यहूदी धर्म का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है। यह पंथ पूरे विश्व में फैला हुआ है और अपनी शानदार संस्कृति, इतिहास और धार्मिक अनुष्ठान के लिए प्रसिद्ध है। यहूदी धर्म के अनुयायी खुद को अब्राहम, इसहाक, और याकूब के वंशज या यदि कहें, इज़्राईल के वंशज मानते हैं। आज के समय में, यहूदी पंथ वैशिष्ट्यपूर्ण संघर्षों, सामाजिक परिवर्तनों, और भारतीय और विदेशी समुदायों के साथ रहता है। यहूदी समुदाय विश्व भर में अपने धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सवों, शिक्षा, और साहित्य के माध्यम से अपनी समृद्ध धरोहर को आगे बढ़ा रहा है।
यहूदी धर्म का इतिहास
यहूदी पंथ का विकास मेसोपोटामिया क्षेत्र में हुआ था। इसके पैगम्बर अब्राहम थे। इन्होंने मेसोपोटामिया से यहूदियों को फिलिस्तीनी क्षेत्र में लाया, लेकिन जब फिलिस्तीनी क्षेत्र रोमन साम्राज्य के नियन्त्रण में आ गया तो फिर रोमन शासकों के द्वारा इन्हें उत्पीड़ित किया जाने लगा। फिर यहूदियों की एक बड़ी संख्या मित्र की ओर चली गयी, परन्तु वहाँ भी उन्हें उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। फिर मिस्र से मूसा नामक सुधारक उन्हें फिर फिलिस्तीनी क्षेत्र में स्थापित किया। वस्तुतः यहूदी पंथ पश्चिम का पहला ऐसा धार्मिक पंथ था जिसने एकेश्वरवाद (एक ईश्वर एवं निराकार ईश्वर) की अवधारणा को स्वीकार किया था। उन्होंने ईश्वर की परिकल्पना याहवे के रूप में की, परन्तु चूँकि यह मूर्ति पूजा का विरोध करता था, इसलिए रोमन साम्राज्य ने इसे उत्पीडित करना आरम्भ किया।
यहूदी धर्म के मूल सिद्धांत
लगभग 3,000 वर्ष पहले, अब्राहम और उसके वंशजों ने यहूदी धर्म को प्रचारित किया था, जो एक प्राचीन अभ्राह्मी धर्म था। यहूदी धर्म के मूल सिद्धांत संक्षिप्त रूप से उन मूलतत्त्वों को बताते हैं, जिनसे यह धर्म उत्पन्न हुआ है। यहूदी धर्म के प्रमुख सिद्धांतों की एक विस्तृत व्याख्या निम्नलिखित है:
1. एकदेववाद
यहूदी पंथ के सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांतों में से एक है मोनोथेइज्म यानी एकदेववाद, जिसका अर्थ है कि एक ईश्वर है । यहूदी पंथ अनेक देवताओं की पूजा या प्रतिमा पूजा का विरोध करता है। धर्मग्रंथ तनाख में यहूदी पंथ के मोनोथेइज्म पर ज्यादा जोर दिया गया है।
2. प्रेषण (वचनबद्ध)
यहूदी धर्म में वचनबद्धता बहुत महत्वपूर्ण सिद्धांत है। यहूदी धर्मी लोग धर्मिक और आध्यात्मिक संबंधों में वचनबद्धता को प्राथमिकता देते हैं और बहस में भी अपने शब्दों का पालन करते हैं।
3. विश्व का सुधार
यहूदी पंथ के अनुसार, यहूदी समाज का मुख्य उद्देश्य विश्व को सुधारना है। वे सतत् प्रयासरत रहते हैं कि दुनिया में न्याय, समानता, और शांति की स्थापना हो। टिकून ओलम एक विधि है जिसमें यहूदी समाज के लोगों को सही और न्यायपूर्ण तरीकों से समाज में बदलाव लाने की कोशिश की जाती है।
4. कर्मशीलता
यहूदी पंथ में कर्मशीलता भी एक प्रमुख सिद्धांत है। यहूदी व्यक्ति को अपने धार्मिक कर्तव्यों को ईमानदारी से और पूरी तरह से समर्पित करना चाहिए, यह कर्मशीलता का अर्थ है।
यह सिद्धांत यहूदी धर्म के बुनियादी तत्व हैं और इनका पालन धर्मीक जीवन का मूल भाग रहता है। यहूदी धर्म के अनुयायी इन सिद्धांतों के प्रचार-प्रसार में समर्थ रहते हैं ताकि एक ईश्वरीय जीवन जी सकें और समाज के सुधार में सहायता कर सकें।