनीय (चीन) भी।

संघीय व्यवस्था का आलोचनात्मक मुल्यांकन

भारत का संविधान अमेरिका, स्विटज़रलैंड और ऑस्ट्रेलिया की तरह एक परंपरागत संघीय व्यवस्था से भिन्न संविधान है और इसमें कई एकात्मक या गैर संघीय विशेषताएं हैं, जैसे केंद्र के पक्ष में शक्ति का संतुलन है। यह संविधान विशेषज्ञों द्वारा भारतीय संविधान के संघीय चरित्र को चुनौती देने के लिए पर्याप्त है। इसलिए के.सी. व्हेयर ने भारतीय संविधान को अल्प संघीय” करार दिया है।

के. संथानम के अनुसार, भारतीय संविधान के एकात्मक होने के उत्तरदायी दो कारण हैं

  • वित्तीय मामले में केंद्र का प्रभुत्व एवं राज्यों की केंद्रीय अनुदान पर निर्भरता और
  • तत्कालीन शक्तिशाली योजना आयोग द्वारा राज्य की विकास प्रक्रिया को नियंत्रित करने की व्यवस्था”।

उन्होंने महसूस किया ‘भारत एक तरफ तो एकल व्यवस्थागत देश है, फिर भी केन्द्र और राज्य अपना कार्य विधिक और औपचारिक रूप में संघीय रूप में करते हैं।”

हालांकि अन्य राजनीति शास्त्री उक्त मतों से सहमत नहीं हैं। पॉल एप्पलबी कहते हैं- “यह पूरी तरह संघीय है।”

मोरिस जॉन्स इसे ‘सहमति वाला संघ‘ कहते हैं।

आइवर जेनिंग्स” कहते हैं-‘यह मजबूत केंद्र वाला संघ” है। उन्होंने महसूस किया कि भारतीय संविधान मुख्यत: संघीय है, राष्ट्रीय एकता एवं तरक्की के लिए अनोखे कवच के साथ।

ग्रेनविल ऑस्टिन” कहते हैं-‘यह सहकारी संघ व्यवस्था है।

यद्यपि भारत के संविधान ने मजबूत केंद्र सरकार का निर्माण किया है, इसके राज्यों को भी कमजोर नहीं किया गया है। यह एक नये प्रकार का संघ है जो इसकी खास विशेषताओं को पूरा करता है।”

भारतीय संविधान की प्रकृति पर संविधान सभा के डॉ. बी.आर. अंबेडकर महसूस करते हैं, “संविधान उतना ही संघीय संविधान है जितनी दोहरी राजपद्धति। केंद्र राज्यों का संघ नहीं है, जो कमजोर संबंधों से एकीकृत हों! न ही राज्य “संघ की ऐजेंसियां हैं। संघ एवं राज्यों दोनों को संविधान द्वारा बनाया गया है। दोनों की शक्तिया संविधान में निहित हैं।” यद्यपि संविधान ने कड़ा संघीय स्वरूप नहीं दिया तथापि यह समय और परिस्थिति के अनुसार एकात्मक और संघीय हो सकता है।

केंद्रीयकरण की आलोचना का जवाब देते हुए उन्होंने कहा, “एक गंभीर शिकायत यह आई कि बहुत ज्यादा केंद्रीकरण किया गया है। यह स्पष्ट करना जरूरी है कि इसको गलत समझा गया है। केंद्र एवं राज्यों के संबंध के बरे में संबंधों के समय निर्देशित सिद्धांतों को ध्यान में रखा जाना चाहिए। संघीयता का मूल सिद्धांत ही यह है कि केंद्र एवं राज्यों के बीच विभेद वाला कोई कानून बनाया ही नहीं जा सकता। विधायी एवं कार्यपालिका के मामलों में केंद्र एवं राज्य समान हैं। यह देखना मुश्किल है कि संविधान कितना केंद्रोन्मुखी है। इसलिए यह कहना अनुचित है कि राज्य केंद्रों के अधीन कार्य करते हैं। केंद्र अपनी इच्छा से इनकी सीमाओं को बदल नहीं सकता, न ही न्यायिक क्षेत्र को।’

बोम्मई मामले (1994) में उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी कि संविधान संघीय है और संघीय यह इसकी ‘मूल विशेषता’ है। यह महसूस किया गया कि ‘संविधान की व्यवस्था के तहत राज्य की तुलना में केंद्र में बड़ी शक्तियां निहित हैं।’ इसका मतलब यह नहीं कि राज्य केंद्र पर ही निर्भर हैं। राज्यों का अपना सांविधानिक अस्तित्व है। ये केन्द्र के उपग्रह या ऐजेन्ट नहीं हैं। अपने क्षेत्र में राज्य सर्वोच्च हैं। यह तथ्य की आपातकाल के दौरान राज्य पर केन्द्र अभिभावी होगा, संविधान के आवश्यक संघीय रूप को प्रभावित नहीं करता। ये अपवाद हैं और अपवाद नियम नहीं हैं। यह कहना उचित होगा कि भारतीय संविधान में संघीय स्वरूप केवल एक प्रशासनिक सुविधा मात्र नहीं है बल्कि एक नियम है- हमारी वास्तविकताओं की अपनी प्रक्रियाओं और मान्यताओं का परिणाम।

वास्तव में, भारत में संघीय व्यवस्था अग्रलिखित दो संघर्षों के बीच सहमति का प्रतिनिधित्व करती है।

  • सामान्यत: शक्तियों का विभाजन, जिसके अंतर्गत राज्य स्वायत्त होते हुए अपना कार्य करते हैं, और;
  • राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता एवं विशेष परिस्थितियों के तहत एक मजबूत संघीय सरकार।

भारतीय राजपद्धति के निम्नलिखित कार्य संघीय व्यवस्था के द्योतक हैं:

  • राज्यों के बीच क्षेत्रीय विवाद| उदाहरण के लिए महाराष्ट्र एवं कर्नाटक के बीच बेलगाम मसले पर,
  • नदी जल बंटवारे को लेकर राज्यों के बीच विवाद ; उदाहरण के लिए कर्नाटक व तमिलनाडु के मध्य कावेरी जल पर,
  • क्षेत्रीय दलों का उद्धव और उनका सत्ता में आना, जैसे-आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु आदि,
  • क्षेत्रीय अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए नए राज्यों का गठन, जैसे-मिजोरम या झारखंड,
  • अपने विकास के लिए राज्यों द्वारा केंद्र से अधिक अनुदान की मांग,
  • राज्यों द्वारा अपनी स्वायत्तता को बरकरार रखते हुए केंद्र के हस्तक्षेप पर प्रतिक्रिया,
  • उच्चतम न्यायालय द्वारा कुछ व्यवस्थाओं का सीमांकन लागू करना, जैसे- केंद्र द्वारा अनुच्छेद 356 (राज्यों में राष्ट्रपति शासन) का प्रयोग।

Read more Chapter:-

  • Chapter-1: संवैधानिक विकास का चरण – ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
  • Chapter-2: संविधान का निर्माण
  • Chapter-3: भारतीय संविधान की विशेषताएं व आलोचना
  • Chapter-4: संविधान की प्रस्तावना
  • Chapter-5: संघ एवं इसका क्षेत्र
  • Chapter-6: नागरिकता | Citizenship
  • Chapter-7: मूल अधिकार | Fundamental Rights
  • Chapter-8: राज्य के नीति निदेशक तत्व
  • Chapter-9: मूल कर्तव्य | Fundamental Duties
  • Chapter-10: संविधान का संशोधन प्रक्रिया क्या है? आलोचना व महत्व
  • Chapter-11: संविधान की मूल संरचना का विकास, सिद्धांत, तत्व और सम्बंधित मामले
  • Chapter-12: संसदीय व्यवस्था की परिभाषा, विशेषतायें, गुण तथा दोष
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